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    आपका पत्र मिला 2015-10-21
    2015-11-04 14:59:46 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हम पढ़ते हैं ओड़िशा से हमारे मोनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है.....

    16 अक्टूबर को दिनचर्या का अटूट हिस्सा बन चुके सीआरआई हिन्दी के ताज़ा प्रसारण को प्रतिदिन की तरह आज भी सुना और अब मैं उस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया के साथ आपके समक्ष पेश होने कम्प्यूटर के समक्ष बैठा हूँ। संचार और बिजली ने साथ दिया तो कुछ ही क्षणों में यह रिपोर्ट आपके हाथों में होगी। बहरहाल, ताज़ा अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद साप्ताहिक "चीन का भ्रमण" के तहत आज तिब्बत की राजधानी ल्हासा की एक बहुजातीय बस्ती छंगकुंग के सौहार्द्रपूर्ण माहौल के बारे में सुन कर दिल से एक ही दुआ निकली कि "काश" ऐसा भाईचारा और मेलमिलाप दुनिया में हर जगह होता ! खुई जाति की युवती रूची और तिब्बती दादी माँ चोमा के बीच की गहरी दोस्ती इस बात का द्योतक है कि तिब्बत में मिश्रित परिवार कितना सामंजस्यपूर्ण ढ़ंग से जीवन बसर करते हैं। सबसे अच्छी बात तो यह लगी कि यदि नागरिकों के बीच किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न हो भी जाये, तो नागरिक समिति उसका तुरन्त समाधान कर देती है। कार्यक्रम में इस जानकारी के अलावा सुन्दर लड़की चोमा शीर्षक तिब्बत गीत भी काफी कर्णप्रिय लगा।

    कार्यक्रम "दक्षिण एशिया फ़ोकस" के अन्तर्गत भारत के पड़ौसी देश नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद की दुश्वारियां और नये प्रधानमंत्री खङ्गप्रसाद शर्मा ओली के सामने उपस्थित चुनौतियों पर सहारा समय के पत्रकार बिजेन्द्र सिंह का विश्लेषण काफी महत्वपूर्ण जान पड़ा। विशेषकर, संविधान को लेकर तराई क्षेत्र में रहने वाले मधेसी समुदाय और थारु जनजाति की मांगों पर उत्पन्न समस्या के समाधान पर उनके विचार समुचित जान पड़े। धन्यवाद एक

    श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" की कड़ी में आज जनपद प्रशासक द्वारा चारों भिक्षुओं के सम्मान में एक बड़े भोज का आयोजन किया गया और वहां एक मठ और मन्दिर का निर्माण भी कराया गया। सानचांग से विमर्श कर मठ का नाम "सामयिक वर्षा द्वारा मुक्ति" रखा गया। जनपद प्रशासक और वहां की प्रजा भिक्षुओं को बिदा ही नहीं करना चाहते थे, परन्तु उन्हें तो जाना ही था। तब भिक्षुओं को सम्मान सहित दस कोस तक मार्गरक्षण करते हुये बिदा किया गया। अब तक शरद ऋतु अपने अन्तिम पड़ाव तक पहुँच गई थी। आगे बढ़ते हुये सानचांग आदि चारों भिक्षु भारत अधीन विख्वापान्टी नामक स्थान पर पहुँच गये। अब कहानी में आगे क्या होगा, देखना है। धन्यवाद।

    मीनू:सुरेश अग्रवाल जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए , अगला पत्र मेरे हाथ आया है पश्चिम बंगाल से बिधान चंद्र सान्याल जी का। उन्होंने लिखा है..... सी आर आई हिन्दी सेवा के साथ थ्येनचिन शहर के संस्कृति मंदिर का दौरा करने का मौका मिला। इसके लिए आपका आभार प्रकट करना चाहता हूं। चीन की राजधानी पेइचिँग के दक्षिण में सौ किमी. की दूरी पर थ्येनचिन स्थित है। यहां के बन म्याओ यानी संस्कृति मंदिर चीन के कई क्षेत्रों मेँ सबसे विशाल प्राचीन मंदिर समूह माना जाता है। अव यहां मुख्य तौर पर कनफ्युशियस की पूजा की जाती है। हर बर्ष बसंत और शरद मेँ थ्येनचिन संस्कृति मंदिर संग्रहालय नियमित रूप से कनफ्युशियस की स्मृति मेँ भव्य आयोजन करता है। क्योकि कनफ्युशियस की जन्म तिथि व जयंती इसी दौरान होती है। यह समारोह बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बन म्याओ यानी संस्कृति मंदिर के बगल मेँ 14 वीं शताब्दी में निर्मित असाधारण इतिहास वाला थ्येनचिन घंटा भवन है। अभी जो घंटा भवन देखने को मिलता है, वह 2000 मेँ निर्मित हुआ है। थ्येनचिन के क्वांगतुंग सोमायची भवन का आंगन चीनी परम्परागत ऊंची चारदीवारी से घिरा हुआ है। उसका मुख्य गेट भी बहुत बड़ा है, यहां की वास्तु कला का परिचय और थ्येनचिन संस्कृति मंदिर की जानकारी मुझे अच्छी लगी। साथ ही साथ इस असाधारण मंदिर को अपनी आंखों से देखने का मन करता है। धन्यवाद।

