दुनिया का कोई न कोई शहर प्रत्येक दो वर्ष बाद ग्रीष्मकालीन या शीतकालीन ओलंपिक खेलों का मेजबान बनता है और जिस देश में ओलंपिक खेलों का आयोजन होता है वहां की संस्कृति और सभ्यता का परिलक्षण खेलों की तैयारियों और आयोजन में दिखाई पड़ता है। मेजबान देश की संस्कृति, समृद्धि, विकास, पर्यावरण और जैविक समृद्धि का प्रतीक ही होता है उन ओलंपिक खेलों का शुभंकर। आमतौर पर शुभंकर मेजबान देश में पाए जाने वाले अतिलोकप्रिय या उस भौगलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव-जंतु को चुना जाता है।
ग्रीष्मकालीन खेलों में शुभंकर के चयन का सिलसिला 1932 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक गेम्स से शुरु हुआ था और उस वक्त का शुभंकर स्कॉटिश टेरियर ब्रीड का श्वान था। वहीं शीतकालीन ओलंपिक खेलों में पहली बार शुभंकर 1968 के ग्रेनोबल खेलों में चुना गया था और उस वक्त शूज़ नाम का ये शुभंकर एक एनिमेटेड कार्टून कैरेक्टर था जिसे स्किईंग करता हुआ दिखाया गया था। हालांकि पहला आधिकारिक शुभंकर 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में वाल्डी द डचशुंड के नाम से लोकप्रिय हुआ।
इतना ही नहीं फीफा विश्व कप फुटबॉल हो या फिर कॉमनवेल्थ गेम्स हो और या हो एशियाई खेल, हर बड़ी खेल स्पर्धा में शुभंकर यानी मैस्कॉट रुपी प्रतीक को खेल भावना बढ़ाने और मेजबान देश से जोड़ने के उद्देश्य से किया जाता है। जैसे-जैसे खेलों के हर चार वर्ष में होने वाले महाआयोजनों की हलचल बढ़ती गई, विश्व के अनेक भू-भागों से कई तरह के शुभंकर खेलों प्रचलित होते गए। एशिया महाद्वीप और एशिया पैसिफिक के देशों के खेल महाआयोजनों की बात करें तो 1982 में भारत में हुए नौंवे एशियाई खेल नई दिल्ली में आयोजित हुए थे और उस समय उन खेलों का शुभंकर अप्पू था जो एक छोटा हाथी था और उस समय ‘सदा मैत्री बंधुता’ उन खेलों का ध्येय वाक्य था। वहीं 1990 के पेइचिंग एशियाई खेलों का शुभंकर पैन-पैन पांडा को रखा गया जो उस देश की जैविक समृद्धि का प्रतीक था। वर्ष 2000 में जब ओलंपिक खेल पहली बार एशिया पैसिफिक क्षेत्र में आयोजित हुए तो सिडनी ओलंपिक खेलों से एक से अधिक शुभंकरों का प्रचलन शुरू हुआ। सिडनी 2000 में ओली, सिड और मिली यानी कुकुबुरा, प्लेटीपस और इकिड्ना को शुभंकर चुना गया और यह चयन इसी बात पर आधारित रहा कि वे सभी जीव-जंतु उसी भौगोलिक क्षेत्र के अलावा पृथ्वी पर कहीं और नहीं पाए जाते हैं।
वर्ष 2008 के जब ओलंपिक खेलों का कारवां पेइचिंग पहुंचा तो उन ओलंपिक खेलों में पांच तरह की शुभ-भाग्य वाली डॉल्स के रुप में फुवा को शुभंकर बनाया गया। ये पांचों किरदार अलग-अलग रंगों में पांच महाद्वीपों का प्रतिबिंब भी थे। इसमें हुआन-हुआन को छोड़कर चारों जीव चीन में पाए जाते हैं। चिंग-चिंग पांडा काले और सफेद रंग में, पेई-पेई मछली नीले रंग में, ईंग-ईंग तिब्बती एंटीलोप पीले रंग में ,निनि आकाश का परिचायक हरे रंग में और हुआन-हुआन को अग्नि का बाल रुप लाल रंग में था। इन पांचों शब्दों को एक साथ बोलने पर ‘पेइचिंग हुआनयिंग नी’ यानी ‘पेइचिंग आपका स्वागत करता है’ जैसा शुभ वाक्य निकलकर आता था।
वर्ष 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों का शुभंकर शेरा था जिसे एथलीट के रुप में दिखाया गया था, ये भारत में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले बाघ का प्रतीक था। वहीं सितंबर 2022 में चीन के शहर हांगचोऊ में आयोजित होने वाले एशियाई खेलों के शुभंकर भी तीन हैं। त्सौंग-त्सौंग,लियान-लियान,छन-छन, ये तीनों चियांगनान की यादें के नाम से प्रचलित शुभंकर तय हुए हैं। ये रोबोटिक सुपर हीरो है जिनकी उत्पत्ति ग्रांड कैनाल, वेस्ट लेक और लियांगचू शहर के पुरातत्व अवशेषों से हुई है।
4 फरवरी से पेइचिंग में शुरु होने जा रहे 24वें शीतकालीन ओलंपिक खेलों में पिंग ड्वूनड्वून को शुभंकर बनाया गया है जो कि एक जायंट पांडा है और उसने आईस सूट पहन रखा है। वहीं श्वेए रोंगरोंग (सौभाग्यशाली लालटेन का प्रतीक) को पेइचिंग पैरालंपिक गेम्स का शुभंकर बनाया गया है।
इन शुभंकरों की खास बात ये होती है कि इन्हें यादगार के रुप में खेल प्रेमी जरूर खरीदते हैं। ओंलपिक पिन, लिफाफे, टी-शर्ट, स्कार्फ और अन्य कपड़ों के रुप में इन शुभकंरों को छापा जाता है और ये उन ओलंपिक खेलों के रुप में हमेशा यादगार बन जाते हैं। इन शुभंकरों के छोटे-छोटे मखमली खिलौने भी बनते हैं जिन्हें बच्चे बड़े ही प्रेम से अपने पास रखते हैं।