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    आपका पत्र मिला 2016-06-08
    2016-07-19 15:52:17 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, बिहार से राम कुमार नीरज जी का। उन्होंने लिखा है......

    भारत में गोला-बारूद के डिपो में भयंकर आग ने एक बार फिर से हमारी सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी,और निसंदेह वर्तमान परिस्थितियां स्प्ष्ट रूप से मानवीय चूक की तरफ इशारा करती है। इस अति संवेदनशील मुद्दे पर आपकी विस्तृत रिपोर्टों ने कुछ लिखने को विवश कर दिया।

    4 मार्च, 1966 को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना हुई थी और इस अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने औद्योगिक सुरक्षा के लिए व्यापक चेतना जगाने का उद्घोष किया था। इसके पूर्व 1965 में विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रपति की प्रथम औद्योगिक सुरक्षा संगोष्ठी में उन्होंने कहा था- "Our own constitution puts it down as a directive that we must provide safe and humane conditions of work, for our industrial workers. We should do our outmost to see that conditions of life for them are adequate and they are looked after well. There must be an integration between the management and labour." उस संगोष्ठी के अंत में जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया वह था- "Safety is as responsibility of management with active co-operation of workers and with the sanction and support of the Government."

    यह हमारी वैधानिक एवं नैतिक जिम्मेदारी है। आजकल हर स्तर के कर्मचारी के लिए आवश्यकतानुसार सुरक्षा-प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है। प्रशिक्षण के माध्यम से काम की जानकारी देना, सुरक्षा के प्रति जागरुकता पैदा करना और कर्मचारियों के चिंतन और व्यवहार में परिवर्तन लाना यह एक कठिन कार्य है। भले ही उन्हें जानकारी मिल जाती है, लेकिन मनोवृत्ति में परिवर्तन उतना आसान नहीं। इसलिये प्रशिक्षण या शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है। इसे निरंतर चलाते रहना होगा। लेकिन त्रुटि करने की प्रवृत्ति मानस में बनी रहती है। कारण यह है कि परिस्थितियां एवं पूर्व संचित संस्कार कर्मचारी को प्रभावित करते रहते हैं। इन संस्कारों को पूर्णत: प्रभावित करना एक मुश्किल काम है। इसीलिए यह आवश्यक समझा गया है कि प्रणाली का विकास किया जाए जिससे न केवल तकनीकी बल्कि प्रशासनिक नियंत्रण को कारगर बनाया जाए। आज आवश्यकता है सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली की, जिसके तहत कुछ बातों पर बल दिया जाता है जिसकी चर्चा आवश्यक है। पहली बात है सुरक्षा एवं स्वास्थ्य नीति, जिसे निश्चित करना एवं जारी करना आवश्यक है। यह संस्थान की मान्यता एवं मूल्यों की अवधारणा का संकेत है। इस नीति से स्पष्ट होना चाहिए कि प्रबंधन कर्मचारियों के प्रति कितना सचेत है। इसका प्रभाव प्रत्येक कर्मचारी पर पड़ता है। इसके साथ ही हर वर्ष की सुरक्षा कार्य योजना होनी चाहिए, जिसके अंतर्गत आर्थिक प्रावधान के साथ ही ख़तरों के आकलन एवं निवारण की योजना, गृहव्यवस्था एवं आकस्मिक स्थिति से निपटने का पूरा प्रावधान होना चाहिए। सबसे आवश्यक है यह मान्यता कि सुरक्षा न केवल प्रबंधन की जिम्मेदारी है, बल्कि यह प्रत्येक कर्मचारी की जिम्मेदारी है। सभी इसमें सक्रिय रूप से सहायता करें और अपने कर्मचारियों को तथा उपकरणों की सुरक्षा को आश्वस्त करे। याद रहे कि सुरक्षा उत्पादकता बढ़ाती है, लाभ अर्जन में सहायक है।

    वास्तव में यह हादसा जितना त्रासद है, तकरीबन उतना ही विचित्र तथ्य यह भी है कि हमारे देश में सेना के आयुध डिपो में आग कोई पहली बार नहीं लगी है। साल-दो-साल के अरसे पर यह दुर्घटना अपने को दोहराती रही है और हर बार आयुध डिपो की फैलती आग के आगे हमारी तैयारियां लचर और लाचार नजर आती हैं.

