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    अलताई चरागाह की यात्रा
    2014-04-28 11:08:39 cri

     

    गत शरद में चीन सचित्र के संवाददाता ने पेइचिंग से 3000 किलोमीटर की दूरी पर उत्तरी शिनच्याडं में स्थित अलताई चरागाह का दौरा किया।हमू नदी-घाटी के चरवाहे, ऊंटों पर बैठे, मवेशियों और भेड़ों को हाकते हुए नीचे आ रहे थे। शरद के अन्तिम दिनों में सफ़ेद भोजवृक्ष की पत्तियां सुनहरी होने लगी थीं, पहाड़ी पीपल पर गुलाबी आभा बिखरी पड़ रही थी, तथा छोटी छोटी झाड़ियां सुर्ख लाल रंग लिए चौंधिया रही थीं। वहां ठंडी हवा बह रही थी, पक्षी चहचहा रहे थे, और नदी मन्द मन्द गुनगुना रही थी।

    अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, इस प्रदेश की हनास नदी में विशेष रूप से एक बड़ी लाल मछली का पता लगा, और यह खबर जल्द ही संपूर्ण चरागाह में फैल गई। हनास झील चतुर्थ युग के दौरान हिमनदी के रूप में उभरी थी, जो अलताई पर्वत के मुख्य शिखर "मैत्री शिखर"के दक्षिण पूर्व में 2300 मीटर ऊंचाई पर बहती है तथा 28 किलोमीटर लम्बी और व्यापक बिन्दु पर 2 किलोमीटर चौड़ी है।

    कुछ वर्ष पूर्व, इस क्षेत्र के कठिन मार्ग के चलते, मंगोलियाई और कजाख जातियों के कुछ दर्जन भर परिवार इस नदी के नज़दीक वास करते थे, जो बाहरी दुनिया से लगभग कटे हुए थे। कहा जाता है कि इस नदी में दुष्टात्मा वास करती थी। एक मंगोल, जो उत्पादक दल का नेता था, ने हमें बताया कि जब उनके पिता जवान थे, एक अमीर द्वारा पाले गए घोड़े नदी पर पानी पीते देखे गए, लेकिन बाद में वे गायब हो गए, सिर्फ वहां उन के पैरों के निशान बाकी बचे रह गए थे। दूसरे किस्सों में कहा जाता है कि एक अपेक्षाकृत विशाल मछली इस नदी में पकड़ी गई थी, जिस का कपाल कड़ाहे से भी बड़ा था।

    क्या सच में इस नदी में कोई दुष्टात्मा वास करती थी?यह रहस्य पहले कभी नहीं सुलझा। जुलाई 1985 में शिनच्याडं विश्वविद्यालय के भौतिकी एवं भूविज्ञान विभाग के 20 अध्यापकों तथा विद्यार्थियों के दल ने यह खोजयात्रा आरंभ की। एक दिन उन्होंने ऊंचे शिखर के नजदीक हनास झील में एक भूरे लाल रंग का विशाल टुकड़ा बहते हुए देखा। दूरबीन से देखने पर उन्होंने पाया कि वह मछलियों का झुंड था, जिस में सब से बड़ी मछली कोई 15 मीटर लम्बी थी, उस का सिर, शरीर, पृष्ठपंख साफ-साफ पहचाने जा सकते थे। अगले पांच दिनों तक वे उन का निरीक्षण करते रहे और पाया कि वह मछली सतह पर हर रोज सुबह नौ बजे के आसपास आती है तथा इस झुंड में ज्यादा से ज्यादा 70 मछलियां हैं।

    नमूने के तौर पर इस मछली को पकड़ने के लिए अध्यापकों और विद्यार्थियों ने नजदीक के कस्बे से दो बड़े बड़े कांटे मंगवाए तथा उन्हें मांस और बत्तख का प्रलोभन दिया। एक दिन एक लाल मछली चारे के पास आकर रुक गई, लेकिन जल्द ही दूर भाग गई। वे धैर्य के साथ सात दिन तक इंतजार करते रहे मगर मछली ने चारा खाने से इंकार कर दिया।

    स्थानीय लोग जिसे लाल जाइन्ट कहते हैं वास्तव में सालमन जैसी मछली है, जिस का वैज्ञानिक नाम "हुचओ थायमन"है। इस की पीठ भूरी लाल होती है तथा यह ठंडे पानी में रहती है। इसे देखने के लिए हम नदी के सहारे-सहारे पहाड़ी के ऊपर चढ़े। इस नदी का पानी शांत और नीला है। हम वहां इंतजार करते रहे, पर कुछ नहीं हुआ।

    मार्च में भेड़ों के बच्चे हो जाने तथा उन के बाल उतारने के एकदम बाद चरवाहे उन्हें पर्वतीय चरागाहों में चराने ले जाते हैं और शरद के मौसम में वे अपनी विक्रिय भेड़ें बेच देते हैं तथा मादा भेड़ों को गर्भाधान कराने के बाद अपने चरवाहे समूहों के साथ पर्वतों के बाहर जाड़ा बिताने अपने निवास स्थानों पर वापस चले जाते हैं। ग्रीष्म और शीत ऋतु के चरागाहों के बीच कोई 600 किलोमीटर का फासला है। उन्हें हर साल कोई 1000 से ज्यादा किलोमीटर लम्बी यात्रा करनी पड़ती है। सितम्बर का मौसम विश्राम के लिए होता है जिस में चरवाहे अपने रिश्तेदारों और मित्रों को बुलाते हैं और नौजवान आम तौर पर इस मौसम में अपना विवाह करते हैं।

    एक दिन हम उस टोली में शामिल हो गए जिस में कजाख ऊंटों सहित एक दुल्हन का अनुरक्षण कर उसे उस के पति के घर ले जा रहे थे। उन के युर्त में इस नव दम्पत्ति ने हारा गर्मजोश स्वागत किया, हमें मक्खस, तली हुई डबलरोटी, दूध से बनी मिठाइयां खिलाईं तथा दूध वाली चाय पिलाई। हमारे युवा ड्राइवर को थोड़ी बहुत कजाख बोली आती थी, उस के जरिए हम ने उस मेहमान-नवाज दम्पति को धन्यवाद दिया और अपनी शुभकानाएं व्यक्त कीं।

    नई व्यवस्था के तहत हर परिवार को पशु बांटे गए हैं तथा पशुपालन पर आधुनिक तकनीकों संबंधी जानकारी देने के लिए एक संस्थान भी स्थापित हुआ है। फलस्वरूप कठोर श्रम तथा अच्छे पशुपालन के चलते सभी चरवाहे अमीर बनने के इच्छुक हैं और घास मैदान बढ़ता ही जा रही है। आज शिनच्याडं में अलताई चरागाह पशुपालन की वृद्धि दर में सबसे आगे हैं तथा वह विक्रेय तथा मादा पशुओं की दर में भी वृद्धि ला रहा है।

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