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एशिया में कॉमन करेंसी क्यों नहीं ?
2013-11-20 15:44:38

 

दोस्तों को वेइतुंग का नमस्कार ।

सभी श्रोताओं को अनिल पांडेय का भी नमस्कार ।

दोस्तो ,अक्टूबर के अंत में हमने मॉरीशस के श्रोता विद्यानंद रामदयाल के साथ एक बातचीत सुनाई। इस बारे में हमें कई श्रोताओं की प्रतिक्रिया मिली है। आज हम कुछ की टिप्पणी शामिल करेंगे।

इससे जुड़ा पहला ई-मेल हमें आया है, भागलपुर बिहार के डॉ. हेमंत कुमार का।

लिखते हैं कि 30 अक्टूबर को शाम की सभा मेँ सीआरआई के पुराने श्रोता और हमारे मित्र मॉरीशस के विद्यानंद रामदयाल जी का इंटरव्यू प्रसारित करने के लिए सीआरआई को कितना भी धन्यवाद देँ, फिर भी हमारे पास शब्द कम पड़ रहे हैँ। इंटरव्यू मेँ विद्यानंद जी ने मॉरीशस से संबंधित जानकारी के साथ-थ भारतीय भाषाओँ की लोकप्रियता पर भी प्रकाश डाला। विद्यानंद जी हमारे सभी मित्रोँ मे सर्वश्रेष्ठ हैँ। अक्सर उनसे फोन पर बात होते रहती है। विद्यानंद जी का जन्म भले मॉरीशस में हुआ हो, लेकिन उनका दिल शुद्ध हिन्दुस्तानी है। फेसबुक पर जब जब भी सीआरआई की न्यूज को शेयर करते हैं तो विद्यानंद जी हमेँ फोन पर धन्यवाद जरूर देते हैं। खासतौर मैँ उनके विचारों से प्रभावित हुआ हूं। खुशी की बात है कि मॉरीशस मेँ भारतीय भाषाओँ की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। अगर कभी मौका मिला तो वहां घूमने जरूर जरुर जाऊंगा।

सीआरआई और विद्यानंद जी से कहना चाहता हूं कि खुशी के आंसू रुकने ना देना, गम के आंसू बहने ना देना, ये जिन्दगी ना जाने कब रुक जाएगी, मगर ये प्यारी सी रिलेशनशिप कभी टूटने ना देना।

अगला खत भी मॉरीशस से ही जुड़ा है, इसे भेजा है आजमगढ़ यूपी से मोहम्मद सादिक ने। कहते हैं कि आपका पत्र मिला प्रोग्राम में अनिल पाण्डे जी ने मॉरीशस में रहने वाले राम दयाल जी से से बातचीत सुनवाई, जो बहुत अच्छी लगी। अनिल जी ने बड़े ही सुन्दर अंदाज़ में सवाल कर हर उस पहलू को उजागर किया जिसके विषय में श्रोता जानने के लिये हमेशा इच्छुक रहते हैं। और उसी विनम्रता से दयाल जी ने वहां की जीवन शैली ,वहां की कला संस्कृति , खानपान, मुख्य ब्यवसा़य , वहां के रीति-रिवाज , एवं दिन-चर्या मे पेश आने वाली छोटी-बड़ी आवश्यक्ताओं पर बड़े बेबाक अंदाज मे प्रकाश डाला। साथ में cri के साथ पुराने संबन्धों का भी खुलासा किया। cri से इतना गहरा लगाव हमारे लिये भी उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन का बिन्दु है। मैं उन्हें बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने इतने लम्बे समय तक एक श्रोता के रूप मे दोस्ती के द्वीप को प्रज्वलित रखा। उनके इस जज़्बे को एक बार फिर सलाम और अनिल जी का बहुत-बहुत शुक्रिया।

