भू-राजनीतिक टकराव में शामिल होने के लिए प्रशांत द्वीप देश अमेरिका के मोहरे नहीं हैं

2022-09-24 16:15:54

22 सितंबर को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने यूएन महासभा के दौरान “नीले प्रशांत भागीदार”(पीबीपी) के विदेश मंत्रियों की एक बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में उन्होंने कहा कि अमेरिका प्रशांत क्षेत्र के विकास में गहन रूप से भाग लेगा और मौसम परिवर्तन और बुनियादी संरचनाओं के निर्माण को मजबूत करने में सहयोग करेगा। लोकमत का मानना है कि सितंबर के अंत में वाशिंग्टन में आयोजित होने वाले पहले अमेरिका-प्रशांत द्वीप देशों के शिखर सम्मेलन के लिए ब्लिंकन ने उपरोक्त बात कही है।

तथाकथित पीबीपी की स्थापना इस जून में हुई, जिसके संस्थापक देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर शामिल हैं। भारत इसका सर्वेक्षक देश है। यह संगठन लगभग क्वाड तंत्र का दूसरा संस्करण है। हालांकि इसने प्रशांत द्वीप देशों के साथ मौसम परिवर्तन, समुद्री सुरक्षा और स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों के सहयोग को मजबूत करने की बात कही थी, फिर भी इसका मकसद सरल नहीं है। अमेरिकी मीडिया ने कहा कि पीबीपी का मकसद दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन के निरंतर बढ़ने वाले प्रभाव को कम करना है।

हमने ध्यान दिया कि इस साल से अमेरिका ने प्रशांत द्वीप देशों में अति घनिष्ट राजनयिक गतिविधियां आयोजित कीं। फरवरी में ब्लिंकन 37 वर्षों में फिची की यात्रा करने वाले पहले अमेरिकी विदेश मंत्री बनें। अप्रैल में व्हाइट हाउस की सुरक्षा कमेटी के इंडो-पैसिफिक मामले के समंव्यक कैम्पबेल ने सोलोमन द्वीप समूह की यात्रा की, जुलाई में अमेरिकी उप राष्ट्रपति हैरिस ने प्रशांत क्षेत्र में दो नये दूतावास खोलने का एलान किया, और अगस्त में अमेरिकी उप विदेश मंत्री शर्मन प्रशांत द्वीप देशों की यात्रा की।

लम्बे अरसे से दक्षिण प्रशांत क्षेत्र अमेरिका ने कभी ध्यान नहीं दिया था, क्यों अब अमेरिका की भू-राजनीति का केंद्र बन गया है? अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के सांसद स्टीव चाबो के विचार में चीन और सोलोमन द्वीप समूह के बीच हस्ताक्षरित द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते से अमेरिका को जबरदस्त झटका महसूस हुआ है। प्रशांत द्वीप देशों में अमेरिका की सहायता वास्तव में भू-राजनीति की होड़ के आधार पर है, जिसका असली मकसद प्रतिरोध करना है। फिची के प्रधानमंत्री ने कहा कि हम भू-राजनीति का ख्याल नहीं करते हैं, जबकि मौसम परिवर्तन पर ध्यान देते हैं। 

प्रशांत द्वीप देशों के लिए हालिया फौरी काम है कि मौसम परिवर्तन और महामारी से आयी चुनौतियों का सामना करना है। यदि अमेरिका सचमुच प्रशांत द्वीप देशों के विकास को मदद देना चाहता है, तो अमेरिका को द्वीप देशों के साथ समानता और आपसी लाभ वाला सहयोग करना चाहिए, द्वीप देशों के स्वतंत्र रूप से अपनी विदेश नीति लागू करने का सम्मान करना चाहिए और सहयोग के लिए कोई भी राजनीतिक शर्तों को नहीं शामिल करना चाहिए।

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