तिब्बती युवा फङत्सो बचपन से ही उत्तर-पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत के पठारीय पशुपालन क्षेत्र में रहता है। उसने कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की। लेकिन उसने एक अवसर का लाभ उठाकर अपना जीवन पूरी तरह बदल डाला। वह एक चरवाहे से अध्यापक बन गया है। वो कौन सा अवसर है?वह कैसे अध्यापक बना?
फङत्सो का चचेरा भाई नेपाल में व्यापार करता है। पहले चचेरा भाई भी एक चरवाहा था। व्यापार करने के बाद उसने देखा कि दुनिया कितनी विशाल है। चचेरे भाई ने शिक्षा के महत्व को महसूस किया और फंङत्सो से पहाड़ी क्षेत्र से बाहर निकाल कर शिक्षा ग्रहण करने की मांग की। ज्ञान के प्रति प्यास के कारण 18 वर्षीय फङत्सो शिक्षा ग्रहण करने नेपाल गया। पहली बार विदेश आने पर वह बहुत उत्सुक था। इसकी चर्चा में तिब्बती युवा फङत्सो ने कहा:
"उस समय मैं एक कल्याण संस्था द्वारा स्थापित स्कूल गया, जहां कोई भी व्यक्ति पढ़ सकता था। इस स्कूल में किसी ग्रेड का फ़र्क नहीं है और न ही पढ़ने का कोई खर्च आता है। स्कूल के सभी शिक्षक स्वयं सेवक हैं। वे ब्रिटेन और अमेरिका समेत विश्व के विभिन्न देशों से आते हैं।"
इस स्कूल में मात्र तिब्बती भाषा और अंग्रेज़ी कोर्स स्थापित हुए हैं। इस तरह अंग्रेज़ी फङत्सो द्वारा सीखी गई पहली विदेशी भाषा है। अब वह धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोल सकता है। सात वर्षों में नेपाल में स्कूली जीवन की याद करते हुए फङत्सो ने कहा:
"तुम स्कूल जाना चाहतो हो, तो जा सकते। अगर स्कूल जाना नहीं चाहते हो, तो मत जाओ। तुम्हारे पास इस बात की पूरी स्वतंत्रता है। हमारे पास पढ़ाई के पाठ्यपुस्तक कम थे, और शिक्षक अपूर्ण था। कभी कभार इस हफ्ते में यह अध्यापक आता है और अगले हफ्ते में दूसरा नया अध्यापक। स्थिति ऐसी होने के बावजूद मेरी अंग्रेज़ी का स्तर तेज़ी से बढ़ रहा है। मुझे अंग्रेज़ी सीखना पसंद है। नेपाल में बहुत से लोग अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग करते हैं। मैं कभी कभार नेपाली मित्रों से सीखता था। मुझे लगता है कि अंग्रेज़ी सीखना एक हर्षोल्लास वाली बात है। मेरे पास दूसरे विदेशी मित्रों के साथ बातचीत के दौरान मेरे अंग्रेज़ी बोलने का स्तर लगातार उन्नत होता गया।"