20160324
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यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। आपसे एक बार फिर बाल महिला स्पेशल कार्यक्रम में मिलते हुए बहुत खुशी हो रही है। मैं हूं आपकी दोस्त चंद्रिमा। हमारे श्रोता सुरेश अग्रवाल ने हमें भेजे पत्र में लिखा है कि आपने महिलाओं पर दो कार्यक्रम पेश किये हैं, आशा है कि आगामी अंकों में बच्चों पर भी ध्यान देंगी। हमने आपके सुझाव पर ध्यान दिया है। तो आज के कार्यक्रम में मैं बच्चों के लिये दो कहानियां पेश करूंगी। वास्तव में ये कहानियां केवल बच्चों के लिये नहीं हैं, सभी मां-बाप को भी इन्हें सुनना चाहिये। क्योंकि ऐसी कहानियों से बच्चों को शिक्षा मिलती है। अब लीजिये सुनिये।
पहली कहानी:कौन 15 साल की उम्र के सपने को 25 साल तक बहाल कर सकेगा?
कहानी ऐसी है:एक ब्रिटिश वरिष्ठ शिक्षक सेवा निवृत्त होने वाले हैं। अपने कार्यालय में दस्तावेजों का प्रबंध करते समय उन्होंने एक कक्षा के 51 विद्यार्थियों की लेखन किताबें देखी। यह कक्षा उन्होंने पढ़ायी थी। लेखन किताबों को खोलकर देखा कि लेख का शीर्षक भविष्य में मैं हूं...। शिक्षक आराम से विद्यार्थियों के लेख पढ़ रहे थे, और अपने बीते शिक्षा जीवन को याद करते थे। जल्द ही शिक्षक मुस्कुराने लगे। क्योंकि वे बच्चों की रंगारंग व अजीब स्व-डिजाइन से मोहित थे।
पीटर नामक एक बच्चे ने लिखा कि भविष्य में मैं नौसेना अध्यक्ष बनूंगा। क्योंकि एक बार मैं समुद्र में तैर रहा था, मैं तीन लीटर समुद्री पानी पीकर भी नहीं मरा। रिचर्ड नामक एक लड़के ने लिखा कि भविष्य में मैं फ़्रांस का राष्ट्रपति बनना चाहता हूं। क्योंकि मैं फ़्रांस के 25 शहरों के नाम बता सकता हूं, लेकिन अन्य विद्यार्थी केवल 7 बता सकते हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि डेविड नामक एक नेत्रहीन बच्चे ने लिखा कि भविष्य में मैं ज़रूर ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक मंत्री बनूंगा। क्योंकि ब्रिटन में ऐसा कोई नेत्रहीन व्यक्ति नहीं है, जो मंत्रिमंडल में शामिल हो सके।
उक्त लेखों को पढ़कर शिक्षक के मन में एक आवेग पैदा हुआ कि वे उन 51 विद्यार्थियों को ढूंढकर देखना चाहते हैं कि क्या वे 25 वर्ष पहले के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे?
