अल्शान गर्म चश्मे के बारे में एक सुंदर पौराणिक किवदंती आज भी प्रचलित है । कहा जाता है कि कई सौ साल पहले एक राजा को कोई गम्भीर बीमारी हो गयी और दिन ब दिन उस की हालत खराब होती गयी । ऐसी स्थिति में अचानक एक ज्ञानी भिक्षु ने राजमहल में प्रवेश किया और शाही चिकित्सक से राजा को नहाने के लिये अल्शान गर्म चश्मे पर ले जाने को कहा । यह बात सुनकर शाही चिकित्सक आदि लोग तुरंत ही बेहोश राजा को अल्शान ले गये और भिक्षु के निर्देशन में लगातार राजा को स्नान कराने में लग गये। इसी तरह स्नान कराते-कराते 14 वें दिन में प्रवेश करते ही बीमार राजा अचानक एकदम चंगा हो गया । तब से लेकर आज तक रोगी अपने इलाज के लिये अल्शान के गरम चश्मे पर आने लगे हैं ।
खैर , असल में अल्शान का गर्म चश्मा इस पौराणिक किवंदति जितना चमत्कृत है , पर फिर भी संबंधित विभाग के परीक्षण से पता चला है कि अल्शान के गर्म चश्मे में कांस्य व युरेनियम जैसे विविधतापूर्ण ट्रेस एलिमेंट सचमुच शारीरिक स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद हैं । विशेषकर लकवा , जोड़ सूजन और कमर व पैर में दर्द के इलाज में इसे असरदार पाया गया है ।
अल्शान गर्म चश्मा म्युजियम अल्शान पर्यटन स्थल का सब से बड़ा गर्म चश्मा समूह है । इस म्युजियम के गेट के सामने खड़े होकर आप 5700 से अधिक वर्गमीटर विशाल म्युजियम में 37 गर्म चश्मे देख सकते हैं । एक सब से ऊंचे तापमान वाले चश्मे के पास हमारे गाइड वांग पिन ने परिचय देते हुए कहा
इस चश्मे का तापमान सभी 37 चश्मों में सब से अधिक है । यदि किसी को जोड़ सूजन और पैर व पांव में दर्द जैसी बीमारी लग जाए , तो वह यहां पर 21 या 22 दिन के उपचार में चंगा हो जाता है ।यह गर्म चश्मा शारीरिक स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है ।
अल्शान गर्म चश्मे की विशेष उपचार क्षमता बहुत से देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींच रही है । रुसी पर्यटक काटुशा ने अल्शान गर्म चश्मे की प्रशंसा में कहा
मैंने मंचुली तेल व्यापार कम्पनी के तेल व रसायन पर्यटन विभाग से इस गर्म चश्मे के बारे में सुना था । रूस से यहां आने के लिये दो हजार से अधिक किलोमीटर लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है , पर मैं पांच बार यहां आ चुकी हूं । मुझे लगता है कि चश्मे का पानी स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद है , और गर्म चश्मे में स्नान करने से कई बड़े लाभ मिलते हैं । पिछले तीन सालों के प्रचार-प्रसार की वजह से अब यहां रूसियों की संख्या चीनियों से अधिक है।
तो श्रोताओ , गर्म चश्मा देखने के बाद अब हम आप को अल्शान के ज्वालामुखी के खण्डहर देखने ले चलते हैं । अल्शान का हालाहा ज्वालामुखी समूह मंगोलिया गणराज्य के हारचिंगर ज्वालामुखी समूह से जुड़ा हुआ है और वह चीन के प्रसिद्ध ज्वालामुखी समूहों में से एक है । थ्येनछी झील अल्शान की अनगिनत ज्वालामुखी झीलों में से एक है। वह समुद्र सतह से एक हजार तीन सौ मीटर से अधिक ऊंची चोटी पर अवस्थित है । झील का हल्के नीले रंग का पानी एकदम स्वच्छ नजर आता है।ठंडी हवा के कोमल झौंकों से पर्यटकों को बड़ा मजा आता है । दक्षिण चीन के क्वांगतुंग प्रांत से आये पर्यटक ल्यू हाओ भी इस अनौखे दृश्य से प्रभावित हो गये हैं ।
उन का कहना है कि यह कमाल की बात है। मानो यहां मानव जाति का कोई नामोनिशान कभी भी नजर नहीं आता है ।
गाइड सुश्री छन हुंग य्वान ने इस झील का परिचय देते हुए कहा कि यह ज्वालामुखी मुंह झील माल झील भी कहलाती है , झील के चारों तरफ ज्वालामुखी मुंह की दीवारें कई मीटर से दसियों मीटर ऊंची हैं । सुश्री छन हुंग य्वान ने हमें बताया कि यह थ्येन छी झील इसीलिये अल्शान क्षेत्र में विख्यात है कि इस झील के कई रहस्य आज तक भी बने हुए हैं ।
उन का कहना है कि सब से पहले इस झील की गहराई मापी नहीं जा सकती है । 2004 में कुछ विशेषज्ञों ने कोशिश की पर वे इस की गहराई मापने में विफल रहे। दूसरे, इस झील के पानी का स्रोत अपरिवर्तनीय है , झील का पानी आने और बाहर निकलने का कोई मुंह नहीं है । तीसरा रहस्य यह है कि इस झील में एक भी मछली नहीं है , यदि जानबूझकर मछली झील में डाली जाए , तो वह जिंदा नहीं रह सकती । विमान से देखें , तो यह झील एक सफायर की तरह पर्वतों के बीच जड़ी हुई जान पड़ती है , और बहुत सुंदर लगती है।
ज्वालामुखी के खण्डहर देखने के बाद कार्स्ट फीचर्स देखना भी जरूरी है । शह थांग पत्थर जंगल अल्शान की थ्येन छी झील से दूर नहीं है और वह बहुत पहले ज्वालामुखी के फूटने से निकले मागमा से बना हुआ है । फिर हजारों सालों की हवाओं व वर्षा के थपेड़ों और सरिताओं के बहाव से वर्तमान शह थांग पत्थर जंगल का यह अनौखा प्राकृतिक भू दृश्य देखने को मिलता है कि कुछ पत्थर आकाश से बात करते हुए लम्बी तलवार की मानिंद तने खड़े हैं , कुछ भीषण लड़ाई लड़ रहे बहादुर यौद्धा जान पड़ते हैं और अन्य कुछ पागलपन से गुर्राते शेर नजर आते हैं ।
और बड़े अजीब की बात यह भी है कि शह थांग पत्थर जंगल क्षेत्र में अधिक जमीन न होने पर भी घने छायादार शिंग आन चीढ़ उगे हुए हैं और इन पेड़ों की मोटी-मोटी जड़ें ज्वालामुखी के लावाओं के बीच एक दूसरे से लिपटी हुई नजर आती हैं ।