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    आपका पत्र मिला 2017-02-22
    2017-03-05 16:35:13 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, पश्चिम बंगाल से मॉनिटर रविशंकर बसु का। उन्होंने लिखा है. . . . . .

    दिनांक - 9 फरवरी को ताज़ा समाचार सुनने के बाद चंद्रिमा जी द्वारा पेश "बाल महिला स्पेशल" और अनिल पाण्डेय जी और नीलम जी द्वारा पेश साप्ताहिक "टी टाइम" प्रोग्राम सुना।

    आज "टी टाइम" प्रोग्राम की शुरुआत में दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत में स्थित ताली विश्वविद्यालय में मेडिकल पढ़ाई करने वाले तीन भारतीय छात्रों मनोज कुमार वशिष्ठ, श्रेया एम्बेकर और दीपक कुमार जी के साथ अनिल पाण्डेय जी की बातचीत का दूसरा हिस्सा हमें सुनने को मिली।

    मनोज कुमार वशिष्ठ ने कहा कि यूरोप और अमेरिका के अलावा, एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए चीन भी एक अच्छी जगह है। क्योंकि चीन भारत के नजदीक स्थित है, चीन में अध्यापक, शिक्षा की गुणवत्ता और चिकित्सा उपकरण सब कुछ अच्छे हैं। इसके साथ ही कक्षा में अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है, ट्यूशन फ़ीस भी सस्ती है। दक्षिण एशियाई छात्र चीन के मेडिकल कॉलेज़ से स्नातक होने के बाद देश वापस जाकर आसानी से मेडिकल बोर्ड की परीक्षा को पास कर सकते हैं। इसलिए बहुत से दक्षिण एशियाई देशों के छात्र पढ़ाई करने के लिए चीन जाते हैं।कोलकाता की छात्रा श्रेया एम्बेकर ने बताया कि ताली का मौसम बहुत सुहावना है, दृश्य बहुत सुंदर हैं और लोग बहुत मित्रवत हैं। ताली विश्वविद्यालय में भारतीय रसोईंये के साथ साथ भारत के अध्यापक भी मौजूद हैं। ताली जाने के बाद श्रेया को एकदम घर जैसा माहौल महसूस होने लगा। मुझे यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि मनोज, श्रेया और दीपक न सिर्फ़ वहां चीनी संस्कृति और रीति-रिवाज़ सीखते हैं, बल्कि भारत की परंपरागत संस्कृति को चीन में भी लाते हैं। दिवाली और होली के दौरान वे कैम्पस में कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वे चीनी विद्यार्थियों और अध्यापकों के साथ खुशी से भारतीय त्योहार मनाते हैं और आनंद उठाते हैं। वे चीनी छात्रों को क्रिकेट खेलना भी सिखाते हैं। हर वर्ष आयोजित होने वाली क्रिकेट प्रतियोगिता ताली विश्वविद्यालय में बहुत लोकप्रिय है। यह बड़ी खुशी की बात है कि मनोज कुमार, दीपक और श्रेया एम्बेकर को धीरे धीरे चीन में रहने की आदत हो चुकी है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में अधिक से अधिक भारतीय छात्रों ताली विश्वविद्यालय में पढ़ते जायेंगे साथ ही चीनी संस्कृति और रीति-रिवाज़ से रूबरू होंगे।

    आज जानकारियों की क्रम में सुना है कि बहुराष्ट्रीय अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनी एप्पल अपने उत्पादों के स्थानीय विनिर्माण के लिए भारत की सरकार से बातचीत कर रही है। एप्पल देश में प्रौद्योगिकी क्षमतावर्धन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मेक इन इंडिया' पहल का लाभ उठाना चाहती है।मोदी सरकार ने विदेशी खुदरा विक्रेताओं को उनके स्टोरों में बेचे जाने वाले सामानों में 30 प्रतिशत स्थानीय स्तर पर खरीदे जाने संबंधी नियम से गत जून में ही तीन साल के लिए छूट दी है।रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी कंपनी ने गत नवंबर में मोदी सरकार को इस संबंध में पत्र लिखा है। स्थानीय स्तर पर उत्पाद बनाने से एप्पल को भारत में अपने खुदरा स्टोर खोलने में मदद मिलेगी, जहाँ की कुल स्मार्टफोन बिक्री में आईफोन की ह्स्सिेदारी दो फीसदी से भी कम है। आज हेल्थ टिप्स में पिंपल्स की समस्या से छुटकारा पाने के लिए हल्‍दी का सेवन कितना फायदेमंद है ,यह बताने के लिए आप लोगों को धन्यवाद।

