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चीन का पहला अनुभव
2012-05-23 16:47:47

ये मेरी पहली चीन की यात्रा है । जब मुझे चीन में नौकरी का ऑफर मिला तो मुझे काफी खुशी हुई । क्योंकि विद्यार्थी जीवन में आधुनिक चीन का इतिहास पढ़ते समय मन में प्रबल इच्छा हुई थी कि काश कभी चीन जाने का सुअवसर मिले जिससे मैं चीन को जान और समझ सकूं । और वो दिन आ गया जब मैं चीन पहुंचा ।

चीन आने का सपना देखने के 20 वर्षों बाद ही सही लेकिन यहां आने का मौका तो मिला । विद्यार्थी जीवन में मैंने साम्यवादी चीन और चीन की विदेशी ताकतों से संघर्ष के बारे में इतिहास में बहुत कुछ पढ़ा और सुना था । कि चीन में ढेर सारी पाबंदी है । वगैरह वगैरह । हम भारत में रहते हुए ये ज़रूर कहते हैं कि चाहे लोकतंत्र में लाख बुराई हो लेकिन जीने का सबसे बढ़िया तरीका लोकतंत्र ही है । लेकिन चीन आने के बाद न तो मुझे कोई बंदिश दिखाई दी न ही किसी तरह की कोई पाबंदी । युवा वर्ग स्वच्छंद घूम रहा है । मुझे यहां का युवा भारत से ज्यादा खुशहाल और आज़ाद दिखा । चीन एयरपोर्ट से जैसे ही मैं बाहर निकला यहां पर मेरे एक चीनी दोस्त जिनका हिन्दी नाम दिनेश है । मेरा इंतज़ार कर रहे थे । कार के ज़रिये मैं जब एयरपोर्ट से चला तो यहां की सड़कें और इमारतें देखकर महसूस हो गया कि चीन इतना आगे कैसे निकल गया । न कहीं गंदगी न ट्रैफिक जाम न गाड़ियों का धुआं । हालांकि इन सभी चीज़ों की आदत मुझे भारत में पड़ी हुई है । लेकिन यहां आने पर आश्चर्य हुआ कि ट्रैफिक जाम अगर कहीं लगता भी है तो उसे खुलने में मात्र दो से तीन मिनट का समय लगता है । यहां की सड़कें और शहर की बनावट ग्रिड पैटर्न की हैं इसलिये गाड़ियों की निकासी के सौ रास्ते रहते हैं । हालांकि भारत के मुकाबले यहां सड़कों पर मुझे गाड़ियां भी कम दिखी और स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड तो नाम मात्र के ही दिखे । हां बैटरी से चलने वाली साइकिलें ज़रूर दिखीं लेकिन वो भी मुख्य सड़कों पर नहीं बल्कि कम दूरी तक जाने वाली सड़कों पर ही चलती दिखाई दीं ।

चीन आने के बाद ही मुझे समझ में आ गया कि ये देश पिछले 20 वर्षों में आर्थिक प्रगति की राह पर कैसे सरपट दौड़ लगाने लगा । भारत इस कतार में दूसरे नंबर पर ज़रूर है लेकिन दोनों देशों में बड़ा भारी फासला है । चीन में सबसे ज्यादा आबादी होते हुए भी भारत की तरह यहां पर हर जगह भीड़ नज़र नहीं आती । फिर चाहे वो बैंक हो पोस्टऑफिस हो या फिर बाज़ार और शॉपिंग मॉल्स । शहर में हर जगह की सड़कें साफ सुथरी और चौड़ी हैं । इतने चौड़े फुटपाथ तो हमारे देश के कनाटप्लेस में भी नज़र नहीं आएंगे जो बीजिंग के बाहरी इलाकों में नज़र आते हैं । गंदगी तो ढूंढे नहीं मिलती । लगता है कि सभी चीज़ें किसी अनदेखी व्यवस्था का पालन कर रही हैं ।

