चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तिब्बत जाति के अलावा अन्य कुछ अल्पसंख्यक जातियां भी रहती हैं । मन बा जाति उन में से एक है । वर्ष 1964 में चीनी राज्य परिषद ने मन बा जाति को देश की एक अल्पसंख्यक जाति के रूप में पुष्ट किया । तिब्बती भाषा में"मन"का मतलब है कि तिब्बत का मन यू इलाका, जबकि"बा"का अर्थ है लोग । इस तरह"मन बा"का अर्थ है कि मन यू इलाके में रहने वाले लोग । तिब्बत के लिन ची क्षेत्र में मन बा जाति मुख्य तौर पर मो थ्वो कांउटी और लिन ची कांउटी में रहती है, जिस की जन संख्या लगभग 7000 है और उस की अपनी भाषा होती है पर लिपि नहीं है । मन बा जाति के लोग अधिकांश तिब्बती भाषा जानते हैं और तिब्बती भाषा व तिब्बती पंचांग का प्रयोग करते हैं । मन बा जाति गाने नाचने में निपुर्ण है और लोक साहित्य प्रचूर है और उस का धार्मिक विश्वास व रीतिरिवाज़ तिब्बती जाति से मिलता जुलता है, किन्तु अपनी विशेषता भी बनी रहती है।
मनबा लोग आम तौर पर कृषि उत्पादन करते हैं और पशुपालन , शिकारी व शिल्प उद्योग में भी लगे रहते हैं, वे मक्कई, धान , बाजरा ,तिब्बती जौ और कपास आदि फसलों की खेती करते हैं तथा पत्थर , बांस , लोहे , चांदी के बर्तन व औजार बनाते हैं और कपड़ों की बुनाई भी करते हैं । उष्ण और अर्ध उष्णकटिबद्ध क्षेत्र में रहने के कारण मनबा के आबादी क्षेत्र में फल सब्जी खूब उगते हैं । घनी पहाड़ी वादी क्षेत्र में रहने वाली मन बा जाति में अब भी खेती का आदिम तौर तरीका बना रहा है।
मनबा जाति के पुरुष व महिला दोनों धारीदार सूती कपड़े के चोगा पहनते हैं । मन बा की महिलाएं चूड़ी व कान की बाली पहनना पसंद करती हैं, जबकि पुरुष कमरबंध पर तलवार बांधना पसंद करते हैं, तलवार उत्पादन के साधन और आभूषण दोनों का काम आता है । मनबा के लोग शराब व धूमपान के शौकीन हैं । उन का मुख्य भोजन चावल ,मक्का ,दाल , ककड़ी, गोभी, कद्दू, मूली, जंगली सब्जी और मांस है ।
अधिकांश मनबा लोग तिब्बती बौर्ध धर्म के अनुयायी हैं । कुछ लोग वहां के आदि धर्म में आस्था करते हैं , वे दुर्गम पहाड़ों को गिरि देवता मानते हैं और यह मानते हैं कि मानव की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा इसी गिरि के रास्ते से स्वर्ग पर जा पहुंचती है , इसलिए मानव को अपने जीवन काल में इन गिरि का रास्ता जानना चाहिए , जिस की वजह से मनबा जाति में पहाड़ों का परिक्रमा करने की प्रथा प्रचलित रही है, ऐसे पहाड़ों में ऊंची आवाज में बोलने, शिकारी करने , लकड़ी काटने तथा पत्थर हटाने की मनाई होती है ।
मन बा जाति में अंतिम संस्कार के लिए जल में बहाने , भूमि में दफनाने, बाज को शव अर्पित करने तथा दाह संस्कार की कई प्रकार की प्रथाएं चलती हैं ।
