भारत-चीन का 'बंदर'फुल कनेक्शन!
डिजिटल मनोरंजन के बढ़ते प्रभुत्व वाली दुनिया में, राष्ट्रों को जोड़ने वाली सांस्कृतिक कथाएँ अभिव्यक्ति के नए रूप पा रही हैं। सबसे उल्लेखनीय हालिया उदाहरणों में से एक वीडियो गेम "ब्लैक मिथ: वुखोंग" है, जिसने गेमिंग की दुनिया में तूफान मचा दिया है।
इन दिनों "ब्लैक मिथ: वुखोंग" चीन और दुनिया भर में गेमिंग की दुनिया में सबसे चर्चित विषयों में से एक बन गया है। इस गेम को चीन के गेमिंग इंडस्ट्री के लिए एक प्रमुख मील का पत्थर माना जा रहा है, क्योंकि यह पहली बार है जब मेनस्ट्रीम वीडियो गेम ने पारंपरिक चीनी उपन्यास "जर्नी टू द वेस्ट" को गहराई से अपनाया है।
ग्लोबल रिलीज़ के सिर्फ़ 24 घंटों में, "ब्लैक मिथ: वुखोंग" की सभी प्लैटफ़ॉर्म पर 45 लाख से ज़्यादा कॉपियां बिकीं, जिससे 1.5 अरब युआन से ज़्यादा की कमाई हुई। यह कोई अलग-थलग सफलता नहीं है; बल्कि यह एक व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है जो दर्शाता है कि चीनी उपभोक्ता प्रीमियम मनोरंजन पर खर्च करने के लिए तेज़ी से इच्छुक हैं।
हाई-लेवल के ग्राफिक्स, शानदार गेम डिज़ाइन और जबरदस्त प्रमोशन ने इसकी सफलता में योगदान दिया है। खेल में कई पारंपरिक चीनी सांस्कृतिक तत्व भी शामिल हैं, जैसे बौद्ध और ताओवादी दर्शन, प्राचीन चीनी शैली, पारंपरिक संगीत और कला, आदि। ये तत्व न केवल खिलाड़ियों को खेल में एक मजबूत सांस्कृतिक अनुभव देते हैं, बल्कि चीनी संस्कृति में वैश्विक खिलाड़ियों की रुचि भी बढ़ाते हैं, जिससे यह देश में राष्ट्रीय गौरव का एक प्रमुख स्रोत बन जाता है।
"ब्लैक मिथ: वुखोंग" एक सिंगल-खिलाड़ी एक्शन गेम है। इसमें अलौकिक क्षमताओं वाला एक मानवरूपी बंदर है। यह चरित्र सुन वुखोंग या बंदर राजा पर आधारित है, जो 16वीं सदी के क्लासिक चीनी उपन्यास "जर्नी टू द वेस्ट" में एक केंद्रीय पात्र है।
दिलचस्प बात यह है कि चीनी पौराणिक कथाओं में सुन वुखोंग की छवि भारत के पौराणिक वानर देवता हनुमान से सांस्कृतिक समानता रखती है, जो महाकाव्य रामायण में वर्णित है। हनुमान भारत में पूजनीय हैं और शक्ति, निष्ठा और भक्ति के स्थायी प्रतीक हैं। यह साझा प्रतीकवाद भारत और चीन के बीच सदियों पुराने गहरे संबंध को रेखांकित करता है, जो उनकी संबंधित पौराणिक कथाओं में निहित है।
दरअसल, चीन के 'बंदर राजा' अपने पड़ोसी देश भारत के साथ सांस्कृतिक संबंधों का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। भारत केवल सबसे ज्यादा बंदरों की संख्या के लिए मशहूर नहीं है बल्कि बंदर के रूप में पूजे जाने वाले भगवान हनुमान की पौराणिक कहानियों और सांस्कृतिक कथाओं के लिए भी काफी चर्चित है।
चीनी उपन्यास "जर्नी टू द वेस्ट" चीनी संस्कृति का केंद्र है और कोरियाई, जापानी, वियतनामी और दक्षिण-पूर्व एशियाई प्रवासी समुदायों की साझा विरासत का हिस्सा है। यह उपन्यास खुद चीनी पौराणिक कथाओं, कन्फ्यूशीवाद, ताओवाद और बौद्ध लोककथाओं से काफी प्रभावित है। इसकी शुरुआत एक ऐतिहासिक अभियान के रूप में होती है जिसमें एक बौद्ध भिक्षु बौद्ध धर्मग्रंथों की खोज के लिए 7वीं शताब्दी के चीन से भारत की यात्रा करते हैं।
