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    इंडियन किचन मसाला भारतीय रेस्तरां का इतिहास
    2014-02-24 13:32:35 cri

                                                  इंडियन किचन मसाला भारतीय रेस्तरां का इतिहास

    'इंडियन किचन मसाला'का अभिप्राय तरह-तरह के मसालों का निर्माण कारखाना से है। श्री एंथनी ने अपने 30 सालों के मसाले बेचने के अनुभव से चीन में मसाले उद्योग में सफलता की कहानी गढ़ी। चीन के विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के बाद बड़ी संख्या में विदेशी श्रम-शक्ति विशेष रूप से एशियाई प्रवासी रोजगार के लिए चीन आए। इसके साथ ही मसाला लोगों के जीवन में एक जरूरी खाद्य-पदार्थ बन गया। वर्ष 2000 में'इंडियन किचन मसाला'का पहला विनिर्माण केन्द्र चीन के तटीय शहर च्रुहाई स्पेशल ईकॉनिमिक ज़ोन (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में स्थापित हुआ।

    देखते-देखते कम समय में'इंडियन किचन'रेस्तरां ने चीन में अपनी 24 शाखाएं खोल दी, जिससे भोजन उद्योग में इंडियन किचन की शक्ति साफ़ नज़र आती है।

    भारत मसाले का विश्व प्रसिद्ध उद्गम देश है। इंडियन किचन अच्छी गुणवत्ता वाले भारतीय मसालों को मंगवाता है। मसाले की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इंडियन किचन अच्छी किस्म के कच्चे माल का आयात करता है और मार्किट का सर्वे के आधार पर उपभोक्ताओं के लिए लोकप्रिय मसाला बनाता है। पिछले 8 सालों में इंडियन किचन ने चीन के बाजार के अनुरूप कुकिंग के आसान तरीकों का विकास किया। इंडियन किचन की सब्जियां, चिकन, मटन, मछली, बीफ, बारबेक्यू और करी पाउडर बहुत लोकप्रिय है।

    इंडियन किचन कंपनी ने भारत से कई प्रसिद्ध ब्रांड के उत्पादों को भी लाया है जैसे फिलिप्स, एवरेस्ट, एमडीएच, अमूल, लालकिला, कोहिनूर आदि।

    इंडियन किचन कंपनी ने शांगहाई, पेइचिंग, शाओशिंग, च्रुहाई, क्वांगचो, ताल्यान, शनचेंग, यीवू, हांगचो और मकाओ में भी मसालों का केंद्र खोला हैं।

    अब इंडियन किचन कंपनी में 200 से ज्यादा चीनी व भारतीय कर्मचारी है और उसकी सख्त गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली भी है। सभी उत्पाद आईएसओ (ISO) प्रमाणित है। इंडियन किचन की सफलता का श्रेय उन्नत तकनीक व संयंत्र को जाना चाहिए।

                                                                     ह्वाडंलुडं की आकर्षक दृश्यावली

    ह्वाडंलुडं(पीत ड्रैगन) सछ्वान प्रांत के शानदार दर्शनीय स्थलों में से एक है। यह स्थान मिनशान पर्वतमाला के मुख्य शिखर-श्वेपाओ चोटी के ठीक नीचे स्थित सुडंफान चहचह गान और धाराओं की कलकल सुनाई देती है। पर इस प्राकृतिक सौन्दर्य के अलावा यहां ऐतिहासिक दिलचस्पी वाले अनेक स्थल भी हैं।

    किवदन्ती है कि कोई 4000 वर्षों पहले, जब केंद्रीय चीन के लोगों के सिर पर अक्सर बाढ़ का खतरा मंडरा आता था, तो महान य्वी ने शक्तिशाली नदियों को वश में किया था। वह एक नौका पर सवार होकर इस क्षेत्र के दौरे पर निकले थे, पर प्रचंड लहरों ने उनके अभियान को रोक दिया था। सौभाग्यवश एक ड्रैगन ने नौका को अपनी पीठ पर उठा उनका रास्ता हमवार किया। य्वी बाढ़ पर काबू पाने में सफल हुए और उन्होंने श्या राजवंश की स्थापना कीं, जो 500 सालों तक चली, पर थककर चूर हो गया ड्रैगन में वापस न लौट सका और श्वेपाओ चोटी की तलहटी में मृत पाया गया।