एक अन्य पत्र में मोहम्मद सादिक लिखते हैं कि 6 नवंबर की सुबह आपका प्रसार स्पष्ट सुनाई दिया। जलवायु परिवर्तन पर पोलैंड में होने वाले सम्मेलन पर जानकारी दी गयी। चीनी सरकार की योजना पर बड़े विस्तार से प्रकाश डाला। निश्चित तौर पर यह आज एक जटिल समस्या है और इस दिशा में कारगर कदम न उठाया गया तो भविष्य में यह गंभीर समस्या का रूप ले लेगी। जलवायु परिवर्तन में कहीं न कहीं मानव ही जिम्मेदार रहा है। कल कारखानों का धुआं और फैक्टरियों का कचरा इस कदर वातावरण को दूषित कर रहे हैं कि आने वाले वर्षों मे बड़ी आपदा का खतरा धरती पर मंडरा रहा है। आशा है इस सम्मेलन में इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने पर सहमति बनेगी।

दोस्तो, इसके बाद बारी है अगले खत की। जो कि हमें आया है, न्यू टाउन, येला हांका, बंगलूरू से। भेजने वाले श्रोता हैं राजेंद्र कुमार। राजेंद्र कहते हैं कि वे लंबे समय से सीआरआई के प्रोग्राम सुनते आ रहे हैं। उन्हें ये कार्यक्रम अच्छे लगते हैं और इनमें चीन के बारे में काफी जानकारी हासिल होती है। इसमें चीन की झलक, चीन का भ्रमण और खेल जगत आदि शामिल हैं।

दोस्तो, लीजिए अब पेश है, अगला खत। भेजने वाले हैं, बिलासपुर छत्तीसगढ़ से चुन्नीलाल कैवर्त। उन्होंने चीन-भारत मैत्री के बारे में लिखा है। कहते हैं कि भारत-चीन की दोस्ती का इतिहास 2000 वर्ष पुराना है, जबकि भारत-चीन सीमा विवाद 6 दशक भी नहीं हुए हैं। भारत चीन विवाद का मुख्य कारण 'मैकमोहन रेखा' को माना जाता है।यह रेखा मैकमोहन नामक अंग्रेज ने शिमला में बैठकर नक़्शे में खींची थी। उस बैठक में चीन का प्रतिनिधित्व नहीं था। यह घटना 1941 की है, तब न चीन में जनक्रांति सफल हुई थी और न भारत ने स्वतन्त्रता हासिल की थी। यानी दोनों महादेशों पर साम्राज्यवादियों का शिकंजा था। जाहिर है कि सीमा विवाद में चीन-भारत की मौजूदा गणतांत्रिक सरकारों की कोई भूमिका नहीं है।यह साम्राज्यवाद के चिराग से निकला ज़िन्न है, जो दोनों राष्ट्रीयताओं के सिर पर मंडरा रहा है। एशिया के दो महान देशों की मैत्री विश्व-पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को भला कैसे पसंद आ सकती है? दोस्ती और मदद के कितने ही वास्ते दिये जायें,लेकिन अमेरिका,यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भारत और चीनी लोगों के प्रति योजनाबद्ध ढंग से दुष्प्रचार किया गया है। अमेरिका कभी नहीं चाहता कि चीन-भारत एकजुट हों। गौरतलब है कि आज जिन 27 देशों का यूरोपीय महासंघ है, उसका इतिहास सैकड़ों साल से रक्तरंजित है। ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी और इटली का साम्राज्यवादी,विस्तारवादी और अहंकारी आचरण इसके पीछे रहा है।

लेकिन आज जब ये सब आपसी विवाद सुलझाकर छोटे-छोटे अन्य देशों से सुलह करके एकजुट हो सकते हैं,तो चीन-भारत क्यों नहीं ?पिछले साल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि चीन-भारत-रूस को मिलकर एशिया महासंघ की दिशा में सोचना चाहिये।यूरोप में कॉमन करेंसी चल सकती है,तो चीन-भारत-रूस-नेपाल-पाकिस्तान-श्रीलंका-भूटान-म्यांमार आदि में क्यों नहीं ? हमारे बीच मुक्त व्यापार क्यों सम्भव नहीं है ?हम दोनों देश मिलकर चाहें तो विश्व अर्थव्यवस्था को गति देने वाले इंजन बन सकते हैं।हम दोनों देश मिलकर विश्व में शान्ति और समृद्धि का नया अध्याय लिख सकते हैं।

वाकई में चुन्नीलाल जी ने गंभीर और सार्थक बातें कहीं हैं। उम्मीद करते हैं कि भारत और चीन एकजुट होकर काम करेंगे, ताकि दुनिया को उनकी ताकत का अहसास हो सके।

