घी तिब्बती आहार में मुख्य पदार्थ है, उसे रंगों के साथ मिलाकर मूर्तियां बनाना एक लोककला के रूप में आज तिब्बत में काफी लोकप्रिय है। पर घी की सर्वश्रेष्ठ मूर्ति तो तिब्बत के पड़ोस छिडंहाए प्रान्त के थाअड़ मंदिर के लामाओं द्वारा बनायी गयी है।
प्रथम घी मूर्ति के काल्पनिक निर्माता बौद्धधर्म के पीत सम्प्रदाय के प्रवर्तक चुडंकेपा थे, जिन्होंने मिडं राजवंश में ल्हासा शहर के जुगला खान विहार में बुद्ध की मूर्ति के सामने घी से बनाए फूल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित की। कुछ वर्षों के पश्चात घी के फूल की खबर चुडंकेपा के जन्म स्थान छिडंहाए प्रान्त की ह्वाडंचुडं काउन्टी के लूशार तक पहुंची, वहां थाअड़ मंदिर के लामा घी से तरह-तरह की सजावटी सामग्रियां बनाने लगे तथा चुडंकेपा के जन्मदिन की रात को यानी चीनी कैलेंडर के अनुसार पहले महीने की 15वीं तारीख को इन सामग्रियों को मंदिर में प्रदर्शित करने लगे। तभी से घी मूर्ति बनाने की शैली का विकास हुआ और इसमें विविधता आई।