15 अक्तूबर 2020

2020-10-14 20:01:01 CRI

अनिलः जानकारी देते हैं।

आगरा की रहने वाली नेहा भाटिया साल 2014 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स किया। पढ़ाई पूरी होते ही नेहा ने सालभर लंदन में ही नौकरी की और उसके बाद अपने देश वापस आ गईं। साल 2017 में उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग शुरू की और आज वो तीन जगहों पर खेती कर रही हैं। खेती कर नेहा सलाना 60 लाख रुपये की कमाई भी कर रही हैं। इसके साथ ही कई किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग देकर उनका जीवन भी संवार रही हैं।

1 वर्षीय नेहा एक बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखती हैं। नेहा कहती हैं कि, 'मैंने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि मुझे बिजनेस करना है लेकिन, सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि उसका सोशल बेनिफिट और सोशल इम्पैक्ट भी हो। उससे लोगों को भी फायदा हो। हालांकि, तब खेती के बार में नहीं सोचा था।'

दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद नेहा एक सोशल ऑर्गनाइजेशन से जुड़ गई। उन्होंने राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर काम किया। इसके बाद वो साल 2012 में लंदन चली गईं। जब वो साल 2015 में लंदन से वापस लौटी तो फिर से एक सोशल ऑर्गनाइजेशन के साथ जुड़ गई और करीब दो साल तक काम किया।

नेहा कई गांवों में गईं और लोगों से मिलकर उनकी परेशानियों को समझा। नेहा कहती हैं कि लोगों की दिक्कतों से पता चला कि सबसे बड़ी समस्या हेल्दी फूड्स की है। केवल शहर ही नहीं बल्कि गांव के लोगों को भी सही खाना नहीं मिल रहा है। ऐसे में नेहा ने साल 2016 में क्लीन ईटिंग मूवमेंट लॉन्च करने का प्लान किया, ताकि लोगों को सही और शुद्ध खाना मिल सके। इसको लेकर रिसर्च करना शुरू किया, कई एक्सपर्ट्स से मिली। सभी लोगों ने यही कहा कि अगर सही खाना चाहिए, तो सही उगाना भी पड़ेगा। अगर अनाज और सब्जियां ही केमिकल और यूरिया वाली होंगी, तो उनसे बना खाना ठीक नहीं हो सकता है।

ऐसे में नेहा ने ऑर्गेनिक फार्मिंग शुरू करने का प्लान किया। लेकिन उन्हें खेती की बेसिक जानकारी भी नहीं थी। फार्मिंग शुरू करने से पहले उन्होंने कई गांवों में जाकर 6-7 महीने तक खेती के बारे में जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने नोएडा में अपनी दो एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक सब्जियों की फार्मिंग की। फार्मिंग के दौरान नेहा का शुरुआती समय निराशाजनक रहा, लेकिन दूसरी बार खेती से अच्छी उपज हुई। इसके बाद उन्होंने अपने ऑर्गेनिक उत्पादों को खुद मार्केट में लेकर गईं और लोगों से मिलकर इन उत्पादों के फायदों के बारे में बताया।

नीलमः अब अगली जानकारी। दोस्तो, त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है। ऐसे में सोने की चर्चा एक बार फिर जोरों पर है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के वजह से आई मंदी के बाद भी लोग गोल्ड बॉन्ड के तौर पर इस कीमती धातु की खरीदी में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। लेकिन सोना की बढ़ती कीमतों के बीच लगातार ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या दुनिया की खदानों से सोना खत्म होने वाला है? क्या आपने कभी सोचा है कि अगर धरती पर सोना पूरी तरह से खत्म हो जाएगा तो फिर क्या होगा?