चुन्नीलाल जी के बाद मेरे पास नादिया, पश्चिम बंगाल के धीरेन बसाक का ई-मेल है। उन्होंने 28 अक्टूबर के चीन के भ्रमण कार्यक्रम की प्रशंसा की है। साथ ही तिब्बत के बारे में पेश प्रोग्राम में उन्हें पसंद आया।

वहीं जमशेदपुर, झारखंड से एस बी शर्मा लिखते हैं कि सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण प्रतिदिन की भांति आज भी शॉर्टवेव 31 मीटरबैंड पर शाम साढ़े छह बजे सुना। आज के ताज़ा समाचारों में अमेरिका द्वारा विश्वभर में फ़ोन टैपिंग के ज़रिये की जाने वाली जासूसी के बारे में जानकर लगा कि उस पर कोई नीति-नियम लागू नहीं होता और वह जो कर दे वही सही है। समाचारों के बाद पेश आज की "सामयिक चर्चा" के तहत अपनी राष्ट्रीय सम्प्रभुता के लिए तैनात चीनी पनडुब्बी बेड़े पर दी गई जानकारी अत्यन्त महत्वपूर्ण लगी। रिपोर्ट में चीनी पनडुब्बी अड्डे तथा जल के भीतर रहने वाले सैनिकों के कठिन जीवन का अहसास भी बखूबी हुआ। एकबार ईंधन भरने पर नब्बे दिन तक चलने और पृथ्वी के दो चक्कर काटने सम्बन्धी पनडुब्बियों की अनूठी क्षमता के बारे में जानकर बहुत आश्चर्य हुआ।

साप्ताहिक "चीन का भ्रमण" के अन्तर्गत बीजिंग शहर से महज़ नब्बे किलोमीटर दूर येन छेन काउन्टी स्थित सुरम्य सुन शांग पर्यटन स्थल की अनूठी छटा के बारे में जान कर दिल किया कि तुरन्त वहां की सैर की जाये। 11,600 हेक्टेयर क्षेत्र में फ़ैले बीजिंग के बाग़-बगीचानुमा उक्त हरे-भरे जंगल और उसके देवदार से भरे आदिम जंगल के बीच कल-कल बहते झरने। सचमुच,सुनने में सब कुछ अलौकिक-सा लगता है। कोई डेढ़ हज़ार साल से बहते आ रहे गर्म जल के करामाती चश्में, भला कौन उनकी ओर नहीं खिंचा चला आयेगा !

लीजिए अब अगले खत को शामिल करते हैं। जो कि हमें भेजा है, आजमगढ़ यूपी से मो.सादिक आजमी ने। आजमी ने चीन का तिब्बत कार्यक्रम का उल्लेख किया है। लिखते हैं कि हमेशा की तरह यह कार्यक्रम इस बार भी ज्ञान,मनोरंजन,और तिब्बती कला संस्कृति की जानकारी से परिपूर्ण था और शयाओ थांग जी की मोहक आवाज़ में सुना। तिब्बत चिकित्सा संस्कृति औषधि संग्रहालय पर दी गई जानकारी वह वाक़ई लाजवाब थी। मैने इस संग्रहालय के विषय में सुना था पर इसके एतिहासिक परिदृश्य से अंजान था।

वहीं भागलपुर बिहार से हेमंत कुमार ने पटना में हुए धमाकों की चर्चा की है। लिखा है 27 अक्टूबर को एक के बाद एक सात धमाके हुए। धमाके में कुछ लोग मारे गए और घायल भी हो गए जो चिंतनीय बात है। पांच धमाके गांधी मैदान के आसपास हुए,वहां पांच लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे। बिहार के जांबाज लोगों को सलाम करना चाहिए कि वो घबराए नहीं, कोई खलबली नहीं मची, कोई भगदड़ नहीं हुई। सब लोग शांति से बैठे रहे, वरना स्थिति और बिगड़ सकती थी। गांधी मैदान में लोगों के निकलने के लिए सिर्फ तीन गेट हैं और मैदान के बाहर भी लोगों की भीड़ थीं। जिन लोगों ने इन धमाकों को अंजाम दिया, उनके इरादे खतरनाक थे। ये आतंकवादी किसी पार्टी के विरोधी नहीं हैं, बल्कि ये देश के दुश्मन हैं।

इसके साथ ही हेमंत ने सवाल भी पूछा है,

चीन के किन-किन शहरोँ मेँ साफ्टवेयर टेक्नोलोजी पार्क संचालित हो रहे हैं?

