चंग ह और वास्को डि गामा के बीच मौलिक अंतर क्या है?
11 जुलाई को 17वें चीन नौकायन दिवस मनाने के लिये चीन के मिंग राजवंश के नेविगेटर चंग ह के गृहनगर युन्नान प्रांत के खुनमिंग शहर में 17वां चीन समुद्री दिवस मंच उद्घाटित हुआ। इस बार के चीन नौकायन दिवस की थीम “नौकायन की नई यात्रा का आरंभ और नौपरिवहन के नये भविष्य की संयुक्त स्थापना” है।
11 जुलाई 1905 को चंग ह के नेतृत्व में चीनी जहाजों के बेड़े ने सात नौकायन अभियान आंरभ किये थे। पुराने चीन के इतिहास में इस बेड़े का आकार सबसे बड़ा, साथ ही इस बेड़े के जहाजों और कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक और नौकायन की अवधि सबसे लंबी थी। चंग ह के पहले नौकायन अभियान का गंतव्य पुराना जैमोरिन देश था, जो कि सबसे दूरस्थ स्थान जैमोरिन भी था। पुराना जैमोरिन देश मौजूदा दक्षिण पश्चिमी भारत के केरल प्रदेश के कोझिकोड है। उल्लेखनीय है कि पुर्तगाली नेविगेटर वास्को डि गामा वर्ष 1948 में जैमोरिन में पहली बार पहुंचे। वे यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों के कमांडर थे, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुंचे।
लोग चंग ह और वास्को डि गामा की तुलना बार-बार करते हैं। दोनों नेविगेटरों से चीन, भारत और पूरी दुनिया महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित हुए। लेकिन दोनों नेविगेटरों के बीच स्पष्ट अंतर है। बेड़े के आकार और नौकायन अभियानों की अवधि विभिन्न के अलावा दोनों पक्षों के बीच मौलिक अंतर नौकायन अभियानों के लक्ष्य अलग-अलग थे। चंग ह और वास्को डि गामा के बीच ये अंतर चीन और पश्चिमी देशों के बीच मौलिक अंतरों का लघुचित्र ही है।
चंग ह के पहले नौकायन अभियान को लेकर भांति-भांति के विचार हैं। लेकिन इतिहासकारों ने आम सहमति की कि चंग ह के अंतिम पांच बार के नौकायन अभियानों का मुख्य लक्ष्य शांतिपूर्ण आदान-प्रदान और व्यापार था।
चंग ह ने बेड़े का जानबूझकर प्रचार नहीं किया। लेकिन वे जहां गए, वहां उन्होंने स्थानीय व्यवसायियों व अधिकारियो से आमने-सामने बातचीत की। उन्होंने समान लेनदेन, तालियां बजाने से मूल्य निर्धारण और अनुबंध का दृढ पालन किया। स्थानीय लोग चंग ह और उनके कर्मचारियों के चेहरों पर ईमानदार मुस्कान देख सकते थे। उनके मन में चंग ह और उनका बेड़ा मिलनसार दाता और समान सहयोगी था। जब वे जैमोरिन देश पहुंचे तो दोनों पक्षों के बीच दोस्ती मनाने के लिये चंग ह ने एक चीनी शैली वाले मूठ मंडप की स्थापना की। इस मूठ पर लिखा है कि जैमोरिन और चीन के बीच दूरी 1 लाख से अधिक मील है। लेकिन यहां चीन की तरह समृद्धि और सद्भाव है। इसीलिये उन्होंने इस मूठ को खडा किया और दुनिया भर में फैलाया।
