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13-08-27:चीन में आपको सही शब्दों का ही प्रयोग करना पड़ेगा
2013-09-23 13:46:58

लाल और सफेद रंग- चीन की संस्कृति का अटूट हिस्सा। विवाह और शोक-सभाओं पर एक विशेष प्रस्तुति।

शादियों और शोक सभा को चीन में एक साथ लाल-सफेद अवसर कहा जाता है। जहाँ लाल रंग शादी में पहना जाता है और सफेद रंग अंत्येष्टि में। खास तौर पर इन अवसरों पर लोग किस तरह की सजावट करते हैं और कपड़े पहनते हैं के लिए शब्द प्रयोग किए जाते हैं। जबकि पश्चिम में इसके विपरीत होता है, लाल रंग परंपरागत रूप से खुशियों और विवाह के साथ जोड़ा जाता है और सफेद रंग को चीन में शोक सभाओं और दुख के साथ जोड़ा जाता है।

चीन में कई जातीय समूह हैं, हर किसी के शादियों और अंतयेष्टि के अपने-अपने रीति-रिवाज़ हैं। लेकिन सबमें एक चीज़ आम हैं।

पारंपरिक चीनी रिवाज़ के अनुसार शादी किसी भी परिवार के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। घर-परिवार में जब किसी की शादी होती है तो पूरा परिवार उसकी तैयारियों में जी-जान से जुट जाता है। ज्यादातर परिवारों में समान रीति-रिवाज़ हैं, लेकिन विवाह की कुछ रस्में सरलीकृत हो गई हैं। कभी-कभी तो पश्चिमी शैली की भांति शादियाँ होने लगीं हैं। हालांकि, शादी की रस्में सरल हो गई हैं। उसके बावजूद चीनी लोगों ने अपने मूल विचारों को बनाए रखा है। प्राचीन चीन में लोग परिवारों के बीच बराबरी की सामाजिक स्थिति पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया करते थे और परवाह करते थे। किसी भी परिवार में रिश्ता होने से पहले मैचमेकर यानी रिश्ता करवाने वाले बिचौलिए पहले दोनों परिवारों की परिस्थिति से एक-दूसरे को भली-भांति अवगत करवाते थे और फिर शादी की बात माता-पिता आगे बढ़ाते थे। अधिकतर चीनी लोग उस समय अरैंजड शादियाँ ही किया करते थे। लड़के-लड़की को तय करने का हक नहीं होता था और ना ही कुछ पूछने का। लेकिन अब प्रेम विवाह आम बात है लेकिन अब भी परिवार के बीच बराबरी के विचार मौजूद है। अक्सर लोग उनसे शादी करते हैं जिनके परिवार की स्थिति, आर्थिक शक्ति, और पृष्ठभूमि समान हैं।

परंपरागत रूप से शादी के लिए शुभ दिन चुना जाता है और जगह भी। तथाकथित शुभ मुहुर्त। यह अवधारणा आज भी मौजूद है लेकिन अब इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है जितना की अतीत में और अब यह मुख्य रूप से केवल एक प्रकार का मनौवैज्ञानिक आश्वासन बनकर रह गया है और कुछ नहीं। उदाहरण के लिए लोग अक्सर आठ या छह तारीख चुनते हैं क्योंकि चीनी भाषा में आठ शब्द का उच्चारण भाग्य शब्द के उच्चारण से मिलता-जुलता है। छह शब्द सफलता का प्रतीक है।