    ह्वाडंलुडं को दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे यह महान नाग अब भी यहां लेटा है। वास्तव में पीत ड्रैगन कार्स्ट क्षेत्र की एक विचित्र भूगर्भीय संरचना है। इसकी कैलिशयम कार्बोनेट की पीली परत की वजह से यहां अनेक बड़े छोटे स्वच्छ ताल बने हुए हैं, इन तालों का पानी हल्का नीले व हरे रंग का है। दूर से देखने में यह पहाड़ लेटा हुआ पीत ड्रैगन मालूम होता है। इसके दोनों ओर स्प्रूस के पेड़ खड़े हैं और नीले, श्वेत, लाल तथा बैंगनी रंगोन के फूल-गुच्छे और पौधे हैं।

    शिखर पर पीत ड्रैगन मठ के अवशेष खड़े हैं। यह ताओ मठ मिडं राजवंश के दौरान निर्मित हुआ था। इसके सामने एक कार्स्ट गुफा पड़ती है और पीछे एक शिलालेख है। शिलालेख के शिखर को छोड़कर बाकी सभी कुछ कैलिशयम कार्बोनेट की मार से मिट चुका है। और इस पर खुदा आलेख अपठनीय है। चीनी कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष जून में स्थानीय लोगों के अलावा छिडहाए और कानसू प्रांतों के तिब्बती, ह्वेई और हान जातियों के पर्यटक घोड़ों पर सवार होकर मंदिर मेले में भाग लेने इस मठ में आते हैं। वे यहां तम्बू गाड़कर रात में देर तक नाच-गान में मस्त रहते हैं।

    चीन के अनेक शूदृश्य, जौसे क्वाडंशी का क्वेइलिन और युननान का प्रस्तरवन इसी प्रकार की कार्स्ट संरचनाएं हैं। पर इनमें से हर कोई अपनी अलग विशिष्टता रखता है और वे रूपरंग में ह्वाडंलुडं से उतने ही अलग है, जितने एक दूसरे से।

    ह्वाडंलुडं का वनक्षेत्र भीमकाय पांडा, गवाज और चकोर जैसे विरल पशु-पक्षियों का घर है। और भी अनेक प्रकार के कम विरल पशु-पक्षी यहां विचरण करते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान और पशुप्रेमियों के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक वितरण की रक्षा के लिए ह्वाडंलुडं और पास के च्यूचाएको की 40000 हैक्टर भूमि को एक प्राकृतिक परिरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।

                                                                    थाएशान पर्वत के बहुमूल्य अवशेष

    चीन में ऐसे अनेक पर्वत हैं, जो सर्दियों पहले यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों की स्मृति कराने वाले प्राचीन मंदिरों और सांस्कृतिक अवशेषों के घर हैं। पांच पवित्र पर्वतमालाओं के एकदम पूर्वी छोर पर स्थित थाएशान पर्वत में देश की पहाड़ी धरोहरों के सबसे सुन्दर अवशेष संगृहीत हैं।

    दक्षिणी तलहटी में स्थित पहाड़ी देवता को समर्पित ताए मंदिर का निर्माण छिन राजवंश काल में हुआ था। बाद में हान, थाडं, सुड़, चिन, य्वान, मिडं और छिडं राजवंशों में भी इसकी मरम्मत, पुनरुद्धार और अलंकरण का कार्य चलता रहा। यह मंदिर 96469 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर खड़ा है और ढांचे में प्राचीन राज प्रासाद की तरह है और प्राचीन चीनी वास्तुशैली लिए हैं।

