अब यू छिंगच्या साथ में दो दुकानों का प्रबंधन करती हैं और कर्मचारियों की संख्या 12 तक जा पहुंची है। मिठाइयों की किस्मों की संख्या भी 4 से बढ़कर 10 तक जा पहुंची है। सब सामग्रियों, स्वाद और बनाने के तरीके को यू छिंगच्या ख़ुद तय करती हैं। उन्होंने कहा कि दुकान में आने वाले ग्राहकों में आधे से ज़्यादा छात्र हैं, इसलिए मिठाइयों के दामों में बढ़ोतरी कभी नहीं हुई। इसके साथ साथ पेस्ट्री की गुणवत्ता और स्वाद में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। मिठाई का स्वाद सुनिश्चित करने के लिए यू छिंगच्या ने सख़्त प्रक्रिया बनाई।
हालांकि दोनों दुकानों का व्यापार अच्छा बना रहता है, लेकिन कर्मचारियों की परिवर्तन शीलता यू छिंगच्या के सामने मौजूद सबसे बड़ी समस्या है। इसपर उन्हें बड़ा ध्यान देना पड़ा।
"मालिक होने के नाते योग्य कर्मचारियों का अक्सर चले जाना मेरे लिए सबसे बड़ी परेशानी है। मैंने व्यापार की देख-भाल का ज्ञान कभी नहीं सीखा, इसके बजाय कई वर्षों तक मिठाई बनाने में ही मगन रहती हूं। शायद इसकी वजह से मानव संसाधन के प्रबंध में मैं इतनी कुशल नहीं हूं। दल का नेतृत्व करना आसान काम नहीं है।"
यू छिंगच्या ने कहा कि हालांकि दूसरे लोग सोचते हैं कि विदेश में पढ़ाई करने के बाद वे बिलकुल एक नए क्षेत्र में काम करती हैं, लेकिन उन्हें मालूम है कि उन्होंने अपने मेजर का परित्याग नहीं किया। भविष्य पर उनकी अपनी योजना है।
"मैं सोचती हूं कि दुकानों का व्यापार लगातार बनाए रखने के बाद इन्हें व्यावसायिक प्रबंधकों को दूंगी। मैं प्रोसेसिंग कारखाना भी स्थापित करना चाहती हूं और ई-कॉमर्स पर व्यापार करना चाहती हूं। लेकिन मैंने अपने विशिष्ट विषय को कभी नहीं छोड़ा। मेरा सपना है कि ख़ुद का एनजीओ स्थापित करूंगी और आपदा शिक्षा कार्य को अच्छी तरह करूंगी।"