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    सुप्रसिद्ध विद्वान ची श्यानलिन और भारत के बीच घनिष्ठ संबंध
    2014-09-10 13:37:17 cri

    यूनिवर्सिटी में ची श्यानलिन सुप्रसिद्ध विद्वान E WALDSCHMIDER से संस्कृत, पाली और प्राकृत सीखते थे। वर्ष 1941 में उन्हें PHD की उपाधि प्राप्त हुई। तब से वे प्रोफेसर E SIEG से तुखारा भाषा और वेद सीखने के साथ साथ बौदध धर्म की मिश्रित संस्कृत भाषा का अध्ययन करते रहे। पांच वर्ष के भीतर उन्होंने तीन श्रेष्ठ पेपर लिखे जिन से उनका नाम चमकने लगा। वर्ष 1946 की ग्रीष्म काल में डाक्टर ची श्यानलिन स्वदेश लौटे। महान विद्वान छन येन ग की सिफारिश से वह पेइचिंग यूनिर्वर्सिटि द्वारा प्रोफेसर और पूर्वी साहित्य और भाषा विभआग के महा निदेशक के पद पर न्यूक्त किया गया।

    पिछली आधी शताब्दी के दौरान, उन्होंने विद्याध्ययन के क्षेत्र में भारी उपलब्धियां हासिल की। कुछ वर्ष पहले 23 खंडों की ची श्यानलिन ग्रंथत्वली का संपादन किया चुका है। इस ग्रंथावली के कोई अस्सी लाख चीनी शब्द हैं जिस में रिसर्च पेपर निबंध कहानियां और अनुदित रचनाएं शामिल हैं।

    एक विद्वान के नाते डाक्टर ची श्यानलिन ने भाषा शास्त्र बौद्ध विद्या, इतिहास शास्त्र तथा तुलनात्मन साहित्य आदि अनेक क्षेत्रों में असाधारण कामयाबियां हासिल की। मगर डाक्टर ची श्यानलिन ने भारत के बारे में अपने अनुसंधान में सब से ज्यादा वक्त लगा दिया और सब से शान्दार कामयाबियां प्राप्त की।

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