महामारी की रोकथाम में किस पर विश्वास करके जीत मिल सकेगी

2021-05-09 18:27:22

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हाल ही में कोविड-19 महामारी ने फिर एक बार मानव जाति पर हमला किया, जिससे कई देशों में महामारी की स्थिति गंभीर रूप से बिगड़ गयी है। हालांकि, इसके पीछे की वजह  वायरस उत्परिवर्तन है, लेकिन वह महामारी की रोकथाम व नियंत्रण के लिये विभिन्न देशों द्वारा उठाये गये नीति-नियम व कदम भी मायने रखते हैं। क्योंकि महामारी का प्रसार देश की जनसंख्या पर निर्भर करता है, इसलिये इस रिपोर्ट में हम केवल बड़ी जनसंख्या वाले देशों की चर्चा करेंगे।  हम सिलसिलेवार आंकड़ों व वास्तविक उदाहरणों के माध्यम से इस बात का विश्लेषण करेंगे कि महामारी के मुकाबले में किस पर विश्वास करके लोगों को जीत मिल सकेगी?

वर्ष 2021 में जारी विश्व जनसंख्या के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, चीन 1.4 अरब की कुल जनसंख्या के साथ विश्व में पहले स्थान पर है, जबकि भारत 1.3 अरब के साथ दूसरे स्थान पर है और अमेरिका 30 करोड़ के साथ तीसरे स्थान पर है। अगर इन तीनों देशों की जनसंख्या का आकार एक समबाहु त्रिकोण है, तो उनमें कोविड-19 के पुष्ट मामलों की संख्या में एक उल्टा त्रिकोण देखा गया है।

आधिकारिक संस्थाओं द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, गत 8 मई की रात आठ बजे तक अमेरिका में कोविड-19 के पुष्ट मामलों की कुल संख्या 33,418,826 है, जो विश्व में पहले स्थान पर है। उनमें मौत के मामलों की कुल संख्या 594,911 है। वहीं, भारत में पुष्ट मामलों की कुल संख्या 21,892,676 है, जो विश्व में दूसरे स्थान पर है। जबकि मौत के मामलों की कुल संख्या 238,270 है। उधर, चीन में पुष्ट मामलों की संख्या केवल 103,784 है, और मौत के मामलों की कुल संख्या सिर्फ़ 4,858 है, जो कि अमेरिका और भारत से कोसों पीछे है।

यह अतुल्य उल्टा त्रिकोण देखकर आम लोगों के दिमाग में शायद यह सवाल पैदा होगा कि आखिर किस कारण से यह परिणाम हासिल हुआ? शायद यह तीनों देशों की जनता की मान्यताओं से जुड़ा हुआ है।

तो हम सबसे पहले अमेरिका की चर्चा करते हैं, जहां महामारी की स्थिति सबसे गंभीर है। ध्यानाकर्षक बात यह है कि जनसंख्या के आकार और घनत्व दोनों के मामले में अमेरिका चीन और भारत से बहुत पीछे है। सामान्य जानकारी के अनुसार, इन तीनों देशों में से अमेरिका को सबसे आसानी से महामारी की रोकथाम करनी चाहिये। लेकिन अमेरिका में महामारी का सबसे असर हुआ, क्योंकि अमेरिकी जनता तथाकथित "स्वतंत्रता पहले" में विश्वास करती है। उनके ख्याल में मास्क पहनने से उनकी स्वतंत्रता का हनन होता है, फिर घर में पृथक रहना और शहर में लॉकडाउन लगाना तो उनकी समझ से परे है।

यहां तक कि जब अमेरिका में महामारी की स्थिति गंभीर बन हुई थी, तो अमेरिकी जनता मिलन समारोहों, सभाओं, रैलियों और बड़े पैमाने वाले प्रदर्शनों में भाग लेने में व्यस्त थीं। लेकिन इन कार्रवाइयों ने महामारी की रोकथाम व नियंत्रण में बाधाएं डालीं। वास्तव में यह तथाकथित “स्वतंत्रता” स्वार्थ की एक अभिव्यक्ति है।

अब हम भारत की चर्चा करते हैं। सब लोग जानते हैं कि भारत विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक देश है। भारतीय लोगों के लिए अमीर जीवन की अपेक्षा देवताओं में विश्वास करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिये मार्च की शुरूआत में महामारी पर अच्छी तरह नियंत्रण केवल एक कुंभ मेले की वजह से बिल्कुल खत्म हो गया। 11 अप्रैल को 2.8 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने हरिद्वार पहुंचकर हिंदुओं की पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी में स्नान किया।