विशेषज्ञ पिछले काफी समय से सोना के खत्म होने की बात कर रहे हैं। इसे पीक गोल्ड कहते हैं, यानी वो अवस्था जब हम खदानों से लगभग पूरा का पूरा सोना निकाल चुके होंगे। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक आज हम उस स्टेज पर पहुंच गए हैं और सोना घटते जा रहा है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में पूरी दुनिया से लगभग 3,531 टन सोना निकला था।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बात करते हुए वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के प्रवक्ता हन्नाह ब्रांड्सटीटर कहती हैं कि आने वाले सालों में सोना का खनन और भी कम हो सकता है। इसके साथ ही नए खदानों की खोज में कमी होगी, क्योंकि सोना कहीं न कहीं घट रहा है।

दुनियाभर में कितना सोना बाकी है, इस बात का अनुमान खनन कंपनियां कई तरह से लगाती हैं। WGC के मुताबिक, फिलहाल जमीन के नीचे लगभग 54,000 टन सोना है, जिसका खनन होना बाकी है। लेकिन जमीन के नीचे दबा यह सोना अब तक निकाले जा चुके सोने का केवल 30 फीसदी ही है। बाकी सोना हमारे घरों या बैंकों तक जा चुका है।

वैश्विक कंपनी गोल्डमैन सैश के मुताबिक साल 2035 में दुनिया का पूरा सोना खत्म हो जाएगा। सोना की सभी खदानें खाली हो चुकी होंगी। नए खदानों की खोज नहीं होने के कारण अभी से यह हाल दिखने लगा है।

अनिलः अब एक और जानकारी। दोस्तों. ये बात तो हम सभी जानते हैं कि समुद्रों और महासागरों का पानी खारा होता है, लेकिन बहुत कम लोगों को ही इसकी वजह पता होगी। समुद्रों का पानी इतना खारा होता है कि इसे पीने के उपयोग में बिल्कुल नहीं लाया जा सकता है। आखिर समुद्रों में इतना सारा नमक कहां से आया कि पानी खारा हो गया?

हमारी पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी का है और इस पानी का 97 फीसदी हिस्सा महासागरों और समुद्रों में है। अमेरिका के नेशनल ओसियानिक और एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, अगर सभी समुद्रों से पूरा नमक निकाल कर जमीन पर फैला दिया जाए तो उसकी परत 500 मीटर ऊंची हो जाएगी।

समुद्रों में नमक आने के दो स्रोत हैं। समुद्रों में सबसे ज्यादा नमक नदियों से आता है। बता दें कि बारिश का पानी थोड़ा अम्लीय होता है, जब यह पानी जमीन की चट्टानों पर पड़ती है तो उसका अपरदन कर देता है और इससे बनने वाले आयन नदी के रास्ते समुद्रों में मिल जाते हैं। यह प्रक्रिया लाखों करोड़ों सालों से चली आ रही है।

इसके अलावा समुद्रों में नमक आने का एक दूसरा स्रोत भी है, जो मुद्र तल से मिलने वाले उष्णजलीय द्रव्य है। ये खास द्रव्य समुद्र में हर जगह से नहीं आते, बल्कि उन्हीं छेदों और दरारों से से आते हैं जिनका पृथ्वी की अंदरुनी सतहों से संपर्क होता है। इन छेदों और दरारों से समुद्र का पानी पृथ्वी की अंदरूनी सतह के संपर्क में आकर गर्म हो जाता है। इसकी वजह से कई तरह की रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं।

महासागरों और समुद्रों के पानी में सबसे अधिक क्लोरीन और सोडियम के आयन होते हैं। ये दोनों आयन मिलकर महासागरों में घुले आयनों का 85 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। इसके बाद मैग्नीशियम और सल्फेट 10 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। इनके अलावा बाकी आयनों की मात्रा बहुत कम होती है।

बता दें कि समुद्रों के पानी में खारापन या लवणता एक समान नहीं होता है। तापमान, वाष्पीकरण और वर्षण के कारण अलग-अलग जगहों के पानी में अंतर देखने को मिलता है। भूमध्यरेखा और ध्रुवों के पास के इलाकों में खारापन की मात्रा बहुत कम होती है। लेकिन बाकी जगह यह बहुत ज्यादा होता है।