    मंदिर की मुख्य संरचना है—थ्येनख्वाडं(नैसर्गिक आशीर्वाद) हॉल। पेइचिंग के पुराने राज-प्रासाद के थाएहो(सर्वोत्तम सामंजस्य) हॉल और छ्वीफू में कन्फ्यूशियस मंदिर के ताछडं(महान उपलब्धि) हॉल की तरह ही यह चीन का तीसरा सबसे बड़ा प्राचीन हॉल है। इस की भित्ति पर एक विशाल सुडं राजवंश कालीन भित्तिचित्र बना है। नाम है---पर्वत देव का निरीक्षण दौरा। इस में 658 विशिष्ट मानवा कृतियां हैं। साथ ही पौराणिक पक्षियों, पशुओं, पर्वतों, नदियों पेड़ों और मंडपों का अंकन भी है।

    प्राचीन पूर्वज थाएशान पर्वत को शक्तिमान देव द्वारा धारण की गई आकृति मानते थे। सम्राटों की पीढ़ियां भव्य राजकीय रस्मों के दौरान इस पर्वत को बहुमूल्य उपहार चढ़ाती रहीं। पर्वत के खजानों में सर्वाधिक अद्भुत वस्तुएं हैं---सुगंधित अगरु काष्ठ पर बने जुड़वां शेर, गरम व शीत जेड और पीत ग्लेजदार चीनी मिट्टी लौकी। प्रत्येक शेर का वजन 4.3 किलोग्राम है और वे विरल सुगंधित लकड़ी पर विविधता और कुशलता के साथ तराशे गए हैं। जेड की लम्बाई 1.5 मीटर है, चौड़ाई 27 सेन्टीमीटर और मोटाई 7 सेंटीमीटर तथा वजन 15 किलोग्राम है। यह दो प्रमुख प्रखंडों में विभाजित हैः ऊपरी भाग का जेड कटा हुआ नहीं है, छूने पर नम सा लगता है और इस पर सूर्य, चंद्रमा, सितारे, पहाड़, नदियां तथा समुद्र तराशे गए हैं, निचला भाग ठंडे परिशोधित जेड से बना है। और उन पर चार चीनी अक्षर अंकित हैं, छ्येनलुड़ काल में निर्मित। चीनी मिट्टी की लौकी मिडं दरबार की एक सरकारी भट्ठी में 16वीं सदी में बनी थी और थाएशान पर्वत देव को चढ़ाने के लिए बनाई गई थी।

    थाएशान पर्वत पर अनेक प्रस्तर पट्टियां और शिलालेख भी हैं। थाएशान की नक्काशीदार शिला में चीन राष्ट्र को एक करने वाले प्रथम सम्राट छिन की प्रशस्ति लिखी है। स्टैंडर्ड चीनी लिपि के प्रथम अन्वेषक प्रधान मंत्री ली स द्वारा लिखा गया यह आलेख चीन के प्राचीनतम शिलालेखों में से एक हैं। 2200 वर्षों में ली स द्वारा दो शिलाओं पर लिखे गए 222 अक्षरों के प्रशस्ति-आलेख में से अब केवल साढ़े नौ अक्षर पढ़े जा सकते हैं। वज्त्र छदिका सूत्र का पाठ छठी सदी में एक लिपिकार द्वारा लिखा गया था, जिस विशाल प्रस्तर खंड यह आलेख खुदा है, वही अब सूत्र शिला घाटी कहलाती है। यह आलेख प्रथम वृहदाक्षर लिपिकला के नाम से भी जाना जाता है। अब भी स्पष्ट 1043 अक्षरों में से प्रत्येक अक्षर की चौड़ाई 50 सेंटीमीटर है। 1124 में सुडं सम्राट ह्वेइचुडं से ताए मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए, श्वेन हो(सार्वभौमिक सद्भाव) शिलालेख बनवाया था, जो थाएशान पर्वत के शिलालेखों में सब से बड़ा है। यह 6.25 मीटर ऊंचा, 2.1 मीटर चौड़ा और इसी कच्छपाकार नींव आकार में 7 घनमीटर है और इस का वजन 20 टन है।

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