    हैया:बसु जी आगे लिखते हैं. . . . . . आज चंद्रिमा जी ने साप्ताहिक मैगज़ीन प्रोग्राम बाल-महिला स्पेशल में चीनी महिला वालीबाल खिलाड़ी चू थिंग के जीवन को लेकर एक रिपोर्ट पेश की जो मुझे बहुत पसंद आयी। रिपोर्ट में सुना कि 22 वर्षीय चू थिंग को 2015 की महिला वालीबाल विश्व कप और 2016 के रियो ओलंपिक में सबसे मूल्यवान खिलाड़ी का खिताब मिला। ओलंपिक समाप्त होने के बाद चू थिंग ने तुर्की जाकर अपनी नयी जिन्दगी बितानी शुरू की। वे तुर्की के वाकिफ़ बैंक स्पोर्ट्स क्लब के लिये खेल रही हैं। अगली बार की प्रतियोगिता की तैयारी के लिये चू थिंग व टीम की अन्य साथियों के साथ अभ्यास की कोशिश कर रही हैं। चू थिंग ने प्रशिक्षण में विश्व श्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में अपनी व्यापक क्षमता दिखायी है। रिपोर्ट सुनकर पता चला कि वर्ष 1986 में स्थापित वाकिफ़ बैंक स्पोर्ट्स क्लब तुर्की की महिला वालीबाल लीग में एक परंपरागत शक्तिशाली टीम है। तुर्की की वॉलीबॉल लीग के इतिहास में इस टीम ने कई बार चैंपियन हासिल की है। वर्ष 2013 में इस टीम ने विश्व महिला वालीबाल क्लब की चैंपियनशिप व यूरोपीय महिला वालीबाल चैंपियनशिप जीती। वर्ष 2016 के विश्व महिला वालीबाल क्लब की चैंपियनशिप में इस टीम ने कांस्य पदक भी जीता। चू थिंग के अलावा इस टीम में कई विश्व प्रसिद्ध स्टार महिला खिलाड़ी शामिल हुई हैं। चू थिंग ने सच्चे दिल से कहा कि वे उच्च स्तरीय लीग में अभ्यास करना चाहती हैं, खास तौर पर अपनी पासिंग क्षमता को उन्नत करना चाहती हैं। ताकि भविष्य में अपने देश के लिये ज्यादा योगदान दे सके। चू थिंग ने यह भी कहा है कि क्योंकि वर्ष 2017 में कोई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय टीम की प्रतियोगिता नहीं है, इसलिए उनका लक्ष्य वाकिफ़ बैंक स्पोर्ट्स क्लब को लीग व विश्व क्लब की चैंपियनशिप में जीत लेने की सहायता देना है। प्रतिद्वंद्वी की चर्चा में चू थिंग ने कहा कि तुर्की की लीग में और एक टीम में खेल रही दक्षिण कोरिया की महिला खिलाड़ी किम येओन क्युंग उनकी सब से बड़ी प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन मैच को छोड़कर वे दोनों अच्छी दोस्त भी हैं। धन्यवाद।

    अनिल:बसु जी, पत्र भेजने के लिये बहुत धन्यवाद। आगे पेश है ओडिसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का पत्र। उन्होंने लिखा है. . . . . .

    ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में 12 से 14 फ़रवरी तक आयोजित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय रेडियो फ़ेयर में भाग लेकर लौट आया हूँ। हालाँकि मैं पहले दिन के कार्यक्रम में ही भाग ले पाया, मेले में मेरी उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना गया। मेले में लगाये गये सूचना पण्डाल में हमें भी जगह दी गई और मुझे यह सूचित करते हुये प्रसन्नता हो रही है कि मैं वहां सीआरआई के प्रसारणों के बारे में लीगों को काफी हद तक समझा पाया। मैंने वहां पत्रिका "सेतु सम्बन्ध" तथा "श्रोता-वाटिका" का प्रदर्शन भी किया, जिसे हासिल करने लोगों ने काफी उत्सुकता दिखायी।

    रेड़ियो फ़ेयर में पुराने मित्र ओड़िशा के हेमसागर नायक, पश्चिम बंगाल के सिध्दार्थ भट्टाचार्य तथा जमशेदपुर के एस.बी.शर्मा से भी मिलने का मौक़ा मिला। इसके अलावा रेड़ियो जापान हिन्दी सेवा के पूर्व प्रसारक अखिल मित्तल, रेड़ियो तेहरान हिन्दी के बाबर नक़वी तथा कुछ एक धार्मिक रेड़ियो प्रसारणों के लोगों से भी मिलना हुआ।

