छिंग मिंग त्योहार

2021-04-07 16:31:13

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छिंग मिंग दिवस चीनी चंद्र पंचांग के अनुसार 24 ऋतु विभाजन पाइंटों में से एक है, यह चीनियों के लिए एक प्राचीन परम्परागत त्योहार भी है, जो आम तौर पर साल के तीसरे माह में ( सौर कलेंडर के पांच अप्रेल के आसपास ) पड़ता है। ऋतु के इस समय वसंत का बहार आता है और वायु बहुत स्वच्छ और तरोताज होता है। इसलिए यह उत्सव छिंग मिंग (विशुद्ध स्वच्छ) कहलाता है।

छिंग मिंग उत्सव पर पूर्वजों की समाधि पर जाकर श्रृद्धांजलि अर्पित करने तथा उपनगर में सैर करने तथा पेड़ लगाने की प्रथा भी है। चीन में वृद्धों की भक्ति करने और स्वर्ग वासी पूर्वजों को भक्तिभाव अर्पित करने की परंपरा है। छिंग मिंग उत्सव के दिन, चीनी लोग शहर के बाहर अपने पूर्वजों की समाधि पर श्रद्धा प्रकट करने जाते हैं, वे कब्रों पर उगे जंगली घास निराते हैं, नयी मिट्टी डालते हैं और पूर्वजों की समाधि पर धूपबत्ती व कागजी सिक्के जलाते हैं और व्यंजन चढाते हैं। इस प्रकार के प्रयोजन से वे पूर्वजों को स्मृति देते हैं। इस प्रथा को कब्र को भेंट या कब्र को बुहारना कहलाता है।

छिंग मिंग उत्सव के समय मैदानों में जंगली पौधे अंकुरित होने लगते है, नदी के किनारों पर विलो पेड़ों पर पल्लव निकलते है, हर जगह हरियाली नजर आती है और मौसम बहुत सुहावना होता है। यह बाहर सैर सपाटे का बेहतर वक्त होता है। प्राचीन समय में लोग छिंग मिंग के दिन घूमने के लिए बाहर जाते थे, चीनी में इसे“थाछिंग”कहा जाता है, लोग अपने सिर पर विलो की टहनी पहनते है, कहते हैं कि इससे दैत्य राक्षस को भगाया जा सकता है और आफतों को दूर किया जा सकता है। विलो की टहनी लगाने में शांति और सलामती की मिन्नत होती है।

वर्तमान चीन में मृतकों के अंतिम संस्कार व इन्टरमेंट में भारी परिवर्तन आया है। जमीन में दफ़नाने की जगह दाह संस्कार से ले ली गयी है। इस तरह मैदानों में कब्रों की संख्या कम होती गयी है। लेकिन छिंग मिंग त्योहार में पूर्वजों को श्रृद्धांजलि अर्पित करने और थाछिंग की सैर करने की परम्परागत प्रथा बनी रही है। इसी दिन लोग विभिन्न रूपों और तरीकों में अपने पूर्वजों पर श्रद्धा व्यक्त करते हैं, बाहर जाकर नीले आसमान तले हरेभरे पेड़, घास पौधे और फूलपुष्प की प्रकृति का आनंद उठा लेते हैं।

छिंग मींग उत्सव के रीति-रिवाज

छिंग मींग उत्सव के रीति-रिवाज प्रचुर व दिलचस्प है। आग का निषेध  और पूर्वजों की समाधि पर श्रद्धांजलि के अलावा लोग उपनगरी मैदान में सैर सपाटा करने, झूला झूलने, छू च्यु ( फ़ुटबॉल) खेलने, पोलो खेलने और विलो के पेड़ रोपने आदि की गतिविधियों का आयोजन भी करते थे। कहा जाता है कि छिंग मींग उत्सव में ठंडा व्यंजन खाना अनिवार्य था। ठंडे व्यंजन खाने से शारीरिक स्वास्थ्य को क्षति पहुंचने से बचाने के लिए लोग कुछ खेल-व्यायाम करने के विकल्प अपनाते थे। इसलिए छिंग मींग उत्सव एक विशेष त्योहार है, जिसमें मृतकों के कब्रों पर आहुति चढ़ाने और बुहारी करने की दुखक भावना शामिल है, साथ ही सैर-सपाटा जैसा मनोरंजन करने की सुखद भावना भी प्रकट है।

झूला झूलना

वह प्राचीन चीन में छिंग मींग उत्सव में प्रचलित रीति-रिवाज था। छ्योछ्येन (झूला) का अर्थ है चमड़े की रस्सी पकड़कर हिलना झूलना। इस का पुराना इतिहास था। सब से पहले इस का नाम था छ्येनछ्यो। बाद में परहेज के लिए छ्येनछ्यो का नाम बदलकर छ्योछ्येन रखा गया। प्राचीन काल में छ्योछ्येन (हिंडोरा) को पेड़ की मोटी टहनी पर बांध दिया जाता था, फिर इस पर रंगीन रस्सी बांधी जाती थी, इस प्रकार एक झूला बन जाता था। कालांतर में विकसित होकर एक स्तंभ पर दो रस्सी बांध कर और एक पेडल लगाने से झूला बनाया जाता है। झूला झूलना न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि साहस बढ़ाने का काम भी आता है। आज भी यह खेल लोगों, खास तौर पर बालकों में बहुत लोकप्रिय है।

छू च्यु

च्यु चमड़े का गेंद है, जिस का बाह्य खोल चमड़े से बनाया जाता था। गेंद के भीतर ऊन कसकर भरा गया था। छू च्यु का अर्थ है पैर से गेंद खेलना। यह प्राचीन काल में छिंग मींग उत्सव के अवसर पर लोगों का एक पसंदीदा खेल था। कहा जाता है कि यह सम्राट ह्वांग ती द्वारा आविष्कृत किया गया था, शुरू शुरू में इसका मकसद सैनिकों को प्रशिक्षित करना था।

