नाटो द्वारा विश्व में गड़बड़ मचाने का और एक प्रमाण

2022-07-01 10:46:17

29 जून को स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हुए नाटो शिखर सम्मेलन में एक नया रणनीतिक दस्तावेज पारित हुआ, जिसमें पहली बार चीन का उल्लेख किया गया और चीन पर यूरोप-अटलांटिक के लिए एक व्यवस्थित चुनौती बनने का आरोप लगाया गया। यह नाटो द्वारा चीन को एक काल्पनिक दुश्मन बनाकर गुट-मुकाबला करने का और एक निरुत्तर प्रमाण है। इससे जाहिर है कि शीतयुद्ध का विचार ही विश्व में शांति व स्थिरता के लिए एक व्यवस्थित चुनौती है ।

वहीं, बेल्जियम के एक प्रमुख अख़बार ले सोएर ने लिखा है कि नाटो सिर्फ अमेरिकी प्रभुत्ववाद का उपकरण है। शीतयुद्ध समाप्त होने के बाद नाटो लंबे समय तक अपने लक्ष्य से दूर हो गया। यूक्रेन संकट पैदा होने के बाद अब नाटो को फिर से जीवित होने का मौका मिला है। अमेरिका नाटो का विस्तार करना और एशिया व प्रशांत क्षेत्र में प्रवेश कर गड़बड़ी मचाना चाहता है। असल में चीन को एक काल्पनिक दुश्मन मानना नाटो का पुनः जीवित होने का एक बहाना है।

इस साल नाटो शिखर सम्मेलन में पहली बार जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नेताओं को न्यौता दिया गया, जिसका मुख्य कारण है अमेरिका तथाकथित नाटो का एशिया-प्रशांत संस्करण निर्मित कर एशिया व प्रशांत क्षेत्र में तनाव भड़काना चाहता है। एशिया व प्रशांत देशों को इस पर खासा ध्यान देना चाहिए।

लेकिन यूरोप को साफ पता है कि चीन और यूरोप के बीच हितों का बड़ा टकराव नहीं है और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्व भी मौजूद नहीं है। इस कारण से नाटो ने एक तरफ चीन को एक व्यवस्थित चुनौती मानने का पाखंड रचा है और दूसरी तरफ चीन के साथ रचनात्मक संपर्क के प्रति खुला रूख अपनाता है।

चीन कभी भी अन्य देशों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता और विचारधारा का निर्यात तथा एकतरफा प्रतिबंध नहीं लगाता है। आखिर चीन नाटो के लिए कैसे एक व्यवस्थित चुनौती बना है? अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने साफ देखा है कि नाटो ने वादे का उल्लंघन कर कई बार पूर्व की ओर विस्तार किया है और यूएन सुरक्षा परिषद से बचकर कई बार युद्ध छेड़ा है।

लेकिन तथ्यों के सामने अब नाटो के पास छल करने की कोई गुंजाइश नहीं बचती है। उसने यूरोप में गड़बड़ मचायी है परन्तु अब उसे एशिया-प्रशांत व शेष विश्व में फिर से गड़बड़ी मचाने नहीं दिया जाना चाहिए ।(वेइतुंग)

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