    याद कीजिए सन् 2000 की दुर्घटना, जब भरतपुर के आयुध डिपो में भीषण आग लगी थी. तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीस ने देश की संसद को बताया था कि 30 हजार टन सैन्य-आयुधों वाले डिपो में 28 अप्रैल, 2000 को दिन के साढ़े तीन बजे आग लगी और अगले दिन आधी रात तक इस पर काबू नहीं पाया जा सका. पौने चार सौ करोड़ के आयुध देखते-देखते स्वाहा हो गये. भयावह विस्फोट की आवाजों के बीच आसपास के हजारों ग्रामीणों को अपना घर छोड़ कर सुरक्षित जगहों पर शरण लेनी पड़ी थी.

    इसे लेकर चतुर्दिक चिंता और चर्चा के बीच तत्कालीन केंद्र सरकार ने तय किया था कि एक मेजर जनरल की अगुवाई में कोर्ट ऑफ इन्क्वाॅयरी बैठेगी. हालांकि सेना के बारे में बहुत कम जानकारियां सार्वजनिक होती हैं, लेकिन उस वक्त संसद में रक्षामंत्री ने जो बयान दिया था, उसके सहारे देश ने जाना कि हर आयुध डिपो का अपना एक विशेष सुरक्षा तंत्र और अग्निशमन से संबंधित विशेष इंतजाम होता है.

    सरकार आयुध डिपो की सुरक्षा के इंतजाम पर हर साल करीब सवा सौ करोड़ रुपये खर्च कर रही है और हर आयुध डिपो को अग्नि-निरोध के बारे मेंनियमित अंतराल पर व्यापक निर्देश दिये जाते हैं. ऐसे इंतजामों के बावजूद आयुध डिपो में आग का लगना कभी रुका नहीं.

    हैया:राम कुमार नीरज जी, हमें रोजाना पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है पश्चिम बंगाल से हमारे मॉनिटर रविशंकर बसु जी का। उन्होंने लिखा है......

    3 जून को "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम सुना। इसमें पंकज श्रीवास्तव जी ने हाल ही में भारतीय राष्ट्रपति प्रणब कुमार मुखर्जी की चीन यात्रा, विशेषकर मशहूर पेइचिंग विश्वविद्यालय का दौरा करने वक्त पेइचिंग विश्वविद्यालय के दो शोध विद्यार्थियों से बात की। उन्होंने अपने अनुभव हमारे साथ साझा किए। विश्वविद्यालय के मैन ऑफ़ केमिस्ट्री विभाग के भारतीय छात्र मनीष कुमार ने बताया कि दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के छात्रों के बीच आवाजाही और सहयोग मजबूत किया जाना चाहिए।

    पेइचिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ता साथ ही सी आर आई हिंदी विभाग के पूर्व कार्यकर्ता विकास कुमार सिंह ने कहा कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मौजूदा चीन यात्रा दोनों देशों के बीच एक और महत्वपूर्ण उच्च स्तरीय आवाजाही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में भारत और चीन के रिश्तों में परिपक्वता आयी है, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, वित्तीय, व्यापार, सामाजिक, संस्कृति आदि बहुत क्षेत्रों में सहयोग आगे बढ़ रहा है। विकास जी का मानना है कि अनेक क्षेत्रों में दोनों देश एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए,आई.टी.,सूचना तकनीक और सॉफ्टवेयर में भारत के अनुभव कहीं अधिक परिपक्व है। वहीं चीन हार्डवेयर के क्षेत्र में अपेक्षाकृत विकसित है। अगर दोनों देश एक साथ मिलकर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में काम करें तो हमें पश्चिमी देशों से कहीं आगे निकालते है।

    राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान 10 भारतीय विश्वविद्यालयों ने शिक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए चीनी विश्वविद्यालयों के साथ जो समझैता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए है ,इस बारे में टिपण्णी करते हुए विकास जी ने कहा कि चीन और भारत को शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग करने की बहुत ज़रूरत है। विकास जी की इस बात से मैं पूर्ण सहमत हूं कि हस्ताक्षर करना और उसपे अमल करना - दो बातें होती है। यह सही है कि भारत में सरकारी विभागों में लालफीताशाही बदतर है। उन्होंने आशा जताई कि चीन और भारत के बीच मौजूद मतभेदों को हटाकर दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे को सहयोग करते रहे तो एक समृद्ध व पुनर्जीवित एशिया की सदी जल्द ही साकार होगी।

    वाकई यह सच है कि भारतीय बुद्धिमत्ता और चीनी ऊर्जा का मिलन हो जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। भारत और चीन के पारस्परिक सहयोग के बारे में मैं यहीं कहना चाहूंगा कि भारत निवेश चाहता है और चीन के पास धन है। यह दोनों ही देशों के लिए फायदे का सौदा है। अगर भारत और चीन को 21वीं सदी में एक अहम और रचनात्मक भूमिका निभानी है तो दोनों देशों के विभिन्न विभागों और स्तरों पर बेहतरीन समन्वय स्थापित करके अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिए।

    पंकज जी और विकास जी को धन्यवाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चीन की यात्रा पर भारत-चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर गहन रूप से अपने विचारों का हमारे साथ साझा करने के लिए।

    अनिल:आगे बसु जी लिखते हैं......सोमवार,23 मई "सी आर आई भ्रमण","आर्थिक जगत" और "जीवन के रंग" प्रोग्राम सुना।

    आज "सी आर आई भ्रमण" कार्यक्रम में रूपा जी ने उत्तरी चीन के होपेई प्रांत (Hebei province) के थांगशान शहर(Tangshan) में चल रही इस साल के अंतर्राष्ट्रीय बागवानी प्रदर्शनी से जुड़ी एक रिपोर्ट हमें सुनाई जो सूचनाप्रद व महत्वपूर्ण लगी।रिपोर्ट सुनकर पता चला कि 40 साल पहले थांगशान शहर में एक विनाशकारी भूकंप आया था। पिछले 29 अप्रैल, 2016 हेबेई प्रांत के थांगशान शहर(Tangshan) में विश्व बागवानी प्रदर्शनी उद्घाटित हुआ। यह 171-दिवसीय प्रदर्शनी का मुख्य विषय है 'शहर और प्रकृति, फीनिक्स निर्वाण'('City and Nature, Phoenix Nirvana')।इस अंतर्राष्ट्रीय बागवानी प्रदर्शनी में जापान, फ्रांस, नीदरलैंड और जर्मनी जैसे देशों से 10 विदेशी बागानों भाग ले रहे है।

    यहां पर में बोलना चाहूंगा कि आपकी वेबसाइट पर 2016 तांगशान अंतर्राष्ट्रीय बागवानी प्रदर्शनी के बारे में कई भी रिपोर्ट अभी तक अपलोड नहीं किया गया है। आपसे मेरा अनुरोध है कि तांगशान अंतर्राष्ट्रीय बागवानी मेले के बारे में अधिक जानकारी आपकी वेबसाइट पर कुछ तस्वीरें के साथ प्रकाशित करेंगे।