अब अगले पत्र की बारी है, जो कि केसिंगा उड़ीसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल ने भेजा है। लिखते हैं कि आपका पत्र मिला प्रोग्राम के अन्तर्गत हाल ही में सम्पन्न भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन यात्रा पर पर श्रोताओं से प्राप्त तमाम समीक्षात्मक टिप्पणियों को समाहित किया जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण लगा। इसके अलावा "श्रोताओं से बातचीत" क्रम में मॉरीशस से श्रोता भाई विद्यानन्द रामदयाल से ली गई भेंटवार्ता इतनी अच्छी लगी कि सुनते-सुनते मन नहीं भरा। कोई डेढ़ शताब्दी पूर्व भारत से गन्ने के खेतों में काम करने गुलाम बना कर मॉरीशस ले जाये गये भारत-वंशियों की दास्तान आज भी आँखें नम करने में सक्षम है।बहरहाल, आज वहाँ उन्हें वह तमाम सुविधाएं हासिल हैं, जो कि किसी अन्य देश की तुलना में अधिक हैं। मॉरीशस के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए विद्यानन्दजी ने जब यह कहा कि भगवान ने स्वर्ग बनाते समय ग़लती से उसे मॉरीशस में उतार दिया, तो उत्कट इच्छा हुई कि अविलम्ब मॉरीशस की सैर करूँ। खैर, विद्यानन्दजी मेरे अच्छे मित्र हैं और इस भेंटवार्ता के बारे में उन्होंने मुझे पूर्वसूचना भी दे दी थी। उन्हें मलाल था कि बातचीत के दौरान भारत में अपने मित्रों का ज़िक्र करते समय वह मेरा नाम लेना भूल गए थे। आज की भेंटवार्ता में विद्यानन्दजी ने वह तमाम जानकारी प्रदान की, जो कि मॉरीशस पर श्रोता जानना चाहते थे. धन्यवाद ।

एक अन्य पत्र में उन्होंने लिखा कि, स्छवान प्रान्त के छंगतू में चीन-भारत के बीच "हाथ में हाथ" नामक संयुक्त सैन्याभ्यास किया गया और दोनों देशों के बीच आयोजित अब तक का यह तीसरा सैन्याभ्यास है। मुझे प्रसन्नता है कि तमाम मतभेदों के बावज़ूद उभय देश इस तरह की गतिविधियों को अंज़ाम देते हैं। निश्चित तौर पर इससे सम्बन्धों में मिठास पैदा होती है। कार्यक्रम "सामयिक चर्चा" के तहत आज जलवायु परिवर्तन मुक़ाबले सम्बन्धी ज़ारी होने वाली वर्ष 2013 की वार्षिक रिपोर्ट और विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को पूँजीगत और तकनीकी सहायता प्रदान करने की उनकी ज़िम्मेदारी और कर्त्तव्यों पर अहम चर्चा किया जाना अच्छा लगा। वास्तव में, अपनी औद्योगिक गतिविधियों के ज़रिये विश्व का सत्तर प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन विकसित देशों का होता है और ऐसे में यह उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि विकासशील देशों की मदद करें। चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के बारे में जान कर अच्छा लगा. उसका यह कदम प्रशंसनीय है।

वहीं अगला पत्र हमें पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुज्जफरगढ़ से आया है, भेजने वाले हैं सैयद खिजार हयात शाह। लिखते हैं कि वे हमारे प्रोग्राम नियमित तौर पर सुनते हैं, इन दिनों पाकिस्तान में शरद ऋतु है।पेड़ पर पत्ते लाल लगते हैं। हम शहर में रहते हैं। लेकिन इस मौसम में गांव जाने की इच्छा है, मैं आप सभी को अपने गांव आमंत्रित करता हूं। धन्यवाद।

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