    रेडियो का एक पुराना श्रोता होने के नाते आयोजकों द्वारा मुझे भी मंच पर आमंत्रित कर मोमेंटो भेंट किया गया। मेरे लिये सबसे बड़ी ख़ुशी का क्षण तब आया, जब मैं मोमेंटो लेकर मंच से नीचे उतर रहा था। नीचे आते ही कई लोग मेरे पास आये और उन्होंने मेरे समक्ष अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर की। सभी यह जानना चाहते थे कि -क्या मैं वही सुरेश अग्रवाल हूँ, जिसके पत्र सीआरआई हिन्दी पर नियमित पढ़े जाते हैं और जो सीआरआई का मॉनिटर है ? उन्होंने मुझ से मॉनिटर बनने के तऱीके के बारे में भी जानना चाहा, तो मैंने कहा कि -कोई भी व्यक्ति मॉनिटर बन सकता है, बशर्ते कि वह नियमित रूप से ध्यान देकर सीआरआई के कार्यक्रम सुने और उन पर अपनी राय प्रेषित करे। मैंने अनेक लोगों को सीआरआई का पता, मेल आईडी, प्रसारण समय और मीटरबैंड्स के अलावा उसकी वेबसाइट की जानकारी से भी अवगत कराया। मुझे पहली बार किसी इतने बड़े मंच से सीआरआई का प्रचार करने का मौक़ा मिला, मैं स्वयं को धन्य महसूस करता हूँ।

    भुवनेश्वर शहर में शॉर्टवेव पर शाम साढ़े छह और रात साढ़े आठ बजे का प्रसारण यूँ तो ठीक सुनाई देता है, परन्तु विद्युतीय व्यवधान के कारण आवाज़ में काफी चड़चड़ाहट महसूस हुई। लोगों द्वारा एफ़एम् प्रसारण की भी मांग की गई। धन्यवाद्।

    लिखते हैं कि विश्व का आईना प्रोग्राम ध्यानपूर्वक सुना, जिसके तहत आज श्याओ यांगजी द्वारा यूरोप में शरणार्थी लहर आने के बाद जर्मनी द्वारा हमेशा के लिए संबंधित नीतियों का बंदोबस्त कर स्थिति को स्थिर बनाने सम्बन्धी की गई कोशिशों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई। इस प्रक्रिया में कुछ लोगों का प्रयास अविस्मरणीय रहा। वे हमेशा कोशिश कर शरणार्थियों को यह बताते हैं कि -जर्मनी में तुम्हारा स्वागत है। वे हैं शरणार्थी शिविर में शरणार्थियों को परामर्श या मदद देने वाले कर्मचारी ।

    इस परिप्रेक्ष्य में बवेरिया शरणार्थी शिविर, जो कि म्यूनिख शहर के केंद्र से करीब 20 मिनट की दूरी पर है और पहले वह एक पुराना सैन्य शिविर हुआ करता था और अब शरणार्थियों का स्थल बन चुका है, की गतिविधियों पर भी अहम् जानकारी हासिल हुई। यह बवेरिया स्टेट में सबसे बड़े पैमाने वाला शरणार्थी शिविर भी है। शरण लेने संबंधी प्रक्रिया पूरी होने से छह माह पहले शरणार्थी यहां रुक सकते हैं। शरणार्थी शिविर में परिपक्व बुनियादी संरचनाएं मौज़ूद हैं। यहां तक कि कपड़े एवं घरेलू उपकरण मुफ़्त लेने के स्थान, बच्चों की देख-भाल के स्थल और क्लिनिक आदि भी मुफ़्त हैं।

    मार्गेट मेर्खले बवेरिया शरणार्थी शिविर में पांच साल तक स्वयं सेवक रहीं और जो हर हफ़्ते अन्य तीन स्वयं सेवकों के साथ गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की सेवा करती हैं, की सेवाओं की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।

    पेशे से अकाउंटेंट मार्गेट के पास चिकित्सा संबंधी कोई अनुभव न होने के बावजूद वे अन्य स्वयंसेवकों की तरह एक अनुभवी जर्मन मां की हैसियत से गर्भवती महिलाओं की तनावपूर्ण भावना में शैथिल्य लाने की कोशिश करती हैं और उन्हें बताती कि जर्मन में बच्चे को जन्म देते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए।

