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तिब्बत के विकास के लिए आजीवन कोशिश करते रहे न्गाबो न्गावांग जिग्मे
2010-02-02 09:10:44

गत वर्ष 23 दिसम्बर को न्गाबो न्गावांग जिग्मे का निधन हो गया। जो तिब्बत की स्थानीय सरकार और केंद्र सरकार के बीच शांति समझौते के साक्षी थे। उनका सौ वर्ष का जीवन एक महान किताब की तरह है, जो लोगों को हमेशा आकर्षित करता रहता है। युवावस्था में भूदास उद्यान के मालिक से तिब्बत के स्थानीय सरकार के उच्च अधिकारी,पुराने तिब्बत के पहले सरकारी वार्ताकार से चीन देश के नेता तक, उन्होंने एक सदी की महान क्रांति में हिस्सा लिया। और स्वयं तिब्बती समाज में आए भारी परिवर्तन को देखा । तो यहां आपके लिये  इस महान तिब्वती की कहानी

न्गाबो का जन्म वर्ष 1910 में पुराने तिब्बत के एक कुलीन परिवार में हुआ । युवावस्था में वे कुलीन अधिकार बन गये। एक अक्तूबर 1949 को चीन लोग गणराज्य की स्थापना हुई, तिब्बत की मुक्ति मातृभूमि के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ने लगा था। वर्ष 1950 की शुरूआत में चीनी केंद्रीय जन सरकार ने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से संबंधित उसूल घोषित किया। साथ ही तिब्बत की स्थानीय सरकार से प्रतिनिधि भेजकर तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति को लेकर केंद्रीय जन सरकार के साथ वार्ता करने का आह्वान किया।

फरवरी 1951 में न्गाबो जिग्मे को तिब्बत के स्थानीय सरकार के पहला वार्ताकार नियुक्त किया गया और वे अन्य चार प्रतिनिधियों के साथ केंद्रीय जन सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए पेइचिंग आए ।

इसी वर्ष पहली मई को न्गाबो को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाने के लिए आमंत्रित किया गया। तत्कालीन चीनी राष्ट्राध्यक्ष माओ त्सेतोंग ने थ्येन आनमन टॉवर पर उनसे मुलाकात की और कहा:"आपका पेइचिंग आने के लिए स्वागत है। हम एक ही परिवार के सदस्य हैं । परिवार के सवाल का हम सलाह मशविरे से अच्छी तरह समाधान कर सकते हैं। मैं कामना करता हूं कि आपकी वार्ता सफल हो ।"

लम्बे अर्से से तिब्बत के इतिहास के अनुसंधान में लगे चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान संघ के अधीनस्थ इतिहास अनुसंधान केंद्र के अनुसंधानकर्ता यांग यून ने कहा कि तत्काल न्गाबो न्गावांग जिग्मे की विशेष हैसियत व उनके दृढ़ रूख से तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति संधि को मजबूती मिली थी। उन्होंने कहा:

"उस समय वे छांगतु क्षेत्र में पुराने तिब्बत के स्थानीय सरकार के सर्वोच्च अधिकारी थे। यही नहीं, उन्होंने सबसे प्रत्यक्ष तौर पर और सच्चे माइने में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली जन मुक्ति सेना के साथ संपर्क किया था । इस क्षेत्र में उन्हें प्रथम व्यक्ति कहा जा सकता है। छांगतु युद्ध के जरिए उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संपर्क किया और गहन रूप से पार्टी की जातीय नीति, धार्मिक नीति की जानकारी हासिल की। उन्होंने तिब्बत के भविष्य के लिए केंद्र सरकार का महत्व अच्छी तरह समझा और पुराने तिब्बत के छुटपन को महसूस किया था । ऐसा कहा जा सकता है कि न्गाबो न्गावांग जिग्मे ने तिब्बत सवाल का अच्छी तरह निपटारा करने के लिए अच्छी तरह अपनी भूमिका निभाई।"

पहले वार्ताकार न्गाबो जिग्मे और तिब्बत की स्थानीय सरकार के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय जन सरकार के प्रतिनिधियों के साथ कई बार वार्ता की। उन्होंने लोकतांत्रिक व मैत्रीपूर्ण सलाह मशविरे कर विभिन्न सवालों पर सहमतियां हासिल की। 23 मई 1951 को दोनों पक्षों ने《केंद्रीय जन सरकार और तिब्बत के स्थानीय सरकार के बीच तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्त संधि》पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सत्रह विषय शामिल थे। इस तरह इसे《सत्रह विषय वाली संधि》भी कहा जाता है, जिसके आधार पर तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई ।

लेकिन इस संधि पर हस्ताक्षर होने से तत्कालीन तिब्बत की भूदास व्यवस्था में बदलाव नहीं आया। वर्ष 1951 से 1959 तक तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया जा रहा था, इसी दौरान पुराने तिब्बत के कुलीन लोग विदेशी अलगाववादी शक्तियों के साथ मिलकर《सत्रह विषय वाली संधि》के कार्यान्वयन को बाधा डालने में लगे रहे।

