उत्तर पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत के गेर्मू शहर में एक तिब्बती अप्रवासी गांव बसा हुआ है। गांववासी पहले चरवाहे हुए करते थे। देश में पारिस्थितिकी संरक्षण आह्वान पर वे सभी बर्फिले पहाड़ और घास के मैदान छोड़कर शहर में आकर बस गये। तो मित्रों, आज के इस कार्यक्रम में आप हमारे साथ करेंगे इस गांव का दौरा और देखेंगे कि वर्तमान में अप्रवासी गांववासियों का जीवन कैसा है।
गांव में प्रवेश करने के दौरान सफेद दीवार और लाल छत वाले मकान एकाएक नज़र आ रहे हैं। गांव की सड़क के दोनों ओर चिनार के पेड़ और सौर ऊर्जा के स्ट्रीट लाइट खड़े हैं। गांव में आधुनिकता का माहौल है। मकान की छत पर तिब्बती शैली की बनी डिज़ाइन, सड़क पर तिब्बती पोशाक पहने हुए महिलाएं और सूत्र चक्र घूमाने वाले तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी.... इन सबको देखकर बिल्कुल तिब्बती क्षेत्र का माहौल प्रतीत होता है। यह गेर्मू शहर के दक्षिण उपनगर स्थित थांगकूलाशान कस्बे का अधीन अप्रवासी गांव है, जहां के गांववासी यांत्सी नदी के उद्गम स्थल से पलायन किया।
गांव के मुखिया कङगा नानच्ये के घर का क्षेत्रफल 300 वर्ग मीटर है। लीविंग रुम में तिब्बती पारंपरिक शैली और आधूनिक शैली के फर्निचर और रोज़मर्रा के इलेक्ट्रोनिक उपकरण मौजूद हैं। बुद्ध की पूजा करने वाले आले की दीवार पर नए चीन की स्थापना के बाद से लेकर अब तक चीन के शीर्ष नेताओं की फोटो टंगी हुई हैं।
कङगा नानच्ये गहरे रंग का सूट पहने हुए हैं। उन्होंने कहा कि पहले गांव के लोग पठार के पशुपालन क्षेत्र के शीविर में रहते थे, वहां का जलवायु और यातायात साधन बढ़िया नहीं है। इस गांव में आने के बाद गांव के लोगों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। मकान में पीने का पानी, बिजली, टीवी, टेलिफ़ोन आदि उपलब्ध हैं। जीवन बहुत सुखदायक है। अब उनकी सबसे बड़ी इच्छा है कि गांव में धार्मिक कार्य चलाने के लिए अधिक स्थल बनाए जाए। कङगा नानच्ये का कहना है:
"अब हमारे जीवन में कोई कष्ट नहीं है। गांव में धार्मिक कार्य करने के लिए जगह की कमी है। जहां तिब्बती लोग रहते हैं, वहां धार्मिक विश्वास मौजूद रहता है। यह हमारी तिब्बती जाति की विशेषता है। रोज़ अवकाश के समय सूत्र चक्र घूमाना और सूत्र पढ़ना गांववासियों की दिनचर्या है। इससे उन्हें अपना जीवन और अच्छा लगता है।"
इस अप्रवासी गांव में धार्मिक कार्य के लिए जगह उपलब्ध करवाने और बौद्ध अनुयायियों को अधिक सुविधा प्रदान करने के बारे में स्थानीय सरकार ने ख़ासा ध्यान दिया है। थांगकुलाशान कस्बे के शीर्ष नेता चाओ शोयुआन ने कहा:
"हमने योजना बनाई कि गांव में नर्सिंग होम के आसपास सूत्र चक्र और सूत्र झंडियां स्थापित करेंगे। सूत्र चक्र घूमाने से बुजुर्गों का स्वास्थ्य बेहतर होगा और उनकी आध्यात्मिक मांग भी पूरी होगी।"
पहले कङगा नानच्ये और उनके गांववासी समुद्र तल से 4700 मीटर स्थित छिंगहाई तिब्बत पठार के थांगकुलाशान कस्बे में घुमंतू जीवन बिताते थे। यहां यांत्सी नदी का उद्गम स्थल है। वर्ष 2004 के अंत में पहले खेप वाले 128 परिवार के तिब्बती चरवाहे के कुल 407 लोगों ने अपनी इच्छा से 400 किलोमीटर दूर स्थित इस नए गांव में पलायन किया। वर्ष 1985 में पठार में आये जबरदस्त बर्फ़िले तूफ़ान से भारी आर्थिक नुकसान हुआ। चीन सरकार ने सानच्यांग युआन पारिस्थितिकी संरक्षण परियोजना शुरु की।