    अनिल:विधान चंद्र जी, हमें पत्र भेजने और अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए हम आपको धन्यवाद देना चाहते हैं। चलिए, अगला पत्र मेरे पास आया है झारखंड से एसबी शर्मा जी का। उन्होंने लिखा है.......

    सी आर आई के सभी साथियो के साथ श्याओ थांग जी को नमस्कार। आपने एक अच्छा लेख लिखा है जिसे सी आर आई ने नेट पर प्रकाशित किया और रेडियो पर भी सुनाया। इसके अनुसार चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सिलसिलेवार शिखर सम्मेलनों, दक्षिण-दक्षिण सहयोग गोल मेज़ सम्मेलन और महिला शिखर सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में शी चिनफिंग ने श्रृंखलाबद्ध कदम घोषित किए। जिसमें पांच पहलू शामिल हैं। इनमें पहला कदम यह है कि चीन दक्षिण-दक्षिण सहयोग कोष स्थापित करेगा। पहले चरण में विकासशील देशों के 2015 के बाद विकास कार्यक्रम के लिए 2 अरब डॉलर प्रदान करेगा। जिससे विकासशील देशों का विकास होगा। वहीं दूसरा चरण अविकसित राष्ट्रों के लिए है इसके अनुसार चीन अति अविकसित देशों, थलीय विकासशील देशों और विकासशील द्वीपीय देशों की सरकारों के बीच बिना ब्याज के ऋण मुफ्त कर देगा, जो 2015 के अंत तक चलेगा। तीसरा चरण सबसे महत्वपूर्ण है इसमें आगामी 5 वर्षों में चीन दूसरे विकासशील देशों का कई परियोजनाओं में समर्थन करेगा। जिनमें 100 गरीबी उन्मूलन परियोजनाएं, 100 कृषि सहयोग परियोजनाएं, 100 अस्पताल और क्लिनिक, 100 स्कूल और रोजगार प्रशिक्षण केंद्र, 100 पारिस्थितिकी संरक्षण और जलवायु परियोजनाएं, 100 व्यापार संवर्द्धन सहायता परियोजनाएं शामिल हैं। चौथा, चीन दक्षिण- दक्षिण सहयोग और विकास कॉलेज स्थापित करेगा।

    पानच्वा और आखिरी चरण सबसे महत्वपूर्ण है जो विकासशील देशों की महिलाओं और बच्चो के स्वास्थ्य से सम्बंधित है, जिसकी आवश्यकता अविकसित और विकासशील देशों में सबसे ज्यादा है।

    अगले पांच सालों में चीन दूसरे विकासशील देशों के समर्थन में 100"महिला और बाल स्वास्थ्य परियोजनाओं" का कार्यान्वयन पेश करेगा, जिसके आधार पर चिकित्सीय दौरा करने के लिए प्रशिक्षित चिकित्सक भेजेगा। इसके साथ ही 100 "खुशहाल स्कूली परियोजनाओं" का कार्यान्वनय करेगा, जिसके आधार पर गरीब क्षेत्र में बच्चों के स्कूल जाने में सहायता देगा और विकासशील देशों की 30 हज़ार महिलाओं को चीन में प्रशिक्षण लेने के लिये आमंत्रित करेगा। स्थानीय विकासशील देशों के लिए 1 लाख महिला प्रशिक्षित कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा।

    इससे पता चलता है की चीन अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्व को अच्छी तरह निभा रहा है।

    मीनू:एसबी शर्मा जी, हमें पत्र भेजने और अपनी राय हमें बताने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। अब लीजिए पेश है, उत्तर प्रदेश से बद्री प्रसाद वर्मा अनजान का पत्र। उन्होंने लिखा है

