दुनिया की छत के नाम से प्रसिद्ध छिंगहाई प्रांत के दक्षिण-पूर्वी भाग में चीन का राष्ट्रीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर थोंगरन स्थित है। निओलिथिक (Neolithic) और कांस्य युग के बाद यहां भिन्न-भिन्न शानदार संस्कृतियां पैदा हुईं, जिससे तिब्बती जाति की संस्कृति और कला की उपजाऊ भूमि तैयार हुई।
पीली नदी चीन के नौ प्रांतों से गुजरती है। थोंगरन उनमें पहले प्रांत में स्थित है। तिब्बती भाषा में इसे रकोंग कहा जाता है, जिसका मतलब है स्वर्ण घाटी। यह स्थान थांगखा कला से मशहूर है।
तिब्बती भाषा में थांगखा चित्र का मतलब है स्क्रॉल पेंटिंग (scroll painting)। शुरू में बौद्ध-भिक्षु उसे अपने साथ ले जाते थे। शिंगश्यांग यानी बुद्ध दिखाने के कार्यक्रम में बुद्ध की मूर्ति को एक शानदार रथ पर रखा जाता था। बौद्ध चलते-चलते इसकी पूजा करते थे। इसके बीच नृत्य और कलाबाजी का प्रदर्शन भी होता था। बाद में थांगखा चित्र तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए मकान के अंदर पूजा करने का मुख्य तरीका बन गया।
धर्म थांगखा चित्र का मुख्य विषय है। बनाने में सिंगल लाइन से मुख्य छवि को रेखांकित करने के बाद रंग डाला जाता है। चित्र तैयार करने में बहु-परिदृश्य डिजाइन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। चित्र में बुद्ध की अलग-अलग आकृतियां देखने में मिलती हैं, कुछ बैठे हुए और कुछ मुस्कुराते हुए। कुछ मेहरबान हैं जबकि कुछ भयंकर हैं।
रकोंग जातिय सांस्कृतिक भवन में व्यापक तिब्बती बच्चे देखने में मिलते हैं। वे यहां मुफ्त में थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सीखते हैं। सभी बच्चे गरीब परिवार से आते हैं या उनके मां-बाप नहीं हैं। यहां सांस्कृतिक ज्ञान और थांगखा बनाने की तकनीक सीखने के बाद वे काम मिल सकते हैं। कुछ श्रेष्ठ बच्चे बाद में थांगखा मास्टर बन सकेंगे।
ये बच्चे आभारी दिल के साथ गंभीरता और भक्ति-भावना से थांगखा चित्र बनाते हैं, जिसमें भविष्य के लिए उनकी अपेक्षा प्रतिबिंबित होती है।
तिब्बती भाषा में रकोंग का मतलब है स्वर्ण घाटी। तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती जातीय संस्कृति के असर से रकोंग की संस्कृति का प्रभाव व्यापक तौर पर पड़ोसी क्षेत्रों में फैलता है। तिब्बती जाति का थांगखा चित्र धीरे-धीरे धर्म से लोक कला में शामिल हो रहा है, इसके साथ साथ रकोंग कलाकार भी विनम्रता से अन्य लोगों को प्रभावित करते हैं, जिससे थांगखा अर्थव्यवस्था और बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रही है।