इस कहानी ने सैकड़ों अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों, टीवी शो और कार्टून को प्रेरित किया है। ह्वेन त्सांग, थांग राजवंश (618-907) में एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु थे, जो 17 साल की भारत की तीर्थयात्रा से 629 ईसवी में बौद्ध सूत्रों के 657 संस्करणों के साथ लौटे। मिंग राजवंश (1368-1644) के दौरान उनकी पश्चिम की तीर्थयात्रा के जरिये भारत-चीन को जोड़ने वाले प्राचीन रेशम मार्ग को पहली बार सक्रिय बनाने की कल्पना की गई। ह्वेन त्सांग की तीर्थयात्रा ने इस प्रिय चीनी महाकाव्य की आधारशिला रखी और भारत और चीन को जोड़ने वाले प्राचीन रेशम मार्ग पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रकाश डाला।
इस कथा में, वुखोंग यानि बंदर राजा ने ह्वेन त्सांग के रक्षक की भूमिका निभाई है, जो इस तरह की यात्रा की शारीरिक और आध्यात्मिक चुनौतियों को दर्शाता है। बंदर राजा का चरित्र, अपनी शरारत और ताकत के साथ, दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ता है, जिससे वह न केवल चीन में बल्कि कोरिया, जापान, वियतनाम और दक्षिण पूर्व एशियाई समुदायों में पश्चिम की यात्रा से परिचित लोगों के बीच भी एक प्रिय पात्र बन गया है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की पौराणिक कथा का पात्र सुन वुखोंग का चरित्र भारतीय पौराणिक महाकाव्य रामायण के हनुमान से प्रेरित हो सकता है। हालांकि कुछ भी निश्चित न हो पाने के बावजूद भी ये दोनों बहुत लोकप्रिय बंदर पात्रों के तौर पर विकसित हुए। और तो और कोई इनके इतने करीबी सांस्कृतिक जोड़ को नकार नहीं पाया।
पश्चिम की तीर्थयात्रा और रामायण, दोनों को ही कई फिल्मों, टीवी धारावाहिकों, एनिमेशन और ओपेरा के तौर पर दर्शाया गया है और यही वजह है कि बंदर राजा आज भी युवा पीढ़ी के बीच उतना ही प्रचलित है। इस तरह से दोनों पड़ोसी देशों के बीच एक नजदीकी रिश्ता प्रतिबिंबित होता है।
चीन में 12 पशुओं को साल का प्रतीक माना जाता है। इस तरह 12 वर्षों के चक्र को 12 पशुओं में बांटा गया है- चूहा, बैल, बाघ, खरगोश, ड्रैगन, सांप, घोड़ा, बकरा, बंदर, मुर्गा, श्वान और सुअर। बंदर न सिर्फ 12 चीनी पशु राशियों में 9वें स्थान पर आता है, बल्कि बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के साथ-साथ कई एशियाई धर्मों की कला में भी एक प्रमुख प्रतीक माना जाता है।
भारत में बंदरों का बहुत सम्मान किया जाता है और आस्था की नज़रों से देखा जाता है, वहीं चीन में बंदर का वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है। बंदर को चीन के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक माना जा सकता है। इसलिए बंदर चीन और भारत के बीच संबंधों को और घनिष्ठ और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण तत्वों में से एक बन सकता है।
(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)