वायु प्रदूषण : पराली जलाने से चीन के शहरों में भी दिल्ली जैसा हाल है?

2021-11-23 19:27:58

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पतझड़ के साथ कई देश कृषि फसल जलने के मौसम में प्रवेश कर रहे हैं, जहां किसान नई फसल के लिए रास्ता बनाने के लिए अपने खेतों को जलाते हैं, जिससे जहरीले धुएं का गुबार उठता है। फसल के मौसम के बाद, अनाज के बराबर भूसा होता है। किसान इस भूसे को जलाते हैं, जिससे भीषण वायु प्रदूषण की समस्या पैदा होती है, और इस समस्या से न केवल भारत बल्कि चीन और विश्व के कई अन्य देश भी गुजरते हैं। 

दरअसल, दुनिया के कई हिस्सों में किसान नई फसल बोने से पहले पराली, खरपतवार और कचरे को साफ करने के लिए खेतों में आग लगा देते हैं। सदियों से चली आ रही इस परंपरा से विश्व के सभी देश परेशान हैं और इससे निपटने के लिए हल ढूंढ रहे हैं।

फिलहाल, इस महीने भारत की राजधानी दिल्ली और उत्तरी भारत के कई हिस्सों में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है जिसके कई कारण गिनाए जा रहे हैं, लेकिन पराली जलाना ही मुख्य कारण माना जा रहा है। दशकों से चली आ रही पराली जलाने की परंपरा न सिर्फ भारत में बल्कि भारत के पड़ोसी मुल्क चीन में भी देखी जाती है। जी हां, चीन के ग्रामीण इलाकों में भी खेतों को साफ करने और अगली जुताई के मौसम की तैयारी के लिए पराली जलाने का अभ्यास किया जाता है।

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या पराली जलाने से चीन के शहरों में भी दिल्ली जैसा प्रदूषण फैलता है? इसका जवाब है, हां! लेकिन इतना बुरा हाल नहीं है जितना दिल्ली में देखने को मिलता है। आज से कुछ वर्ष पहले चीन के कई शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर हुआ करती थी कि सर्दियों में काले धुंध की मोटी चादर से आसमान दिखाई देना बंद हो जाता था, और कई दिनों तक स्कूल बंद कर दिये जाते थे।

लेकिन अब प्रदूषण पर लगाम कसने में काफी हद तक सफलता मिली है। चीन ने कंस्ट्रक्शन पर रोक लगाने से लेकर ऑड-इवन फॉर्मूले को लागू किया है। साथ ही, ठंड में कोयले की खपत को कम करने के लिए गैस-फायर संयंत्रों का संचालन शुरू किया है। यहां तक कि इलेक्ट्रिक बाइक और शेयरिंग साइकिल के इस्तेमाल करने की नीति बनाई है। साल-दर-साल अपनाए गए उपायों की वजह से यहां की आबोहवा में बहुत बड़ा सुधार हुआ है, जो कि अब ज्यादा दिनों तक नीला आसमान दिखाई देता है।

वहीं, पराली जलाने के मुद्दे पर बात करें तो किसानों का मानना है कि जुताई से पहले सभी फसल के अवशेषों को साफ किया जाना चाहिए इसलिए परपंरागत रूप से विश्व के सभी किसान पराली जलाते हैं। यह अभ्यास तेज और किफायती हो सकता है, लेकिन अत्यधिक टिकाऊ नहीं है, क्योंकि यह बड़ी मात्रा में कण प्रदूषक ब्लैक कार्बन पैदा करता है और मिट्टी की उर्वरता को कम करता है।

दुनिया के कई किसान खुले में पराली जलाने के परिणामों से अच्छी तरह अवगत हैं, लेकिन वैकल्पिक तरीकों को अपनाने के लिए उनके पास उपकरण और ज्ञान की कमी है। यह हाल न सिर्फ चीन और भारत का है बल्कि अमेरिका, ब्राजील, स्पेन, ग्रीस, इटली, टर्की, ऑस्ट्रेलिया भी इसी गंभीर समस्या का सामना कर रहा है।

इससे निपटने के लिए, सभी देशों की सरकारें फसल के कचरे के निपटान के लिए और अधिक पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का परीक्षण कर रही है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में पराली जलाने से निपटने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के साथ मिलकर एक बायो-डीकंपोजर समाधान विकसित किया है। इसके एक बार खेत में छिड़काव के बाद, घोल 15-20 दिनों में पराली को खाद में बदल देता है।

हालांकि, दिल्ली में इसके इस्तेमाल से किसानों को काफी लाभ मिला है लेकिन अन्य राज्यों का मानना है कि यह समाधान उतना कारगर नहीं है क्योंकि 15-20 दिन की अवधि किसानों के लिए काफी लंबी है। अगली फसल के लिए इतना लंबा इंतजार करना किसानों के लिए संभव नहीं है। इसलिए अन्य राज्यों के लिए सरकार द्वारा हैप्पी सीडर मशीन का इस्तेमाल सुझाया गया।

वैसे यह मशीन काफी तेज और उपयोगी है लेकिन इसे खरीदने के लिए काफी धनराशि लगती है, जिसके इंतजाम के लिए राज्य सरकारों को केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार ने इसके खर्चे के लिए खेतों के आकार के अनुसार 50-80% बिल भुगतान की पैरवी भी की है, लेकिन धनराशि की कमी के कारण सभी खेतों तक इसकी पहुंच बनाने में समय लग रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में सरकारी सहायता द्वारा किसी न किसी नतीजे पर जल्दी ही पहुंचा जा सकेगा।

वहीं, चीन में 2016 में केंद्र सरकार ने दस प्रांतों में पराली के दोबारा इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी देना शुरू किया। इस कार्यक्रम ने साइन्यू फार्म को परियोजना लागू करने के लिए आवश्यक मशीनरी में निवेश करने में मदद की, ताकि ऐसे खेतों के लिए सहायता प्रदान की जा सके जो इसे जुटाने में समर्थ नहीं हैं।

इस पर चीनी स्थानीय अधिकारियों का मानना है कि स्थायी परिणाम प्राप्त करने के लिए केवल सब्सिडी मददगार नहीं होगी बल्कि किसी नई तकनीक या उपाय की खोज करनी होगी। हाल फिलहाल में चीनी सरकार इस पर जोर दे रही है कि पराली को किसी तरह दोबारा इस्तेमाल में लाया जाए ताकि उसे बर्बाद करने की बजाए उसे व्यवसाय में इस्तेमाल किया जा सके। इसलिए पराली से बने चम्मच, थाली, गिलास आदि बाजारों में खूब बिकने लगे हैं। परन्तु अब भी पूरी दुनिया किसी स्थायी उपाय की तलाश में है।

हाल ही में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में कई देश आने वाले दशक में भयावह ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं पर सहमत हो रहे हैं। आशा है कि आने वाले वर्षों में इस पराली जलाने जैसी गंभीर समस्या के लिए जरूर समाधान ढूंढ लिया जाएगा।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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