न्गाबो न्गावांग जिग्मे ने तिब्बत सरकार का नेतृत्व कर उनके साथ संघर्ष किया और तिब्बती समाज के शांतिपूर्ण विकास में काफी योगदान किया।

चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान संघ के अधीनस्थ इतिहास अनुसंधान केद्र के अनुसंधानकर्ता यांग युन ने कहा:

"《सत्रह विषय वाली संधि》पर हस्ताक्षर करना एक बात है, लेकिन इसका कार्यान्वयन ज्यादा महत्वपूर्ण है । जिग्मे एकता बनाए रखने में दृढ़ रूख अपनाते थे। वे विभिन्न पक्षों की रायों को केंद्र सरकार देते थे और समन्यवय का काम करते थे । उन्होंने हमारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और तिब्बत के उच्च स्तरीय कुलिन लोगों के बीच पुल की भूमिका निभाई। वे लोकतांत्रिक सुधार का समर्थन करते थे और उनका रूख हमेशा सकारात्मक था। उनके विचार में लोकतांत्रिक सुधार से तिब्बत बचाया गया । वे हमेशा सोच रहे थे कि तिब्बत का रास्ता कहां है?तिब्बती जाति और तिब्बती सरकार का विकास कैसी होंगी?उनके विचार में तिब्बत की आशा लोकतांत्रिक सुधार पर निर्भर करती है । पुरानी व्यवस्था के समाप्त होने से तिब्बती जनता को नयी उम्मीद मिली ।"

फरवरी 1952 में चीनी जन मुक्ति सेना की तिब्बत शाखा की स्थापना हुई । केंद्रीय फौज़ी आयोग ने न्गाबो न्गावांग जिग्मे को इसका पहला उप कमांडर नियुक्त किया और वर्ष 1955 में उन्हें चीनी जन मुक्ति सेना के अधीनस्थ थल सेना के लेफ्टिनेंट वाला रैंक भी प्रदान किया । न्गाबो हमेशा तिब्बत स्थित सैनिकों के उत्पादन व जीवन का ख्याल रखते थे और उनके साथ घनिष्ठ संबंध कायम करते थे ।

लम्बे समय तक न्गाबो न्गावांग जिग्मे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के प्रमुख नेता रहे, वे तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई समिति के उपाध्यक्ष रहे । देश के नेता बनने के बाद उन्होंने सक्रिय रूप से महान युगांतरकारी सुधार में भाग लिया और देश की दिन ब दिन समृद्धि व शक्तिशाली तथा तिब्बत के निरंतर विकास को देखा ।

नए चीन की स्थापना के बाद हर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मौके पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और देश के नेता उनसे मुलाकात करते थे, उनके साथ राजनीतिक मामलों पर विचार विमर्श करते थे और उनकी राय सुनते थे । इससे दोनों पक्षों के बीच अच्छी मैत्री कायम हुई ।

चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान संघ के अधीनस्थ इतिहास अनुसंधान केद्र के अनुसंधानकर्ता यांग युन ने कहा:

"न्गाबो न्गावांग जिग्मे की जिन्दगी बहुत रंगबिरंगी रही है । उन्होंने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रूपांतरण गुज़रा । तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद के पिछले दस वर्षों में वे तिब्बत के विकास पर ध्यान देते रहे, देश के एकीकरण और जातीय एकता को बनाए रखने पर उनका रूख स्पष्ट ही नहीं स्थिर भी है । वे एक आदर्श नेता हैं ।"

14 मार्च वर्ष 2008 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में ताड़फोड़, लूटमार और आगजनी जैसी हिंसक घटना हुई, इसके बाद 99 वर्षीय न्गाबो न्गावांग जिग्मे ने विशेष तौर पर संवाददाता को बुलाकर इस घटना की चर्चा की। उन्होंने हिंसक घटना की कड़ी निंदा की और कहा कि अलगाव एवं अलगाव विरोधी के बीच संघर्ष दीर्घकालिक व जटिल है । इस तरह हमें पर्याप्त वैचारिक तैयारी करनी चाहिए। अलगाववादी शक्ति मातृभूमि के एकीकरण, जातीय एकता, सामाजिक स्थिरता को नष्ट करने के लिए चाहे किसी तरीके अपनाएगी, वह जरूर विफल होगा ।

तिब्बत के विकास के लिए पूरी कोशिश करने वाले न्गाबो न्गावांग जिग्मे ने अपना सौ साल का जीवन पूरा किया । आज का तिब्बत सामाजिक स्थिर है, जातीय एकता है और जनता का जीवन स्तर लगातार सुधर रहा है। नए तिब्बत का भविष्य और उज्ज्वल है। यह न्गाबो न्गावांग जिग्मे की आशा भी है ।

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