    जर्मनी में शरणार्थी लहर पैदा होने के बाद शरणार्थी संबंधी कुछ प्रभाव वाली खबरें भी मीडिया में आती हैं, जिस पर लोग चिंतित हैं। इसकी चर्चा में मार्गेट ने कहा,निसंदेह जब लोगों ने मीडिया के माध्यम से जाना कि कोलोन के नव-वर्ष समारोह में सामूहिक यौन उत्पीड़न शरणार्थियों द्वारा किया गया है या आतंकी हमलों में शरणार्थियों ने भाग लिया है, तो वे चिंतित ज़रूर हैं। लेकन मुझे लगता है कि शरणार्थियों में इन अपराधियों की संख्या बहुत कम है। उनमें से अधिकांश लोग शांतिप्रिय हैं। वे केवल शांत जीवन चाहते हैं। इसलिए मेरा विचार है कि जर्मनी में इन लोगों को शरण मिलनी चाहिए।

    एंड्रिया का विभाग बवेरिया शरणार्थी शिविर समेत करीब 20 शरणार्थी शिविरों की जिम्मेदारी उठाता है। करीब 200 कर्मचारी विभाग में काम करते हैं। मार्गेट जैसे स्वयंसेवकों की संख्या तो यहाँ 600 से ज़्यादा है। एंड्रिया की नज़र में शरणार्थी कार्य में कार्यरत सभी कर्मचारी, खास तौर पर स्वयंसेवक शरणार्थियों के प्रति नागरिकों की गलतफहमी को मिटाने में सक्रिय भूमिका अदा कर सकते हैं। ताकि लोगों को यह समझाया जा सके कि शरणार्थियों ने अतिरिक्त संसाधान को नहीं छीना। उन्हें बुनियादी जीवन के लिए जरूरी मदद मिली है। यह पूरे समाज की स्थिरता की रक्षा और शरणार्थियों के स्थानीय समाज में शामिल करने के लिए लाभदायक होगा।

    अगली जानकारी में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में रहने वाले भारतीय मूल के 44 वर्षीय अजीत राना को अपनी ही दुकान से खरीदी गई लॉटरी टिकट से मिले बड़े ईनाम के बारे में सुन कर तो यही कहा जा सकता है कि -"ऊपर वाला जब देता है, छप्पर फाड़ कर देता है।" अब वह जब तक जीवित रहेगा, हर साल 2.27 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम पा सकेगा। यह जान कर अच्छा लगा कि लॉटरी से मिलने वाले धन से अजीत स्वदेश में अपने रिश्तेदारों के लिये मक़ान ख़रीद कर देगा। धन्यवाद् एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    श्रोताओं के अपने मंच साप्ताहिक "आपका पत्र मिला" के अन्तर्गत आज महज़ दो ही पत्रों को स्थान मिल पाया। मेरी राय में अधिक लम्बे पत्रों के बजाय, अपेक्षतया छोटे पत्रों को अधिक स्थान दिया जाये, तो उचित होगा। धन्यवाद्।

    राज़मर्रा की चीनी-भाषा पाठ्यक्रम के तहत श्याओ थांगजी एवं राकेश वत्सजी द्वारा आज का नया पाठ शुरू करने से पूर्व -सिनेमा हॉल के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले वाक्यों का दोहराया जाना अच्छा लगा। धन्यवाद्।

    हैया:सुरेश जी आगे लिखते हैं. . . . . .

    केसिंगा दिनांक 17 फ़रवरी को "चीन का तिब्बत" के तहत तिब्बती मामलों के सर्वमान्य चीनी विशेषज्ञ ल्यो तुंग फन का लम्बी बीमारी के बाद गत 11 फ़रवरी को हुये निधन का समाचार दुःखदायी लगा। पूर्वी चीन के हन्नान प्रान्त के एक गाँव में जन्में ल्यो तुंग फन तिब्बती संस्कृति को पूरी तरह समर्पित थे और उन्होंने पूरे 24 साल तिब्बत में बिताये। उन्होंने तिब्बती कलाकारों को संगठित किया और पेइचिंग में उनका प्रदर्शन भी कराया। तिब्बती कला और साहित्य पर प्रामाणिक शोध करने वाले ल्यो तुंग फन धाराप्रवाह तिब्बती बोलते थे और तिब्बत पर उनकी चालीस पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं, ये तमाम बातें उन्हें महानता की श्रेणी में रखती हैं। हमें सब से ज़्यादा प्रभावित तिब्बत के 1400 साल पुराने ल्हासा शहर पर उन द्वारा लिखित "ल्हासा के उपाख्यान" शीर्षक पुस्तक संबंधी जानकारी ने किया, जिसे लिखने में उन्हें चालीस साल लगे थे। ऐसी महान आत्मा के प्रति हमारी विनम्र श्रध्दांजलि।