    आज "आर्थिक जगत" कार्यक्रम में ललिता जी ने "चीन और आसियान के बीच व्यापार का तेज़ विकास" शीर्षक एक रिपोर्ट पेश की। प्रस्तुत रिपोर्ट में लानछांगच्यांग नदी-मेकांग नदी सहयोग के पहला शिखर सम्मेलन के बाद चीन और आसियान देशों के बीच जो व्यवहारिक सहयोग का विकास हो रहा है, इस पर प्रकाश डाला। यह सच है कि चीन आसियान के सबसे अच्छे साझेदारों में से एक है। पहले शिखर सम्मेलन के बाद चीन, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया और वियतनाम- इन छः देशों के बीच इस समुद्री क्षेत्र में अनवरत विकास और सहयोग राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के शीश्वांगपेन्ना ताई जातिय क्षेत्र में स्थित मोहान पोर्ट पर रोज सैकड़ों ट्रक चीन और लाओस के बीच आते जाते हैं। इनसे लाओस, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों में उत्पादित केला, आम, शानचुओ, मकई और प्राकृतिक रबड़ चीन में पहुंचाए जाते हैं, जबकि चीन में निर्मित इलेक्ट्रॉनिक संघटक और मिश्रित उर्वरक जैसी वस्तुएं दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में या और दूरी तक ले जाई जाती हैं। मोहान पोर्ट चीन और लाओस के बीच एकमात्र राष्ट्रीय पोर्ट है और चीन-आसियान के बीच मुख्य रास्ता खुनमिंग-बैंकाक राजमार्ग का अहम द्वार भी है। वर्ष 2008 में खुनमिंग-बैंकाक राजमार्ग के खुलने के बाद थाईलैंड के फल बैंकाक से पेइचिंग पहुंचने में थलीय मार्ग से सिर्फ 93 घंटे लगते हैं। खुनमिंग की सब्जियां केवल 18 घंटों में ही थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में पहुंचाई जाती है।एक साल की कोशिश से चीन-थाइलैंड रेलवे कार्यक्रम में अहम प्रगति मिली। चीन और थाइलैंड दोनों देशों के बीच अर्थव्यवस्था व व्यापार, पूंजीनिवेश, पर्यटन आदि क्षेत्रो में व्यवहारिक सहयोग बढ़ रहा है।

    हैया:रविशंकर बसु, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है ओड़िशा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है...... केसिंगा दिनांक 4 जून को "आपकी पसन्द" की प्रस्तुति हर बार की तरह आज भी लाज़वाब रही। वैसे पंकज और अंजलिजी द्वारा आज श्रोताओं की पसन्द पर छह के बजाय पांच गाने ही सुनवाये गये। फिर भी फ़िल्मी गानों के साथ दी गई तमाम जानकारी काफी उपादेय लगी। कार्यक्रम में आगे बढ़ने से पूर्व आज मैं एक ऐसी बात का ख़ुलासा चाहता हूँ, जो कि मुझे विगत कुछ सप्ताह से कचोट रही है। मैंने फ़ेसबुक पर एक नियमित श्रोता के पोस्ट पर पढ़ा कि महोबा, उत्तरप्रदेश के वयोवृध्द श्रोता पण्डित मेवालाल परदेशी अब हमारे बीच नहीं रहे। जब कि आप द्वारा "आपकी पसन्द" के तहत उनके नाम से फ़रमाइशी गाने बराबर सुनवाये जा रहे हैं। भगवान करें कि मेवालालजी सकुशल हों, परन्तु इस बात की सच्चाई जानना आपके और हमारे लिये अत्यावश्यक है। आशा है कि इस बात पर गम्भीरता पूर्वक ध्यान देंगे। बहरहाल,फ़िल्म -मधुमति, आकाशदीप, लहू के दो रंग, लाखों में एक तथा देशप्रेमी के सदाबहार नग़मों के साथ लोगों के क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड में सेंध लगाने शातिर सायबर उचक्कों द्वारा अपनायी जाने वाली फिशिंग और विशिंग पध्दति से आगाह कराने का शुक्रिया। कार्यक्रम में अपने स्मार्टफ़ोन की सुरक्षा हेतु इस्तेमाल किये जाने वाले पिन पासवर्ड या फिंगर प्रिंटिंग में कौन सा अधिक सुरक्षित है, पर भी महती जानकारी प्रदान की गई। यह भी बतलाया गया कि ब्लैकबेरी अथवा आईफ़ोन में दस बार तक ग़लत पिन डाला जा सकता है, पर एन्ड्रॉयड इसकी इज़ाज़त नहीं देता। कुल मिला कर इण्टरनेट जालसाज़ों से अपने बैंक एकाउण्ट और स्मार्टफ़ोन को सुरक्षित रखने आपने जो अमूल्य जानकारी प्रदान की, उसके लिये हृदय से आभार। धन्यवाद।