सैर-सपाटा

सैर-सपाटा छ्वुन यो ( वसंतकालीन सैर ) भी कहलाता है। प्राचीन काल में इसे थान छ्वुन या श्वन छ्वुन( वसंत की खोज) आदि भी कहा जाता था। छिंग मींग उत्सव चंद्र वर्ष के तीसरे माह में पड़ता है। उसी समय धरती पर वसंत की ऋतु आरम्भ होती है। जगह जगह प्रकृति के फलते फूलते नजारे नजर आते हैं। यह सैर-सपाटे का अच्छा वक्त है। लम्बे अरसे से चीन में छिंग मींग उत्सव के दौरान खुले मैदान में सैर-सपाटा करने की प्रथा चलती आती है।

वन रोपण

छिंग मींग उत्सव वसंत काल में पड़ता है, जब पृथ्वी पर सुखद धूप पड़ती हैं और वसंती बारिश गिरती है। ऐसा मौसम वृक्ष रोपण के लिए बिलकुल अनुकूल  है, पौधे आसानी से जीवित होते हैं और तेज़ी से बढ़ सकते हैं। इसलिए प्राचीन काल से ही चीन में छिंग मींग उत्सव के अवसर पर वन रोपने की प्रथा चलती आयी है। यह रीति-रिवाज आज तक भी बरकरार रहा है।

पतंग उड़ाना

छिंग मींग उत्सव पर पतंग उड़ाना चीनी लोगों की लोकप्रिय गतिविधि है। हर छिंग मींग उत्सव पर चीनी लोग दिन में ही नहीं, रात में भी पतंग उड़ाते हैं। रात में पतंग के नीचे या रस्सी पर छोटे छोटे रंगीन लालटेन लटकाए जाते हैं, मानो तारे हवा में चमकते हों, जिसे“दिव्य दीप”कहा जाता है। अतीत में कुछ लोग हवा में पतंग पहुंचाने के बाद रस्सी को काट देते थे, और पतंग को हवा के साथ दूर दूर उड़ जाने देते थे। कहा जाता है कि इससे रोग व आपदा को दूर ले जाया जा सकता है और अपने को सौभाग्य लाया जा सकता है।

पाईल्यांगची एवं श्युस्यान

चीन के परम्परागत त्यौहार छिंगमिंग उत्सव के मौके पर, हांगचो की पश्चिमी झील में जगह जगह लाल लाल फूल एवं हरे हरे पेड़ खिले दिखाये देते थे। यह पश्चिमी झील पर्वतों से घिरी हुई थी, उस का कुदरती दृश्य अत्यन्त सुन्दर और मनमोहक था। हजार साल तक कड़ी तपस्या करके अंत में मानव का रूप धारण की गयी नागिन पाई सूजचन (पाईल्यांगची) एवं श्याओछिंग पश्चिमी झील की सैर पर निकलीं। वसंतकालीन वर्षा रिमझिम हो रही थी, उन के पास छाता नहीं थी। छाता उधार लेने के कारण उन की युवा श्युस्यान से मुलाकात हुई। पाई सूचन एवं श्युस्यान के बीच मुहब्बत पनपी। कुछ समय के बाद उन का विवाह भी हुआ। दंपति ने एक दवा दुकान खोलकर रोगियों का इलाज करना शुरू किया। वे सुखचैन की बंसी बजाने लगे।

लेकिन, एक चिनशान मठ का धर्माचार्य फ़ाहाई था, जो पाईल्यांगची को अनिष्ट समझता था और दोनों को अलग करने की कुचेष्टा की। उस ने गुप्त रूप से श्युस्यान को उस की पत्नी का असली रूप बताया कि वह एक सफेद नागिन है। उस ने श्युस्यान को पाईल्यांगची की कलई खोलने का एक तरकीब भी बताया। फिर उस ने श्युस्यान को चिनशान मठ में जबरन ले कर नज़रबंद भी किया। पाईल्यांगची एवं श्याओछिंग ने चिनशान मठ आकर फ़ाहाई से अपना पति छोड़ने की बार बार मिन्नत की, लेकिन, फ़ाहाई ने श्यूस्यान को रिहा करने से इंकार कर दिया। विवश होकर पाईल्यांगची ने अपनी दिव्य शक्ति से ऊंची ऊंची लहरें उत्पन्न कर चिनशा मठ को जलमग्न कर दिया। पाईल्यांगची और फ़ाहाई के बीच घमासान लड़ाई हुई। चूंकि अब पाईल्यांगची गर्भवती हो गयी थी, इसलिए, अंत में उसे फ़ाहाई से हार खानी पड़ी और पश्चिमी झील के किनारे स्थित लेईफ़ङ पगोडे के नीचे दबाया गया। प्रेमासक्त पति पत्नी इसी तरह अलग थलग कर दिया गया था।

इस के उपरांत, श्याओछिंग चिनशान मठ से भाग निकली और कड़ी मेहनत से तपस्या किया। अंत में उसने फ़ाहाई को हराकर उसे केकड़े के उदर में कैद करवाया। श्याओछिंग ने पगोडे के तले दबी पाईल्यांगची को बाहर निकाल कर उबारा। इस प्रकार पाईल्यांगची एवं श्यूस्यान का पुनः मिलन हुआ।

सफ़ेद नागिन की कहानी ने एक सुन्दर, सहृदय एवं दृढ़संकल्प लड़की की छवि का निर्माण किया है और सच्चे और अटूट प्रेम का गुणगान किया है।

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