हान और तिब्बती बौद्ध धर्म का स्रोत और फर्क

2021-05-10 09:59:48

 

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चीन के तिब्बत विज्ञान अनुसंधान केंद्र के महानिदेशक और शोधकर्ता झेंग दुई ने हाल ही में चीन के हान बौद्ध धर्म और तिब्बती बौद्ध धर्म के बीच के संबंध और अंतर पर एक लेख लिखा। इन के अनुसंधान के मुताबिक प्राचीन काल में बौद्ध धर्म का भारत से चीन में प्रसार हुआ था और फिर इसे चीन से पूर्वी एशिया के अन्य क्षेत्र में प्रसारित किया गया था। आज चीन में बौद्ध धर्म के कई विभिन्न संप्रदाय और शाखाएँ हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य वंश के महा राजा अशोक के शासन काल में बौद्ध धर्म का भारत के बाहर तक फैलाव शुरू हुआ और अंततः वह एक विश्व धर्म में विकसित हुआ।कई देशों में बौद्ध धर्म के जातीय विशेषता वाले विभिन्न संप्रदायों का गठन भी किया गया है। सामान्यतया, बौद्ध धर्म में जो चीन और कोरिया, जापान, वियतनाम, मंगोलिया, साइबेरिया, भूटान और अन्य देशों और क्षेत्रों में पेश किया गया है, वह मुख्य रूप से महायान बौद्ध धर्म है।

उनमें से चीनी मुख्य भूमि और कोरिया, जापान और वियतनाम आदि अन्य देशों में पेश किये गये बौद्ध धर्म को उत्तरी बौद्ध धर्म यानी हान बौद्ध धर्म कहा जाता है। इस शाखा में क्लासिक्स ग्रंथ मुख्य रूप से चीनी भाषा की प्रणाली में प्रकाशित हैं। उधर तिब्बत, मंगोलिया, भूटान और नेपाल आदि क्षेत्रों में प्रसारित बौद्ध धर्म को तिब्बती बौद्ध धर्म कहा जाता है और इस शाखा के क्लासिक्स ग्रंथ मुख्य रूप से तिब्बती भाषा प्रणाली में प्रकाशित हैं। दूसरी तरफ श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और अन्य क्षेत्रों में प्रसारित किया गया बौद्ध धर्म मुख्य रूप से हिनायान बौद्ध धर्म है, जिसे दक्षिणी बौद्ध धर्म कहा जाता है। और इस शाखा के क्लासिक्स ग्रंथ मुख्य रूप से पाली भाषा प्रणाली के है, जिसे पाली भाषा बौद्ध धर्म के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए, बौद्ध धर्म को तीन संप्रदायों में विभाजित किया गया है यानी कि हान बौद्ध धर्म, तिब्बती बौद्ध धर्म और पाली बौद्ध धर्म।

68 ईस्वी में मध्य चीन स्थित लुओयांग शहर में मशहूर व्हाइट हार्स मंदिर का निर्माण किया गया, और इस तरह बौद्ध धर्म की चीन में जड़ें जमा ली गयीं। फिर चीन के वेई राजवंश, जिन राजवंश और दक्षिण-उत्तर राजवंशों के काल में बौद्ध धर्म को आगे विकसित किया गया। इस के बाद के सुई और थांग राजवंशों के दौरान बौद्ध धर्म चीन में अपने चरम पर पहुंच गया, और चीनी मुख्य भूमि में बौद्ध धर्म के "आठ प्रमुख संप्रदायों" का गठन भी किया गया। वर्तमान में चीन के भीतरी इलाकों में बौद्ध धर्म के 27,000 से अधिक खुले स्थान हैं, भिक्षुओं की संख्या 72,000 से अधिक रहती है। उधर 7वीं शताब्दी के मध्य में बौद्ध धर्म का तिब्बत में भी परिचय होने लगा और हान बौद्ध धर्म भी तिब्बती बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना था। पर 9वीं शताब्दी में तुबो शाही परिवार में "बौद्ध धर्म का विनाश" घटना के कारण तिब्बत में बौद्ध धर्म का विकास एक समय के लिए बंद हुआ था। 10 वीं शताब्दी के अंत में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार बलों का फिर से छींगहाई तथा आली क्षेत्र के माध्यम से तिब्बत के केंद्रीय क्षेत्र में प्रवेश हुआ, जो पारंपरिक तिब्बती संस्कृति के साथ जुड़े और इससे औपचारिक तिब्बती बौद्ध धर्म का गठन किया गया। बाद में तिब्बती बौद्ध धर्म के नींगमा, काग्यू, साक्या और गेलुग आदि संप्रदायों का गठन हुआ। वर्तमान में, तिब्बती बौद्ध धर्म के 3,500 से अधिक धार्मिक स्थान खुल गये हैं और भिक्षुओं की संख्या 160,000 से अधिक रही है। उधर बौद्ध धर्म की दक्षिणी शाखा 10वीं शताब्दी के अंत में म्यांमार के माध्यम से चीन के युन्नान में पेश किया गया। वहां भी आज लगभग 1,700 से अधिक धार्मिक स्थान तथा दो हजार भिक्षु हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म और हान बौद्ध धर्म दोनों ही बौद्ध धर्म हैं, बावजूद इसके दोनों के बीच अंतर भी हैं। हान बौद्ध धर्म के भिक्षु मुख्य रूप से मठों और बौद्ध महाविद्यालयों पर निर्भर करते है, और वे गुरु के नेतृत्व में बौद्ध धर्म के मूल ज्ञान, उपदेश और शास्त्र सीखते हैं, जबकि शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए कोई सख्त समय नियम निर्धारित नहीं है। हान और तिब्बती बौद्ध धर्म दोनों की प्रबंधन प्रणाली की उत्पत्ति प्राचीन बौद्ध धर्म के मानदंडों से हुई, यानी समिति के रूप में दैनिक मामलों से निपटाने का तरीका अपनाता है। और भिक्षुओं के पदों की भी निश्चित अवधि है। उधर इतिहास के विकास के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म की जीवित बुद्धों के पुनर्जन्म की अपनी प्रणाली कायम हुई।  

सबसे पूर्व बौद्ध धर्म में आहार में कोई विशेष वर्जना नहीं थी। तिब्बती बौद्ध धर्म में अभी तक सख्त शाकाहारी आवश्यकताएं नहीं हैं, जबकि हान बौद्ध धर्म की अपनी सख्त शाकाहारी परंपरा बनाई गई है। हान बौद्ध धर्म में शाकाहारी का नियम दक्षिण राजवंश के सम्राट लियांग वूडी (सन 464-549) के द्वारा शुरू किया गया। सम्राट लियांग वूडी ने बोधिसत्व के दयालु विचार के आधार पर हान बौद्ध धर्म के लिए नियमों की स्थापना की, बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सभी मांस खाने की अनुमति नहीं दी गयी, और इसी तरह सख्त शाकाहारी परंपरा का गठन हुआ। इसके अलावा, हान बौद्ध धर्म और तिब्बती बौद्ध धर्म में भी आहार, दैनिक जीवन, अध्यादेश, मंदिर, मूर्ति और रीति-रिवाज के संदर्भ में भी अलग-अलग विशेषताएं हैं। सामान्य तौर पर, चीन में बौद्ध धर्म के सभी संप्रदायों की समान जड़ और स्रोत है। हान बौद्ध धर्म और तिब्बती बौद्ध धर्म को भी हमेशा आदान-प्रदान की परंपरा रही है। दोनों ने संयुक्त रूप से बौद्ध धर्म के विकास को बढ़ावा दिया है।

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