मनबा जाति की विवाह प्रथा विशेष और अनोखी होती है , जाति में एक विवाह की प्रथा चलती है , लेकिन प्रेम मुहब्बत के लिए पुरूष महिला दानों स्वतंत्र हैं । युवक और युवती शादी ब्याह से पहले कुछ महीनों या एक दो साल तक मुहब्बत करते हैं । इसी दौरान युवक समय समय पर युवती के घर जाकर मुफ़्त श्रम करता है । शादी की रस्म में दुल्हा बरात के साथ ससुर के यहां जाकर दुल्हन के माता-पिता को मंगल सूचक सफेद हादा भेंट करता है, उन के सम्मान में शराब पिलाता है और शुभ सूचक वाक्य पढ़ कर सुना देता है । इस के बाद दुल्हन दुल्हे के साथ चली जाती है । शादी रस्म के आयोजन के दौरान दुल्हन के घर में , रास्ते में और दुल्हे के घर में तीन बार की दावत दी जाती है, जिन में दुल्हा दुल्हन तथा उस के घर के मेहमानों को मदिरा जाम पेश करता है ।
जब दुल्हन दुल्हे के घर पहुंची, तो कई लड़कियां उसे और अन्य मेहमानों का हार्दिक स्वागत करते हुए कमरे में बिठाती हैं , वे उन के सम्मान में मदिरा पेश करती हैं और साथ ही जाम पेश करने वाला गीत गाती हैं । दुल्हन को शराब पिलाने के बाद इन लड़कियों के साथ दुल्हन सेज कक्ष में प्रवेश करती है । इस के बाद दुल्हन अपने मायके के यहां पहने वस्त्रों व आभूषणों को उतार कर सास के यहां तैयार किए गए वस्त्रों व आभूषणों को पहनती है । मन बा लोग का मानना है कि पहले के सभी वस्त्रों व आभूषणों को उतारने से दुल्हन एकदम नयी और साफ़ सुथरी बन जाती है,इस का द्योतक है कि उस का नया जीवन आरम्भ होता है । मन बा जाति की विवाह रस्म में दुल्हन के परिवार से आए मेहमान विशेष कर दुल्हन के मामा का विशेष समादर किया जाता है । दुल्हन के मामा दुल्हन के सारे परिवार का प्रतिनिधित्व करता है ।
सभी तैयारियां पूरी हो जाने के बाद विवाह रस्म औपचारिक तौर पर शुरू होता है । सर्वप्रथम दुल्हन-दुल्हा दुल्हन के मामा तथा मेहमानों के सामने घुटने के बल पर बैठे पेश जाते हैं । जबकि मामा दुल्हन-दुल्हे को शुभ सूचक सफेद हादा प्रदान कर आशीर्वाद देता है । इस के साथ ही वह दुल्हन के परिवार की ओर से दुल्हे के परिवार से सारी मांगें पेश करता है । इस के बाद विवाह रस्म में भाग लेने वाले सभी लोगों के सम्मान में शानदार दावत परोसी जाती है । इस के बाद दूसरे , तीसरे दिन में करीबी रिश्तेदारों व दोस्तों को आमंत्रित कर दावत मनायी जाती है । शादि के बाद चौथे दिन दुल्हन-दुल्हे को मायके वापस लौटना चाहिए, इसी दौरान दुल्हे को पत्नी के मायके में कई दिनों तक काम करना चाहिए । तभी विवाह की रस्म सफलतापूर्वक संपन्न हुई मानी जाती है।
मनबा जाति के धार्मिक उत्सव और परम्परागत त्यौहार प्रायः तिब्बत जाति के बराबर हैं । वे धार्मिक सूत्र जपाने तथा पूजा अनुष्ठान करने पर महत्व देते हैं और तिब्बती कलेंडर के अनुसार हर माह की आठवीं , पन्द्रहवीं और तीसवीं तारीख को मुहुर्त मानते हैं और इन दिनों पुरूष शिकार करने नहीं जाते हैं और महिलाएं खेत में काम नहीं करती हैं, यदि इन दिनों अन्जान से भी कीड़े को पांव से कुचल कर मारा गया ,तो भी उसे पाप माना जाता है ।