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    चीनी वाद्ययंत्र हूलूसी का जन्मस्थान— मंङ यांग
    2016-11-06 17:49:48 cri

    दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के दअहोंग ताई और चिंगफो जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर की ल्यांग ह कांउटी का मंङ यांग कस्बा वाद्ययंत्र हूलूसी का जन्म स्थान है, जहां इधर-उधर उगाई गई विभिन्न प्रकार की लौकियां देखी जा सकती हैं। लौकी को चीनी भाषा में हूलू कहा जाता है। हूलूसी लौकी से बनाए गए एक प्रकार का वाद्ययंत्र है, जो हूलू यानी लौकी और बांस से बनाया जाता है। बांस के पाइप में तांबे की पत्ती लगाई जाती है। जब तांबे की पत्ती और बांस पाइप की प्रतिध्वनि से आवाज़ निकलती है, तो मधुर धुन सुनाई देती है।

    हूलूसी के जन्म के बारे में एक लोककथा प्रचलित है। कहते हैं कि लम्बे समय पूर्व, ल्यांग ह कांउटी में मङ यांग नदी के तट पर एक गांव में ताई जाति के युवा सांग ल्यांग और युवती शाओ यु रहते थे। दोनों के बीच प्रेम हुआ। मङ यांग नदी के तट पर युवती शाओ यू हूलू यानी लौकी उगाती थी, जबकि युवा सांग ल्यांग हूलू के आसपास बांस उगाता था। दोनों प्रेमी-प्रेमिका शादी के लिए तैयारी कर रहे थे, वे हूलू से शादी के लिए मकान की सजावट कर रहे थे। लेकिन उस समय जबरदस्त बाढ़ आ गई। जीवन बचाने बांस-नाव बनाने के लिए सांग ल्यांग ने उगाए गए सभी बांस को काटा, जबकि शाओ यू ने बांस-नाव की उछाल शक्ति को बढ़ाने के लिए हूलू को नाव के पास रखा। लेकिन छोटे-छोटे बांस-नाव दोनों व्यक्ति के लिए असमर्थ था। शाओ यू ने बिना सोचे-समझे बाढ़ के पानी में कूद लगा दी। जीवित बचा सांग ल्यांग बेहद दुखी हुआ। एक दिन, उसने देखा कि पहले हूलू और बांस उगाने वाले स्थान पर एक बार फिर हूलू उगा। हवा हूलू में कीड़े द्वारा बने हुए छेद से गुज़रता था, जो वूवू की आवाज़ निकली। इस तरह सांग ल्यांग ने हूलू और बांस को जोड़कर एक प्रकार का वाद्ययंत्र बनाया, जिसे हूलूश्याओ कहा जाता था, यह बाद में लोगों की कथित हूलूसी ही है। रोज़ सांग ल्यांग मङ यांग नदी के तट पर खड़ा होकर हूलूश्याओ बजाता था और प्रेमी साओ यू की याद में तड़पता रहता। समय गुज़रता गया और सांग ल्यांग द्वारा बजाई गई इस हूलूसी की आवाज़ धुन बन गई, लोग इसे "कुगअ यानी प्राचीन गीत" कहते हैं।

    कन त्सोंगक्वो ल्यांग ह कांउटी में मङ यांग कस्बे स्थित पांग काई गांव के निवासी हैं, जहां वाद्ययंत्र हूलूसी का जन्मस्थान है। 8 वर्ष की उम्र से ही कन त्सोंगक्वो हूलूसी बनाना और बजाना सिखने लगा। उन्होंने कहा कि बचपन में हूलूसी बनाना आसान बात नहीं थी। इसे याद करते हुए कन त्सोंगक्वो ने कहा:

    "हूलूसी बनाना सिखने के पहले दिन में मेरी ऊंगली कट गई। बहुत दर्द हुआ और उस समय इसे सीखना नहीं चाहता था। इसके साथ ही मेरे चाचा मेरे साथ बहुत सख्ती केसे पेश आये और कभी-कभार बुरे शब्द बोलकर मेरी निंदा करते थे। छोटी उम्र में ही मैं इसे छोड़ना चाहता था।"

    कन त्सोंगक्वो की कथन में चाचा, तो चीन में मशहूर हूलूसी बजाने वाले अभिनेता, संगीतकार कन दअछ्वान हैं, जिन्हें देश में "हूलूसी के पिता" के नाम से जाना जाता है। कन दअछ्वान ने हूलूसी वाद्ययंत्र बनाने की तकनीक में सुधार किया और इसकी धुन को और सही बनाया। पारिवारिक वातावरण से प्रभाव पड़ने की वजह से कन त्सोंगक्वो डटे रहे और हूलूसी के प्रति उनकी रूचि लगातार बढ़ती रही।

    वर्ष 1999 में कन त्सोंगक्वो युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में चाचा कन दअछ्वान द्वारा स्थापित "कन दअछ्वान हूलूसी संगीत कार्यालय" आया और चाचा से व्यवस्थित तौर पर हूलूसी बजाने और संगीत की शिक्षा लेने लगा। उस समय जीवन का अधिकांश समय हूलूसी के साथ बिताया। हूलूसी के प्रति कन त्सोंक्वो के रुख में बड़ा बदलाव आया। इसकी चर्चा करते हुए कन त्सोंगक्वो ने कहा:

    "मुझे हूलूसी बहुत पसंद है। अगर तीन दिन तक इसे नहीं बजाया तो खाना नहीं खाया जाता है। इसके साथ ही मुझे लगता है कि हूलूसी को विरासत के रुप में लेते हुए इसका आगे विकास करना मेरा उत्तरदायित्व है। क्योंकि हूलूसी मेरा ही वाद्ययंत्र नहीं है, बल्कि वह एक जाति का वाद्ययंत्र भी है।"

    हूलूसी की धुन "मङ यांग नदी के तट पर" कन त्सोंगक्वो की सबसे पसंदीदा धुन है। यह धुन उनके चाचा कन दअछ्वान ने रची थी। पहले ताई जाति बहुल क्षेत्र के गांव में यातायात स्थिति असुविधापूर्ण थी, गांववासी कभी-कभार नदी के तट पर खाली स्थान पर फिल्म देखने जाते थे, यह फिल्म कांउटी शहर में सरकारी कर्मचारी द्वारा खास तौर पर गांव वासियों के सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए तैयार हुई है। फिल्म देखने के बाद गांववासी साथ-साथ घर वापस लौटते थे। रास्ते में वे पहाड़ी गीत गाते हुए जाते थे। हूलूसी धुन "मङ यांग नदी के तट पर" मङ यांग पहाड़ी गीत के आधार पर रची गई है। सुनिए कन त्सोंगक्वो द्वारा हूलूसी से बजाई गई यह धुन

    अब ताई जाति का वाद्ययंत्र हूलूसी देश भर में ही नहीं, विश्व भर में भी प्रसिद्ध हो गया है। कन त्सोंगक्वो एक साल खुद द्वारा बनाए गए 1000 से अधिक हूलूसी वाद्ययंत्र बेचते हैं। इन हूलूसी वाद्ययंत्रों को विभिन्न स्थलों में स्कूलों, वाद्यंयत्र दुकानों में और हूलूसी प्रेमियों के पास पहुंचाया जाता है। मङ यांग नदी के तट पर रहने के बावजूद कन त्सोंगक्वो ने अपनी ताई जाति के वाद्ययंत्र हूलूसी को दुनिया के हर कोने में पहुंचाया है।

    (श्याओ थांग)

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