शादी के दिन दूल्हा दुल्हन के घर उसे अपनी पत्नी स्वीकार करने के लिए जाता है। पुराने समय में दुल्हन के लिए पालकी की तरह कुर्सी का प्रयोग किया जाता था लेकिन अब लंबी, आलिशान गाड़ियों में बारात आती है। पारंपरिक शादी में दूल्हा जब अपनी दुल्हन को घर लेकर आता था तब पति-पत्नी घर के बड़ों के आगे उनका सम्मान करते हुए औपचारिक बॉओ करते थे। यानी झुक कर आशीर्वाद लेते थे। हालांकि, अब इस औपचारिकता को नहीं निभाया जाता लेकिन अब भी नए जोड़े अपने माता-पिता के सामने उनकी परवरिश के लिए कृतज्ञता दिखाते हुए झुक कर आशीर्वाद लेते हैं। चीन के अल्पसंख्यकों में शादी को लेकर अलग-अलग परंपराएँ हैं। जैसे अचांग जाति के लोगों में अपहरण समारोह होता है।

चियांग जाति में दूल्हे को चिढ़ाने का रिवाज़ है। झुआंग में सिल्क की गेंद फेंकने का रिवाज़ है और भी इस तरह के कई रिवाज़ हैं। चीन में कई अल्पसंख्यक जाति के लोग हज़ारों सालों से मिलजुल कर रहते हुए आए हैं। तो जाहिर है उनके बीच विवाह की रस्में, रीति-रिवाज़ों को भी एक-दूसरे द्वारा अपनाया गया है। अलग-अलग जातियों की विवाह रस्में चीन की संस्कृति का हिस्सा हैं।

चीनी भाषा में संख्या चार को स्अ कहा जाता है जिसका उच्चारण मृत्यु शब्द से मिलता है इसलिए चीनी लोग मृत्यु शब्द और इससे मिलते-जुलते शब्दों को लेकर वहम करते हैं।

इसलिए किसी की मृत्यु हो जाने पर वे ये नहीं कहते कि उसका निधन हो गया बल्कि वे कहते हैं कि वह चला गया या हमारी दुनिया को छोड़ दिया। ऐसा इसलिए कि जब किसी की मृत्यु होती है तो वह इस लोक को छोड़कर परलोक चला जाता है। इसी अवधारणा के साथ पुराने समय में लोग चाहे अमीर हो या गरीब किसी की मृत्यु पर उस व्यक्ति का कोई न कोई सामान उसके साथ दफन करते थे। पुरात्तवविदों के अनुसार पुराने खंडहरों में लोगों के साथ दफन उन चीज़ों से उस समय के लोगों के बारे में बहुत कुछ पता चला। चीन में अंतिम संस्कार रस्म बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है और आदरपूर्वक इसे निभाया जाता है। लोगों का अंतिम संस्कार अग्नि को अर्पित कर, आकाशीय संस्कार और जल संस्कार द्वारा किया जाता था। लेकिन जमीन में दफनाना, यह आम है यहाँ और जिसे कहा जाता है, शय्या पर विश्राम करना।

प्राचीन समय में लोग अपनी अंतयेष्टि के बारे में बहुत पहले से सोचने लग जाते थे। लोग शुभ-अशुभ स्थान की खोज करने लगते थे कि हमें शुभ स्थान पर दफनाया जाए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को किसी तरह का कोई नुकसान न हो। परिवार चाहे अमीर हो या गरीब वे घर के बुजुर्गों के लिए ताबूद का इंतजाम जरूर करते थे। किसी की मृत्यु पर घर वाले उन्हें साफ-सुथरे कपड़े पहनाते थे और सजाते थे। घर के मुख्य भाग को शोक सभा में परिवर्तित किया जाता था और तीन दिन-तीन रातों के बाद शव को ताबूद में डालकर उसके पार्थिव शरीर को जुलूस की तरह ले जाया जाता था। रास्ते में उसके परिवार के लोग कागज़ के पैसे, कागज़ का घर, कागज़ की गाय, भेड़ और बहुत सारी चीज़ें जलाते थे। इस उम्मीद से की परलोक में उसे किसी चीज़ की कमी न हो और वह वहाँ आराम से रह सके।

