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11-03-08
2011-03-08 12:27:48

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है।श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। आज इंटरनेशनल विमेंस डे हैं। आप सब को हमारी तरफ से अ वेरी हैप्पी विमेंस डे, अ वेरी हैप्पी न्यूशिंग डे। जी हाँ, न्यूशिंग का मतलब महिला, नारी, तो हुआ न हैप्पी न्यूशिंग डे।आज के दिन दुनिया भर की महिलाओं को उनके बेशुमार प्यार, बलिदान, समर्पण को श्रद्धांजलि दी जाती है, उनका सम्मान किया जाता है। वैसे तो एक महिला अपने परिवार, बच्चों के लिए जितना समर्पित रहती है उसके लिए उनका जितना भी सम्मान किया जाए, जितना भी सराहा जाए कम ही पड़ेगा। वैसे तो आज के दिन पूरी दुनिया में छोटे-बड़े पैमाने पर कई सत्कार समारोह आयोजित किए जाते हैं,महिलाओं को सम्मानित करने के लिए उनके समाज तथा देश के विकास के लिए उन के दिए बहुमूल्य कॉनट्रिब्युशन के लिए। इसलिए आप भी इस मौके को जाने न दें और साल में एक दिन यानि आज के दिन आप अपनी लाइफ में स्पेशल जगह रखने वाली न्यूशिंग यानि महिला या लड़की का आपके जीवन में होने के लिए बड़ा-सा थैंक यू कह सकते हैं। वो चाहे आपकी मम्मी हो, बहन हो, पत्नी हो, बेटी हो, भाभी हो, सास हो, सहेली हो, चाची हो या मामी, बुआ हो या मासी, आंटी हो या पड़ोसन, बॉस हो या कलिग या हो घर में काम करने वाली बाई। बस एक प्यार भरा धन्यवाद उनके थैंक लेस समर्पण को अमूल्य बना देगा। चाहे जाने-अनजाने अगर किसी महिला का, युवती का दिल आपने दुखाया है तो आज उन्हें सॉरी कहने से मत कतराइए। दोस्तो, कितने रुप होते हैं एक महिला के, प्यारे से शिशु के रुप में जन्म लेती एक परिवार में बेटी बन, बहन बनकर परिवार को मायने देती, फिर युवती बन किसी और के परिवार में जाकर रिश्ते बनाती अपना परिवार बनाती। तीज-त्योहारों को मायने देती, सृष्टि के नियम को कायम रख वंश आगे बढ़ाती, प्यार और संस्कार से अपनी बगिया सींचती और वृद्धा अवस्था में अपने सजे-संवरे परिवार को भरा-पूरा देख नई पीढ़ी को अपनी बाग-डोर सौंपती, पथ-प्रर्दशक बन अंतिम सांस तक परिवार के लिए जीती और उन्हीं को सब सौंप दूर चली जाती। कवियों की कविताओं में, लेखकों के लेख में, कहानिकारों, उपन्यासकारों के उपन्यास में होता बखान नारी की महानता का, उसकी सुन्दरता का, उसके समर्पण का, त्याग का।मंदिरों में देवी बन पूजी जाती है, घरों में कंजके बन माता का रुप मानी जाती है,लड़की पैदा होने पर लक्ष्मी घर आई है कहा जाता है, तो क्या कमी रह जाती है हमारे समाज में जो आज भी कहीं-न-कहीं घरों में यही देवी, लक्ष्मी कभी दहेज के नाम पर तो कभी घरेलू हिंसा के रुप में इन्हें सताया, जलाया जाता है। चाहे जितनी बार भी कहा जाए कि बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं, वे तो एक समान हैं। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है। ईश्वर के द्वारा बनाए इस फर्क को बदला नहीं जा सकता पर हमारे द्वारा बनाए इस फर्क को ज़रुर बदला जा सकता है। फर्क बेटियों की परवरिश में, उनकी शिक्षा में, उनके भविष्य निर्माण में, उनकी पहचान बनाने में। बेटी के जन्म से शुरु होती है माता-पिता की चिंता उसकी शादी को लेकर, क्या इस चिंता में बदलाव लाया जा सकता है।शादी को न लेकर बल्कि उसकी पढ़ाई-लिखाई को लेकर चिंता करें। क्या इस सोच में बदलाव लाया जा सकता है कि जो घर के काम-काज सीखने के लिए एक लड़की के लिए जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है पढ़ना-लिखना, इतना सक्षम हो पाना कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके। क्या इस सोच में बदलाव लाया जा सकता है कि लड़की इतना पढ़-लिख लेगी तो हमें कौन-सा नौकरी करवानी है। क्या इस सोच में बदलाव लाया जा सकता है कि सब के घर की बेटियाँ ऐसा ही कर रही हैं तो हम लीक से कैसे हटें। तो, आज इस दिन पर आइए संकल्प लें कि बेटी का जन्म बोझ नहीं ईश्वर का वरदान है।अगर आज एक घर में एक माँ ये ठान लेती है कि जैसा मेरे साथ हुआ वह मेरी बेटी के साथ नहीं होगा, तो वह एक माँ दो लोगों के भविष्य को बदल सकती हैं। एक अपनी बेटी का और कल जब उनकी बेटी माँ बनेगी तो उसकी बेटी का। संवारा ना आपने दो लोगों का भविष्य। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। एक घर से शुरु हुआ ये बदलाव कल पूरे समाज को बदल देगा। जो आज हम अपने समाज में, शहरों में स्पष्ट होता देख रहे हैं। ये बदलाव साफ-साफ दिख रहा है कि आज की महिला पुरुषों के पीछे नहीं बल्कि कदम से कदम मिलाकर साथ-साथ चल रही हैं। अगर मैं यहाँ चीन के बारे में आपसे कहूँ तो यहाँ शिक्षा के स्तर पर कोई फर्क नहीं किया जाता इसलिए लड़कियाँ हो या महिलाएँ वे सारे काम कर सकती हैं या कर रही हैं जो पुरुष करते हैं। यहाँ लिंग असमानता नहीं है, कहीं भी किसी भी क्षेत्र में नहीं है।यहीं कारण है यहाँ क्राईम रेट लो है, लड़कियाँ हो या महिलाएँ कहीं भी किसी भी वक्त बेझिझक, बिना किसी डर या भय के कहीं भी आ-जा सकती हैं।आइए कुछ ऐसा करें जिससे एक समाज, एक देश नहीं बल्कि पूरा विश्व ऐसा बन जाए जहाँ लिंग असमानता न रहे। इसके लिए यह जानना बहुत आवश्यक हो जाता है कि शिक्षा ही बेटी की पूंजी है दहेज नहीं और आज की बेटी कल की माँ है। मैंने टी.वी के एक चैनल पर ये बेहद बढ़िया गीत सुना है। ममता तू ही, क्षमता तू ही,चंचल तू ही, नटखट तू ही, तू ही तू।तो एक बार फिर से आप सब को खासकर हमारी महिला श्रोताओं को हैप्पी विमेंस डे।

