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पंकज - नमस्कार मित्रों आपके पसंदीदा कार्यक्रम आपकी पसंद में मैं पंकज श्रीवास्तव आप सभी का स्वागत करता हूं, आज के कार्यक्रम में भी हम आपको देने जा रहे हैं कुछ रोचक आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक जानकारियां, तो आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं।
दिनेश – श्रोताओं को दिनेश का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं हम आपसे हर सप्ताह मिलते हैं आपसे बातें करते हैं आपको ढेर सारी जानकारियां देते हैं साथ ही हम आपको सुनवाते हैं आपके मन पसंद फिल्मी गाने तो आज का कार्यक्रम शुरु करते हैं और सुनवाते हैं आपको ये गाना जिसे हमने लिया है फिल्म आरोप का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं माया गोविन्द और संगीत दिया है भूपेन हज़ारिका ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 1. नयनों में दर्पण है दर्पण में कोई ....
पंकज – मित्रों मध्य तुर्की में पहाड़ों पर बसा कप्पादोचा एकमात्र ऐसा गांव है जहां सड़क या रेलमार्ग के बजाय हॉट एयर गुब्बारे में सवारी करके ही पहुंचा जा सकता है, यहां प्रचीन सभ्यताएं देखी गई हैं इसलिये ये विश्व धरोहर घोषित है, कनाडाई फोटोग्राफर फ्रांक्वा नादेओ जब यहां टूअर पर आए तो उन्होंने यहां की कई बेहतरीन फोटो खींची उनका कहना है कि यहां पर आने के बाद कई फोटोग्राफर उगते सूरज और प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीरें लेते हैं लेकिन उनकी रुचि इस गांव के पैटर्न या खाके पर थी, इसलिये उन्होंने गर्म हवा से उड़ने वाले गुब्बारे में सफर करने के साथ ही कई फोटो खींचे, नए व्यक्ति को यहां पर उड़ने वाले सैकड़ों गुब्बारे देखकर हैरानी तो ज़रूर होगी लेकिन अब ये यहां की दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं। आजकल यहां पर सैकड़ों की संख्या में सैलानी इस गांव में आकर ऊपर से इन गांव और प्राचीन सभ्यता के नज़ारे का आनंद उठाते हैं।
पंकज –मित्रों अब हम आपको बताना चाहेंगे एक और हैरतअंगेज़ खबर जिसके तहत वैज्ञानिक दिमाग़ का बैक-अप बनाने में लगे हैं और इंसान के अमर होने की चाहत पर काम कर रहे हैं। लेकिन अमरत्व से पहले वो दिमाग के बैकअप पर ज्यादा ज़ोर दे रहे हैं और इसे ही अमरत्व की पहली सीढ़ी मान रहे हैं।
वैसे इंसान सदियों से गुफ़ाओं की दीवारों पर चित्र उकेरकर अपनी यादों को विस्मृत होने से बचाने की कोशिश कर रहा है.
पिछले काफ़ी समय से मौखिक इतिहास, डायरी, पत्र, आत्मकथा, फ़ोटोग्राफ़ी, फ़िल्म और कविता इस कोशिश में इंसान के हथियार रहे हैं.
आज हम अपनी यादें बचाए रखने के लिए इंटरनेट के पेचीदा सर्वर पर - फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, जीमेल चैट, यू-ट्यूब पर भी भरोसा कर रहे हैं.
ये इंसान की अमर बने रहने की चाह ही हो सकती है कि इटर्नी डॉट मी नाम की वेबसाइट तो मौत के बाद लोगों की यादों को सहेज कर ऑनलाइन रखने की पेशकश करती है.
लेकिन आपको किस तरह से याद किया जाना चाहिए?
अब तो ये भी संभव है कि हमारी आने वाली पुश्तों के लिए हमारे दिमाग को संरक्षित करके रखा जा सके.
मतलब ये कि यदि आपके ब्रेन को हार्ड ड्राइव पर सेव करना संभव हो, तो क्या आप ऐसा करना चाहेंगे?
