12 नवंबर 2020

2020-11-11 16:11:56

अनिलः घरों को रंगने के लिए केवल काले रंग का प्रयोग कोई भी नहीं करता है। इतना ही नहीं ऑयल पेंट, इमल्शन पेंट या चूना कलर किसी के भी कैटलॉग में काला रंग नहीं होता है। क्योंकि इस रंग का डिमांड बिल्कुल ना के बराबर है। लेकिन छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में आदिवासी बाहुल्य गांव और शहर में काले रंग से रंगे हुए मकान आसानी से नजर आते हैं। आदिवासी समज के लोग आज भी अपने घरों की फर्श और दीवारों को काले रंग से रंगते हैं। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं।

दिवाली से पहले सभी लोग अपने घरों के रंग-रोगन का काम करवाते हैं। इस साल भी जशपुर जिले के आदिवासी समाज के लोग परंपरा के अनुरूप काले रंग का ही चयन कर घरों को रंग रहे हैं। ग्रामीण घरों की दीवारों को काली मिट्टी से रंगते हैं। इसके लिए कुछ ग्रामीण पैरावट जलाकर काला रंग तैयार करते हैं, तो कुछ टायर जलाकर भी काला रंग बनाते हैं। बता दें कि पहले काली मिट्टी आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन काली मिट्टी नहीं मिलने की स्थिति में ऐसा किया जा रहा है।

अघरिया आदिवासी समाज के लोग एकरूपता दर्शाने के लिए घरों को काले रंग से रंगना शुरू कर दिया। यह रंग उस समय से इस्तेमाल किया जा रहा है, जब आदिवासी चकाचौंध से दूर थे। घरों को रंगने के लिए उस वक्त काली मिट्टी या छुई मिट्टी ही हुआ करती थी, और इससे रंगाई कर ली जाती थी। आज भी गांव में काले रंग को देखकरपता चल जाता है कि यह किसी आदिवासी का मकान है। काले रंग से एकरूपता बनी हुई है।

काले रंग से रंगे घरों में दिन में भी इतना अंधेरा होता है कि किस कमरे में क्या है इसके बारे में पता केवल घर के सदस्य को होती है। बता दें आदिवासी लोगों के घरों में खिड़की कम होते हैं। छोटे-छोटे रोशनदान होते हैं। ऐसे घरों में चोरी का खतरा कम होता है।

नीलमः अब एक और जानकारी का वक्त हो गया है। दोस्तो, आपने ऐसी बहुत सारी बैंक डकैतियों के बारे में सुना होगा। लेकिन आज हम आपको जिस बैंक डकैती के बारे में बताने जा रहे हैं, वो बैंक डकैती के इतिहास में सबसे अनोखा मामला है, क्योंकि इसमें सीधे तौर पर उस देश के राष्ट्रपति का बेटा शामिल था। जी हां, यह हैरान करने वाली बात तो है, लेकिन बिल्कुल सच है। इस बैंक डकैती में कुल एक बिलियन डॉलर यानी आज के हिसाब से करीब 7562 करोड़ रुपये की लूट हुई थी। यह घटना इराक की है, जहां के सेंट्रल (केंद्रीय) बैंक से इतनी भारी रकम की लूट हुई थी। इस घटना को 17 साल हो चुके हैं। 

बात मार्च 2003 की है। तब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन थे और अमेरिका से उनकी दुश्मनी तो जगजाहिर है। कहते हैं कि अमेरिका ने इराक पर हमले की पूरी तैयारी कर ली थी।

अनिलः बताते हैं कि....उससे कुछ घंटे पहले सद्दाम हुसैन के बेटे कुसय बगदाद स्थित इराकी सेंट्रल बैंक पहुंचे और बैंक प्रमुख को एक पर्ची थमाई, जिसपर लिखा था कि सुरक्षा कारणों से बैंक के सभी पैसों को राष्ट्रपति ने दूसरी सुरक्षित जगह ले जाने का आदेश दिया है। अब चूंकि उस समय इराक में सद्दाम हुसैन का खौफ था, क्योंकि उन्हें एक तानाशाह माना जाता था, इसलिए बैंक प्रमुख कुछ नहीं बोले और पैसों को ले जाने की अनुमति दे दी। इसके अलावा उनके पास और कोई रास्ता भी नहीं था। 