    5 अक्तूबर को चीन के क्वांनचू मठ के बारे में बड़ी अच्छी और दिलचस्प जानकारी मिली। इस मठ के बारे में आपने जो भी बताया, वह हमें खूब पसंद आया। 5 अक्तूबर को ही भारतीय राजदूत अशोक कुमार कंठ जी का सीआरआई के हिंदी स्टूडियो में आना और अखिल पाराशर जी के साथ लंबी बातचीत खूब पसंद आई। भाई अशोक कुमार कंठ ने सीआरआई के सभी श्रोताओं को बधाई देकर हम सबका दिल जीत किया। 7 अक्तूबर को आपका पत्र प्रोग्राम में बसु जी और सुरेश अग्रवाल के पत्र पढ़े गए। आपको बधाई। इस प्रोग्राम में सीआरआई के पुराने श्रोताओं के पत्र क्यों नहीं पढ़े जा रहे हैं। मोहमद दानिस से भेंट वार्ता सुनी अच्छी लगी।

    अनिल:बद्री प्रसाद जी, सबसे पहले हमें पत्र भेजने के लिए धन्यवाद। आपने पत्र में पूछा है कि हमारे कार्यक्रम में पुराने श्रोताओं के पत्र नहीं पढ़े जा रहे हैं। मैं आपको बताता हूं कि इधर के सालों में सीआरआई ने श्रोताओं को मुफ्त लिफ़ाफ़े भेजना बंद कर दिया है। इसलिए बहुत कम लोग पत्र लिखकर भेजते हैं। और लैटर पहुंचने में समय भी बहुत लगता है। यहां हम अपने सभी श्रोताओं से ईमेल से हमें पत्र भेजने या हमारी वेबसाइट पर मैसेज लिखने का आग्रह करते हैं। लेकिन हमारे कई श्रोता थोड़ा बुजुर्ग हैं और इंटरनेट का यूज़ नहीं कर सकते। इसलिए हमें उनके बहुत कम पत्र मिलते हैं और कम पढ़े जाते हैं। लेकिन हमें विश्वास है कि वे हमेशा हमारे साथ हैं और कार्यक्रम भी सुनते हैं। साथ ही यह बात बताना चाहते हैं कि हम कभी भी आप लोगों को नहीं भूलते।

    हां, बद्री जी, आपने पिछले महीने हमें एक कविता भेजी थी और हमें मिल चुकी है। आशा है कि भविष्य में आप लगातार हमें पत्र भेजते रहेंगे। एक बार फिर आपको धन्यवाद।

    चलिए, अंत में आप सुनेंगे पश्चिम बंगाल से हमारे रविशंकर बसु जी का पत्र। उन्होंने लिखा है......

    सादर नमस्कार। पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा पेश किये गए दुनिया भर के ताज़ा समाचार सुनने के बाद साप्ताहिक "चीन का भ्रमण" प्रोग्राम का ताज़ा अंक मनोयोग से सुना। आज "चीन का भ्रमण" कार्यक्रम में मैडम रूपा जी ने हमें दक्षिण पश्चिम चीन के क्वेचाओ प्रांत में बसी हुई अल्पसंख्यक पु ई जाति के विशेष रीति रिवाज और चीनी आड़ू फूल कविता गांव से रूबरू कराया जो काफी सूचनाप्रद और मनमोहक लगी ।

    आज की रिपोर्ट के अनुसार,वर्तमान में पु ई जाति की आबादी कोई 26 लाख से अधिक है और इस जाति का आधा भाग दक्षिण पश्चिम चीन के क्वेचो प्रांत में बसा हुआ है। पु ई जाति बहुल गांव "चंद्रमा गांव" नदियों के किनारे स्थित है और घने जंगलों से घिरा हुआ है। पु ई जाति के लोग मेहमानों का बहुत सम्मान करते हैं और पर्यटकों को अपने घर में जगह देते हैं। मेहमानों को शराब पिलाते है। चावल से तैयार शराब का स्वाद थोड़ा खट्टा-मीठा होता है, पीने में बड़ा मजा आता है। इस रिपोर्ट में रूपा जी ने चंद्रमा-गांव की चंद्रमा-नदी को लेकर जो पौराणिक कहानी सुनाई वह बहुत ही मर्मस्पर्शी लगी।