चीन में मनाए जाने वाले छिंगमिंग त्योहार के बारे में तो आप सब जानते ही हैं कि इस दिन चीनी लोग अपने-अपने परिवार के बुजुर्गों के मकबरे पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। छिंगमिंग त्योहार का इतिहास 2500 साल पुराना है। आजकल जगह की कमी के कारण चीन के कई हिस्सों में दफनाने की अनुमति नहीं और मकबरे पर जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित करना महज एक रस्म बनकर रह जाएगा।

अब बात करते हैं परिवार में बड़े-बुजुर्गों को किन नामों से यहाँ बुलाया जाता है। माँ के भाई-बहन और पिता के भाई-बहनों को कैसे बुलाया जाता है। चीन में इन नामों को सुनकर आप उलझन में पड़ सकते हैं, आप क्या खुद चीनी लोग भी उलझन महसूस करते हैं। सच में चीनी युवाओं के लिए यह किसी सरदर्द से कम नहीं। चीनी टाइटल्स पारंपरिक सोच और नैतिक अवधारणाओं से प्रभावित हैं। वे शिष्टाचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह किसी के साथ रिश्ते और स्थिति का संकेत भी। अगर आप चीनी टाइटल्स की संस्कृति को समझते हैं तो चीनी लोगों के साथ संवाद करना आसान हो जाता है।

अब बात करते हैं रिश्तेदारों की शब्दावली की......

अगर आपकी शादी किसी चीनी से हुई है तो सही ढंग से परिवार के सदस्यों को संबोधित करना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि शादी के बाद करीबी रिश्तेदारी को तीन भाग में विभाजित किया जाता है। पैतृक रिश्तेदार, मातृ रिश्तेदार और पत्नी के रिश्तेदार। प्राचीन काल में महिला और पुरुष बराबर नहीं थे इसलिए उन्हें संबोधित भी कई अलग-अलग नामों से किया जाता था।

अपने से बड़ों को संबोधित करने के लिए: दादा को येये कहा जाता है, दादी को नायनाय कहा जाता है, बुआ को गुगु कहा जाता है, बड़े ताऊ को बोफू कहा जाता है और चाचा को शुशु कहा जाता है। नाना को लाओये या वेयगोंग कहा जाता है, नानी को लाओलाओ कहा जाता है। मासी को यी कहा जाता है और मामा को जियुजियु कहा जाता है। अपनी ही पीढ़ी के लोगों को संबोधित करने के लिए यानी पिता के रिश्तेदारों के बच्चों को "तांग" कहा जाता है और मां के रिश्तेदारों के बच्चों को "बियाओ" कहा जाता है। इसी तरह से अपने भाई और बहन के बच्चों को भी अलग-अलग नाम से संबोधित किया जाता है। इसी के साथ अपने ससुरालवालों को भी कई अलग-अलग नाम से संबोधित करना बहुत महत्वपूर्ण है। पति अपने ससुर को यूफू और सास को यूमू कहता है। पत्नी अपने ससुर को गोंग और सास को पोगो कहती है। वहीं सास अपनी बहू को शिफू और पिता अपने दामाद को नूशू कहते हैं। आज जिस तरह से पति-पत्नी एक दूसरे को संबोधित करते हैं वह प्राचीन समय से बहुत अलग है। आज वे एक-दूसरे को नाम से बुला सकते हैं या प्यार से पति को लाओगोंग और पत्नी को लाओफो कहते हैं।

जब भाई-बहनों की शादी होती है तो उनके पति-पत्नी को भी संबोधित करने के लिए अलग-अलग नाम हैं। अगर हम आपको वह सब नाम बताएँगे तो आप कनफ्यूस हो जाएँगे। और इनके अलावा कितने रिश्तेदार है जिनके नाम तो और भी ज्यादा जटिल हैं। लेकिन इससे एक बात तो स्पष्ट है कि चीनी लोग अपने परिवार और रिश्तों को कितना महत्व देते हैं। हर सदस्य का परिवार में अलग स्थान है और टाइटल भी। विशेष रूप से परिवार और खून के रिश्ते को महत्व देना पारंपरिक चीनी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