कहते हैं कि सद्दाम हुसैन के बेटे कुसय ने इराकी बैंक से इतने रुपए लूटे थे कि उन्हें ट्रकों में भर-भरकर ले जाने पड़े थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि लूट की रकम को ट्रकों में भरने में करीब पांच घंटे लग गए थे। कहा यह भी जाता है कि बैंक में और भी पैसे थे, लेकिन उन्हें रखने के लिए ट्रक में जगह नहीं थी, इसलिए उन्हें वहीं पर छोड़ दिया गया। 

अनिलः अब एक सक्सेस स्टोरी। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रहने वाले दान सिंह दिल्ली मेट्रो में जॉब कर रहे थे। लेकिन कोरोना वायरस के वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद दान सिंह ने कई जगहों पर काम की तलाश की, लेकिन उन्हें कहीं भी मौका नहीं मिला। इसी बीच वो अपने गांव में ही पहाड़ी घास से हर्बल चाय बनाने का काम शुरू कर किया। देखते ही देखते उनके इस प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ गई। बता दें कि आज हर्बल चाय बेचकर दान सिंह महीने में एक लाख रुपये कमा रहे हैं।

भारत में कोरोना का प्रसार बढ़ने से कुछ समय पहले ही दान सिंह गांव आए हुए थे। ऐसे में लॉकडाउन लगने के बाद वो बाहर नहीं जा सके। कोरोना से बचने के लिए लोगों को इम्युनिटी बूस्टर की सलाह दी जा रही थी, जिससे काढ़ा और हर्बल टी की डिमांड बढ़ गई थी। इसी दौरान दान सिंह का ध्यान पहाड़ पर उगने वाली एक खास प्रजाति के घास पर गया, जिसे लोग सर्दी-बुखार होने पर घरेलू नुस्खे के तौर पर लेते थे। दान सिंह ने इस घास से चाय बनाकर घर में सर्दी-जुकाम से पीड़ित लोगों को पिलाया। उन्हें थोड़ी देर में ही इसका असर दिखने लगा।

नीलमः दो बार के प्रयोग में ही दान सिंह ने इस हर्बल घास से चाय बनाने का सही तरीका खोज लिया। इसके बाद उन्होंने इस बात की जानकारी अपने दोस्तों को दी। दान सिंह के दोस्तों ने इसके लिए तत्काल ऑर्डर दे दिए। ऑर्डर मिलने के बाद दान सिंह का मनोबल बढ़ गया और बड़े लेवल पर चाय तैयार करने लगा। इसके बाद उन्होंने इस चाय की जानकारी फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया पर भी शेयर किया। लोगों को अपने प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दी। बड़ी संख्या में लोगों के ऑर्डर भी मिलने शुरू हो गया। कुछ दिनों बाद ही दान सिंह की अमेजन से भी डील हो गई।

दान सिंह रोजाना सुबह पहाड़ों पर जाकर घास तोड़कर घर लाते हैं। इसके बाद वो पत्तियों को तोड़कर सुखाते हैं। दो-तीन दिन में पत्तियां सूख जाती हैं। इसके बाद उन्हें हाथ से मसल देते हैं। फिर इसमें लेमन ग्रास, तेजपत्ता, तुलसी पत्ता और अदरक मिलाकर पैक तैयार करते हैं। दान सिंह की इस पहल के बाद गांव के दूसरे लोग भी इस घास का अब उपयोग कर रहे हैं।

अनिलः हमेशा से ही 82,698 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हैदराबाद रियासत की गिनती भारत के प्रमुख राजघरानों में की जाती थी। इसका क्षेत्रफल ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के क्षेत्र से भी अधिक था और आबादी (एक करोड़ 60 लाख) यूरोप के कई देशों से अधिक थी। शायद इसके विशेष दर्जे की वजह से ही उसे आजादी के बाद भारत में शामिल होने या न होने के लिए तीन महीने का अतिरिक्त समय दिया गया था। उस समय भारत के गृह सचिव रहे एच वीआर आयंगर ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'सरदार पटेल का शुरू से ही मानना था कि भारत के दिल में एक ऐसे क्षेत्र हैदराबाद का होना, जिसकी निष्ठा देश की सीमाओं के बाहर हो। भारत की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा था।'

नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में रखे इस इंटरव्यू में आयंगर यहां तक कहते हैं कि पटेल की दिली इच्छा थी कि निजाम का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। हालांकि नेहरू और माउंटबेटन की वजह से पटेल अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाए। नेहरू पटेल को हमेशा याद दिलाते रहे कि हैदराबाद में बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक रहते हैं। निजाम से पिंड छुड़ाने के बाद होने वाले असर को संभाल पाना भारत के लिए मुश्किल होगा। 

नीलमः माउंटबेटन को ये खुशफहमी थी कि वो नेहरू की मदद से निजाम को संभाल सकते हैं, लेकिन पटेल ने इसका ये कहते हुए विरोध किया था कि 'आपका मुकाबला एक लोमड़ी से है। मुझे निजाम पर कतई विश्वास नहीं है। मेरा मानना है कि आपको निजाम से धोखा ही मिलेगा।' पटेल की नजर में उस समय का हैदराबाद 'भारत के पेट में कैंसर' की तरह था जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था। 

शुरू में नेहरू हैदराबाद में सेना भेजने के पक्ष में नहीं थे। पटेल के जीवनीकार राजमोहन गांधी लिखते हैं, 'नेहरू का मानना था कि हैदराबाद में सेना भेजने से कश्मीर में भारतीय सैनिक ऑपरेशन को नुकसान पहुंचेगा।' एजी नूरानी अपनी किताब 'द डिसट्रक्शन ऑफ हैदराबाद' में लिखते हैं, 'हैदराबाद के मुद्दे पर कैबिनेट बैठक बुलाई गई थी, जिसमें नेहरू और पटेल दोनों मौजूद थे। नेहरू सैद्धांतिक रूप से सैन्य कार्रवाई के खिलाफ नहीं थे, लेकिन वो इसे अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते थे। वहीं, पटेल के लिए सैनिक कार्रवाई पहला विकल्प था। बातचीत के लिए उनके पास धैर्य नहीं था। नेहरू निजाम की नीतियों के खिलाफ जरूर थे, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनका उनसे कोई विरोध नहीं था। वो हैदराबाद की संस्कृति के प्रशंसक थे जिसका कि उनकी मित्र सरोजनी नायडू प्रतिनिधित्व करती थीं। लेकिन पटेल को व्यक्तिगत और वैचारिक दोनों तरह से निजाम से नफरत थी।'

अनिलः इस बैठक का एक और विवरण पटेल के करीबी और उस समय रिफॉर्म्स कमिश्नर वीपी मेनन ने एच वी हॉडसन को 1964 में दिए गए इंटरव्यू में किया है। मेनन के मुताबिक, 'नेहरू ने बैठक की शुरुआत में ही मुझपर हमला बोला। असल में वो मेरे बहाने सरदार पटेल को निशाना बना रहे थे। पटेल थोड़ी देर तो चुप रहे लेकिन जब नेहरू ज्यादा कटु हो गए तो वो बैठक से वॉक आउट कर गए। मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आया, क्योंकि मेरे मंत्री की अनुपस्थिति में वहां मेरे रहने का कोई तुक नहीं था। इसके बाद राजा जी ने मुझसे संपर्क करके सरदार को मनाने के लिए कहा। फिर मैं और राजा जी सरदार पटेल के पास गए। वो बिस्तर पर लेटे हुए थे। उनका ब्लड प्रेशर बहुत हाई था। सरदार गुस्से में चिल्लाए-नेहरू अपनेआप को समझते क्या हैं? आजादी की लड़ाई दूसरे लोगों ने भी लड़ी है।'

सरदार का इरादा था कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुला कर नेहरू को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाए, लेकिन राजा जी ने सरदार को डिफेंस कमेटी की बैठक में शामिल होने के लिए मना लिया। इस बैठक में नेहरू शांत रहे और हैदराबाद पर हमला करने की योजना को मंजूरी मिल गई। 

कई सदियों से हैदराबाद की हीरे की खानों से दुनिया के एक से एक मशहूर हीरे निकलते आए थे। उनमें से एक कोहिनूर भी था। निजाम के पास दुनिया का सबसे बड़ा 185 कैरेट का जैकब हीरा था, जिसे वो पेपर वेट की तरह इस्तेमाल करते थे। निजाम को 'हिज एक्जाल्टेड हाईनेस' कहा जाता था और वो जहां भी जाते थे उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती थी। टाइम पत्रिका ने 1937 में उन्हें दुनिया का सबसे अमीर शख्स घोषित किया था, लेकिन तब भी वो एक कंगाल की तरह फटी शेरवानी और पाजामा पहनते थे। 