चलिए, अब बात करते हैं, सेहत-स्वास्थ्य से जुड़ी खबरों की।

कुछ दिन पहले मैंने एक समाचार पत्र में यह पढ़ा- कोल्ड्रिंक से कैंसर का खतरा।

कोल्ड्रिंक अधिक मात्रा में पीने वाले लोगों के लिए यह खबर खतरे की घंटी है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि जो लोग हर हफ्ते कम से कम दो बार मीठा कोल्ड्रिंक पीते हैं, उन्हें पैंक्रिएटिक कैंसर होने का ज्यादा खतरा रहता है।

अमेरिका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के सिंगापुर में रहने वाले साठ हजार से अधिक पुरुषों व महिलाओं पर किए 14 साल के अध्ययन के बाद निकला यह निष्कर्ष कैंसर एपिडेमियोलोजी, बायोमार्कर्स ऐंड प्रिवेंशन मैग्जीन में पब्लिश हुआ है। इसमें कहा गया है कि जो लोग हर सप्ताह में दो या उससे अधिक बार मीठा कोल्ड्रिंक पीते हैं, उनमें इसे नहीं पीने वाले व्यक्तियों के मुकाबले अग्नाशय कैंसर यानी पैंक्रिएटिक कैंसर होने का खतरा 66 प्रतिशत तक अधिक रहता है। हालाँकि शोधकर्ता इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि अग्नाशय के कैंसर के लिए शीतल पेय ही जिम्मेदार हैं या इन्हें पीने वाले व्यक्ति की गलत लाइफ स्टाइल।

यह भी पाया गया है कि ब्लड शुगर का लेवल बढ़ाते हैं शीतल पेय

अध्ययन से पता लगा है कि शीतल पेय ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ा देते हैं। इससे पैंक्रिएटिक पर एक्स्ट्रा दबाव पड़ने लगता है। हालाँकि पैंक्रिएटिक का कैंसर ग्यारहवाँ सबसे आम कैंसर है, लेकिन यह कैंसर का सबसे खतरनाक रूप भी है, जिससे विश्व में हर साल 7700 व्यक्तियों की मौत हो जाती है।

रिसर्चर्स को स्टडी के दौरान पैंक्रिएटिक कैंसर के 140 मामले मिले। 1970 के दशक के बाद से पैंक्रिएटिक कैंसर से बचने वाले मरीजों की सालाना दर दोगुनी हो गई है, लेकिन अब भी यह सबसे खतरनाक कैंसर है और इस बीमारी का पता चलने के बाद सालाना 13 प्रतिशत मरीज ही इससे बच पाते हैं। प्रमुख शोधकर्ताओं के अनुसार नियमित रूप से मीठे शीतल पेय पीने वाले लोग हेल्दी फूड का सेवन नहीं करते हैं और उनकी लाइफ स्टाइल बदतर होने की संभावना रहती है।

डॉक्टरों के अनुसार कोल्ड्रिंक में शुगर की अधिक मात्रा पैंक्रिएटिक की बीमारी का कारण बन सकती है। कोल्ड्रिंक में शुगर की अधिक मात्रा शरीर में इंसुलिन का लेवल बढ़ा सकती है। जिससे पैंक्रिएटिक की कोशिकाओं में वृद्धि होती जाती है और यह पैंक्रिएटिक कैंसर का कारण बन जाती हैं। हॉलीवुड स्टार पैट्रिक स्वायज की भी इसी बीमारी से मौत हो गई थी। यदि आप भी कोल्ड्रिंक अधिक मात्रा में पीने वाले लोगों में से हैं तो कोशिश कीजिए इस आदत से जल्द-से-जल्द छुटकारा पाने का। क्योंकि, है तो ये आपकी सेहत का सवाल।

श्रोताओ, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह उनचासवा क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें,या फोन पर बताएँ ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। दिन में कम-से-कम तीन लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास कीजिए और शुरुआत स्वयं से कीजिए। इसी विचार के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओं, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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