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    टी टाइम 140930 (अनिल और वेइतुंग)
    2014-10-21 16:27:57 cri

    अनिलः टी-टाइम के नए अंक के साथ हम फिर आ गए हैं, आपका मनोरंजन करने। जी हां ..चाय की आवाज .........आपके साथ चटपटी बातें करेंगे और चाय की चुस्कियों के साथ लेंगे गानों का मजा, 35 मिनट के इस प्रोग्राम में। इसके साथ ही प्रोग्राम में श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं भी होंगी शामिल। हां भूलिएगा नहीं, पूछे जाएंगे सवाल भी, तो जल्दी से हो जाइए तैयार।...........................................

    दोस्तो वैसे एक सप्ताह में सात दिन होते हैं, लेकिन हमें आपके लिए प्रोग्राम पेश करने का बड़ा इंतजार रहता है। तो क्या कर रहे हैं आप लोग, रेडियो सेट ऑन किया कि नहीं, अगर नहीं तो जल्दी कीजिए। क्योंकि टी-टाइम प्रोग्राम हो चुका है शुरू।

    अनिलः दोस्तो, 23 अक्टूबर को दिवाली का त्यौहार मनाया जाएगा, इस मौके पर हम सभी लोगों को शुभकामनाएं देते हैं। उम्मीद करते हैं कि आपकी दिवाली खुशियों से भरी रहे और सुरक्षित रहे। इस अवसर पर हम आपको कुछ कहना चाहते हैं।

    दिवाली रोशनी का त्योहार है, इसलिए इसे दीये व मोमबत्ती जलाकर मनाएं। त्योहार की उमंग में आतिशबाजी के दौरान थोड़ी सी लापरवाही से आंखों की रोशनी जा सकती है। इसके अलावा इससे त्वचा संबंधी बीमारियां होने का भी डर बना रहता है। ऐसे में दिवाली के दिन आतिशबाजी पर्यावरण में प्रदूषण का ऐसा जहर घोलती है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। पटाखों के कारण अक्सर दुर्घटनाएं सामने आती हैं। सफदरजंग अस्पताल के बर्न विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह देखा गया है कि अनार बम से सबसे अधिक हादसे होते हैं। करीब 70 फीसद लोगों का चेहरा इसकी चपेट में आता है। ऐसे में आंखें प्रभावित होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। डॉक्टरों का कहना है कि दिवाली के दिन आतिशबाजी के चलते जख्मी हुए कई ऐसे मरीज भी इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनकी आंखों में पटाखों के कण जाने के कारण जलन होने लगती है। पटाखों के धुएं से कार्बन डाइआक्साइड, मोनो आक्साइड व सल्फर डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैस निकलती हैं। इससे आंखों में एलर्जी हो जाती है और जलन महसूस होती है।

    -डॉक्टरों के अनुसार देखा गया है कि पटाखों के धुएं व इसके मसाले के चलते चेहरे पर काला दाग बन जाता है। यह तीन से चार महीने तक रहता है। इसके अलावा पटाखों के प्रदूषण के चलते एक्जिमा पीड़ितों की बीमारी बढ़ जाती है और शरीर में खुजली होने लगती है। कई बार सामान्य व्यक्ति को भी यह परेशानी हो सकती है। यदि किसी बुजुर्ग व्यक्ति की त्वचा शुष्क है तो उसे एलर्जी हो जाती है।

    पटाखों के प्रभाव से कई बार बालों का रंग भी भूरा या सफेद दिखने लगता है। पटाखे त्वचा के लिए खतरनाक होते हैं। इसलिए आतिशबाजी से दूर रहें।

    ....एक बार फिर से आप सभी को दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

    उधर अर्जेंटीना को विश्व के मांस भंडारण के नाम से जाना जाता है। देश की लगभग 55 प्रतिशत भूमि में घास के मैदान हैं। पशु पालन अर्जेंटीना का एक मुख्य उद्योग है। अर्जेंटीना के लोगों को मांस खाने से खास लगाव है। पिछले कुछ वर्षों में अर्जेंटीना आर्थिक मंदी से जूझ रहा है, लेकिन इससे स्थानीय लोगों का मांस के प्रति लगाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

