तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्ध का अवतार कैसे चलता है

2022-07-09 19:48:47

जीवित बुद्ध का अवतार तिब्बती बौद्ध धर्म की एक बड़ी विशेषता है ,जो बौद्ध धर्म की अन्य शाखाओं में मौजूद नहीं है ।वास्तव में जीवित बुद्ध का अवतार तिब्बती बौद्ध धर्म में धार्मिक नेता और मंदिरों के प्रमुख के उत्तराधिकारी तय करने का अहम तरीका है ।तो रहस्यमय रंग से भरे जीवित बुद्ध के अवतार की व्यवस्था कैसे पैदा हुई और वह कैसे चलती है ।आज हम इसकी चर्चा करेंगे ।

 जीवित बुद्ध के अवतार की व्यवस्था पैदा होने से पहले तिब्बती बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों के उत्तराधिकार के तौर तरीके भिन्न-भिन्न थे ।कुछ संप्रदायों में शिष्य ग्रुरु का स्थान लेते थे ,कुछ संप्रदायों के नेता सिर्फ किसी बड़े घराने के अंदर पैदा होते थे और अल्प पंथों में श्रेष्ठ भिक्षु के चुनाव से नेता तय किये जाते थे ।13वीं सदी में कर्मा काग्यू संप्रदाय ने अपने हितों की सुरक्षा और अधिकतर राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए सबसे पहले जीवित बुद्ध के अवतार का उपाय अपनाया । पर उस समय कर्मा काग्यू संप्रदाय के जीवित बुद्ध के अवतार का उपाय बहुत सरल था और वह सिर्फ किसी संप्रदाय के दिवंगत नेता का वारिस चुनना था।

15वीं सदी के शुरू में गुरु जोंगखापा ने भिक्षुओं से सांसारिक समाज से संपर्क काटने की अपील कर धार्मिक सुधार आंदोलन चलाया और गेलुगपा संप्रदाय(येलो हेट पंथ) की स्थापना की ।गेलुगपा संप्रदाय का विकास बहुत तेज रहा और वह अल्प काल में तिब्बत में सबसे प्रभावी संप्रदाय बन गया ।अपने वर्चस्व और मंदिरों के आर्थिक आधार को मजबूत करने के लिए गेलुगपा संप्रदाय ने जीवित बुद्ध के अवतार का उपाय भी अपनाया और उसका विकास कर एक जटिल व विस्तृत तंत्र बनाया ।अवतारित बच्चे की पुष्टि के लिए आम तौर पर जीवित बुद्ध के निधन के पहले की भविष्यवाणी व वसीयत के मुताबिक देवता का निमंत्रण ,शगुन करने ,पवित्र झील के दृश्य देखने और आदि तरीकों से जीवित बुद्ध के अवतार का समय व स्थान तय किया जाता है ।फिर संबंधित मंदिर वरिष्ठ भिक्षु भेजकर गुप्त रूप से अवतारित बच्चे की खोज करता है ।अगर उम्मीदवारों की संख्या एक ही नहीं है ,तो उन बच्चों की परीक्षा ली जाती है और अंत में उनमें से एक चुना जाता है ।उल्लेखनीय बात है कि इतिहास में गेलुगपा संप्रदाय में दलाई लामा और पंचन के दो सब से महत्वपूर्ण अवतार तंत्र स्थापित हुए ।

18वीं सदी में चीन के छिंग राज्यवंश के छ्येन लोंग बादशाह ने तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्ध के अवतार तंत्र में अहम सुधार किया और स्वर्ण कलश से पर्ची निकालने की व्यवस्था निर्धारित की ।इस व्यवस्था के अनुसार केंद्रीय सरकार अंत में उम्मीदवार बच्चों के बीच पर्ची निकालने से दलाई ,पंचन और अन्य जीवित बुद्धों के अवतारित बच्चे की पुष्टि करती है ।इस तरह जीवित बुद्ध के अवतार में केंद्रीय सरकार का सबसे ऊंचा प्राधिकार स्थापित किया गया ।यह नियम अब तक बना हुआ है ।ध्यान रहे कि 14वें दलाई लामा को 5 फरवरी 1940 को केंद्रीय  सरकार की पुष्टि मिली  ।

जुलाई 2007 में चीनी राजकीय धार्मिक ब्यूरो ने तिब्बती बौद्ध धर्म के जीवित बुद्धों के अवतार संबंधी प्रबंधन नियमावली जारी की ।इस नियमावली से जीवित बुद्ध के अवतार के उपाय अधिक ठोस और मानक हो गये, जो इस बात का प्रतीक है कि जीवित बुद्ध के अवतार के प्रबंधन का कानूनीकरण हो चुका है ।

(वेइतुंग)

 

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