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    मार्को पोलो के पदचिन्हों पर
    2014-05-19 10:25:14 cri

    ताकलामाकान रेगिस्तान

    काशी से पूर्व की ओर ताकलामाकान रेगिस्तान, रेशम मार्ग को दक्षिणी और उत्तरी दो रास्तों में बांटता है। मार्को पोलो के पदचिन्हों पर हम ने वही पुराना दक्षिणी मार्ग अपनाया और थोड़ी ही देर बाद हमने अपने को गोबी रेगिस्तान के बीच पाया।

    अगस्त के महीने में ताकलामाकान की भू-सतह का तापमान 50 सेन्टीग्रेड था। हवा में बहुत किरकिरी थी तथा संपूर्ण रेगिस्तान में लू चल रही थी। घास का एक भी तिनका रेगिस्तान में नहीं उगता, हले यात्रियों के लिए यह स्थान "मृत्यु सागर" के नाम से जाना जाता था। मार्को पोलो ने लिखा कि "यात्री आत्माओं की बातचीत कभी कभी सुन सकता है, सचमुच वे उसे नाम लेकर भी पुकारती हैं। अक्सर ऐसी आवाज़ें उसे रास्ते से भटका देती हैं और वह इस का पता फिर कभी नहीं लगा पाता। और इस तरह अनेक यात्री यहां आकर खो गए।"

    मार्को पोलो के जमाने में रेशम मार्ग तक के रेगिस्तान भाग पर यातायात, नखलिस्तान के जरिए तय होता था, लेकिन सर्दियां गुजर जाने पर यह सब ज़्यादातर रेत के ढ़ेर के नीचे दब चुका है। अपनी यात्रा में हम ने खोतान के नज़दीक मालीकावात तथा छीरा काउन्टी में स्थित मिलान तथा तामागो आदि प्राचीन नगरों का दौरा किया। इस प्राचीन स्थल पर कोई भी इमारत खड़ी नहीं रह गई है। लेकिन दीवारों, गलियारों, आंगनों तथा मकानों के अवशेष भूतपूर्व समृद्धि के प्रमाण हैं।

    हशी गलियारा

    अलतुन पर्वत से गुजरने तथा छिडंहाए में लडंहू झील पार कर लेने के बाद कानसू प्रांत में हमें हशी गलियारा मिला, जो कलाकृतियों तथा धार्मिक प्रतिमाओं की गैलरी है। पोलो ने लिखा,"यहां रास्ते पर बने मंदिरों में स्थापित देवताओं की प्रतिमाएं बड़े उत्कृष्ट तरीके से उभारी गई हैं, वे बहुत सुन्दर और जीवन्त दीख पड़ती हैं। ""बोधिसत्व की प्रतिमाओं पर सोना चढ़ा हुआ था तथा वे कीमती आभूषणों से सुसज्जित थीं" सारे गलियारे की गुफ़ाएं बौद्ध प्रतिमाओं, प्राचीन पगोडा तथा भित्तिचित्रों से अटी पड़ी हैं।

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