    अर्जेंटीना मांस, पोल्ट्री उद्योग और व्यापार संघ ने 15 अक्टूबर को रिपोर्ट जारी कर बताया कि वर्ष 2013 में अर्जेंटीना की प्रतिव्यक्ति सालाना मांस उपभोग की मात्रा 122 किलो पर जा पहुंची है, जो एक नया रिकार्ड था। वर्ष 2014 के पहले 8 महीने में प्रति व्यक्ति की मांस उपभोग की मात्रा 125.6 किलो से अधिक है ,ये अभूतपूर्ण है। रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के पहले 8 महीने में अर्जेंटीना में औसतन हर व्यक्ति ने 58.9 किलो गो मांस, 45 किलो चिकन ,12 किलो सुअर के मांस और 9.7 किलो मछली खाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में लक्सेंबर्ग की प्रति व्यक्ति सालाना मांस उपभोग की मात्रा 140 किलो है ,जो विश्व में सर्वाधिक बनी रहती है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया 130 किलो और 120 किलो से दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। लेकिन अब अर्जेंटीना ऑस्ट्रेलिया को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर आ गया है।

    अर्जेंटीना की एक गैर सरकारी संस्था के आंकड़ों के अनुसार आधे से अधिक अर्जेंटीना के लोग सप्ताह में कम से कम चार बार बारबीक्यू खाते हैं। मांस अर्जेंटीना के लोगों की रोजमर्रा जीवन का प्राथमिक जरूरी खाद्य पदार्थ है।

    पिछले कुछ वर्षों में देशी विदेशी कारणों से अर्जेंटीना आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है। मुद्रास्फीति से अर्जेंटीना के मांस के दामों में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। इस साल के पहले 9 महीनों में अर्जेंटीना की समग्र महंगाई दर 19.8 प्रतिशत है। एक साल में गाय का मांस ,सुअर का मांस ,चिकन और मछली की कीमतें अलग अलग तौर पर 58 प्रतिशत ,42 प्रतिशत ,40 प्रतिशत और 30 प्रतिशत बढी हैं। ऊंचे दामों के बावजूद अर्जेंटीना के लोगों ने मांस का उपभोग कम नहीं किया। इस वर्ष के पहले 9 महीने में अर्जेंटीना में बीफ की बिक्री पिछले साल की समान अवधि से 7.6 प्रतिशत बढी ,सुअर ,चिकन और मछली की बिक्री में लगभग 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

    देश में मांस के दामों को स्थिर बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में अर्जेंटीना की सरकार ने कुछ खास कदम भी उठाये। वर्ष 2011 के अप्रैल से अर्जेंटीना ने सार्वजनिक मांस खाने की योजना लागू की। इस योजना के अनुसार सरकार हर दिन बाजार में विभिन्न किस्मों के हजारों किलो कम कीमत वाले मांस उतारती है ताकि गरीब लोग भी मांस खा सकें। इसके अलावा अर्जेंटीना सरकार ने घरेलू बाजार की पूर्ति की गारंटी के लिए मांस निर्यात शुल्क भी बढ़ाया है।

    अब बात फिल्मों की करते हैं। रितिक रोशन की फिल्म 'बैंग बैंग' ने वल्र्डवाइड 323 करोड़ का कलेक्शन करके सलमान खान की फिल्म 'एक था टाइगर' को पीछे छोड़ दिया। अब 'बैंग बैंग' वर्ल्‍डवाइड कलेक्शन के लिहाज से बॉलीवुड की छठी सबसे सफल फिल्म बन गई है।

    एक था टाइगर ने वर्ल्‍डवाइड 320 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। हालांकि भारत के कलेक्शन के लिहाज से एक था टाइगर अभी 'बैंग बैंग' से काफी आगे हैं। 'बैंग बैंग' ने भारत में अभी तक 172 करोड़ रुपए कमाए हैं, जबकि एक था टाइगर ने 198 करोड़ की कमाई की थी।

    दिलचस्प बात यह है कि 'एक था टाइगर' और 'बैंग बैंग' दोनों की हीरोइन कट्रीना कैफ ही हैं।

