अब हम आप को ऊंटों के जन्मस्थान के नाम से नामी भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित अराशान क्षेत्र का दौरा करने ले चलते हैं। गोबिस्तान, हू यांग नामक पेड़ और ऊंट ये तीनों चीजें इस अराशान क्षेत्र की विशेष पहचान बना लेती हैं। कहा जाता है कि ये तीनों निधियां आस्मान द्वारा इस अराशान क्षेत्र को दिये गये विशेष उपहार ही हैं। अतः अराशान वासियों को ऊंटों से इतना लगाव हो गया है कि ऊंट अपने जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। बहुत से स्थानीय वासी अपने जन्म से ही ऊंट से परिचित हो गये हैं और ऊंट की पीठ पर अपनी जिंदगी का अविस्मरणीय क्षण बिताते हैं। अराशान वासी ऊंट के ऊन से बने स्वेटर पहनना , ऊंट दौड़ करना और ऊंट का दूध पीना पसंद करते हैं। एक शब्द में कहा जाये , तो उन्हें ऊंटों से अटूट रिश्ता जुड़ा हुआ है।
मंग नाम का एक मंगोल जातीय बुजुर्ग पश्चिम अराशान क्षेत्र के अजिना जिल में रहने वाले हैं। जब उन्हें पता चला कि हमारे संवाददाता ऊंटों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये वहां पहुंचे, तो वे जल्द ही हमारे संवाददाता को अपने ऊंटों से अवगत कराने गये। जब हमारे संवाददाता ने उन्हें बताया कि वे ऊंटों से जुड़ी कहानियां जानने के लिये हजारों मील का रास्ता तय कर यहां आये हैं , तो वे इतने भावावेश में आये हैं कि उन की आंखों में आंसू भर आये। उन्हों ने धारावाहक रूप से हमारे संवाददाता से कहा,नये चीन की स्थापना की शुरूआत में ऊंट यहां का प्रमुख परिवहन साधन ही रहे थे। जब मैं छोटा था , तो मैं ने पांच हजार ऊंटों से गठित परिवहन दल को देखा था। उस समय बड़ा तादाद में पशुओं से तैयार पदार्थ व नमक जैसी रोजमर्रे में आने वाली वस्तुएं ऊंटों के माध्यम से लगभग एक महीने में पेइचिंग शहर पहुंचायी जाती थीं , फिर अनाज , चाय व कपड़े वगैरह माल ऊंटों से वापस पहुंचाये जाते थे।
ऊंट स्थानीय गोबिस्तान वासियों के दैनिक जीवन में अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं। वीरान रेगिस्तान में स्थानीय चरवाहों की सेवा में भारी वस्तुएं लादते हैं। इसलिये ऐसा कहा जा सकता है कि स्थानीय चरवाहों और ऊंटों के बीच कायम गहरे भाव का वर्णण शब्दों में नहीं किया जा सकता , उन के जीवन की हरेक कड़ी में ऊंट व मानव जाति की मर्मस्पर्शी कहानी गर्भित है।