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    शह लिन क्षेत्र का जातीय दृश्य
    2014-03-03 14:50:18 cri
    छोटे शह लिन पर्यटन क्षेत्र में एक स्वच्छ पानी वाली झील स्थित है । इस झील के तट पर एक पत्थर चोटी है । इस पत्थर चोटी का आकार प्रकार सुंदर सानी युवती जैसा जान पडता है । इसलिये हर रोज बड़ी संख्या में पर्यटक इस चोटी को देखने और फोटो खिंचवाने के लिये यहां आते हैं । हमारी गाईड सुश्री पी युन ह्वा ने इस पत्थर चोटी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह प्रसिद्ध आशमा पत्थर चोटी है । यहां की सभी युवतियों को आशमा कहा जाता है ।

    हमारी गाईड सुश्री पी युन ह्वा ने कहा कि हमारे यहां सभी युवतियों को आशमा कहा जाता है। ई जाति में आशमा का अर्थ है खूबसूरत युवतियां । जबकि युवकों को आहे भइया कहा जाता है। मतलब है मेहनती और बहादुर ।

    आशमा पत्थर चोटी के बारे में यहां एक मर्मस्पर्शी पौराणिक कहानी अभी तक खूब प्रचलित है । कहा जाता है कि एक गरीब परिवार में एक बहुत सुंदर बच्ची का जन्म हुआ । उस के मां बाप ने उस का आशमा नाम रखा । बड़ी होकर आशमा को नाचने और गाने में खूब महारत हासिल हो गई। अतः बहुत से स्थानीय युवक आशमा से प्यार करने लगे । युवती आशमा ने अपने गांव के अनाथ गरीब युवक आहे से प्रेम किया और उस के साथ शादी करने की कसम भी खायी । एक साल मशाल उत्सव में आशमा और आहे ने बंधन का रिश्ता पक्का कर लिया । गांव के जमींदार के बेटे को भी आशमा पसंद आ गई और उस ने शादी का संबंध तय करने के लिये एक परिचायक को आशमा के घर भेजा । पर युवती आशमा किसी भी शर्त पर उस के साथ शादी करने को तैयार नहीं हुई। एक दिन जब आहे भइया बकरियों को चराने के लिये बाहर गया , तो जमींदार ने इस मौके का फायदा उठाकर युवती अशमा का अपहरण कर लिया और उसे अपने बेटे के साथ शादी करने पर मजबूर कर दिया। पर युवती आशमा अंतिम दम तक इस बात पर राजी नहीं हुई । युवक आहे ने जब वापस लौटकर सुना कि युवती आशमा का अपहरण हो गया है , तो वह शीघ्र ही जमींदार के घर जा कर युवती आशमा को मुक्त करा कर बाहर भागा । जमींदार यह जानकर बहुत आग बबूला हुआ । उस ने बदला लेने के लिये युवती आशमा और युवक आहे का पीछा किया । जब वे दोनों उफनती पार कर रहे थे , तो जमींदार ने नदी के तेज बहाव में उन दोनों को डुबो दिया । बाद में इंग शान की युवती ने आशमा को बचा लिया , फिर आशमा ने एक पत्थर चोटी का रूप धारण कर लिया । 

    ई जाति की सानी शाखा पीढ़ी दर पीढ़ी शह लिन क्षेत्र में रहती आई है । यहां के वासी आम तौर पर पत्थर के मकानों में रहते है। पिछले कई सालों में यहां पत्थर के मकान बनाने और सड़कें निर्मित करने की परम्परा बनी हुई है । स्थानीय कामों का अध्ययन कर रहे ह्वांगशिंग ने हमें बताया कि शह लिन क्षेत्र की पत्थर संस्कृति बहुत पुरानी है ।

    उन का कहना है कि क्योंकि पिछले लम्बे अर्से से हमारे पूर्वज इसी कार्स्ट भूतत्वीय सूरती क्षेत्र में रहते आये हैं, इसलिये उन्हों ने 8 लाख साल पहले पत्थरों से प्रकृति के साथ संघर्ष करने का पता लगाया , फिर धीरे-धीरे पत्थरों से समृद्ध संबंधित संस्कृति रची । उदाहरण के लिये पुरातन पाषाण युग के कुछ औजारों से लेकर आज के कुछ उत्पाद साधन पत्थरों से जुडे हुए हैं ।