एक स्थानीय अख़बार को शिक्षक का विचार जानकर बहुत रुचि हुई। उन्होंने मुफ्त में शिक्षक के लिये अख़बार में एक सूचना जारी की। कई दिनों के बाद पत्र बारी बारी से शिक्षक के पास आते रहे। उनके 50 विद्यार्थियों ने शिक्षकों को धन्यवाद दिया कि शिक्षक ने अब तक उनके बचपन के सपने के बारे में सोचा है। साथ ही उन्हें आशा है कि अपने लेखन किताब को वापस लेकर अपने बचपन की याद कर सकें। उनमें व्यापारी हैं, विद्वान हैं, और सरकारी अधिकारी भी हैं। पर ज्यादातर सामान्य लोग हैं।
शिक्षक ने उनकी इच्छा पूरी की। उन्होंने लेखन किताबों को विद्यार्थियों के पते के अनुसार एक एक कर वापस भेजा। पर शिक्षक ने पाया कि केवल एक विद्यार्थी ने उन्हें पत्र नहीं भेजा, जिसका नाम है डेविड, वह नेत्रहीन बच्चा था।
एक साल बीत जाने पर भी शिक्षक से संपर्क नहीं किया। शिक्षक ने सोचा कि शायद डेविड जीवित नहीं हो। आखिर 25 वर्ष बीत चुके हैं। इस दौरान सभी बातें हो सकती हैं।
जब शिक्षक डेविड की किताब को एक निजी संग्रहालय में भेंट करना चाहते थे, तभी मंत्रिमंडल के शिक्षा मंत्री ने शिक्षक को एक पत्र भेजा। पत्र में उन्होंने लिखा कि वे उस समय शिक्षक का विद्यार्थी डेविड ही थे। उन्होंने शिक्षक को बहुत धन्यवाद दिया। पर उन्हें वह लेखन किताब नहीं चाहिये। क्योंकि उस समय से सपना उन्हें याद है। वे अपने सपने को कभी नहीं भूलते। 25 सालों के बाद उन्होंने अपना सपना पूरा किया है। और वे इस पत्र से अन्य 50 विद्यार्थियों को यह बताना चाहते हैं कि अगर तुम अपने बचपन के सपने को नहीं छोड़ोगो, तो एक न एक दिन तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी।
ब्रिटेन के पहले नेत्रहीन मंत्री के रूप में डेविड के इस क़दम से साबित होता है कि अगर हम बच्चों को आदर्श बनाने के लिए प्रोत्साहन देते हैं, और उन्हें उनके सपने पूरा करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं, तो बच्चों का भविष्य ज़रूर एक सपना नहीं होगा।
दूसरी कहानी:किसने सात वर्षीय डार्विन की कल्पना की रक्षा की?
विकास सिद्धांत के संस्थापक डार्विन को सात वर्ष की उम्र में पौधों और जानवरों के प्रति बड़ा शौक हुआ। उन्होंने कई सूखे पौधों, मृत कीटों, सिक्के, खोल व जीवाश्म आदि वस्तुओं को इकट्ठा किया। और अपने घर में वे अकसर सरल रसायन प्रयोग भी करते थे।
स्कूल जाने के बाद डार्विन छुट्टी के समय पौधों को भी इकट्ठा करते थे। एक बार कुलपति ने सभी विद्यार्थियों के सामने उनकी आलोचना की, और उन्हें चेतावनी दी कि अगर भविष्य में वे फिर ऐसे करेंगे, तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
घर वापस लौटकर डार्विन ने अपने पिता जी को यह बात कही। आलोचना के बजाय उन्हें पिता जी का सपोर्ट मिला। पिता ने उनसे सिर्फ यह कहा कि स्कूल में नमूने इकट्ठा मत किया करो, नहीं तो पढ़ाई पर असर पड़ेगा। साथ ही पिता ने उद्यान में स्थित एक छोटी झोंपड़ी डार्विन को दे दी, ताकि वे वहां प्रयोग कर सकें। पिता ने डार्विन से कहा कि तुम्हारे अंदर कल्पना करने की आदत और साहस होना चाहिये। कल्पना से तुम कुछ नई खोज कर सकोगे। पिता जी के प्रोत्साहन से डार्विन अपने अध्ययन में और मोहित हो गये। और अंत में उन्होंने जैविक विकास का सिद्धांत ढूंढ़ निकाला, जो मानव के इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण खोज है। बाद में डार्विन ने कहा कि कल्पना के बिना कुछ भी नहीं हो सकता।
इसलिये बच्चों की सोच को समृद्ध बनाने के लिये सबसे पहले उन्हें कल्पना करने दें। वास्तव में हर बच्चे के दिल में रंगारंग कल्पना होती है। हालांकि कुछ कल्पना शायद वास्तविकता से बहुत दूर होती हैं, लेकिन वह एक सकारात्मक रुख है, जो बच्चों की सबसे मूल्यवान संपत्ति है।
अच्छा दोस्तो, आज का कार्यक्रम आप को कैसा लगा?क्या ये दो कहानियां आपको पसंद आई?आप हमें पत्र भेजकर बता सकते हैं। अगर आप बच्चों या महिलाओं के बारे में और कुछ सुनना चाहते हैं, तो भी हमें लिख सकते हैं। अच्छा, समय की कमी के चलते आज का कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। अगले हफ्ते हम फिर मिलेंगे। अब चंद्रिमा को आज्ञा दें। नमस्कार।