    अनिल:आगे सुरेश जी लिखते हैं...... केसिंगा दिनांक 5 जून को सण्डे स्पेशल में दक्षिण-पूर्वी चीन के फुजियांग प्रान्त के छ्वानचो शहर में विश्वविद्यालय के चार छात्रों द्वारा गठित रेइतो बैंड पर पेश सपनाजी की विशेष रिपोर्ट सुन कर लगा कि सच्ची लगन हो तो स्थापित लोगों के बीच भी अपना मुक़ाम बनाया जा सकता है। कार्यक्रम में बैण्ड की मुख्य गायिका छन युएन का कण्ठ बहुत ही सुरीला लगा। मैं नवोदित रेइतो बैण्ड की सफलता की कामना करता हूँ। अजीबोगरीब और चटपटी बातों के स्तम्भ में आज चीन की गुओ युवानियुआन को सोशल मीडिया में 'सबसे खूबसूरत दुल्हन' का खिताब दिये जाने सम्बन्धी समाचार काफी प्रेरक लगा। वास्तव में, किसी भी इन्सान की पहचान उसकी खूबसूरती से नहीं, बल्कि उसके काम से होती है, जो कि गुओ ने अपने महंगे वेडिंग ड्रेस और मेकअप की परवाह ना करते हुए इस शख्स को बचाने के लिये किया। जानकारियों के क्रम में आगे ग्राफ्टिंग तकनीक ज़रिये अमरीका की सेराक्यूज यूनिवर्सिटी में विजुअल आर्ट्स के प्रोफेसर वॉन ऐकेन द्वारा एक ही पेड़ पर 40 अलग-अलग तरह के फल उगा कर दिखाना भी हैरान कर देने वाला समाचार है।

    सोने की कार 'गॉडजिला' के बारे में, जिसकी कीमत दस लाख डॉलर है और जिसे दुबई में हुए एक ऑटो एक्सपो में शामिल किया गया भी रईसों के लिये अच्छी ख़बर कही जायेगी। हाँ, चीन द्वारा बनाये जा रहे विश्व के सर्ववृहद् रेड़ियो टेलिस्कोप सम्बन्धी जानकारी काफी उत्साहवर्द्धक लगी। यह तथ्य रोचक लगा कि चीन का मक़सद उक्त टेलीस्कोप के ज़रिये एलियन की खोज करना है। यह जान कर और भी ख़ुशी हुई कि इससे करीब 10 हजार लोगों को रीलोकेट किया जाएगा। वैज्ञानिकों की मानें तो इसकी मदद से एलियन्स की मौजूदगी को लेकर अहम जानकारियां मिल सकेंगी। यह टेलिस्कोप (एफ.ए.एस.टी.) गुइझोऊ सूबे के साउथवेस्ट में मौजूद पहाड़ियों के बीच कटोरे-सी शेप वाली घाटी में मौजूद है। इसके रिफ्लेक्टर के लिए 4,450 ट्राएंगुलर शेप के पैनल्स को जोड़ने का काम पूरा हो चुका है।यह विश्व का सबसे बड़ा 500 मीटर अपर्चर वाला रेडियो टेलिस्कोप होगा और सितंबर 2016 तक पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। इस पर 1220 करोड़ रुपए से ज्यादा की खर्चा आया है। प्यूर्टो रिको के एरेसिबो ऑब्जर्वेटरी में अभी वर्ल्ड का सबसे बड़ा टेलिस्कोप मौजूद है। इसका डायमीटर 305 मीटर (1,000 फीट) है। चीनी वैज्ञानिकों के मुताबिक, नए टेलिस्कोप से स्पेस को और करीब से जानने व समझने में देश की क्षमता बढ़ेगी। यह टेलिस्कोप स्पेस की कमजोर व दूरगामी रेडियो सिग्नल्स को भी आसानी से रिसीव कर सकेगा।

    आज के मनोरंजन खण्ड में इस शुक्रवार रिलीज़ हुई साजिद-‍फरहाद के निर्देशन में बनी कॉमेडी फ़िल्म "हाउसफूल-3" के कथानक और पात्रों की चर्चा के साथ उसका प्रोमो सुनवाया जाना भी सिनेप्रेमियों के लिये काफी महत्वपूर्ण कहा जायेगा। आज के कार्यक्रम में पेश तमाम जोक्स भी काफी उम्दा लगे। धन्यवाद फिर एक बेहतरीन प्रस्तुति हेतु।

    हैया:अब सुनिए दुबई से हमारे श्रोता दोस्त जौहर अजीज जी के साथ हुई बातचीत।

    ---- INTERVIEW-----

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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