कैसे अमेरिका ने मानवाधिकारों को हथियार बनाया

2022-04-15 12:43:44

अमेरिका के लिए 12 अप्रैल का दिन कष्टदायक रहा। उसी दिन सुबह न्यूयॉर्क मेट्रो के ब्रुकलिन स्टेशन में एक 28 वर्षीय गर्भवती महिला, एक 12 वर्षीय बच्चे और 20 से अधिक बेगुनाह यात्रियों को अचानक गोलियां मार दी गईं। क्षण भर में मेट्रो स्टेशन में खून फैल गया और चीख-पुकार की आवाज़ गूंज उठी।

लगभग उसी समय, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने तथाकथित "2021 मानवाधिकारों पर देश की रिपोर्ट" जारी की, जिसने हमेशा की तरह दुनिया भर के लगभग 200 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति को इंगित किया। बेशक, हमेशा की तरह अपने देश में मानवाधिकारों की स्थिति का कोई उल्लेख नहीं किया।

अमेरिकी लोगों द्वारा की गई गोलीबारी के दर्द को नजरअंदाज करते हुए अन्य देशों के लोगों के मानवाधिकारों के बारे में "चिंता" जताई। इस तरह अमेरिका ने "छद्म मानवाधिकार" और "सच्चा आधिपत्य" को प्रदर्शित करने के लिए इस तरह के एक बहुत ही विडंबनापूर्ण कार्रवाई का इस्तेमाल किया।

मानवाधिकारों के संरक्षण और सुधार की उपेक्षा करते हुए अमेरिका साल-दर-साल मानवाधिकारों पर तथाकथित देश की रिपोर्टों को गढ़ता है, जो अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने, छोटे समूह बनाने और आधिपत्य बनाए रखने की पुरानी चाल रही है। वाशिंगटन के राजनीतिज्ञों की नजर में मानवाधिकार राजनीति, औजार और हथियार हैं।

हाल के वर्षों में इराक, अफगानिस्तान और सीरिया के युद्धों से लेकर पूर्वी यूरोप और बाल्कन क्षेत्र में "रंग क्रांतियों" तक, अमेरिका के "मानवाधिकार हथियारों" को हर तरफ से दागा गया है, जिससे बड़ी संख्या में मानवीय आपदाएं पैदा हुई हैं।

अमेरिकी शैली वाले मानवाधिकारों के पाखंड और हथियारीकरण से वैश्विक आक्रोश पैदा हुआ। क्यूबा के विदेश मंत्री ब्रूनो रोड्रिगेज ने कहा कि वाशिंगटन के हितों का पालन न करने वाले देशों को हेरफेर करने और डराने के लिए अमेरिका मानवाधिकार को उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। वहीं, “द टाइम्स ऑफ़ इंडिया” ने 13 अप्रैल को कहा कि अमेरिका के भीतर सिलसिलेवार समस्याएं मौजूद हैं, लेकिन वह दूसरे देशों के मानवाधिकार की स्थिति के प्रति दोहरे मापदंड अपनाता है, इस तरह उसकी "मुद्रा कष्टप्रद है"।

गत शताब्दी के 80 के दशक में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़बिग्न्यू ब्रज़ेज़िंस्की ने एक पुस्तक में दावा किया था कि "मानव अधिकारों पर जोर देकर, अमेरिका एक बार फिर खुद को मानव आशा का दूत और भविष्य की प्रवृत्ति का संदेशवाहक बना सकता है"। लेकिन तथ्य इसके बिल्कुल विपरीत है। अमेरिका, "मानवाधिकारों का हथियार" लेकर चल रहा है, मानव जाति की आशा को नष्ट कर रहा है, भविष्य की प्रवृत्ति को अवरुद्ध कर रहा है, और हमारी दुनिया के लिए एक वास्तविक खतरा बन रहा है!

(श्याओ थांग)

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