चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने 18 सिंतबर को भारतीय विश्व मामला परिषद (Indian council of world affairs) में भाषण दिया, जिसमें उन्होंने विचार पेश किया कि चीन और भारत अधिक घनिष्ठ विकसित साझेदार बनें, वृद्धि का नेतृत्व करने वाले साझेदार बनते हुए रणनीतिक समन्वय और सहयोग वाले वैश्विक साझेदार बनें। उन्होंने दक्षिण एशियाई देशों के साथ सहयोग के बारे में सिलसिलेवार कदमों का एलान किया और कहा कि चीन भारत के साथ मिलकर दक्षिण एशिया के विकास के लिए बड़ा योगदान करने को तैयार है।
शी चिनफिंग ने अपने भाषण में कहा कि 17 वर्षों बाद वे एक बार फिर भारत आए हैं और भारतीय जनता की शानदार सफलता को देखा। आज का भारत उत्साह वर्धक है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय संबंधों और समान रूचि वाले महत्वपूर्ण मसलों पर विचार विमर्श किया और व्यापक सहमती बनाई। शी चिनफिंग ने कहा:
"हम एकमत हैं कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग साझेदारी के विषयों का विस्तार कर अधिक घनिष्ठ विकास साझेदारी की स्थापना करेंगे। चीन के दिवंगत नेता तंग श्याओ फिंग ने कहा था कि अगर चीन और भारत विकसित होते हैं, तो सही मायने में एशियाई युग का स्वप्न पूरा होगा। वहीं जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि चीन और भारत का साथ-साथ चलना एशिया और विश्व के लिए एक बड़ी बात है। एशिया के दो सबसे बडे देशों के नाते शांति, स्थिरता बनाए रखने और एशिया की समृद्धि और पुनरुत्थान में चीन और भारत की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है।"
अपने भाषण में शी चिनफिंग ने चीन और भारत के बीच प्राचीन काल से ही आज तक आवाजाही के इतिहास और दोनों देशों की सभ्यताओं की समानता का सिंहावलेकन करते हुए कहा कि चीन और भारत की जनता के बीच आवाजाही का पुराना इतिहास रहा है और दोनों ही देशों ने एक जैसी मुसीबतें भी झेली हैं, आज साथ साथ पुनरुत्थान पूरा करने की समान अभिलाषा भी साथ है। महात्मा गांधी ने कहा था कि चीन और भारत साथ साथ चलने वाले हमराही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने मुझे बताया कि भारत-चीन दो शरीर ,एक आत्मा हैं।
शी चिनफिंग ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय ढांचे में अभूतपूर्व व्यापक परिवर्तन हो रहा है, हम अभी इस युग में जी रहे हैं। इसमें एक महत्वपूर्ण रुझान है कि इस ढांचे में एशिया का स्थान लगातार उन्नत हो रहा है। अंतरराष्ट्रीकरण की प्रक्रिया में दो महत्वपूर्ण शक्तियों के रूप में चीन और भारत एशियाई और वैश्विक आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण शक्ति है। चीन-भारत संबंध द्विपक्षीय संबंधों के दायरे से कहीं अधिक है, जिनका व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव मौजूद है। चीन और भारत का हाथ में हाथ मिलाते हुए सहयोग करना दोनों देशों, एशिया और पूरे विश्व के लिए लाभदायक है।
शी चिनफिंग ने कहा कि नए युग में चीन और भारत अधिक घनिष्ठ विकसित साझेदार बनें, वृद्धि का नेतृत्व करने वाले साझेदार बनते हुए रणनीतिक समन्वय और सहयोग वाले वैश्विक साझेदार बनें। हम पूंजी निवेश और बैंकिंग क्षेत्र में सहयोग का विस्तार करते हुए द्विपक्षीय वास्तविक सहयोग और चौतरफा विकास को बखूबी अंजाम देंगे। साथ ही युवा, संस्कृति, शिक्षा, पर्यटन, धर्म, मीडिया, रेडियो और टीवी जैसे क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करेंगे। बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे के निर्माण को गति देंगे और वैश्विक मामलों में रणनीतिक समन्यव को मज़बूत करेंगे। शी चिनफिंग ने कहा:
"चीन और भारत की जनसंख्या मिलाकर 2.5 अरब से अधिक है। यदि चीन और भारत एक स्वर में कुछ कहें, तो पूरा विश्व इनकी बात ध्यान से सुनेगा। यदि चीन और भारत हाथ मिलकर सहयोग करें, तो पूरा विश्व इसपर ध्यान देगा। दोनों देशों को वैश्विक मामलों में रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना चाहिए, पंचशील का प्रसार-प्रचार करना चाहिए, प्रभुसत्ता की समानता और न्याय पर अडिग रहना चाहिए, समान सुरक्षा और विकास को बनाए रखना चाहिए, दोनों देशों और व्यापक विकासशील देशों के समान कल्याण की रक्षा करनी चाहिए।"