    दोस्तो अब वक्त हो गया है, लिस्नर्स के कमेंट शामिल करने का।

    पहला ई-मेल हमें आया है, केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल। लिखते हैं कि

    ताज़ा अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों का ज़ायज़ा लेने के बाद हमने साप्ताहिक "टी टाइम" का ताज़ा अंक भी सुना, जिसकी शुरुआत ही में आप द्वारा आशा के अनुरूप वर्ष 2014 के शांति नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला यूसुफ़ज़ई की चर्चा किया जाना अच्छा लगा। भले ही भारत-पाकिस्तान सीमा पर गोलियाँ चल रही हों, दुनिया में अमन चाहने वाले शांति के इन दूतों को संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार से नवाज़े जाने का ह्रदय से स्वागत करते हैं। कार्यक्रम में फ़्रांस के मोदियाना को साहित्य का नोबेल मिलने की भी चर्चा की गई। हमने मनुष्यों के लिये लहसुन के गुणकारी होने की बात तो सुनी थी, परन्तु पेड़-पौधों को लहसुन का इंजेक्शन देकर रोगमुक्त करने की क़वायद के बारे में सुना, तो आश्चर्य हुआ। अमेरिका की 13 वर्षीय बालिका एलिशा (ब्लूबेरी) मंगलग्रह पर जाने नासा में ट्रेनिंग ले रही हैं, मैं उनके ज़ज़्बे को सलाम करता हूँ।सिएरालियोन सहित अफ्रीका के तीन देशों में विकट से विकटतर होती इबोला महामारी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के उपप्रमुख द्वारा दी गई जानकारी चिंताजनक लगी। आज के तीनों जोक्स में सन्ता-बंता वाला जोक् ही सबसे उम्दा लगा। कार्यक्रम में सवाल-जवाब का दौर महत्वपूर्ण है, परन्तु इसमें श्रोताओं को सूखा-सूखा रखना कम अच्छा लगता है ! धन्यवाद।

    दिनांक 14 अक्टूबर को साप्ताहिक "टी टाइम" के तहत पूछे गये प्रश्नों का उत्तर भेज रहा हूं।

    अगला मेल भेजा है, जमशेदपुर झारखंड से एस.बी.शर्मा ने। लिखते हैं कि पिछले अंक के टी टाइम की शुरुआत भारत और पाकिस्तान के गौरवान्वित

    होने वाले समाचार से की गई। भारत में बच्चों के लिए काम करने वाले

    संस्था बचपन बचाओ अभियान के रथी कैलाश सत्यार्थी जी को साल २०१४ के शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है । कैलाश जी एक इंजीनियर थे, और 26 साल की उम्र में अपनी नौकरी छोड़ कर उन्होंने बच्चों के लिए काम करना शुरू किया था। पहले भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं वे विदेशों में भी बच्चों से जुड़े

    सम्मेलनों के शिरकत करते रहे हैं। वहीं पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई को भी

    नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है। आतंकियों से विरोध और बच्चियों के पढाई

    पर जोर देने के लिए उन्हें यह पुरस्कार मिला है। मलाला नोबेल जीतने वाली

    दुनिया की सबसे कम उम्र की व्यक्ति है। इन दोनों को बधाई। वहीं लहसुन के औषधीय गुणों के कारण हमेशा इसका उपयोग खाने और चिकित्सा में होते रहा है पर ब्रिटेन का हालिया शोध पेड़ पौधों को बचाने में कारगर हो रहा है। जानकर

    अच्छा लगा। वहीं अमेरिका की अलीशा नमक लड़की मंगल गृह पर जाना चाहती है अलीशा बाकायदा अमेरिका के नशा में ट्रेनिंग ले रही है। जबकि वह जानती ही की मंगल से लौटकर आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। उसके जज्बे को सलाम है। आगे आपने एबोला वाइरस और इस महामारी के विषय में बताया। समय रहते इस महामारी का इलाज और निदान ढूंढना बहुत जरुरी है। यह बीमारी अबतक लगभग चार हजार लोगों को निगल चुकी है। जल्द उपाय नहीं हुआ तो यह बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी।

