फामन मंदिर और बुद्ध की उंगली

2021-05-14 20:10:45

 

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शरीरांग बौद्ध धर्म की पवित्र चीज़ है। पश्चिमी चीन के शैनशी प्रांत की राजधानी शी आन से लगभग 120 किलोमीटर दूरी फामन मंदिर स्थित है, जहां बुद्ध की उंगली रखी हुई है। क्या आप जानते हैं कि यह उंगली कैसे चीन आयी थी। आज के इस कार्यक्रम में हम आप लोगों को फामन मंदिर और बुद्ध की उंगली के बारे में परिचय देंगे।

श्रोताओ, ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार, चीन में कुल चार मंदिरों में बुद्ध के शरीरांग रखे हुए हैं, यानी सी च्यो का फूक्वांग मंदिर, थाईच्यो का वूथेई पहाड़, जुंगनान पहाड़ और फामन मंदिर। इन चार जगहों में फामन मंदिर में पूजा की जाने वाली उंगली सब से प्रसिद्ध और सब से प्रभावशाली मानी गयी है।

फामन मंदिर में बुद्ध की उंगली कहां से आयी । फामन संग्रहालय के उप प्रधान श्री रन शिन लेई ने परिचय देते हुए बताया, बौद्ध धर्म के धर्मगंर्थों के अनुसार, बुद्ध के देहांत के बाद 119 वर्षों में, यानी ईसापूर्व 273 में, भारत के राजा अशोक ने बुद्ध धर्म का प्रसार करने के लिए बुद्ध के शरीरांग को 84000 भागों में बांट कर विश्व के विभिन्न स्थलों में 84000 मीनारों में स्थापित करने की मांग की। मीनारों में से 19 चीन में स्थापित की जाने की जानकारी है। फामन मंदिर इन में से एक है। इस के बाद, फामन मंदिर पुराने चीन में बौद्ध धर्म के चार पवित्र स्थलों में से एक माना जाता था। लेकिन, अब चीन में केवल फामन मंदिर में ही बुद्ध की उंगली रखी हुई है।

श्रोताओ, पहले फामन मंदिर का नाम अशोक मंदिर था। ईसवी 618 में थांग राजवंश के प्रथम सम्राट ली व्येन ने अशोक मंदिर को फामन मंदिर का नाम दिया। थांग राजवंश के तीन सौ वर्षों में क्रमशः आठ सम्राट हर तीस वर्षों में एक बार फामन मंदिर के भूमिगत महल के द्वार खोलते थे और उंगली को तत्कालीन छांग एन यानी शी एन और ल्वो यांग में पूजा के लिए सौंपते थे। थांग शी सम्राट के बाद उंगली पुनः भूमिगत महल में रख दी गयी और एक हजार से ज्यादा वर्षों के लिए लोगों के लिए अज्ञात रही। मींग राजवंश के लुंग छींग सम्राट के कार्यकाल में फामन मंदिर में थांग राजवंश में निर्मित लकड़ी की मीनार गिर गयी। वर्ष 1987 में चीन सरकार ने इस मीनार का पुनः निर्माण करने का निर्णय लिया था। लेकिन, काम करते समय अचानक थांग राजवंश के भूमिगत महल का पता लगा। इसी तरह, 1000 से ज्यादा वर्षों तक भूमि के नीचे सोने वाली थांग राजवंश की संस्कृति का अवशेष बुद्ध की उंगली और कई हजार मूल्यवान अवशेष लोगों के सामने आये। बुद्ध की उंगली विश्व में रखी गयी एकमात्र उंगली मानी जाती है।इतना ही नहीं, इस में थांग राजवंश के रेशमी वस्त्र, थांग राजवंश के सुन्दर-सुन्दर बर्तन और पुराने रोम से आये शीशे के बर्तन आदि भी शामिल हैं। यह घटना चीन के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिस ने सामाजिक व राजनीतिक इतिहास, सांस्कृतिक इतिहास, धार्मिक इतिहास, वैज्ञानिक व तकनीक इतिहास, कला इतिहास और देश विदेश के आदान-प्रदान इतिहास आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व असर डाला है, जो विश्व के संस्कृतिक इतिहास में एक बड़ी घटना भी है। निस्संदेह भूमिगत महल में पाए गए अवशेषों में बुद्ध की उंगली सब से आश्चर्यजनक है। उंगली को रखने वाला बर्तन भी सामान्य बॉक्स नहीं है।