नीलमः एक और जानकारी का वक्त हो गया है। माना जाता है कि दुनिया में ऐसी कई रहस्यमय जगहें हैं, जिनके बारे में शायद ही कोई जानता हो। कैलाश पर्वत को भी ऐसी ही एक रहस्यमय जगह के तौर पर जाना जाता है। दरअसल, हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि कैलाश पर्वत के अंदर एक रहस्यमय दुनिया है, जो आज तक किसी इंसान ने नहीं देखी है। इसकी वजह ये है कि इस पर्वत पर आज तक कोई चढ़ ही नहीं पाया है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसपर चढ़ने की कोशिश किसी ने नहीं की हो। दुनिया के बहुत सारे पर्वतारोही कैलाश पर्वत पर चढ़ने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं।

इसमें हैरानी की बात ये है कि इस पर्वत की ऊंचाई करीब 6638 मीटर है जबकि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई उससे कहीं ज्यादा 8848 मीटर है और एवरेस्ट पर हजारों लोग चढ़ चुके हैं, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया।

कैलाश पर्वत पर किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि वहां अभी भी भगवान शिव रहते हैं, इसलिए किसी भी जीवित इंसान का पर्वत की चोटी पर पहुंचना नामुमकिन है। कहा जाता है कि सिर्फ वहीं इंसान इस पर्वत पर जा सकता है, जिसने अपनी जिंदगी में कभी कोई पाप न किया हो।

कैलाश पर्वत पर किसी के न चढ़ पाने के पीछे एक और वजह बताई जाती है। कहा जाता है कि पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है, उसे समझ में ही नहीं आता कि जाना कहां है और चूंकि पर्वत पर बिल्कुल खड़ी चढ़ाई है, ऐसे में बिना दिशा का ज्ञान हुए चढ़ाई करना मौत के मुंह में जाने के समान है।

अनिलः बताते हैं कि कुछ साल पहले एक पर्वतारोही ने इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन कहा जाता है कि थोड़ा सा ऊपर जाते ही उसके शंरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगे और उसे काफी घबराहट होने लगी, जिसके बाद वह नीचे आ गया। कैलाश पर्वत के बारे में कहा जाता है कि वह एक रेडियोएक्टिव क्षेत्र भी है।

अनिलः इसी जानकारी के साथ प्रोग्राम में जानकारी देने का सिलसिला यही संपन्न होता है। अब बारी है श्रोताओं के पत्रों की। पहला पत्र हमें भेजा है, पंतनगर, उत्तराखंड से वीरेंद्र मेहता ने। लिखते हैं, नमस्कार , नी हाउ । लिखते हैं टी टाइम प्रोग्राम सुना। जिसमें आज सबसे पहले गणेश जी का जापानी वर्जन सुनने को मिला । यह भी जाना कि बौद्ध धर्म की एक शाखा जो कि तंत्र मंत्र पर भी विश्वास करती है । वही वही नीलम जी द्वारा पक्षियों के उड़ने से संबंधित जानकारी संक्षिप्त में दी गई अच्छा लगा । और सुरेश अग्रवाल जी द्वारा भेजा गया आर्टिकल 'मां का पल्लू ' अपने बचपन की मां के साथ की सभी यादें ताजा कर दी सुंदर प्रोग्राम की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !!

आगे लिखते हैं कि पिछले सप्ताह के प्रोग्राम में एलीफेंट डॉक्टर के नाम से मशहूर डॉ कुशल कुंवर वर्मा जो कि 59 वर्ष के हैं उनसे जुड़ी जानकारी अच्छी लगी। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा। उनके सुंदर और साहस पूर्ण कार्य के लिए और वही RX-18 नाम के रोबोट के बारे में सुना, जो कि जापानी कंपनी गुंडम द्वारा तैयार किया गया है । लेकिन सबसे रोचक बात यह है कि इतना बड़ा रोबोट जिसका वजन लगभग 25 टन और ऊंचाई 60 फीट की है । जहां तक मैं सोचता हूं भविष्य में भी लोगों के घर-घर रोबोट अपना जगह बनाएंगे और बच्चों की एक डिमांड रोबोट भी हो सकती है, जो कि मल्टीटास्किंग रोबोट हो सकते हैं। काफी रोचक लगी ।

