सुश्री सुंग छिंगलिंग चीन में एक महान देशभक्त, राष्ट्रवादी, अंतर्राष्ट्रीय और कम्युनिस्ट योद्धा रही हैं। 20वीं शताब्दी में चीन के राजनीतिक मंच पर उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। साथ ही वे चीन लोक गणराज्य की मानद राष्ट्रपति भी रहीं। उधर जवाहर लाल नेहरू भारत में आज़ादी के बाद पहले प्रधान मंत्री बने। उन्होंने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, और गुटनिरपेक्ष आंदोलन व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के संस्थापकों में से भी नेहरू एक रहे हैं। बेशक सुंग छिंगलिंग और नेहरू चीन व भारत के आधुनिक इतिहास में दो महान नेता रहे हैं। ऐतिहासिक पुस्तकों से हमें पता चलता है कि उनके बीच कई समानताएं भी हैं। और उन समानताओं ने अपने देश, अपने क्षेत्र यहां तक कि सारी दुनिया के लिये आशा की किरण तथा गहरा प्रभाव दिया है।
पहली समानता- जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध के दौरान दोनों नेताओं की कोशिश से चीन की सहायता देने के लिये भारतीय चिकित्सा दल की स्थापना की गयी।
वर्ष 1937 में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध शुरू होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय सहायता पाने के लिए आठवीं रूट आर्मी के कमांडर-इन-चीफ जू डे ने सुश्री सुंग छिंगलिंग और एग्नेस शेमले की सलाह पर नवंबर 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नेहरू को पत्र भेजा। इस पत्र में यह आशा जतायी गयी कि कांग्रेस आठवीं रूट आर्मी के लिये चिकित्सा संसाधन मुहैया कराए, साथ ही वरिष्ठ युद्ध चिकित्सकों को भेजकर चीन की सहायता दे। जैसे ही नेहरू को यह पत्र मिला, उन्होंने पूरे भारत में चीन की मदद देने के लिए आह्वान किया, और चीन में एक चिकित्सा दल भेजने का फैसला भी किया। नेहरू ने डॉक्टर एम. अटल को भारतीय चिकित्सा दल का अध्यक्ष नियुक्त किया। उनके अलावा कई आवेदकों में से एम. चोलकर, डॉ. मुखर्जी, डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस और बी.के.बसु चार सदस्य भी चुने गये। जिससे भारतीय चिकित्सा दल की स्थापना हुई।
1 सितंबर 1938 को भारतीय चिकित्सा दल चिकित्सा उपकरण व दवा लेकर एक ब्रिटिश यात्री जहाज़ से चीन की ओर रवाना हुआ। कोलंबो, कुआलालंपुर और सिंगापुर से होते हुए 14 सितंबर को उक्त सदस्य हांगकांग पहुंचे। हांगकांग के विभिन्न जगतों के व्यक्तियों ने इस चिकित्सा दल का स्वागत करने के लिये एक सत्कार समारोह आयोजित किया। जब 17 सितंबर को भारतीय चिकित्सा दल क्वांगचो पहुंचा, तो सुंग छिंगलिंग तथा क्वांगचो के विभिन्न क्षेत्रों से आए दो हजार से अधिक लोग उनके स्वागत के लिए खड़े थे।
दूसरी समानता- नये चीन की स्थापना के बाद दोनों नेताओं ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
जैसा कि हम सभी यह जानते हैं कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों की स्थापना चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चो अनलाए और भारतीय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा एक साथ की गयी। चो अनलाए ने दिसंबर 1953 के अंत में चीन पहुंचे भारतीय प्रतिनिधिमंडल से भेंट करते समय ये पाँच सिद्धांत पेश किये। यानी एक दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करना, एक दूसरे का आक्रमण न करना, एक दूसरे के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता व पारस्परिक लाभ प्राप्त करना, और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व लागू करना। जून 1954 के अंत में चो अनलाए ने भारत व म्यांमार की यात्रा की। चीन-भारत और चीन-म्यांमार वार्ता के संयुक्त बयान में चीन-भारत और चीन-म्यांमार ने एक साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों को पेश किया। इसके बाद शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों को विश्व के बहुत देशों ने स्वीकार किया। और वह विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक प्रणालियों के बीच आपसी संबंधों के निपटारने में एक बुनियादी नीति-नियम बन गया।