फामन मंदिर में बुद्ध की कुल चार उंगलियां हैं, लेकिन, इन में से केवल तीसरे नम्बर वाली उंगली सच्ची उंगली है। सच्ची उंगली को रखने वाला ताबूत संगमरमर से बनाया गया है। चीनी कहावत है कि स्वर्ण मूल्यवान है, जबकि संगमरमर अमूल्य है। इस के बाहर तो क्रिस्टल का ताबूत है। चंदन से बनाया गया तीसरा ताबूत आज तो लगभग नष्ट ही है। और स्वर्ण ताबूत के बाहर लोहे का ताबूत है। इस तरह कुल पांच ताबूत उंगली के बाहर हैं।

इन मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण करने के लिए चीन सरकार ने फामन संग्रहालय का निर्माण किया और वर्ष 1988 में नौ नवम्बर को जनता के लिए खोला। फामन संग्रहालय में रखी गयी एक तिहाई धरोहर देश के प्रथम स्तर के ऊपर की सांस्कृतिक धरोहर है। फामन मंदिर बौद्ध धर्म का एक केंद्र है, चूंकि बुद्ध की उंगली यहां रखी गयी है। फामन मंदिर में देश विदेश के भिक्षु व अनुयायी अकसर आते रहते हैं। हर महीने के प्रथम दिन, पंद्रह दिन और बुद्ध के जन्मदिन के मौके पर यहां सात या दस दिनों की पूजा रस्म का आयोजन किया जाता है। हर रस्म में एक हजार से ज्यादा लोग शरीक होते हैं। फामन मंदिर के महा भिक्षु नंग श्याओ ने कहा, चूंकि बुद्ध की उंगली यहां रखी गयी है, इसलिए, कोरिया गणराज्य, जापान और थाईलैंड आदि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों यहां तक कि थाईवान, मकाओ व हांगकांग में भी इस मंदिर का बड़ा असर है।

वर्ष 1992 में चीनी समाचार एजेंसी शिन ह्वा ने प्रथम बार विश्व के सामने फामन मंदिर की सांस्कृतिक धरोहरों में प्रथम दस विश्विख्यात धरोहरों की नामसूची जारी की, जिसे  देश-विदेश में भारी प्रतिक्रियाएं मिलीं।वर्ष 1994 में फामन मंदिर से बुद्ध की उंगली प्रथम बार थाईलैंड गयी, थाईलैंड में इसका खूब स्वागत हुआ। फामन संग्रहालय के उप प्रधान श्री रन शीन लेई ने कहा, वर्ष 2002 की 22 फरवरी को महा भिक्षु शीन व्यन बुद्ध की उंगली को थाईवान लाए। उंगली के थाईवान में 37 दिनों के प्रदर्शन के दौरान, थाईवान में कुल 50 लाख अनुयाइयों ने उंगली का दर्शन किया। भारतीय भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने भी फामन मंदिर आकर उंगली का दर्शन किया था।

चीनी नेता भी फामन मंदिर को बड़ा महत्व देते हैं। वर्ष 1993 के जून माह में श्री च्यांग ज मिन ने फामन मंदिर के संग्रहालय का निरीक्षण दौरा किया और यह वाक्य भी लिखा कि पूरी तरह सांस्कृतिक धरोहरों का प्रयोग करके चीनी राष्ट्र का प्रसार करके देशभक्ति भावना की रचना हो। थाईलैंड, फ्रांस, मियंमार, श्रीलंका, चीन स्थित भारतीय राजदूत, नेपाली राजदूत आदि 10 से ज्यादा विदेशी राजाध्यक्षों ने फामन मंदिर का दौरा किया है। अब फामन मंदिर और संग्रहालय शैनशी पर्यटन की प्रमुख इकाई और विश्व के बौद्ध धर्म का पूजा केंद्र बन गया है।

चीन में रुपांतरण व खुलेपन के पिछले 20 से ज्यादा वर्षों में फामन संग्रहालय ने रोज देश विदेश के 5 लाख से ज्यादा पर्यटकों का स्वागत किया है और दुनिया के सामने फामन मंदिर की संस्कृति का द्वार खोला है। अब फामन मंदिर व संग्रहालय भी आगे विकसित हो रहे हैं।

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