अनिलः इसी जानकारी के साथ प्रोग्राम में जानकारी का सिलसिला यही संपन्न होता है।

अब पेश है आज के प्रोग्राम का पहला पत्र जिसे भेजा है, हमारे पुराने श्रोता केसिंगा से सुरेश अग्रवाल ने। लिखते हैं, दिनांक 5 नवम्बर को प्रसारित साप्ताहिक "टी टाइम" का अंक भी ध्यानपूर्वक सुना और उसमें समाहित तमाम जानकारी काफी ज्ञानवर्ध्दक लगी। नीदरलैंड के स्पिजेनकिसे शहर के एक मेट्रो स्टेशन पर हुये हादसे की जानकारी सुन कर शरीर में एकबारगी सिहरन सी दौड़ गयी, परन्तु कहते हैं ना कि "जाको राखे साइयां मार सकै न कोय"। शुक्र है कि हादसे में जान-माल का कोई नुक़सान नहीं हुआ।

वहीं ऑस्ट्रेलिया बेस्ड मल्टीनेशनल डिजिटल फर्म के मालिक आमिर कुतुब की क़ामयाबी का किस्सा भी काफी प्रेरक लगा। ज़ाहिर है कि सच्ची लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति हो, तो मनुष्य के लिये कुछ भी करना संभव है। जानकारियों के क्रम में चीन के वान नामक 60 वर्षीय व्यक्ति की आंखों में साल भर से पल रहे कीड़े एवं फिर चिकित्सक द्वारा शल्य-क्रिया द्वारा कीड़ों को जीवित निकाला जाना, वास्तव में, विस्मयकारी लगा। 

नीलमः सुरेश जी आगे लिखते हैं कि असम में उत्पादित दुर्लभ प्रजाति वाली चायपत्ती द्वारा खास रिकॉर्ड क़ायम किया जाना हम सभी के लिये गर्व की बात है। वैसे प्रकारान्तर में इस चायपत्ती के बारे में जानकारी वर्षों पहले सीआरआई ही के किसी प्रसारण में हम सुन चुके हैं। लम्बे अन्तराल के बाद इसे नये सिरे से सुन कर ख़ुशी हुई। किसी चायपत्ती की खेती महज़ तीस एकड़ में की जाती हो, तो उसकी विशिष्ट होने की बात स्वतः स्पष्ट हो जाती है। महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने का शुक्रिया। कार्यक्रम में मुझ द्वारा प्रेषित पंक्तियों को मज़ेदार का दर्ज़ा देते हुये कार्यक्रम में समाहित किये जाने का भी शुक्रिया। श्रोता-मित्रों की पाती एवं चुटीले जोक्स तो ख़ैर, कार्यक्रम की जान होते ही हैं। धन्यवाद फिर एक बेहतरीन प्रस्तुति के लिये।

सुरेश जी प्रोग्राम के बारे में टिप्पणी करने और खत भेजने के लिए शुक्रिया।

अनिलः दोस्तो, अब पेश है अगला पत्र। जिसे भेजा है, खंडवा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, नी हाउ, नमस्कार और वेरी गुड इवनिंग। हमें पिछला प्रोग्राम बहुत अच्छा लगा। इसमें आपके द्वारा मल्टीनेशनल डिजिटल फर्म के मालिक आमिर कुतुब जी के जीवन के बारे में दी गई जानकारी बहुत ही प्रेरणादायक लगी। साथ ही मनोहारी गोल्ड टी, जिसका मूल्य 75 हजार रुपए प्रति किलो है। यह चायपत्ती बेहद ही दुर्लभ है, यह हमें आपके प्रोग्राम के माध्यम से जानने को मिला। जब कभी भी आप चायपत्ती से जुड़ी जानकारी प्रस्तुत करते हैं तो हमे बेहद खुशी होती है।

