विशेषज्ञ और विद्वान : चीन-भारत को मतभेदों को दूर करना और आम-जीत सहयोग पर जोर देना चाहिये
2021-12-06 20:09:25

विशेषज्ञ और विद्वान : चीन-भारत को मतभेदों को दूर करना और आम-जीत सहयोग पर जोर देना चाहिये_fororder_news 2

चीन और भारत को मतभेदों को दूर करना और आम-जीत वाले सहयोग पर जोर देना चाहिये। साथ ही, दोनों देशों को विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान और आपसी शिक्षा को मजबूत करना और वैश्विक सुधार को संयुक्त रूप से बढ़ावा देना चाहिये। ताकि वे चीन-भारत, एशिया-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया को लाभ पहुंचा सकेंगे। हाल ही में चीन के क्वांगचो शहर में आयोजित“चीन को समझें” अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में चाइना मीडिया ग्रुप के संवाददाता के साथ इंटरव्यू में राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, पर्यावरण, शिक्षा, सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण आदि विभिन्न क्षेत्रों से आये कई विशेषज्ञों और विद्वानों ने यह बात कही।

इंटरव्यू में शांगहाई अंतर्राष्ट्रीय मामला संस्थान की अकादमिक समिति के प्रभारी यांग च्येम्यान ने कहा कि अब दुनिया शांतिपूर्ण विकास वाले युग से न्याय व आम खुशहाली वाले युग में परिवर्तित हो रही है। यह युग अगले कई दशकों तक जारी रहेगा। लेकिन इस युग में दुनिया का विकास लक्ष्य स्पष्ट और उपलब्ध-योग्य होगा। उनके विचार में नये युग में चीन और भारत दोनों देशों के युवाओं को ये दो बातें पूरी करनी चाहिये, जो न्याय और आम खुशहाली हैं।

चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी की शिक्षाविद समिति की सदस्य और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग की प्रभारी चो होंग ने कहा कि उम्मीद है कि भारतीय युवा चीन की यात्रा करेंगे। चीन में तमाम स्थान बहुत सुंदर हैं। साथ ही उम्मीद है कि उन्हें भारतीय युवाओं से मिलने और उनके साथ चीन पर अपनी राय साझा करने का मौक़ा मिलेगा। उनके कई विदेशी दोस्त हैं। उन्होंने उनसे चीन के बारे में बहुत सी जानकारी हासिल की है। वे अच्छे दोस्त बन गए हैं। उम्मीद है कि भविष्य में चीनी व भारतीय युवा एक-दूसरे के दोस्त बनेंगे, ताकि वे एक-दूसरे देश के बारे में बेहतर समझ हासिल कर सकें।

चीनी महल संग्रहालय के पूर्व प्रधान, चीनी सांस्कृतिक अवशेष संघ के अध्यक्ष शान चीश्यांग चीनी महल संग्रहालय के “द्वारपाल” के नाम से प्रसिद्ध है। चाइना मीडिया ग्रुप के संवाददाता के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि चीन ने भारतीय पुरातत्व ब्यूरो के साथ सहयोग कर बौद्ध सांस्कृतिक विरासतों का संयुक्त रूप से उत्खनन एवं संरक्षण किया। पिछले कुछ सालों से चीनी महल संग्रहालय भारतीय पुरातत्व ब्यूरो के साथ छोटे पैमाने पर पुरातत्व और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में आदान-प्रदान और सहयोग जारी रखे हुए है।

हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय और 19 अन्य भारतीय संग्रहालयों ने संयुक्त रूप से संग्रह प्रदान किया। उन्होंने चीनी महल संग्रहालय के साथ चीन-भारत पत्थर की नक्काशी की बड़े पैमाने पर प्रदर्शनी का संयुक्त आयोजन किया। इस तरह के कार्यों को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। सांस्कृतिक विरासत संरक्षण और विरासत क्षेत्र में चीन और भारत के बीच सहयोग की संभावना काफी ज्यादा है। वर्तमान में चीन ने ड्रोन, बिग डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एआर, वीआर और 3डी मॉडलिंग आदि हाई-टेक तकनीकों का उपयोग करते हुए सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण कार्य को बढ़ाया है। चीन भारत समेत अन्य सभी देशों के साथ संबंधित प्रौद्योगिकी और अनुभव साझा करने को तैयार है। ताकि वैश्विक सांस्कृतिक विरासतों के सतत विकास को मजबूत किया जा सके।

