विश्व के अकादमिक जगत में डाक्टर ची श्यानलिन का नाम आसमान पर आया और उन का व्यापक प्रभाव है। वर्ष उन्नीस सौ इकानवे में प्रोफेसरची श्यानलिन की उनस्सीवीं जयन्ती के अवसर पर स्मारक ग्रंथ संग्रह प्रकाशित हुआ। जिस में एशिया, योदप, उत्तरी अमरीका और ओशिनिया के 16 देशों व क्षेत्रों के अट्ठानवन विद्वानों के लेख या टिका टिपण्णियां शामिल हैं, जिस से डाक्टर ची श्यानलिन के प्रति देशी विदेशी विद्वानों का भारी सम्मान प्रतिबिंबित हुआ।
डाक्टर ची श्यानलिन सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बेहद महत्व देते थे। अपने एक लेख में उन्होंने कहा, यह कतई नहीं है कि विश्व में संस्कृति का सृजन किसी एक राष्ट्र ने किया है, विश्व में अनेक राष्ट्र मौजूद है, किसी राष्ट्र की जन संख्या ज्यादा है और किसी की कम। किसी राष्ट्र का इतिहास लम्बा है और किसी का छोटा। पर उन सबों ने मानव संस्कृति के विकास में योगदान किया है, हालांकि उनका योगदान भिन्न-भिन्न है, किसी का योगदान बड़ा है और किसी का छोटा। स्तर भी अलग अलग हैं। लेकिन मेरे विचार में संस्कृति की एक विशेषता है जब एक बार उस का सृजन किया गया, तो स्वभावतः मानव की गतिविधियों के जरिए उसका आदान प्रदान किया जाता है। इसलिए, सांस्कृतिक आदान-प्रदान हर वक्त और हर जगह अस्तित्व में है, वह मानव समाज को आगे बढ़ाने की एक प्रेरक शक्ति है।