    वहीं पश्चिम बंगाल से देवाशीष गोप और रविशंकर बसु आदि ने। लिखते हैं कि हमें आपके प्रोग्राम का बड़ा इंतजार रहता है। इसमें हमेशा तमाम जानकारी दी जाती है।

    .....भारत में तमाम लोग अपने प्रियजनों के स्वर्गवास पर उनका अंतिम संस्कार करते हैं और उसके बाद उनकी राख को शुद्ध कलश में समेट कर रख लेते हैं पर अब ना ही आपको कलश की जरूरत पड़ेगी और ना ही करना होगा राख को नदी में प्रवाहित इसके बावज़ूद आपके मृत प्रियजन रहेंगे आपके और भी करीब जी हां! हम आपको सुनाने जा रहे हैं ऐसे इंसान की कहानी जिसने विकसित की है एक ऐसी तकनीक जिससे राखों को बदल दिया जाता है हीरे में।

    जिस व्यक्ति ने यह तरीका खोज निकाला है उसका नाम है रिनाल्डो विल्ली स्विटजरलैंड के रहने वाले विल्ली ने एक कंपनी खोली है जिसका नाम 'एलगोरडैंजा' है जिसका हिंदी अर्थ 'यादें' हैं। इस कंपनी में मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के बाद बची राख को उन्नत तकनीकों का प्रयोग करते हुए हीरे में बदल दिया जाता है।

    यह कंपनी हर साल 850 लाशों की राख को हीरे में तब्दील कर देती है। इस काम की लागत हीरे की आकार के आधार पर निर्धारित की जाती है। अमूमन यह 3 लाख से 15 लाख रूपए के बीच बैठती है।

    विल्ली को स्कूल में उसकी शिक्षिका ने एक लेख पढ़ने को दिया जो सेमीकंडक्टर उद्योग में प्रयोग होने वाले सिंथेटिक हीरे के उत्पादन पर आधारित थी। इस लेख में सब्जियों की राख से हीरे बनाने का तरीका था। लेकिन युवा विल्ली उसे मानव राख समझ कर पढ़ रहा था। विल्ली को विचार पसंद आया और उन्होंने अपनी शिक्षिका से इसके बारे में पूछा। शिक्षिका ने उसकी भूल को सुधारा तो विल्ली ने कहा अगर सब्जियों की राख से हीरा बनाया जा सकता है तो इंसान की लाश के राख से क्यों नहीं? इस पर उसकी शिक्षिका ने उस लेख के लेखक से सम्पर्क किया औऱ विल्ली को उनसे मिलवाया। फिर उन लोगों ने मिलकर इस विचार पर काम किया जिससे एलगोरडैंजा अस्तित्व में आई।

    सबसे पहले यह कंपनी इंसानी-राख को स्विटजरलैंड स्थित अपनी प्रयोगशाला में मंगवाती है। यहां एक विशेष प्रक्रिया द्वारा इस राख से कार्बन को अलग किया जाता है, अलग किए हुए कार्बन को उच्च ताप पर गर्म कर उसे ग्रेफाइट में बदला जाता है। इस ग्रेफाइट को एक मशीन में ठीक उन परिस्थितियों में रखा जाता है जैसा कि जमीन के नीचे पाई जाती है। कुछ महीनों के बाद वो ग्रेफाइट हीरे में बदल जाते हैं। फर्क बूझो तो जानें

    सिंथेटिक हीरे और असली हीरे में फर्क अत्यंत बारीक होती है जिसका पता सिर्फ प्रयोगशाला में रासायनिक स्क्त्रीनिंग के द्वारा किया जा सकता है. कुशल से कुशल जौहरी भी दोनों के बीच के अंतर को नहीं बता सकता।

    .......