धन्यवाद। दुर्गेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

नीलमः अब पेश है खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा का पत्र। लिखते हैं भाई अनिल पांडेय जी, बहन नीलम जी, सादर प्रणाम। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। 5 नवंबर का कार्यक्रम सुना और पसंद आया। कार्यक्रम में नीदरलैंड के एक शहर में मेट्रो ट्रेन स्टेशन का बैरियर तोड़ कर विशाल व्हेल मछली की मूर्ति से टकरा गयी और कोई भी मुसाफिर को किसी तरह का नुकसान नही हुआ। यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। सच ही कहा है कि, जाको राखे साईया मार सके ना कोय। ऑस्ट्रेलिया में बेस्ड एक मल्टी नेशनल फर्म के 31 साल के मालिक आमिर कुतुब का बिजनेस टर्न ओवर दस करोड़ रुपये का है यह जानकर बहुत ही खुशी प्राप्त हुई। इंसान मेहनत से ही बुलंदियों के शिखर तक पहुचता है। सफलता का यही एक मात्र मंत्र है। चीन में एक आदमी की आँखों से डॉक्टर ने 20 जीवित कीड़े निकाले यह सुनकर बहुत ही हैरानी हुई। यह समाचार भारत के ज्यादातर अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ।

मनोहारी गोल्ड टी खास तरह की दुर्लभ चाय पत्ती की कीमत 75 हजार रुपये प्रति किलो है। यह सुनकर भी बहुत अचम्भा हुआ। हम तो इस चाय को पीना तो दूर की बात है इसके दर्शन भी नही कर सकते हैं।

टी टाइम के इस अंक में हरियाणवी गीत हट जा ताऊ पाछे ने नाचन दे जी भर के कार्यक्रम में चार चांद लगा दिये। गीत काबिले तारीफ़ लगा। इस गीत की जितनी भी प्रंशसा की जाये उतनी ही कम है।

कार्यक्रम में श्रोताओ के पत्र काबिले तारीफ लगे। जबकि जोक्स सुनकर बहुत आनंद आया।

बेहतरीन कार्यक्रम सुनवाने के लिये आप का दिल से शुक्रिया।

अरोड़ा जी पत्र भेजने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

अनिलः अब प्रोग्राम का आखिरी पत्र। जिसे पुराने श्रोता रामकुमार नीरज ने आरा बिहार से भेजा है। हालांकि इसमें टी-टाइम के बारे में नहीं लिखा है, फिर भी हम इस पत्र के मुख्य अंश शामिल कर रहे हैं।

लिखते हैं कि एक बार फिर एक साल जाने वाला है और एक नया साल सिरहाने खड़ा है। क्या खोया क्या पाया का हिसाब हर तरफ जारी है। देखते ही देखते दो वर्ष का सीआरआई का साथ हो गया है। इन दो वर्षों में सी आर आई के साथ हमने बहुत कुछ सीखा और दुनिया को एक नए नजरिये से देखने की सोच विकसित की। सीआरआई हिंदी सेवा की साईट के साथ-साथ रेडियो पर भाषा की शुद्धता और बेहतरीन रिपोर्टिंग की कला का कोई जवाब नहीं है। वास्तव में सी आर आई भारत चीन संबंधों का एक ऐसा दर्पण है। जहाँ से खड़ा होकर दोनों देशों के संबंधों को करीब से जान और समझ सकते हैं। संबंधों का यही नायाब सिलसिला साल दर साल चलता रहे इसकी हम कामना करते हैं। राम कुमार जी हम भी यही आशा करते हैं। पत्र भेजने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे गुजारिश है कि लगातार पत्र व्यवहार बनाए रखें।.

श्रोताओं की टिप्पणी के बाद ...जोक्स का समय हो गया है।

पहला जोक

एक दोस्त दूसरे दोस्त से...बुलेट ट्रेन तो उन देशों के लिए बनी है,जहां लोगों के पास समय की कमी है..!हमारे यहां तो अगर कहीं जेसीबी लगी हो तोआधा गांव तो उसे ही देखने चला जाता है...!!!

दूसरा जोक

गर्ल फ्रैंड- मेरा मोबाइल मां के पास रहता है।

बॉय फ्रेंड- अगर पकड़ी गयी तो

गर्ल फ्रेंड- तुम्हारा नंबर, बैटरी लो है, नाम से रखा है।

जब भी तुम्हारा फ़ोन आता है तो मां कहती है लो चार्ज कर लो.

बॉय फ्रेंड यह सुनकर कोमा में है।

तीसरा जोक..

पति - डॉक्टर ने चाय फीकी पीने को कहा है....पत्नी - अलग-अलग चाय नहीं बनाऊंगी,लड्डू खा कर पी लेना, फीकी लगेगी...!!!.पति बेहोश...

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