आपके दिमाग़ की हू-ब-हू कॉपी
क्या सब कुछ सेव करना बेहतर होगा ? न सिर्फ कुछ लिखे हुए विचारों को, बल्कि पूरे मस्तिष्क को, हर उस चीज़ को जिसे हम जानते हैं और जो हमें याद है, हमारे प्रेम-प्रसंग और दिलों का टूटना, विजयी और शर्मनाक क्षण, हमारे झूठ और सच।
दिनेश – श्रोता मित्रों ये बातें एक साईंस फिक्शन यानी वैज्ञानिक परी कथा जैसी लगती है लेकिन जिस तरह से विज्ञान तरक्की करता जा रहा है उसे देखकर तो यही लगता है कि ये दोनों ही बातें भविष्य में सही हो जाएंगी, इंसान लंबी आयु ही नहीं बल्कि अमर हो जाएगा। खैर आगे बढ़ने से पहले मैं अपने श्रोताओँ को उनकी पसंद का एक फिल्मी गाना सुनवा देता हूं। इस गाने के लिये हमें पत्र लिखा है हमारे बहुत पुराने श्रोता पारस राम श्रीवास जी ने आप आदर्श श्रीवास रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष भी हैं और आपके ढेर सारे परिजनों ने भी हमें ग्राम लहंगाबाथा, पोस्ट बेलगहना, ज़िला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से पत्र लिखा है और आप सभी ने सुनना चाहा है झूठा कहींका फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और आशा भोंसले ने गीतकार हैं आनंद बख्शी और संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 2. जीवन के हर मोड़ पे .....
पंकज - ये सवाल कुछ लोग हमसे जल्द पूछेंगे। ये वो इंजीनियर हैं जो ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जो हमारे दिमाग़ और याददाश्त की हू-ब-हू कॉपी बनाकर रख पाएँगे.
अगर वो सफल रहे, तो क्या मौत से हमारा संबंध ही हमेशा के लिए बदल जाएगा?
सेन फ्रांसिस्को के एरोन सनशाइन की दादी का हाल ही में निधन हुआ. 30 वर्षीय सनशाइन कहते हैं, "मुझे ये बात खटकी कि उनके पीछे उनकी कुछ ही यादें रह गई हैं. उनकी टी-शर्ट, जो मैं कभी-कभी पहनता हूँ, उनकी संपत्ति है पर वो तो किसी भी डॉलर के नोट के समान है..."
उनकी मौत ने सनशाइन को इटर्नी डॉट मी वेब सर्विस में साइनअप करने के लिए प्रेरित किया.
इस वेब सर्विस का दावा है कि ये आपकी याद को मृत्यु के बाद ऑनलाइन कायम रखेगी.
जब तक आप ज़िंदा हैं तब तक आप इसे अपने फ़ेसबुक, ट्विटर और ईमेल तक पहुँचने की इजाज़त देते हैं, फ़ोटो अपलोड करते हैं और यहाँ तक कि गूगल ग्लास से उन चीजों की रिकॉर्डिंग भी दे सकते हैं जिन्हें आपने देखा है.
वो इस तरह आपके बारे में डेटा का संग्रह करते हैं, उसको फिल्टर करते हैं और फिर उस अवतार को ट्रांस्फ़र कर देते हैं जो आपके चेहरे के लुक और आपके व्यक्तित्व की नकल करता है.
आपका अवतार
जीते जी आप अवतार से जितनी ज़्यादा बात करते हैं, वह आपके बारे में उतना ही ज़्यादा जान पाता है. समय बीतने के साथ वह आपकी पर्सनेलिटी को अपना लेता है।
दिनेश – इस दिलचस्प चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले मैं अपने श्रोताओं को एक और मधुर गीत सुनवाता चलूं जिसके लिये हमें पत्र लिखा है अखिल भारतीय रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष पंडित मेवालाल परदेशी जी और इनके ढेर सारे मित्रों ने आपने हमें पत्र लिखा है महात्वाना, महोबा, उत्तर प्रदेश से आप सभी ने सुनना चाहा है जोशीला फिल्म का गाना जिसे गाया है आशा भोंसले ने संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने गीतकार हैं आनंद बख्शी और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 3. शरमा ना यूं.....
पंकज - इटर्नी डॉट मी के सह संस्थापकों में से एक मारियस उर्साच का कहना है, "उद्देश्य एक 'इंटरएक्टिव लेगेसी' तैयार करने और भविष्य में पूरी तरह भुला दिए जाने से बचना है. आपकी नाती-पोते के भी नाती-पोते आपके बारे में जानने के लिए किसी सर्च इंजन या टाइमलाइन का प्रयोग करने के बजाय इसका प्रयोग करेंगे."
