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17 चिड़िया की मृत्यु
2017-02-27 19:20:25 cri

कुएं का मेंढक 井底之蛙

"कुएं का मेंढक"चीन में एक प्रसिद्ध कहानी है। इसे चीनी भाषा में"चिंग दी च वा"( jǐng dǐzhī wā) कहा जाता है। इसमें पहला शब्द"चिंग"तीसरी टोन में है, जिसका अर्थ है"कुआं"। दूसरा शब्द"दी"का अर्थ बॉटम यानी तल होता है,"च"का अर्थ है का होता है और"वा"का अर्थ"मेंढक"है, तो"चिंग दी च वा"नीति कथा में कुएं के तल में रहने वाले मेंढक की कहानी सुनाई जाती है।

एक मेंढक हमेशा एक सूखे कुआ में रहता था। वह अपनी इस छोटी दुनिया पर अत्यन्त संतुष्ट था। जब कभी मौका मिला, तो वह अपने बड़प्पन की बघार करता था।

एक दिन, भर पेट खाने के बाद वह फिर कुआ पर बने एक तंभे पर ऊंकड़ू बैठे आराम कर रहा था, तो कुछ दूर एक भीमकाय समुद्री कछुवा टहल चहल करते हुए घूम रहा था।

मेंढक ने आवाज ऊंचा करके पुकारा:"हेलो , कछुवा भाई। आओ, इधर आ जा।"

कछुवा कुआ के पास आ पहुंचा। मेंढक की बातचीत जब छिड़ी, तो खत्म करने को तैयार नहीं:"देखो, कछुवा भाई, तुम्हारी किस्मत जो खुली है, वह तो तुमहारे भाग्य में लिखा हुआ है। मैं तुझे मेरी अपनी दुनिया दिखाऊंगा, तुम आंखें खोल कर देखो, मेरे आवास का कोई जवाब नहीं हैं, वह बिलकुल स्वर्ग तूल्य है। तुझे ज़रूर ऐसा खुला, हवादार, रोशनीदार और विशाल आवास देखने को नहीं मिल सकता है।"

कछुवा ने कुआ के अन्दर झांका कुआं के अन्दर किचड़ी भरा पानी का एक छिछला ताल था, जिसपर हरी ताई भी पड़ी हुई थी और हल्की गंदा गंध भी रह रह कर आ रहा था। कछुवा के माथे पर झुर्ड़ियां भर आई और उसका सिर तुरंत वापस खिंचा।

मेंढक का कछुवा के हाव भाव पर ध्यान नहीं गया, उसने अपना बड़ा सा पेट दिखाते हुए डींग मारना जारी रखा:"देखो , मेरा आवास कितना आरामदेह है। शाम को मैं कुआ के तंभे पर शीतल हवा लेने ऊपर आता हूं, देर रात कुआ की दीवार में पड़े छेद में नींद से सो सकता हूं। मैं पानी में बैठ सकता है, पानी मेरा मुंह तक आता है। मैं पानी में तैर सकता हूं, कीचड़ी में पांव गाड़ सकता हूं और किचड़ी में लेट लोट कर सकता हूं। वे सभी जीव जंतु जो कीड़े, केकड़ी और मछली जैसी वस्तु कैसे मेरी तुलना कर सकती हो।"

कहते बड़बडाते मेंढक के मुंह से झाड़ छिड़ कर चारों ओर बिखरा, और उसकी घमंडी बढ़ती गई:"देखो ,देखो, यह कुआ। कुआ का यह पानी सब का सब मेरा अकेला है, मैं जो चाहे कर सकता हूं। यह तो चरम का आनंद कहा जा सकता है ना। कछुवा भाई, तुम अन्दर आने की तशरीफ़ करो, जरा देखने आओ।"

मेंढक के उत्साह को टाला तो नहीं जा सकता था, सो कछुवा कुआ के किनारे पर आ पहुंचा, उसका दाईं पैर कुआ के अन्दर नहीं जा पाया था कि उसकी बाईं घुटनी कुआ के तंभे पर अटक कर फंस पड़ा। लाचार हो कर कछुवा पीछे हटा और उसने मेंढक से पूछा:"तुम ने कभी समुद्र के बारे में कुछ तो सुना है ना?"

मेंढक ने नहीं के रूप में सिर हिलाया।

कछुवा ने कहा:"समुद्र अपार विशाल है। उसमें जल राशि तोली नहीं जा सकती है। वह इतना विशाल है, जिसे हजारों किलोमीटर कहने पर भी कम है। वह इतना गहरा है, जिसे लाख मीटर बताना भी स्टीक नहीं है। कहा जाता है कि चार हजार वर्ष पहले जब युई देश का राजा था, उस अवधि में दस सालों में नौ साल ऐसा था, जिस में मुसलाघार वर्षा होती रही थी, पर समुद्र में पानी पहले से कहीं ज्यादा नहीं बढ़ा। तीन हजार वर्ष पहले जब सांगथांग राजा की गद्दी पर था, उस अवधि में दस सालों में नौ साल रहा, जिस में सूखा पड़ा, लेकिन समुद्र का पानी देखने में कुछ भी नहीं घटा। समुद्र इतना विशाल है, उसकी जल राशि समय और बाढ़ सूखा के बढ़ने या घटने से खास परिवर्तित नहीं होती है। मेंढक भाई, मैं समुद्र में रहता हूं। तुम सोचो, तुम्हारे इस छोटे कुआ और हथली भर के पानी से कौन सी दुनिया विशाल है और किसका आनंद अतुल्य है?"

कछुवा की बात सुन कर असीम ताज्जुब के कारण मेंढक की आंखें बाहर निकल सी रह गयी और मुंह खुला सा खुला रह गया।

"कुआं का मेंढक"यानी चीनी भाषा में"चिंग दी च वा"( jǐng dǐzhī wā) नाम की यह नीति कथा चीन में जब प्रचलित हो गई, तो ऐसे व्यक्ति को कुआं का मेंढक कहलाने लगा है, जो अज्ञान हो और बड़ा घमंड भी हो।


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