भारत में निहित बाज़ार विभिन्न देशों के कारोबारों को आकृष्ट करता है। चीनी उद्योग इनमें से एक है। जानकारी के अनुसार वर्तमान में भारत में कुल 500 चीनी कंपनियां मौजूद हैं। उनकी स्थिति कैसी है और भारत बाजार में उन्हें क्या मौके मिलते हैं और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से नई दिल्ली स्टेशन तक एक्सप्रेस के जरिए हर दिन 13000 यात्री आते-जाते हैं। इस सबवे के सी5 भाग का निर्माण शांगहाई शहरी निर्माण ग्रुप व भारत के लार्सन टुब्रो कंपनी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। वर्ष 2009 में इसका निर्माण पूरा हुआ। यह शांगहाई शहरी निर्माण ग्रुप द्वारा भारत में संभाली सबसे बड़ी भूमिगत परियोजना थी। इसकी जानकारी देते हुए ग्रुप की भारत शाखा के उप जनरल मैनेजर वांग शिनफिंग ने कहा:
"इस भाग का निर्माण हमारे लिए बहुत सार्थक रहा। पहला, यह हम द्वारा पहली बार भारतीय साझेदार के साथ कार्यान्वित की गई परियोजना है। दूसरा, हमने ठीक समय पर इस परियोजना को पूरा किया, जो भारत में कम था। निर्माण कार्य मुश्किल था।"
भारत में 7 सालों के बाद शांगहाई शहरी निर्माण ग्रुप का विकास स्थिर रहा। उसने दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में सबवे परियोजना के निर्माण को अपने पास रखा। वांग शिनफिंग के विचार में तकनीक और कारगरता ग्रुप द्वारा भारत के बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा शक्ति हासिल करने का प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा:
"पहला, हमारे ग्रुप की कारगरता ऊंची है। दूसरा, हमारी तकनीक जापान और जर्मनी जैसे देशों के स्तर के बराबर है। चीन में बड़े पैमाने वाले सबवे निर्माण के बाद हमारे पास सबवे निर्माण के क्षेत्र में व्यापक अनुभव हैं। समान अनुभव और तकनीक स्तर में परियोजना के निर्माण के दौरान कम लागत होती है, इस तरह हमारी प्रतिस्पर्द्धा शक्ति अधिक है।"
प्रगतिशील तकनीक और परिपक्व प्रबंधन अनुभव के अलावा, चीनी कारोबारों के भारत में विकास करने से इस देश में अधिक रोज़गार के मौका मिलते है। वांग शिनफिंग के अनुसार दिल्ली सबवे के तीसरे चरण की परियोजना के निर्माण के लिए 5 सौ कर्मचारियों में चीनी व भारतीय कर्मचारियों का अनुपात 1:10 है।
इधर के सालों में चीन और भारत के बीच आर्थिक व व्यापारिक सहयोग लगातार बढ़ाने के चलते अधिक से अधिक चीनी कंपनियां निवेश के लिए भारत आई, जो स्थानीय आर्थिक विकास की रचनात्मक शक्ति बन गई। चीन-भारत वाणिज्य संघ के महासचिव ली च्यान ने कहा कि वर्तमान में कुल 500 से अधिक चीनी कंपनियां भारत में स्थित हैं। जिन्होंने बिजली, दूरसंचार, पुल व मार्ग, रेल परिवहन, हवाई अड्डे और बंदरगाह जैसे बुनियादी संस्थापनों के निर्माण में लगी हैं। ली च्यान ने कहा कि हाल के वर्षों में भारत ने अधिक कारोबारों के लिए बाज़ार को खोला है। इसके साथ ही सरकार ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का अनुपात बढ़ाया है, जिससे ज्यादा से ज्यादा चीनी कारोबारों को भारत में काम करने का मौका मिला है। उन्होंने कहा:
"पिछले 3 सालों में भारत सरकार ने विदेशी पूंजी के संबंध में लगी बाधाओं को दूर करने के लिए कई उदार नीतियां अपनाईं। कुछ क्षेत्रों में शत प्रतिशत प्रवेश करने की मंजूदी दी गई है।पर्यटन, होटल और एक्सप्रेस वितरण जैसे क्षेत्रों में कम चीनी कंपनियां हिस्सा लेती हैं। अब भारत के ऐसे क्षेत्रों में भी प्रवेश करने पर विचार कर सकते हैं।"
हालांकि भारत का बाज़ार बड़ा है, लेकिन चीनी कंपनियों के लिए भारत में जोरदार विकास करना मुश्किल है। भारत की विशेष संस्कृति, सरकारी विभागों व ग्राहकों के साथ संपर्क आदि चीनी कर्मचारियों के लिए थोड़ी मुश्किलें पैदा करता है। इसके अलावा चीनी कंपनियों को एंटी-डंपिग मसले का भी सामना करना पड़ता है।
इसकी चर्चा करते हुए ली च्यान ने सुझाव देते हुए कहा कि चीनी कारोबारों को भारत बाज़ार की सही समझ लेनी चाहिए। भारतीय बाज़ार और चीनी बाज़ार के बीच मौजूद फ़र्क को अच्छी तरह जाना जाए। भारतीय उद्योगों व संबंधित पक्षों के साथ बहतर संबंध कायम रखते हुए स्थानीय प्रचलन नमूने को बखूबी अंजाम दिए जाने की जरूरत है।
(श्याओ थांग)