इटर्नी डॉट मी और इसी तरह की अन्य सेवाएं समय बीतने के साथ-साथ खो जाने वाली यादों को सहेजने का तरीका इजाद कर रहे हैं.
गूगल, यूएस, ईयू, ऑक्सफ़ोर्ड...
हमें डिजिटल फॉर्म में क्या रखना है और क्या छोड़ना है, इसके चुनाव में सिर खपाने से क्या ये बेहतर न हो कि मस्तिष्क की विषय वस्तु को ही पूरी तरह रिकॉर्ड कर लिया जाए?
यह काम न तो विज्ञान की काल्पनिक कथा की परिधि में आता है और न ही यह अति महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक कार्य है.
सैद्धान्तिक रूप से, इस प्रक्रिया की सफलता के लिए तीन महत्वपूर्ण बातें जरूरी हैं.
वैज्ञानिकों को सबसे पहले यह पता लगाना पड़ेगा कि मरने के बाद किसी के मस्तिष्क को बचाकर रखा जाए कि वह नष्ट न हो.
दूसरा, इस मस्तिष्क में मौजूद विवरणों का विश्लेषण और उसकी रिकॉर्डिंग ज़रूरी होंगे.
और अंततः इस तरह इंसानी दिमाग़ के अंदर की बातों को "कैप्चर" करने के बाद सिम्यूलेशन से इसी तरह के दिमाग़ का निर्माण.
इसके लिए ज़रूरी है कि पहले एक कृतिम मानव दिमाग़ बनाया जाए. जिसमें याददाश्त के बैकअप को 'रन' किया जा सके.
यूएस ब्रेन प्रौजेक्ट, ईयू ब्रेन प्रौजेक्ट लाखों न्यूरॉन्स से दिमाग़ में होने वाली हरकतों को रिकॉर्ड कर इसके मॉडल तैयार कर रहे हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के फ्यूचर ऑफ ह्यूमैनिटी इन्स्टीच्यूट से जुड़े एंडर्स सैंडबर्ग के 2008 में लिखे शोध पत्र ने इन प्रयासों को सीढ़ी बताया है.
उन्होंने कहा कि यह इंसानी मस्तिष्क का पूर्ण तरीके से अनुकरण करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
दिनेश – आपकी इस जानकारी में मुझे भी बहुत आनंद आ रहा है, मन कर रहा है कि इस तरह की विज्ञान पर आधारित परीकथा को सुनता जाऊं और इन बातों के माध्यम से मैं भी अपनी परिकल्पना में खो जाता हूं और भविष्य के उस अकल्पनीय समय में पहुंच रहा हूं जो वास्तव में है ही नहीं, लेकिन अभी हम अपने श्रोताओं को उनकी पसंद का एक गाना सुनवा दें तो इस चर्चा में और भी आनंद आएगा, हमारे अगले श्रोता हैं व्यापारी कॉलोनी, नेपानगर से सुदर्शन शाह, रुद्रेश शाह, सुरभि शाह, अर्जुनदास जी शाह, राजेन्द्रजी शाह, सुभद्रा बेन शाह, मंगला बेन शाह, मृत्युंजय संतोष, विजय मनोहर, रमेश, शांताराम, लीलाधर, सिद्धार्थ और सचिन आप सभी ने सुनना चाहा है गर्दिश फिल्म का गाना जिसे गाया है आशा भोंसले और एस पी बालासुब्रामण्यम ने गीतकार हैं जावेद अख्तर और संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 4. रंग रंगीली रात गाए आ झूम ले .....
पंकज - गूगल ने ब्रेन एम्यूलेशन के क्षेत्र में ख़ासा पूँजी निवेश किया है और रे कुर्ज़वेल को गूगल ब्रेन प्रौजेक्ट का निदेशक बनाया है.
वर्ष 2011 में एक रूसी उद्यमी दिमित्री इत्स्कोव ने "2045 इनिशिएटिव" शुरु किया.
ये नाम रे कुर्जवेल की इस भविष्यवाणी पर आधारित था कि वर्ष 2045 में हम अपने दिमाग़ का क्लाउड तकनीक पर बैक-अप बना पाएंगे.