प्राचीन समाज में सम्राट का स्थान सबसे ऊँचा था जबकि अधिकारियों को उनकी स्थिति के अनुसार स्थान दिया जाता था। आम आदमी सम्राट या किसी भी अधिकारी को उनके नाम से नहीं बुला सकता था। इसी तरह, जिनका औहदा कम था या छोटी उम्र के लोग अपने वरिष्ठ अधिकारियों या बड़ों को उनके नाम से नहीं संबोधित कर सकते थे। सम्राट को बीशिया, शंनशांग या हुआंगशांग यानी महाराज कहा जाता था। और सम्राट खुद को झन कहते थे। जिसका मतलब मैं होता था। सम्राट से बात करते समय अधिकारी खुद को चिन कहते यानी आपका सेवक या गुलाम या वेइछन यानी आपका क्षुद्र दास। उसी तरह से छोटे अधिकारी अपने से बड़े अधिकारियों को अलग नाम से बुलाते थे और आम आदमी सभी अधिकारियों को डैरन और खुद को श्याओरन कहते थे। इस तरह संबोधन करने की जटिल प्रणाली आज के समय में असंभव लगती है। लेकिन उस समय जो इस शिष्टाचार का पालन करने में असफल रहता था या सही शीर्षक का उपयोग नहीं करता था अपने पूर्वजों के लिए उसे दंड दिया जाता था। आज के समय में अगर आप किसी को सम्मान से संबोधित करना चाहते हैं तो आप उसे शियानशंग यानी श्रीमान कहिए और एक महिला को न्यूश यानी मैडम कह सकते हैं। लेकिन इस तरह पुराने समय में लोगों को संबोधित करने के लिए शब्द नहीं थे। उस समय शियानशंग और शैल यानी गुरु केवल शिक्षकों के लिए कहा जाता था। लेकिन अब किसी को श्री वांग या मास्टर झांग या शिक्षक ली बुलाना सम्मान व्यक्त करना का तरीका है जरुरी नहीं कि वे वास्तव में एक शिक्षक हो।

कुछ पश्चिमी देशों में सीधे अपने माता-पिता या बड़ों को नाम से संबोधित कर सकते हैं, लेकिन चीनी संस्कृति में इसकी अनुमति नहीं है। परंपरागत समाज में सबको संबोधित करने के लिए अलग-अलग नाम होते थे, यहाँ तक कि अपने माता-पिता को भी लेकिन आज के युवा अपने माता-पिता को मॉम और डैड ही कहते हैं। हालांकि, आज भी कई बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि पुराने समय की तरह ही संबोधित किया जाना चाहिए।

विनम्र अभिव्यक्ति विनम्र भाव के विपरीत है। इनका उपयोग अपने आपको संदर्भित करने के लिए किया जाता था। उदाहरण के लिए पुराने समय में पुरुष खुद के लिए बुसाय जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे जिसका मतलब होता था मूर्ख, नीच और युवा और महिलाएँ खुद को न्यूजिया जैसे नाम से कहती थी जिसका मतलब होता था उपपत्नी और गुलाम और बच्चों को चुआनजी़ और चुआननू कहा जाता था जिसका मतलब होता था डॉगी। अभी हमने जो आपको शब्द बताए वे खुद के लिए विनम्र अभिव्यक्ति माने जा सकते हैं। आज के समय में इस तरह का भाव शायद ही कभी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन बहुत औपचारिक अवसरों पर एक कभी-कभी इन्हें सुना जा सकता है।