    शह लिन क्षेत्र में सानी लोगों के हरेक गांव के पास एक हरा-भरा जंगल जरूर है । स्थानीय लोग इसे घना जंगल कहते हैं । कहा जाता है कि घने जंगल में मी ची देवता रहता है। यह देवता सानी गाव का रक्षक है । यदि कोई आदमी असावधानी से ऐसे जंगल में प्रविष्ट हुआ , तो मी लिन देवता क्रोधित होकर उसे बीमार करने या मृत्यु की सजा दे देता है। चीनी पंचांग के अनुसार हर वर्ष के 11 वें महीने में शह लिन क्षेत्र में रहने वाले ऐसे घने जंगल में मी ची देवता की पूजा करते हैं , ताकि मी ची देवता समूचे गांववासियों व पशुओं और शानदार फसल की रक्षा कर सके । यह ही सानी वासियों का महत्वपूर्ण मी ची उत्सव है । इन जंगलों का सानी लोगों के लिये विशेष महत्व है , इसलिये स्थानीय लोगों में पिछले हजारों वर्षों से पवित्र जंगलों की पूजा व रक्षा करने की परम्परा बनी हुई है ।

    दीर्घकालिक के ऐतिहासिक परिवर्तन में स्थानीय लोगों और शह लिन भूतत्वीय सूरत

    और इसी भूतत्वीय सूरत से बनने वाले पत्थरों के बीत अटूट संबंध कायम हो गया है । शह लिन क्षेत्र के पत्थरों पर सानी लोगों ने पूर्वजों के पत्थर चित्र व शिला लेख चित्रित किये थे , जिस से पुराने जमाने में सानी वासियों द्वारा पूजा प्रार्थना करने , नृत्यनाट्य व शिकार करने और लड़ाई लड़ने की प्राचीन परम्परागत स्थितियों का पता चलता है । ऐसा कहा जा सकता है कि पत्थर स्थानीय सानी वासियों के धर्म , पौराणिक कथा , कविता , नृत्यनाट्य , कसीदा , पोशाक , भवन निर्माण और उत्सव जैसे विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं । इस से प्रभावित होकर यहां बसी हुई अल्पसंख्यक जातियों के रीति रिवाजों की अलग पहचान भी बनी है । ठीक इसी अलग पहचान ने देशी-विदेशी पर्यटकों पर गहरी छाप छोड़ी है । ऑस्ट्रेलिया से आयी पर्यटक मेडम ब्रिआना लोपेज ने अपना अनुभव बताते हुए कहा

    हमें यहां बसी हुई बहुत सी अल्पसंख्यक जातियों के विशेष रीति रिवाजों में बड़ी रूचि है , उन के इतिहास व संस्कृति का पता लगाना अत्यंत मजेदार है ।

    पिछले हजारों वर्षों में पत्थर जंगलों में रहने वाले सानी वासियों ने न सिर्फ शानदार इतिहास व संस्कृति का सृजन किया है ,बल्कि विविधतापूर्ण रंगारंग लोक सांस्कृतिक कलाओं का आविष्कार भी किया है । सानी वासियों की विशेष भाषा व लिपि , भावार्थ, कविताओं व सुंदर पौराणिक कथाओं , चमकदार जातीय पोशाकों व आभूषणों , रंगारंग जातीय नृत्य-गानों , सीधे सादे कुश्ती कौशल और अलग ढंग के शादी ब्याह व अंतिम संस्कारों में इस अल्पसंख्यक जाति की पुरानी सांस्कृतिक व क्षेत्रीय विशेषताएं अभिव्यक्ति होती हैं।

    आज न जाने कितनी शताब्दियां लद गयीं हैं , युवती आशमा की पौराणिक कथा सानी वासियों के दैनिक जीवन , शादी ब्याह व अंतिम संस्कार और अन्य विविधतापूर्ण रीति रिवाजों का एक भाग बन गयी है और यह सुंदर कहानी सानी वासियों के बीच लोकप्रिय भी रही है और आइंदे भी रहेगी ।

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