    पु ई जाति पीढ़ी दर पीढ़ी पहाड़ी ढलानों व नदियों की घाटियों में परिश्रम और जीवन बिताते आय़ी है। सुंदर पवित्र भूमि ने पु ई-जाति के प्राचीन इतिहास और सीधी-सादी व रंगारंग जातीय संस्कृति को जन्म दिया है। चीनी पंचांग के अनुसार हर वर्ष की 6 जून को पु ई जाति के सबसे भव्य परम्परागत पहाड़ी-गीत दिवस की खुशियां मनायी जाती हैं। तांबा-ढोल पु ई जाति की धरोहर है और पु ई जाति तथा समूची जाति की एकता का प्रतीक भी है। इस जाति के हरेक गांव में एक तांबा-ढोल होना ज़रूरी होता है। यहां ढोल बजाने के कड़े नियम होते हैं। इन नियमों के अनुसार सिर्फ नव-वर्ष,अंत्येष्टि या महत्वपूर्ण त्यौहारों के मौके पर ही तांबा-ढोल बजाने की इजाजत होती है। पूजा में सबसे पहले गांव के बुजुर्ग तीन बार ढोल पीटते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि पहली बार वायुमंडल देवता की पूजा के लिये ढोल बजाया जाता है,दूसरी बार भूमि-देवता की पूजा के लिए, जबकि तीसरी बार पवित्र तांबे ढोल की पूजा के लिये इसे पीटा जाता है। तीन बार ढोल पीटने के बाद पवित्र ढोल पु ई जाति के लोगों के लिये शानदार फसल और शांति ला सकता है।

    मीनू:आगे बसु जी ने लिखा है....इस प्रोग्राम की दूसरी रिपोर्ट में दक्षिण पश्चिम चीन के स्छ्वान प्रांत में आड़ू फुल कविता गांव के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। कार्यक्रम से पता चला कि आड़ू फूल कविता गांव का असली नाम थाओ य्वान है। आड़ू फूल गांव लुंग छ्वान पर्वत की चोटी पर बसा है। इस गांव के नाम आड़ू कविता गांव के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वहां के सभी लोगों को आड़ू के पेड़ लगाना और कविता लिखना पसंद है। इस गांव के बुजुर्गों से छोटे बच्चों तक सभी लोग कविता लिखने के बड़े शौकीन हैं। खाली वक्त में वे एकत्र होकर अपनी लिखी कविताएं सुनाते हैं और कविता लिखने में प्राप्त अनुभव शेयर करते हैं। सुना है कि वसंत में आड़ू फूलों अपनी मनोहर रंग से चीनी लोगों को मोह लेता है। लेकिन यह प्रोग्राम ध्यान से सुनने के बाद मेरा दिल कर रहा है कि मैं कब आड़ू कविता गांव दौरा करूंगा और आड़ू पेड़ों पर खूबसरती फूलों का सौंदर्य उपभोग करूंगा।

    इसके बाद आज "मैत्री की आवाज़" प्रोग्राम में भारत स्थित विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउंडेशन के सीनियर रिसर्च को-ऑर्डिनेटर ब्रिगेडियर विनोद आनंद जी के साथ बातचीत सुनी। उन्होंने चीन-भारत संबंधों पर अपनी राय पेश की। लेकिन इंटरव्यू में अखिल जी ने आनंद जी को चीन की "वन बेल्ट, वन रोड" वाली पहल को लेकर एक सवाल पूछा,जिसके उत्तर में उन्होंने जो बात कही, उससे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं। मैं एक आम देशवासी हूं, भारत की विदेश नीति का एक्सपर्ट नही हूं। मैं सिर्फ यह ही बोलना चाहूंगा कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सितंबर 2013 और अक्तूबर में "एक पट्टी एक मार्ग " की रणनीतिक अवधारणा पेश की,जिसका मुख्य उद्देश्य है वहां स्थित विभिन्न देशों की समृद्धि और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करना। मैं आशा करता हूं कि संशयों को छोड़कर इस नए रेशम मार्ग की पहल पर भारत भी सक्रिय रूप से भागीदार होगा। ताकि चीन के साथ हमारे देश के संपर्क और समन्वय मज़बूत हो सकें। चीन की वृहद सिल्क रोड परियोजनाओं में हमारे देश की भागीदारी से न केवल दोनों देशों की जनता को बल्कि एशिया और पूरे विश्व को लाभ मिलेगा।

    मीनू:अब लीजिए सुनिए श्रोता zeeshan naiyer के साथ हुई बातचीत।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और मीनू को आज्ञा दीजिए, नमस्कार

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