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    गेसार कथा वाचक तानचङ चिह्वा की कहानी
    2014-09-29 08:58:06 cri

    सीआरआई संवादताता के साथ साक्षात्कार लेते हुए

     

    गेसार कथा वाचक तानचङ चीह्वा

    तानचङ चीह्वा एक परिश्रमी व्यक्ति हैं। अब तक उन्होंने राजा गेसार से जुड़ी 20 से अधिक महाकाव्य-पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें 13 का प्रकाशन हुआ है। उन्होंने योजना बनाई कि इस जीवन में वो 118 महाकाव्य -किबातें लिखेंगे। उनके पास हमेशा एक नोटबुक रखी रहती है, जिसमें 5 मिलीमीटर वाले कई अक्षर लिखे हुए हैं। तानचन चीह्वान ने इसका परिचय देते हुए कहा कि ये अक्षर उनके द्वारा अपने"उत्प्रेरणा"रिकॉर्ड करने वाला विशेष तरीका है। उन्होंने कहा:

    "जब मेरे मस्तिष्क में उत्प्रेरणा आयी, तो मैं सबसे पहले किताब के नाम पर सोचता हूँ। अगर मेरे पास समय हुआ, तो उसी वक्त संबंधित विषय पर लिखता हूँ। अगर समय नहीं हुआ, तो अनौपचारिक अक्षरों से संबंधित विषय को रेखांकित कर रिकॉर्ड करता हूँ, बाद में मेरे पास समय होने पर धीरे-धीरे किताब लिखता हूँ।"

    तानचन चीह्वा ने कहा कि अब लेखन करना उनके जीवन का एक अपरिहार्य भाग बन गया है। रोज़ आम तौर पर 3 से 4 पन्ने या कम से कम एक पन्ना लिखते हैं। चाहे सुबह हो या गहरी रात ही क्यों न हो, मस्तिष्क में उत्प्रेरणा आने के बाद वह एकदम रेखांकित कर रिकॉर्ड करते हैं।

    वास्तव में आज की सफलता उन्हें बहुत आसानी से नहीं मिली है। बचपन में वह स्कूल नहीं गए थे। पशुपालन करने के समय उसे आत्म-शिक्षा और"पहली पीढ़ी में यादों"के माध्यम से तिब्बती भाषा के सरलीकरण सुलेख आता था। 13 वर्ष की उम्र में उसे मठ में भेजा गया। वहां 3 वर्ष के जीवन में उन्होंने तिब्बती भाषा का औपचारिक सुलेख सीखा।

    इसके बाद किताब लिखना तानचन चीह्वा के लिए अपने मन में विचारों को दिखाने वाला अच्छा रास्ता बन गया है। 16 या 17 वर्ष की आयु से ही उन्होंने राजा गेसार से संबंधित छोटे परिच्छेद वाली कविता लिखना शुरु किया। 18 वर्ष की उम्र में वे महाकाव्य लिखने लगे। इसकी चर्चा में तानचन चीह्वा ने कहा:

    "शुरु-शुरु में मैं आराम से लिखता था। महाकाव्य आगे लिखूंगा या नहीं, मठ में जीवित बुद्ध की मान्यता पर आधारित है। सौभाग्य की बात है कि मेरे द्वारा लिखे गए महाकाव्यों को जीवित बुद्ध की मान्यता प्राप्त हुई है। फिर भी मैं रोज़ लिखता हूं। पशुपालन के समय, घर वापस लौटने के समय, ऐसा कहा जा सकता है कि अवकाश के समय मैं जरूर कुछ न कुछ लिखता हूं। अगर कुछ नहीं लिखा, तो मन में अच्छा नहीं लगता है। मैं युद्ध के दौरान राजा गेसार से जुड़े इतिहास नहीं लिखता, आम तौर पर राजा गेसार की जीवनी के बाकी समय से संबंधित कथाएं लिखता हूँ। इस प्रकार के विषय दूसरे लोग कम ही लिखते हैं, जिनमें कथाएं, प्रेम गीत, नाटक, गायन वाचन शामिल है।"

    ज्यादा से ज्यादा लिखने के चलते तानचन चीह्वा दिन-प्रति-दिन प्रसिद्ध होने लगे। लेकिन उनकी परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। एक तरफ़ उन्हें अपने द्वारा लिखी गई कविताओं के प्रकाशन का रास्ता नहीं मिला। दूसरा, उनके पास स्थाई आमदनी नहीं है, उनका जीवन पशुपालन पर निर्भर रहता है। इस तरह उनके पास ध्यान से कुछ भी लिखने का समय नहीं होता, यहां तक कि उनके पास कागज़ और पेन खरीदने के पैसे की भी कमी है।

    बाद में किसी व्यक्ति का समर्थन पाकर तानचन चीह्वा की रचनाओं को च्युची कांउटी और क्वोलो तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर में पहुंचाया गया। लोगों ने इन रचनाओं की कीमत समझी। वास्तव में क्वोलो तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर में लम्बे समय में《गेसार》से संबंधित संस्कृति की विरासत में लेते हुए विकास पर ध्यान रखा जाता है और《गेसार》से संबंधी गायन वाचकों और लेखकों के लिए विशेष उदार नीति अपनायी जाती है। इस तरह तानचन चीह्वा के जीवन में मोड़ आया। उनके द्वारा लिखी गई रचनाएं सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशित की जा रही हैं। परिवार में पैसे की कमी के मुद्दे को भी हल किया गया है।

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