मुझे यहां पर भाषा को छोड़कर किसी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं हुई ।. दुकान पर सामान खरीदने के दौरान मैं इशारे से सामान दिखाता उंगलियों से इशारा कर मात्रा बताता और वो मुझे चीनी भाषा में पैसे बताते । लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आता तो मैं अपना बटुआ उनके सामने खोलकर रख देता । वो बटुए में से सिर्फ उतने ही पैसे निकालते जितने का सामान होता । यहां लोगों में गज़ब की ईमानदारी है । ईमानदार होने के साथ साथ चीन के लोग सभ्य और मृदु स्वभाव के भी होते हैं । भारत में जो लोग अपनी आर्थिक प्रगति पर खुश होते हैं । उन्हें एकबार चीन ज़रूर आना चाहिये । और यहां की सड़कें, इमारतें, बाज़ार, यातायात, और पूरी व्यवस्था को देखना चाहिए । फिर हम सही मायने में आकलन कर पाएंगे कि हम कहां पीछे छूट रहे हैं । ईमानदारी एक ऐसा शब्द है जो भारत में है तो सही लेकिन सिर्फ किताबों में ही मिलता है । आज भ्रष्टाचार भारतीयों की सबसे बड़ी समस्या है । इस भ्रष्टाचार के कारण ही हम आगे बढ़ते हुए रुक जाते हैं । और प्रगति की राह में दूसरे देशों से पिछड़ जाते हैं ।

राजधानी बीजिंग के मुख्य इलाकों की सैर को भी मैं अक्सर जाता रहता हूं । यहां पर मुझे भीड़ दिखी लेकिन किसी भी व्यक्ति को मैंने सड़क दौड़कर पार करते नहीं देखा । जिन जगहों पर यातायात सिग्नल हैं लोग भी वहीं से सड़क पार करते हैं । किसी गाड़ी को मैंने लाल बत्ती पार करते नहीं देखा । इसके पीछे शायद यहां का सख्त कानून भी है । मुझे आश्चर्य हुआ जब यहां आने के डेढ़ महीने बाद भी मुझे कभी भी किसी गाड़ी का हॉर्न नहीं सुनाई दिया । मैं सोचने लगा कि एक हमारा देश है । जहां पर जैसे ही यातायात का सिग्नल हरा होता है पीछे खड़ी गा़ड़ियां हॉर्न पर हॉर्न बजाने लगती हैं । जैसे कि वो बहुत जल्दी में हों । यहां पर लोगों में सब्र बहुत ज्यादा है । लोगों का मित्रवत व्यवहार मन में उतर जाता है । ये लोगों का व्यवहार ही है जो आपको अंजाने देश और अंजानी संस्कृति में भी अपनेपन का एहसास कराता है । और आप अपने आपको इनका हिस्सा मान लेते हैं । हाट और बाज़ार चीन में भी लगते हैं । लेकिन उनका इलाका सुनिश्चित है और भारत के हाट बाज़ार के मुकाबले यहां के हाट में भीड़ नाम मात्र की होती है ।

चीन की तरक्की देखकर तो यही लगता है कि ये सिर्फ और सिर्फ चीनी लोगों की मेहनत और ईमानदारी का फल है । इसके साथ ही चीन की सरकार की दूरदर्शिता का भी परिणाम है । भारत ने विश्व के लिये जो आर्थिक दरवाज़े 1990 में खोले थे वो दरवाज़े चीन 1978 में ही खोल चुका था । लेकिन उससे पहले काफी होमवर्क यहां पर किया गया । योजनाएं तैयार की गईं । और इस बात का खास ख्याल रखा गया कि आर्थिक दरवाज़े खोलने के बाद चीन विदेशी सामानों का बाज़ार बनकर न रह जाए । आज चीन जो तरक्की कर रहा है उसके पीछे 30 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी योजनाएं काम कर रही हैं । ( पंकज श्रीवास्तव)

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