वीरेंद्र जी, पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

नीलमः अब पेश करते हैं केसिंगा, उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल का पत्र। लिखते हैं कि हर बार की तरह आज का साप्ताहिक "टी टाइम" भी पूरे मनोयोग से सुन, उस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया से आपको अवगत करा रहा हूँ, जिससे ज़ाहिर है कि आपकी मेहनत व्यर्थ नहीं जाती। फिर श्रोता चाहे कम हों या ज़्यादा, क्या फर्क़ पड़ता है। हम तो आपके मुरीद हैं।

जापान की राजधानी तोक्यो स्थित हिन्दू मन्दिरों, विशेषकर, वहां के मात्सुचियामा शोटेन मन्दिर एवं उसमें विराजित भगवान गणेश की मूर्ति पर दी गयी जानकारी अत्यंत सूचनाप्रद लगी। केवल गणेश ही नहीं, जापानी मन्दिरों में अन्य भारतीय देवी-देवताओं की भी अनेक मूर्तियां विद्यमान हैं। वैसे भी चीन की तरह जापान में भी बौध्द-धर्म भारत ही से वहाँ गया एवं भारतीय संस्कृति के अवशेष वहां भी जहां-तहां देखने को मिल जाते हैं। जानकारियों के क्रम में पक्षियों के हवा में उड़ने के सामान्य सिध्दांत पर दी गयी जानकारी भी काफी महत्वपूर्ण लगी।

दुनियाभर में बोली जाने वाली लगभग 6,900 भाषाओं के साथ अर्जेंटीना और चिली के बीच बसे टिएरा डेल फ्यूगो नामक द्वीप पर बोली जाने वाली 'यघान' भाषा को बोलने वाला अब केवल एक ही व्यक्ति जीवित बचा है, यह जानकारी वाक़ई विस्मित करने वाली लगी। वैसे यहां यह बतलाना भी मुनासिब होगा कि हमारे देश भारत में भी कोई 845 भाषा और बोलियां बोली जाती हैं। विश्व में इतनी विविधताओं वाला शायद ही कोई और देश हो।

तमाम जानकारियों के साथ आपने मुझ द्वारा प्रेषित 'माँ का पल्लू' शीर्षक जानकारी को कार्यक्रम का हिस्सा बनाया, आभारी हूँ। कार्यक्रम में पेश श्रोता-मित्रों की प्रतिक्रिया एवं चुटीले जोक्स हर बार की तरह आज भी शानदार लगे। धन्यवाद फिर एक रोचक प्रस्तुति के लिये।

सुरेश जी पत्र भेजने और प्रोग्राम के बारे में तारीफ करने के लिए शुक्रिया।

अनिलः अब बारी है अगले पत्र की। जिसे भेजा है, खंड्वा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, हमें 8 अक्टूबर का टी टाइम कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा। प्रोग्राम में आपके द्वारा दी जाने वाली सभी जानकारियां काफी रोचक लगी। हमें जापान की राजधानी टोक्यो के मात्सुचियामा शोटेन मंदिर में स्थित गणेश जी की मूर्ति के बारे मे दी गई जानकारी बहुत ही आश्चर्यजनक लगी । साथ ही सुरेश अग्रवाल जी द्वारा भेजा गया प्रेरक प्रसंग मां का पल्लू बहुत ही शिक्षाप्रद लगा। वहीं कार्यक्रम में श्रोताओ की टिप्पणी और आपकी आवाज में मजेदार जोक्स मन को खुश कर देते हैं।

दुर्गेश जी ने शायरी भेजी है :- रिश्तों से बङी चाहत क्या होगी , दोस्ती से बङी इबादत क्या होगी , जिसे रेडियो स्टेशन मिल जाये चाइना रेडियो इंटरनेशनल जैसा भला , उसे जिन्दगी से शिकायत क्या होगी । धन्यवाद।

