सरकारी दफ्तर में नौकरी मिलने के बाद से चांग क्वोमाओ कांस्य संस्कृति के अनुसंधान का काम करते रहे हैं।वह थुंगलिंग शहर के सांस्कृतिक अवशेषों के प्रबंधन कार्यालय के प्रधान रहे।इस समय वह शहर के अजायबघर के निदेशक हैं।अनेक वर्षों से कांस्य संस्कृति के गहन अध्ययन के बाद उन्होंने करीब सौ शोध-निबंध और संबंधित लेख लिखकर प्रकाशित करवाए हैं।लोकप्रयि पुस्तक `कांस्य संस्कृति का अनुसंधान` उन के ही निर्देशन में संपादित होकर बनाई गई है।उन की योजनानुसार एशियाई सभ्यता संबंधी प्रथम अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक सम्मेलन का आयोजन हुआ,उन की मांग पर चीनी कांस्य संस्कृति अनुसंधान सोसाइटी की स्थापना हुई और उन के ही सुझाव पर कांस्य मूर्ति-कला की समीक्षा संबंधी अभूतपूर्व संगोष्ठी बुलाई गई।उन की पहल वाली इन सब गतिविधियों से कांस्य संस्कृति और अर्थतंत्र में उस की भूमिका को आगे बढाने तथा देश में `कांस्य सामराज्य` के रूप में थुंगलिंग शहर का स्थान मजबूत बनाने में बड़ा बढावा मिला है।
एक हजार वर्षो से अधिक समय पहले चीन के थांग राजवंश के मशहूर कवि ली पाई ने एक बार थुंगलिंग का दौरा किया था।यहां की अद्भूत सुन्दरता से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी एक कविता में ऐसा लिखाः थुंगलिंग से इतना लगाव मुझे,हजार वर्ष रहना चाहा इस में।हमारे संवावददात से इंटरव्यू के समय चांग क्वोमाओ ने भावविभोर होकर यह कवि पढ़कर सुनाई,ताकि वह अपने जन्मस्थान के प्रति असीम प्रेम प्रकट कर सके।थुंगलिंग उन के शरीर के किसी अंग जैसा है,जिस से वह बेहद परिचित हैं।इस का कारण सिर्फ उन का यहीं पर जन्मा होना और पलना-बढना है,बल्कि यह भी है कि उन्होंने दसियों वर्षो से सांस्कृतिक अवशेषों से जुड़ा काम करने के दौरान इस शहर के कोने-कोने तक का दौरा किया और अपनी आंखों से यहां हुआ कायाबलट देखा।यहां के पुराना इतिहास व शानदार संस्कृति उन के जीवन का अभिन्न अंग सा बन गया है और यहां के पहाड व नदियां उन के घर के सामान से हो गए हैं,जिन के बारे में वह विस्तृत जानकारी दे सकते हैं----
चांग क्वोमाओ ने कई मोटी पुस्तकें और चित्रों के संग्रह निकालकर संवाददाता को दिखाते हुए कहा कि थुंगलिंग आनह्वी प्रांत के दक्षिणी भाग में और चीन की सब से बड़ी नदी च्यांगत्सी नदी के दक्षिणी तट पर अवस्थित है।पहाड़ और नदियां होने के कारण इस शहर की प्रकृति अत्यंत सुरम्य है,पर इस से अधिक आकर्षक है यहां की कांस्य संस्कृति।हजारों वर्ष पूर्व चीनी पूर्वजों ने यहां उत्खनन कर कांस्य बर्तन बनाना शुरू किया था,इसलिए यहां चीनी कांस्य-संस्कृति का उत्पति-स्थान माना गया है।पूरे शहर में पाए गए कांस्य के प्राचीन खदानों के अवशेषों की संख्या 30 से भी अधिक है।ये अवशेष कोई 600 वर्ग कि.मी में पसरे हैं।विशेष भौगोलिक स्थिति और प्राचीन इतिहास व शानदार संस्कृति ने इस शहर में अनेक दृश्यनीय पर्यटक केंद्र तैयार किए हैं। प्राचीन चिंगशीतुंग खनन-क्षेत्र,लोचाछ्वी भट्ठा,रहस्यमय वृक्ष,प्राचीन कुंआ,पांच अनोखे आकार वाले चीढ़,सुंग राजवंशी शिक्षालय,चीन के अति कीमती व दुर्लभ जीव Yangtze River Dolphin का पालन करने वाला केंद्र,चीनी गुलाब माने जाने वाले मुतान पुष्प-उद्यान,थ्यानचिंग झील,च्यांगनान संस्कृति पार्क,चीन के दक्षिणी भाग को उत्तरी भाग से जोड़ने वाला यांगत्से पुल-राजमार्ग और परंपरागत कांस्य-बर्तन व मूर्तियां इस शहर में लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं।खास बात यह है कि यह शरह विश्वविख्यात ह्वांगशान पहाड़ और बौद्ध तीर्थ स्थल—च्योह्ला पहाड़ से सटा है।इसलिए साल भर यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
चांग क्वोमाओ ने कहा कि वह थुंगलिंग शहर से प्यार करते हैं।यह शहर जवान है और बूढ़ा भी।इसलिए उसे जवान कहा गया है,क्योंकि वह शहर के रूप में केवल 50 वर्ष पुराना है।उसे बूढ़ा इसलिए माना गया है,क्योंकि चीन की विशेष कांस्य-संस्कृति 3000 वर्षों से भी अधिक समय पहले यहां पैदा हुई है।कहा जा सकता है कि कांस्य ने यह सुन्दर शहर बनाया है।इस शहर में समृद्ध प्राकृतिक,ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृश्य देखने योग्य हैं और पारिस्थितिक पर्यावरण उम्दा है।