अब बात करते हैं उन चीज़ों की जो यहाँ वर्जित हैं। चीन की एक और दिलचस्प बात है कि यहाँ नामकरण वर्जित हैं। पुराने समय में उच्च स्तर के लोगों को संबोधित करते समय या बुजुर्गों का नाम नहीं लिया जाता था। यह सम्मान माना जाता था। कुछ नाम राष्ट्रीय निषेध होते थे तो कुछ पारिवारिक वर्जित होते थे। राष्ट्रीय निषेध होने का मतलब कि आप अपने परिवार में ऐसा कोई नाम नहीं रखेंगे जो समकालीन किसी सम्राट का हो और पारिवारिक वर्जित मतलब आप अपने परिवार के किसी बुजुर्ग के नाम पर और किसी का नाम नहीं रख सकते। यहाँ तक कि सम्राट पर भी राष्ट्रीय नामकरण वर्जित लागू होता था। उदाहरण के लिए चीन के पहले सम्राट चिन शी हुआंग के पिता का नाम छू था, उस नाम से चीन में एक स्थान भी है। उसके बाद जब चिन ने चीन को एकीकृत किया तो उस जगह का नाम बदलकर जिंग रख दिया। आज भी हुबई प्रांत में यांगत्ज़ नदी के मध्य में एक स्थान है जिसे जिंग चू कहा जाता है। उसके बाद थांग राजवंश के सम्राट का नाम ली शिमिन था, क्योंकि उनके नाम में मिन शब्द आता था और मिन बू का मतलब होता है आयकर मंत्रालय तो क्या आप जानते हैं कि पूरे मंत्रालय का नाम बदलकर हू बू कर दिया गया जिसका मतलब होता है राजस्व मंत्रालय।

अगर किसी ने राष्ट्रीय निषेध और सम्राट के नाम का सम्मान नहीं किया है तो इसे एक बड़ा अपराध माना जाता था जिसके लिए कैद भी हो सकती थी या किसी को मौत की भी सजा दी जा सकती थी।

परिवार निषेध जिसे निजी निषेध भी कहते हैं, वास्तव में राष्ट्रीय निषेध का ही विस्तार है। जैसा कि हमने आपको अभी कुछ देर पहले बताया था कि अगर कोई चीनी व्यक्ति अपने पिता को या अपनों से बड़ों का नाम लेकर बुलाता है तो इसे शिष्टाचार का प्रमुख उल्लंघन माना जाता है। थांग राजवंश के दौरान कवि दू फू को शियान नाम दिया गया। दू ने एक हज़ार से ज्यादा कविताएँ लिखीं लेकिन किसी में भी उन्होंने शियान नाम का जिक्र नहीं किया था।

राष्ट्रीय और पारिवारिक वर्जित के अलावा आम लोग और छोटे अधिकारियों को शक्तिशाली स्थानीय अधिकारियों का नाम लेने से बचना होता था। कन्फ्यूशियस और मैनसिअस जैसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक लोगों का नाम लेना भी वर्जित माना जाता था। आज हालांकि, नाम को लेकर इतनी सख्ती नहीं होती,लेकिन उनके पीछे का जो विचार है वह आज भी है और किसी को संबोधित करने के नियमों पर अपना प्रभाव डालते हैं।

गोल्डन नियम – विदेशों और विदेशियों के साथ संपर्क

चीन का लंबे समय से भूमि और समुद्र पर व्यापक सीमाओं पर अपने कई पड़ोसी देशों और उन लोगों के साथ संपर्क का एक लंबा इतिहास रहा है। दो हजार साल पहले कन्फ्यूशियस ने कहा था कि जब एक मित्र दूर से आता है तब खुशी नहीं होती? यहाँ वे चीनी संस्कृति में मेहमानों की देखभाल करने के रुख को व्यक्त कर रहे हैं। पश्चिमी हान अवधि में दो हजार वर्षों में लोगों को पहले से ही "शिष्टाचार पारस्परिकता के बारे में सीखाया गया। और जब दोस्तों का दौरा होगा तो उन्हें उपहार पेश करने के शिष्टाचार की अभिव्यक्ति थी। इस प्रकार समाज में शिष्टाचार हमेशा चीनी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसी के साथ आज्ञा दें हेमा कृपलानी को।

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