नीलमः अब पेश है खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा का पत्र। लिखते हैं, पिछला कार्यक्रम टी टाइम सुना और पसंद आया। कार्यक्रम में सुनवायी गयी जानकारी टोक्यो शहर के एक पुराने बुद्ध मंदिर में गणेश जी देवता जैसी मूर्ति के बारे में जानकर दिल खुशी से झूम उठा। श्री गणैशाय नमः। आसमान में पंक्षी उड़ लेता है इंसान क्यों नही उड़ पाता है, इस विषय पर विस्तार पूर्वक जानकारी काबिले तारीफ लगी। वहीं सुरेश अग्रवाल जी द्वारा प्रेषित प्रसंग माँ का पल्लू बहुत पसंद आयी। फिल्मी गीत तेरे नाम हमने किया है जीवन अपना सारा सनम सुनकर बहुत आनंद आया। कार्यक्रम में श्रोताओ के पत्र उच्च कोटि के लगे। साथ ही कार्यक्रम में जोक्स भी शानदार लगे। बेहतरीन कार्यक्रम टी टाइम सुनवाने के लिये अनिल पाण्डेय जी और नीलम जी को बहुत बहुत बधाई। अरोड़ा जी कार्यक्रम के बारे में टिप्पणी भेजने के लिए शुक्रिया।

अनिलः अब पेश है, आज के प्रोग्राम का आखिरी खत। जिसे भेजा है, दरभंगा बिहार से शंकर प्रसाद शंभू ने। लिखते हैं पिछले प्रोग्राम में जापान में गणेश जी के विभिन्न रूपों के बारे में सुना, जिससे हमें ज्ञात हुआ कि जापान की राजधानी टोक्यो में 8वीं सदी में बने 'मात्सुचियामा शोटेन' नामक मंदिर में हिंदूओं के गणेश देवता से मिलती-जुलती मूर्ति रखी गई है, जो गणेश जी का ही जापानी वर्जन है। यह जानकर काफी खुशी मिली कि अभी जापान में गणेश जी के कुल 250 मंदिर हैं, जहाँ उन्हें केंगिटेन, शोटेन, गनबाची यानि गणपति और बिनायकातेन यानि विनायक आदि विभिन्न नामों से बुलाया जाता है।

दूसरी जानकारी में नीलम जी ने 'पक्षियों की तरह इंसान क्यों नहीं उड़ सकता है ?' इस विषय पर बड़े ही रोचक और दिलचस्प तरीके से विश्लेषण की, जो हम लोगों को बेहद पसंद आया। वहीं कार्यक्रम से हमें ज्ञात हुआ कि अर्जेंटीना और चिली के बीच बसे टिएरा डेल फ्यूगो नामक द्वीप पर रहने वाले आदिवासियों की भाषा 'यघान' अब लगभग गायब ही होने वाली है, क्योंकि इसे बोलने वाली एकमात्र बुजुर्ग महिला क्रिस्टिना काल्डेरॉन ही है।

जानकारी के अंतिम चरण में 'माँ का पल्लू' की विस्तृत विश्लेषण से मुझे अपनी माँ के प्यार और स्नेह की याद ताजा हो गई हैं, जो मुझे बचपन में मिल पाया था। हमारे बिहार राज्य के मिथिलांचल क्षेत्र में पल्लू को आँचल कहा जाता है।

शंभू जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

इसी के साथ प्रोग्राम में श्रोताओं की टिप्पणी यही संपन्न होती है। धन्यवाद।

अब बारी है जोक्स की

पहला जोक

नेताःतुम्हारे टीचर कहां हैं,

बच्चा- वो तो कभी-कभी आते हैं...

नेता- फिर स्कूल कैसे चल रहा है.

बच्चाः जैसे आप देश चला रहे हैं।

दूसरा जोक

एक बार भूगोल की टीचर ने

पप्पू से पूछा: - गंगा कहाँ से निकलती है और कहाँ जाकर मिलती है...? पप्पू ने खड़े होकर कहा: - मैडम गंगा घर से निकलती है और School के पीछे जाकर सोनू से मिलती है..

तीसरा जोक

चिंटू की शादी एक नर्स से हो गयी,

पप्पू: और चिंटू, कैसी कट रही है शादीशुदा जिंदगी...?

चिंटू: पूछ मत यार, जब तक सिस्टर न कहो सुनती ही नहीं है ।

रेडियो प्रोग्राम