इन सात नौकायन अभियानों के दौरान चंग ह ने समुद्री लुटेरे के पाप की जड़ निकाल कर फेंकी, समुद्री यातायात की सुरक्षा की रक्षा की, संबंधित देशों के बीच मतभेद खत्म किए और एशिया व अफ्रीका के विभिन्न देशों के बीच शांतिपूर्ण स्थापना को बढ़ाया। उन्होंने स्थानीय लोगों को सुख और लाभ पहुंचाया था। इसीलिये इन देशों ने चंग ह की बड़ी प्रशंसा की। इसके अलावा इस शांतिपूर्ण परिस्थिति में एशियाई-अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार आदान-प्रदान व सांस्कृतिक आदान-प्रदान विशेषकर चीन एवं संबंधित देशों के बीच संपर्क को आगे बढ़ाया था।
दशकों के बाद एक यूरोपीय बेड़े ने जैमोरिन में लैंडिंग की। इस बेड़े का कमांडर वास्को डि गामा था। पुस्तक “मार्क पोलो की यात्राएं” के कारण पश्चिमी लोगों को विश्वास था कि पुराने चीन और भारत समेत सभी पूर्वी क्षेत्र में लोग हर जगह सोना रखते हैं। क्योंकि अरब लोगों ने पूर्व और पश्चिम के बीच पूर्व व्यापार मार्ग पर कब्जा किया था। सोने के लिये अपनी अभिलाषा पूरी करने के लिये यूरोपीय लोगों ने नये पूर्व-पश्चिम चैनल की खोज करने का काम शुरु किया। इसके आधार पर वास्को डि गामा ने भारत के लिये जलयात्रा की शुरूआत की।
जैमोरिन में पहुंचने के बाद वास्को डि गामा समेत पश्चिमी खोजकर्ताओं ने पता लगाया कि वहां महान धन रखने के साथ-साथ मजबूत सैन्य शक्ति नहीं थी। इन पश्चिमी खोजकर्ताओं ने जैमोरिन पर कब्जा किया और मसाले, सोना व आभूषण आदि भारी धन निर्मम लूट-खसोट की। वास्को डि गामा ने जैमारिन में एक स्तंभ खड़ा किया। उनके शब्दों से यह स्तंभ पुर्तगाल की संप्रभुता का प्रतीक है। यह तर्क क्या है कि उन्होंने दूसरों की भूमि पर अपनी संप्रभुता के प्रतीक को खड़ा किया। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। क्योंकि उनके इस नौकायन अभियान के दौरान जहां वास्को डि गामा गये, वहां उन्होंने उनके जैसे स्तंभ खड़े किए। यह पश्चिमी उपनिवेशवादियों का तर्क है।
नये जलमार्ग की खोज के कारण पश्चिमी व्यवसायियों, मिशनरियों और साहसिक लोगों ने भारत समेत पूर्वी देशों में जाकर मसाले, सोना व आभूषणों की लूट-खसोट की। इस जलमार्ग से पश्चिमी उपनिवेशवादियों को भारी आर्थिक लाभ मिला। उन्होंने पूर्व में धन लूट-खसोट की और अपनी पूंजी का संचय किया। कहा जा सकता है कि जल मार्ग की खोज पूर्वी देशों में पश्चिमी उपनिवेशवादियों के औपनिवेशिक लूट की शुरूआत भी है। इसके बाद कुछ सदियों में हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत के देश पतित होकर पश्चिमी ताकतों के उपनिवेश बने थे। इस नये जलमार्ग की खोज के कारण भारत और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के लोगों ने गहरी राष्ट्रीय आपदा का सामना किया।
दक्षिण अफ्रीका के एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ने कहा कि पश्चिमी लोग हमारे सामने आये और उनके हाथों में बाइबिल थी, जबकि हमारे हाथों में सोना था। लेकिन बाद में उनके हाथों में बाइबिल के बजाय सोना आ गया और हमारे हाथों में बाइबिल रह गयी। यह एक बहुत ही प्रासंगिक मूल्यांकन बात है। इन पश्चिमी लोगों के प्रति स्थानीय लोगों के मन में बहुत स्पष्ट है कि ये लोग दुष्ट शिकारी थे। भले ही उन्हें इन पश्चिमी लोगों द्वारा जीता गया था, लेकिन उन्होंने प्रतिरोध कभी नहीं छोड़ा।
(हैया)