उधर, पेइचिंग नॉर्मल विश्वविद्यालय के चीन शिक्षा नवाचार अनुसंधान संस्थान के प्रभारी, प्रोफ़ेसर ल्यू च्यान ने कहा कि भारतीय शिक्षा कार्यों के अपने अनूठे फायदे हैं। पहला, भारत के उच्च शिक्षा चरण में एआई और सॉफ्टवेयर आदि उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में शैक्षिक कार्य बहुत सफल रहे हैं। दूसरा, भारत के अभिजात्य शिक्षा चरण में आधुनिक प्रबंधन ज्ञान की लोकप्रियता और आधुनिक प्रबंधन साक्षरता व विकास बहुत अच्छा रहा है। वहीं, चीनी शिक्षा के फायदे ये हैं कि चीन में समान शिक्षा व्यवस्था लागू की जाती है। देश भर में सभी लोग उत्कृष्ट बुनियादी शिक्षा के अवसरों तक समान पहुंच प्राप्त कर सकते हैं। चीन की बुनियादी शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा का आधार बहुत ठोस है। इस तरह चीन और भारत इस क्षेत्र में एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा क्षेत्र में चीन व भारत के पास अपने फायदे हैं और ये फायदे एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों पक्षों को संचार व सहयोग को मजबूत करना, वैश्विक शिक्षा प्रशासन में सक्रिय भाग लेना और वैश्विक शिक्षा सुधार को संयुक्त रूप से बढ़ाना चाहिये। ताकि वे दोनों देशों, एशिया प्रशांत क्षेत्र और पूरी दुनिया को लाभ पहुंचा सकें।

छिंगह्वा विश्वविद्यालय के ऊर्जा, पर्यावरण और अर्थशास्त्र संस्थान के प्रमुख प्रोफ़ेसर चांग शिलिआंग ने संवाददाता को बताया कि चीन कार्बन तटस्थता और कार्बन उत्सर्जन पर अपना वादा पूरा करने और वैश्विक जलवायु प्ररिवर्तन प्रशासन को बढ़ाने के लिये प्रयास जारी रखे हुए हैं। चीन के संबंधित कदम और अनुभव विकासशील देशों के लिए एक उपयोगी संदर्भ प्रदान कर सकते हैं। चीन और भारत के बीच सहयोग के प्रति उन्होंने कहा कि "दोहरे कार्बन" यानी कार्बन तटस्थता व कार्बन उत्सर्जन पर वादा पूरा करने और वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रशासन के विकास क्षेत्रों में चीन और भारत के बीच सहयोग की संभावना बहुत ज्यादा है। चीन भारत को तकनीकी सहायता देना जारी रख सकता है। वास्तव में चीन की उच्च दक्षता व कम उत्सर्जन वाली कोयला प्रज्वलन तकनीक ने भारतीय बिजली उद्योग के विकास के लिए बहुत सहायता प्रदान की है। भविष्य में चीन भारत को नई ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सहायता और समर्थन प्रदान करना जारी रखेगा।

चीनी राज्य परिषद का विकास अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता और ताईहे थिंक टैंक संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता तिंग यीफ़ान के राय में “समुद्री रेशम मार्ग” के व्यापार हब के रूप में भारत चीन के विकास के इतिहास और प्रक्रिया में से एक महत्वपूर्ण भाग है। इसके अलावा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत चीन और भारत के नेताओं द्वारा सह-निर्धारित नीति है। यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मार्गदर्शक सिद्धांत भी बना है। उन्होंने आगे कहा कि क्योंकि इतिहास में चीन और भारत के बीच लगातार सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान जारी रहा है, दोनों देशों को इस परंपरा को विरासत के रूप में लेना चाहिये।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांगहाई विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर फ़ान छोंगचुन ने कहा कि एशिया प्रशांत के महत्वपूर्ण देश के रूप में चीन और भारत “कन्फ्यूशियस पारिस्थितिकी तंत्र” में रखते हैं। दोनों देशों को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, चिकित्सा और तकनीकी आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे से सहयोग मजबूत करना चाहिये। विशेषकर दोनों देशों को आपसी गैर-सरकारी सहयोग को बढ़ाना चाहिये। गैर-सरकारी सहयोग में न केवल गैर-लाभकारी संगठन शामिल हैं, बल्कि चीन-भारतीय कंपनियों के बीच सहयोग शामिल है। चीन दूसरे देशों के उच्च तकनीक वाले उद्यमों और अनुसंधान संस्थानों को चीन में अनुसंधान केंद्र स्थापित करने का स्वागत कर जारी रखता है। साथ ही, चीन की उच्च तकनीक वाली कंपनियों ने भारत समेत अधिक देशों का निवेश किया और शाखा कंपनियों की स्थापना की।

नवाचार और विकास रणनीति के लिए चीनी संस्थान के शिक्षा अनुसंधान केंद्र की कार्यकारी निदेशक वांग यीहोंग ने कहा कि पड़ोसी देशों के रूप में चीन और भारत के बीच मानविकी आदान-प्रदान मजबूत हो रहा है। हर वर्ष बड़ी संख्या में भारतीय छात्र अध्ययन करने के लिये चीन आते हैं। चीन पहुंचने के बाद उन्हें पता चलता है कि चीन और भारत की संस्कृति परस्पर ढंग से जुड़ी हुई है। दोनों देशों की राष्ट्रीय प्रणालियां अलग-अलग हैं, लेकिन दुनिया रंगीन है। चीन की राष्ट्रीय प्रणाली चीन के लिए सबसे उपयुक्त है और भारत भी वही है। चीन में अध्ययन करने के दौरान भारतीय छात्र चीनी संस्कृति व चीनी प्रणाली को समझकर आपसी समझ व संचार को मजबूत कर सकते हैं। ताकि चीन-भारत संबंधों को बढ़ावा देने और दोनों देशों के बीच मतभेदों को खत्म करने में मदद कर सकें।

(हैया)