लेकिन शायद ज्यादा लोगों को यह नहीं पता होगा कि सुंग छिंगलिंग ने भी बहुत पहले से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की विचार धारा पेश की थी । लंबे समय तक क्रांतिकारी संघर्षों में सुश्री सुंग हमेशा इस विचार पर कायम रहीं कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एशिया यहां तक कि सारी दुनिया में शांति प्राप्त करने का सब से अच्छा विकल्प है। वह भी युद्ध से बचने और उस दुनिया में शांति प्राप्त करने का एक कारगर तरीका है, जहां साम्राज्यवाद मौजूद है। जून 1951 में सुंग छिंगलिंग ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की पहल पेश की। जो उस समय चीन में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व विचार का एक मॉडल बना। बाद में उन्होंने क्रमशः《पांच सिद्धांत》समेत महत्वपूर्ण लेखों में अपने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व विचार के समृद्ध व संपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला।
उधर जवाहलाल नेहरू ने सुश्री सुंग के विचार की खूब प्रशंसा की। सुंग छिंगलिंग को भेजे गये एक पत्र में नेहरू ने कहा कि आप न सिर्फ़ चीन के लिये प्रकाश देने वाला एक दीया हैं, बल्कि अन्य देशों की जनता के लिये भी हैं। आपका उज्ज्वल चरित्र दूसरों के लिए बहुत सार्थक है।
तीसरी समानता- दोनों महान नेताओं को बच्चों से खूब प्यार था और उन्होंने अगली पीढ़ी के स्वस्थ विकास पर बड़ा ध्यान दिया।
सुश्री सुंग की जिन्दगी में बच्चों की रक्षा करना और बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वस्थ विकास पर ध्यान देना एक बहुत महत्वपूर्ण भाग रहा। हालांकि उनकी कोई अपनी संतान नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपना सभी प्यार बच्चों के शिक्षा कार्य में दिया। जिससे वे लाखों हजारों बच्चों की“मां”बन गयीं। सुश्री सुंग के अनुसार बच्चों को प्यार देना हर दयालु व्यक्ति का स्वभाव है। लेकिन बच्चों को शिक्षा देना देश द्वारा हमें दी गयी एक जिम्मेदारी है। हमें धैर्य के साथ सही ढंग से बच्चों को शिक्षा देनी चाहिये। ताकि जीवन के पहले कई सालों में उनकी सही अवधारणा, व्यवहार और चरित्र पैदा हो सकें, साथ ही वे जीवन बिताने और काम करने को भी समझ सकें।
बच्चों की शिक्षा के प्रति अपने विचार को लागू करने के लिये सुंग छिंगलिंग ने खूब काम किये। उन्होंने क्रमशः चीन में पहले मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल अस्पताल, पहले बच्चों के महल, पहले बच्चों के कला संग्रहालय, पहले बच्चों के थिएटर और नए चीन की स्थापना के बाद बच्चों के लिये पहली पत्रिका की सफल स्थापना की। उन्होंने अकसर यह कहा कि मेरी जिन्दगी बच्चों के कार्यों से जुड़ी हुई है।
मई 1981 में सुश्री सुंग के देहांत के आधे महीने पहले समाज के विभिन्न जगत अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस की खुशी मनाने के लिये तैयारी में व्यस्त थे। हालांकि उस समय बीमारी से सुश्री सुंग की शारीरिक स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन उन्होंने बिस्तर पर पांच-छह सौ शब्दों का एक लंबा पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने कहा कि हालांकि मैं इस महासभा में भाग नहीं ले पाऊंगी, लेकिन बच्चों को प्यार देने का दिल आप लोगों के साथ धड़कता है।
सुंग छिंगलिंग ने हमेशा यह कहा कि एक देश या एक राष्ट्र को आज पर ध्यान देने के साथ भविष्य को भी ख्याल रखना चाहिये। पर एक देश व राष्ट्र का भविष्य क्या है?वह आज के बच्चे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि बच्चों से जुड़े कार्य तो भविष्य बनाने वाले कार्य है, क्योंकि देश का भविष्य बच्चों का है। बाल कार्य के प्रति सुश्री सुंग ने रणनीतिक दृष्टि से एक महान राजनीतिज्ञ के रूप में ऐतिहासिक जिम्मेदारी उठाकर अगली पीढ़ी की शिक्षा दी।
उधर जवाह लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ। हर वर्ष इसी दिन भारत में बाल दिवस की खुशियां मनायी जाती हैं। हालांकि नेहरू सरकारी कार्य में बहुत व्यस्त थे, लेकिन वे समय निकालकर बच्चों के साथ बिताते थे। क्योंकि उनके विचार में बच्चे न सिर्फ़ एक देश का भविष्य हैं, बल्कि राष्ट्रीय शक्ति और संपत्ति का एक हिस्सा भी हैं। उनकी कोशिश से भारत में एआईआईएमएस(AIIMS)और आईआईटी(IIT)की स्थापना की गयी। इसके अलावा नेहरू ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से बाल कुपोषण और शिशु मृत्यु दर को कम करने जैसी सिलसिलेवार समस्याओं को हल करने के लिये एक योजना लागू कर सभी लोगों से बाल स्वास्थ्य पर ध्यान देने की अपील की। साथ ही हर बार बच्चों से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने पर वे हमेशा मुस्कुराते रहते थे।
चंद्रिमा