    अमेरिका में एक अंग्रेजी बोलने वाला गुम हुआ तोता चार साल बाद स्पेनिश बोलते हुए अपने मालिक से दोबारा मिला। हुआ यूं कि यहां के एक व्यक्ति का तोता चार साल पहले कहीं खो गया, कई महीनों तक वापस नहीं मिलने के बाद उसने खोजना भी बंद कर दिया। लेकिन एक दिन चार साल बाद उस व्यक्ति के पास एक पशु चिकित्सक का फोन आया। जिसने तोते के गुम हो जाने के बारे में पूछा, सो उसने चार साल पहले खोए तोते की बात बताई। लिहाजा पशु चिकित्सक ने उसे मिलने बुलाया। व्यक्ति उससे मिलने पहुंचा तो उसने बताया कि उसका अपना तोता नौ महीने पहले गुम हो गया था, जिसकी तलाश में उसे यह तोता मिल गया और तोते में लगी चिप से उसके असली मालिक की पहचान की गई। बहरहाल तोता पाकर खुश वह व्यक्ति जब घर चलने लगा तो तोते के स्पेनिश बोलने पर वह हैरान रह गया।

    दोस्तो, अब बारी है जोक्स की। ....

    पहला जोक.... झबरू रेडियो लेकर इलेक्ट्रॉनिक शॉप पहुंचे और चीखने लगे, 'तुमने मुझे ठग लिया है।'

    दुकानदार-नहीं तो , मैंने तो आपको बढि़या रेडियो बेचा था।

    झबरू- तुमने तो कहा था कि यह 'मेड इन जापान' है।

    दुकानदार -तो ? लेबल पर तो लिखा है।

    झबरू -लेकिन मैंने जैसे ही रेडियो ऑन किया इसमें से आवाज़ आई, ..यह 'ऑल इंडिया रेडियो' है।

    दूसरा जोक...

    रामू हर रोज नए जूते पहनकर काम करने जाता था।

    रामू के मित्रों को रहा नहीं गया।

    उन्होंने रामू को पूछा, यार रामू क्या तुमने जूते की दुकान खोल रखी है जो रोज नए जूते पहनकर आते हो।

    रामू हंसकर बोला, नहीं यार मेरे घर के सामने नया मंदिर बन गया है।

    अब बारी आज के अंतिम जोक की..... एक शेर की शादी में एक चूहा जाकर नाचने लगा..

    बारात में शामिल शेर इस बात से बहुत हैरान हुए..

    काफी देर बीत जाने पर भी जब चूहा नहीं रुका तो एक शेर ने जाकर उससे पूछा,

    क्यों भाई, तुम एक शेर की शादी में क्यों नाच रहे हो, जबकि तुम एक चूहे हो..

    चूहे ने तुंरत जवाब दिया- अरे, तुम नहीं समझोगे, दरअसल, शादी से पहले मैं भी शेर ही था..

    दोस्तो

    पिछले बार हमने दो सवाल पूछे थे, पहला सवाल था। इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार किसे दिया गया है और पुरस्कार पाने वाले क्या करते हैं। सही जवाब है, भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से मिला है। जो कि बाल अधिकार और उनकी शिक्षा के लिए काम करते हैं।

    दूसरा सवाल था, लहसुन के किस गुण का पता चला है, सही जवाब है, पेड़-पौधों को दुरस्त रखने के लिए लहसुन का इंजेक्शन दिया जाता है।

    इन सवालों का सही जवाब हमें भेजा है, उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल, सऊदी अरब से सादिक आजमी, पश्चिम बंगाल से विधान चंद्र सान्याल, देवाशीष गोप और भागलपुर बिहार से हेमंत कुमार आदि। आप सभी को बधाई । आगे भी हमारे सवाल सुनते रहिए।

    . अनिलः अब आज के सवालों की बारी है। पहला सवाल है, हाल ही में राख का इस्तेमाल किस रूप में किए जाने का शोध हुआ है।

    दूसरा सवाल है, ऋतिक रोंशन की फिल्म बैंग बैंग ने कितना कलेक्शन किया है।

    अगर आपको इनका जवाब पता है तो जल्दी हमें ई-मेल कीजिए या खत लिखिए।.....हमारा ईमेल है.. hindi@cri.com.cn, हमारी वेबसाइट का पता है...hindi.cri.cn.

    ...... अपने जवाब के साथ, टी-टाइम लिखना न भूलें। ........म्यूजिक........

    अनिलः टी-टाइम में आज के लिए इतना ही ...अगले हफ्ते फिर मिलेंगे.....चाय के वक्त......तब तक आप चाय पीते रहिए और सीआरआई के साथ जुड़े रहिए। नमस्ते, बाय-बाय, शब्बा खैर,चाइ च्यान.....

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