गौरतलब है कि उन्होंने महामारी की रोकथाम और नियंत्रण के उपायों का कड़ाई से पालन नहीं किया। परिणामस्वरूप, इसके बाद केवल 72 घंटों में सैकड़ों लोगों में इस बीमारी के लक्षण आने लगे। इसके अलावा, और बहुत से लोग कोविड-19 वायरस की चपेट में आकर अपने-अपने घर लौटे, जो कि एक बहुत भयानक बात है।

अभी हाल ही में 4 मई को भारत के गुजरात राज्य में एक बड़ी धार्मिक गतिविधि का आयोजन हुआ, जहां महामारी की रोकथाम से जुड़ी नीति-नियमों की अवहेलना हुई। हजारों महिलाओं ने इस धार्मिक गतिविधि में भाग लिया। उनमें से अधिकतर लोगों ने मास्क नहीं पहना हुआ था। वहां के लोगों ने इसलिये यह गतिविधि आयोजित की, क्योंकि एक स्थानीय धार्मिक गुरू ने दावा किया था कि कोविड-19 महामारी का प्रकोप “देवताओं के क्रोध” से पैदा हुआ है। ठीक है, शायद बहुत-से देवताएं क्रोधित हैं। लेकिन उनका क्रोध निर्दोषों पर नहीं निकलेगा। उनके क्रोध का कारण यही है कि भारतीय लोगों ने सही तरीके से महामारी की रोकथाम व नियंत्रण कदमों का अनुपालन नहीं किया। जैसे फ़िल्म《पी.के.》में आमिर खान ने कहा था कि अनुयाइयों व देवताओं के बीच आदान-प्रदान में ज़रूर कोई समस्या मौजूद है, जैसे फ़ोन करते समय गलत नंबर डायल हो जाता है।

अंत में हम विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश चीन की चर्चा करते हैं। चीन में न सिर्फ़ जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है, बल्कि लोगों की तरलता भी तेज़ है। ये सभी कारक महामारी की रोकथाम व नियंत्रण के लिये बहुत प्रतिकूल हैं। लेकिन चीन को कैसे महामारी के मुकाबले में सफलता मिली?और किस पर विश्वास करके चीनी जनता को प्रोत्साहन मिला?

पहला, महासचिव शी चिनफिंग से केंद्रित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी ने हमेशा से जनता की जान सुरक्षा और स्वास्थ्य को अपने काम के पहले स्थान पर रखा, और चीनी विशेषता वाली समाजवादी प्रणाली से लाभ उठाकर महामारी की रोकथाम व नियंत्रण के लिये सिलसिलेवार वैज्ञानिक कदम उठाये हैं। चीन के तेज व कारगर कदमों ने न सिर्फ़ महामारी के प्रसार को बंद किया, बल्कि दुनिया को भी आश्चर्यचकित कर दिया।

दूसरा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अनगिनत सदस्यों ने अपना कर्तव्य निभाया, और महामारी के अग्रिम मोर्चे पर काम किया। जहां मुश्किलें मौजूद हैं, वहां सीपीसी सदस्यों की छवि मिल सकती है। उन्होंने अपने साधारण जीवन से एक-एक प्रभावित वीर कहानियां रचीं। क्योंकि सीपीसी के सदस्यों के मन में ऐसा विश्वास होता है कि सीपीसी और जनता के संबंध मछली व पानी के संबंधों की तरह है। यदि जनता सीपीसी के प्रति खुश और संतुष्ट है, तो वह सीपीसी को प्यार व समर्थन देगी, और इसमें भाग लेगी। गौरतलब है कि अभी तक सीपीसी के सदस्यों की कुल संख्या 9 करोड़ से अधिक है।

तीसरा, चीनी जनता चीनी कम्युनिस्ट पार्टी व चीन सरकार पर बड़ा विश्वास करती है, और सीपीसी के नेतृत्व का दृढ़ समर्थन करती है। हर व्यक्ति स्वेच्छा से महामारी की रोकथाम के लिये देश द्वारा उठाये गये कदमों का पालन करता है। साथ ही, चीनी जनता में एकता, सकारात्मकता और आशावाद की भावना है, और ज्यादा-से-ज्यादा लोगों के हितों के लिये खुद का बलिदान देने का चीनी राष्ट्र का अच्छा परंपरागत गुण होता है। चीन में एक कहावत है कि अगर सभी लोग मिलजुल कर एक साथ कोशिश करेंगे, तो पहाड़ को भी हटाया जा सकता है। सभी चीनी जनता का समर्थन व सहायता पाकर चीन ने महामारी के साथ इस लड़ाई में व्यापक जीत प्राप्त की।

चंद्रिमा

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