    कार्यक्रम "दक्षिण एशिया फ़ोकस" के अन्तर्गत भारत में पेश हुये आम बज़ट पर फिर एकबार वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदीजी के विचार सुनने को मिले। नोटबंदी का देश के विनिर्माण क्षेत्र पर प्रभाव हो या कि प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, राष्ट्रीय सड़क योजना हो या कि मई 2018 तक शतप्रतिशत विद्युत् पहुँचाने का लक्ष्य, तमाम बातों पर चतुर्वेदीजी के विचार काफी सही जान पड़े। भारत के 7 हज़ार रेलवे स्टेशनों को सौर ऊर्ज़ा से चलाने, देश की कुल 64 हज़ार किलोमीटर लम्बी रेल लाइनों का रखरखाव, आयकर तथा स्वास्थ्य सेवा संबंधी प्रश्नों पर भी उनकी राय सटीक लगी। धन्यवाद् एक सार्थक परिचर्चा आयोजित करने के लिये।

    केसिंगा दिनांक 18 फ़रवरी को साप्ताहिक "आपकी पसन्द" का भी पूरा मज़ा लिया। श्रोताओं के पसन्दीदा फ़िल्म -एजेन्ट विनोद, आकाशदीप, सलाम-ए-इश्क़, मनोरंजन तथा जस्टिस चौधरी के पांच सदाबहार गानों के साथ एलियंस के अस्तित्व पर दी गई जानकारी रोमांचित कर गई। वैसे नासा भले ही इस बात की पुष्टि क्यों न करता हो कि एलियंस हज़ारों वर्षों से पृथ्वी पर आते-जाते रहे हैं और विश्व के मेगा निर्माणों यथा-मिस्र के पिरामिड आदि में उनका हाथ रहा है, की प्रामाणिकता संदिग्ध प्रतीत होती है। फिर बात चाहे भारत स्थित लद्दाख के कांगला दर्रे में कोई त्रिकोणीय वस्तु दिखने की हो या कि पेरू के माचुपिचु में भी कुछ ऐसा ही देखे जाने की, कुछ विश्वसनीय नहीं लगता। जापान के ओसाका में रिकॉर्ड वीडियो से भी यह सिध्द नहीं होता कि उसमें दिखायी पड़ने वाली आकृतियां एलियसन्स ही हैं। सम्भव है कि एलियंस बैक्टीरिया की तरह विचरण करते रहते हों, परन्तु हमें तो यह भी ज्ञात नहीं कि वे दानव हैं या कि उनके दूत। वैज्ञानिक भाषा में एलियंस को चाहे एम्ब्रोया नाम दें या कि रेक्टेलिया, वास्तव में, अब तक एलियंस की दुनिया रहस्य-रोमांच से अधिक कुछ नहीं है। वैसे कार्यक्रम में एलियंस पर अब तक हुई तमाम खोज़ों सहित उस पर बनी फ़िल्मों आदि पर दी गई श्रमसाध्य जानकारी के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।

    अनिल:सुरेश जी, पत्र भेजने के लिये धन्यवाद। आगे पेश है बिहार से मोहम्मद जीशान का पत्र। उन्होंने लिखा है . . . . . .

    आज की सभा में विश्व समाचार सुने, बहुत अच्छे लगे। साथ ही विश्व का आईना जिसमे सीरिया में शरणार्थियों के बारे में बताया गया बहुत अच्छा लगा,और आपका पत्र मिला सुना,मैं CRI हिन्दी के प्रोग्राम लगातार सुन रहा हूँ । लेकिन पत्र बहुत दिन के बाद लिख रहा हूँ, मुझे आपके द्वारा सेतु संबंध कई बार मिले हैं,लेकिन पिछले कुछ महीनो से यह नहीं आ रहा हैं,क्या आप मुझे रेडियो सेट भेज सकते हैं,अगर आप भेंजते हैं तो मैं आपका शुक्रगुजार रहूँगा,आपका प्रसारण शार्ट वेव और मीडियम वेव पर आपके सारे प्रोग्राम साफ सुनायी देता है,जिसके लिए आपकी पूरी टीम का बहुत बहुत धन्यवाद।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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