मेमोरी डंप
इंसानी दिमाग़ की नकल करना एक बात है और याददाश्त का डिजिटल रिकॉर्ड बनाना दूसरी बात.
यह साधारण सी प्रक्रिया उपयोगी होगी कि नहीं इस बारे में सैंडबर्ग थोड़े आशंकित हैं.
सैंडबर्ग कहते हैं, "यादें कम्यूटर में सफ़ाई से उन फाइलों की तरह स्टोर नहीं की जातीं, जिनको हम एक इंडेक्स के माध्यम से खोज सकें."
एक समस्या यह भी है कि किसी व्यक्ति के दिमाग़ से उसकी याददाश्त को निकालने की प्रक्रिया को, दिमाग़ को क्षति पहुंचाए बिना कैसे अंजाम दिया जाए.
सैंडबर्ग का कहना है कि दिमाग़ को क्षति पहुंचाएं बिना इसको स्कैन कर पाएँगे, इस बारे में शक़ है.
पर वे इस बात से सहमत हैं कि अगर हम सिम्यूलेटिड दिमाग़ को पूरी तरह से 'रन' कर पाते हैं तो किसी व्यक्ति विशेष की यादों का डिजिटल अपलोड संभव है.
इसके नैतिक और नीतिगत मुद्दों पर भी ग़ौर करना पड़ेगा. जैसे वॉलाटियर्स का चुनाव, विशेषकर तब जब स्कैनिंग से शरीर को क्षति पहुँच सकती हो. नए तरह के अधिकारों की भी बात उठेगी.
दिनेश – श्रोता मित्रों मैं आप सभी को यहां थोड़ी देर के लिये रोकूंगा और आपकी पसंद का अगला गाना सुनवाऊंगा जिसके लिये हमें पत्र लिखा है ग्राम महेशपुर खेम, ज़िला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश से तौफ़ीक अहमद सिद्दकी, अतीक अहमद सिद्दीकी, मोहम्मद दानिश सिद्दीकी और इनके सभी मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है दुल्हन एक रात की फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी ने और संगीत दिया है मदनमोहन ने गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर – 5. इक हंसीं शाम को दिल मेरा खो गया ....
परिसंपत्ति क़ानून
पंकज - किसी व्यक्ति की निजता की सीमाएँ क्या हैं और उसकी विशेष यादों के स्वामित्व का मामला भी जटिल है.
अपने आत्मलेख में आप अपनी किन यादों को रिकॉर्ड करना चाहते हैं इसका चुनाव आप कर सकते हैं.
अगर आपकी किन यादों तक कोई पहुँच सकता है, यह तय करने की आप में क्षमता ही नहीं है तो यह एक बहुत ही अलग तरह का मामला बन जाता है.
और फिर यह सवाल कि क्या किसी 'एम्यूलेटिड दिमाग़' को हम इंसान मान सकते हैं?
असमंजस कायम
मैं सनशाइन से पूछता हूं कि वह क्यों अपने जीवन को इस तरह रिकॉर्ड कराना चाहते हैं?
वह कहते हैं, "सच पूछो तो मुझे पता नहीं है. मेरी जिंदगी के जो यादगार लम्हे हैं वो हैं दावतें, संभोग, दोस्ती का आनंद. और इनमें सब इतने क्षणिक हैं कि इनको किसी सार्थक तरीके से संरक्षित नहीं किया जा सकता.
सनशाइन कहते हैं, "मेरा एक मन चाहता है मेरे लिए कोई स्मारक हो और दूसरा कहता है पूरी तरह से बिना कोई निशान छोड़े गायब हो जाऊं."
मुझे लगता है कि हम सब इसी तरह से सोचते हैं.
शायद हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे बारे में वो याद रखा जाए जो याद रखने लायक है. बाक़ी को छोड़ देना ही बेहतर है.
दिनेश – मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं एम एफ़ आज़म और इनके ढेर सारे परिजनों ने आज़म साहब आत्माओ रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष हैं इन्होंने हमें पत्र लिखा है ग्राम गड़हिया, जिला शिवहर, बिहार से, आप सभी ने सुनना चाहा है कयामत से कयामत तक फिल्म का गाना जिसे गाया है उदित नारायण और अलका याग्निक ने गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी, संगीत दिया है आनंद मिलिंद ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 6. गज़ब का है दिन .....
पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।
दिनेश – नमस्कार।