शी चिनफिंग ने कहा कि सुधार और खुलेपन की नीति के लागू होने के बाद पिछले 30 से ज़्यादा वर्षों में चीन के आर्थिक और सामाजिक विकास में उल्लेखनीय उपलब्धियां मिली हैं। जीवन स्तर में निरंतर सुधार हुआ है। विश्व के विभिन्न देश चीन के विकास से लाभान्वित हो रहे हैं। चीन एक शांतिप्रिय राष्ट्र है। शांति और सामंजस्य की विचारधारा गहन रूप से चीनी राष्ट्र की मानसिक दुनिया में बसती है। शी चिनफिंग ने कहा:
"प्राचीन काल से ही चीन ने इसका आह्वान किया है जिससे शक्तिशाली और धनी बनने के बाद कमज़ोर और गरीबों पर अत्याचार नहीं किया जाना चाहिए। जिससे गहन रूप से इस नीतिगत वाक्य का निचोड़ निकाला गया कि बड़े देश होने के बावजूद अगर वो युद्ध से प्रेम करते हैं तो वो बर्बाद हो जाएंगे। शांतिप्रिय विचारधारा, अंतर सामंजस्य, युद्ध की स्थिति को शांतिमय वातावरण में बदलने और वसुधैवकुटुंबकम् जैसी विचारधाराएं पीढ़ी दर पीढ़ी चीन में प्रचलित हैं।"
शी चिनफिंग ने कहा कि दक्षिण एशिया आशा और अपार निहित शक्ति से संपन्न उप-महाद्वीप है ,जिसके एशिया और विश्व के विकास का नया इंजन बनने की संभावना है। एक शांत, स्थिर, समृद्ध और विकसित दक्षिण एशिया इस क्षेत्र के देशों और जनता के हितों से मेल खाता है और चीन के हित में भी। चीन दक्षिण एशियाई देशों के साथ आर्थिक, व्यापारिक और मानविकी क्षेत्रों में वास्तविक सहयोग मज़बूत करने को तैयार है। शी चिनफिंग ने कहा:
"चीन दक्षिण एशियाई देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से रहना चाहता है और दक्षिण एशिया के विकास को बढ़ावा देने को तैयार है। चीन चाहता है कि रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी और 21वीं सदी समुद्री रेशम मार्ग के निर्माण का प्रस्ताव पेश कर थलीय और समुद्री रेशम मार्ग पर स्थित देशों के पारस्परिक संपर्क और आदान प्रदान को मजबूत बनाया जाए। ताकि समान आर्थिक समृद्धि ,व्यापारिक आपूर्ति और जनता की समझ पूरी की जाए। चीन को आशा है कि एक पट्टी और एक मार्ग के तहत दक्षिण एशियाई देश एक साथ उड़ान भर सके।"
शी चिनफिंग ने कहा कि चीन दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा पडोसी है। भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है। चीन भारत के साथ इस क्षेत्र के विकास के लिए अधिक बड़ा योगदान करने को तैयार है ताकि हिमालय पर्वत के दोनों तरफ की 3 अरब जनता साथ साथ शांति, मैत्री, स्थिरता और समृद्धि को साझा कर सके। उन्होंने घोषणा की कि चीन दक्षिण एशियाई देशों के साथ मिलकर भावी पांच वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार 1 खरब 50 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का प्रयास करेगा, दक्षिण एशिया में 30 अरब अमेरिकी डॉलर पूंजी लगाएगा और दक्षिण एशियाई देशों को 20 अरब अमेरिकी डॉलर का उदार ऋण प्रदान करेगा। चीन दक्षिण एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाएगा। चीन अगले पांच वर्षों में दक्षिण एशिया को 10 हजार छात्रवृत्तियां, 5 हजार प्रशिक्षण और 5 हजार युवाओं के आदान प्रदान के अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा चीन दक्षिण एशिया के लिए पांच हजार चीनी भाषा के अध्यापकों को प्रशिक्षण देगा। चीन दक्षिण एशियाई देशों के साथ चीन-दक्षिण एशिया विज्ञान तकनीक सहयोग साझेदारी योजना को लागू करेगा और चीन-दक्षिण एशिया मेले की भूमिका निभाकर पारस्परिक लाभ वाले नये मंच का निर्माण करेगा।
इसी दिन शी चिनफिंग ने अपने भाषण में भारतीय इतिहास और संस्कृति की चर्चा की और सुप्रसिद्ध महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं को अपने भाषण में शामिल किया। उन्होंने आशा जताई कि चीनी और भारतीय युवा आपसी संपर्क और आवाजाही मज़बूत करेंगे, ताकि दोनों देशों में शांति और विकास को आगे बढ़ाया जा सके।
भारतीय उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी समेत सरकार और समाज के विभिन्न जगतों के व्यक्तियों, युवा प्रतिनिधियों समेत 400 से अधिक लोगों ने उनके भाषण को सुना। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी.आर. दीपक ने कहा कि बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे का निर्माण दक्षिण एशियाई क्षेत्र के समान हितों से मेल खाता है, जिससे इस क्षेत्र की जनता को बड़ा लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा:
"दक्षिण पश्चिमी चीन और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को लाभ मिलेगा। कई स्थलों में नए मार्ग, बंदरगाहों का निर्माण किया जाएगा। यह पूरे क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए लाभदायक होगा।"