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    आपका पत्र मिला 2015-10-14
    2015-10-16 10:10:47 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हम पढ़ते हैं उड़ीसा से हमारे मोनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है.....

    10 अक्टूबर को प्रतिदिन की तरह मैंने आज भी अपनी ड्यूटी बखूबी निभायी और सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण शाम ठीक साढ़े छह बजे नियत समय पर अपने तमाम मित्र-परिजनों के साथ मिलकर शॉर्टवेव 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर सुना और अब मैं उस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया आप तक पहुँचाने की क़वायद पूरी करने कम्प्यूटर के समक्ष बैठा हूँ। बहरहाल, ताज़ा अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद पेश साप्ताहिक "आपकी फ़रमाइश आपकी पसन्द" के तहत आज श्रोताओं के पसन्दीदा फ़िल्म -"काला सोना", "1942 अ लवस्टोरी", "बसेरा", "एक ही भूल", "पारसमणि" तथा "ये रात फिर ना आयेगी" के छह सदाबहार गानों के साथ भारतीय खाद्य बाज़ार पर दी गई विस्तृत जानकारी क़ाबिल-ए-तारीफ़ लगी। कार्यक्रम में भारत के खाद्यान्न उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग, नॉन-एल्कोहॉलिक बेवेरेजेज आदि की खपत पर अहम जानकारी प्रदान की गई। यह जानकर दुःख हुआ कि भण्डारण सुविधा के अभाव में खाद्यान्न का चालीस प्रतिशत नष्ट हो जाता है। अनुसंधान और विकास पर समुचित ध्यान न दिये जाने की बात भी काफी हद तक सही प्रतीत हुई। वैसे आपने खाद्यान्न, फल-सब्जियों आदि के उत्पादन से लेकर उसके प्रॉसेसिंग तक के जो भी आंकड़े दिये, काफी सकारात्मक और उत्साहवर्द्धक थे। भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह तालमेल की कमी होना स्वाभाविक है, पर समय के साथ चीज़ों में सुधार अवश्य आयेगा। हमें हमेशा आशावादी एवं प्रयत्नशील रहना चाहिये। धन्यवाद इस सूचनाप्रद प्रस्तुति के लिये।

    श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" की कड़ी में आज भव्य वानर सानचांग को शूकर और भिक्षु रेतात्मा के पास छोड़ कर दोबारा गुफ़ा में पहुँच जाता है और अब तक निन्द्रा में लीन दैत्यराज को रस्सियों में जकड़ ऊपर ले आता है और फिर गुफ़ा को आग के हवाले कर देता है,जिसके चलते गुफ़ा के अन्दर सो रहे तमाम छोटे दैत्य भी जल कर राख हो जाते हैं। इस बीच रस्सियों में जकड़े दैत्यराज की नींद खुल जाती है और शूकर अपने पाँचे के एक ही वार से उसका काम तमाम कर देता है। वास्तव में, वह एक चितकबरे चीते की आत्मा था। अब लकड़हारा, जिसे वानर ने थान भिक्षु के साथ ही बंधनमुक्त किया था, उन गुरु-शिष्यों से उसके घर जाने का आग्रह करता है, जहाँ उसकी बूढ़ी माँ बात जोह रही होती है। सभी उसके घर जाते हैं। लकड़हारे ने सभी के लिये शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की। अब कहानी में आगे क्या होगा, देखना है। धन्यवाद।

    मीनू:सुरेश अग्रवाल जी, हमें रोजाना पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, आगे सुनाया जा रहा है उत्तर प्रदेश से सादिक आज़मी जी का पत्र। उन्होंने लिखा है.....

    आपको सूचित करते हुए अपार हर्ष होरहा है ईद के विशेष अवसर पर हमारे क्लब भवन में रेडियो चीन हिन्दी के प्रोत्साहन और लोगों को जागरूक करवाने हेतु एक विशेष सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें क्लब सदस्यों के अलावा दूर दराज़ के कई लोग उपस्थित हुए, जिनको cri hindi के बेहतर ढंग से समझने के बारे में बताया गया। और लोगों को आपकी वेबसाइट से परिचित भी करवाया गया,साथ में रेडियो चीन हिन्दी सर्विस को लोगों में और अधिक लोकप्रिय बनाने हेतु चर्चा की गई। उसकी एक तस्वीर आपको भेजी जा रही है कृपया मिलने की सूचना दें।

    अनिल:सादिक आज़मी जी, सबसे पहले हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपका फोटो हमें मिल चुका है और हमने उसे अपनी वेबसाइट पर लगा दिया है। इस तरह का प्रयास आगे भी जारी रखें। एक बार फिर धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है छत्तीसगढ़ से चुन्नीलाल कैवर्त जी का। उन्होंने लिखा है......

    चाइना रेडियो इंटरनेशनल के सभी आदरणीय मित्रों को मेरा प्यार भरा नमस्कारl

    आशा है,आप सब सकुशल और प्रसन्न होंगे l सबसे पहले आप सभी भाई बहनों को चीन लोक गणराज्य की स्थापना की 66 वीं वर्षगाँठ की ढेर सारी शुभकामनायें l आशा है,चीन हर क्षेत्र में दिन दूनी रात चौगुनी विकास करे l साथ ही चीन और भारत की मैत्री का तेज गति से विकास हो!

    'चीन का तिब्बत' कार्यक्रम में ल्हासा से शिकाज़े तक रेल मार्ग का रोमांचक और अनोखा यात्रा वृतांत पढ़ने को मिला l पर्यटक आरामदायक रेल के डिब्बे में बैठकर रास्ते में आने वाले यालुचांगबु नदी घाटी, बर्फीले पर्वतों के सुन्दर प्राकृतिक दृश्य का आनंद उठाते हैं।रेल के सफ़र के दौरान रेल-चालक दल के सदस्यों द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाली सेवा पर्यटकों को प्रदान करते हैं l शुरु में रेल-गाड़ी पर अंदर जाने के वक्त, हम द्वार पर टिकट जांच के दौरान पर्यटकों से स्नेहपूर्ण तौर पर कहते है:नमस्कार, कृपया टिकट दिखाइए,कृपया लाइन में खड़े रहें, कृपया रेल-गाड़ी के अंदर आइए। इससे पता चलता है कि चालक दल यात्रियों का कितना सम्मान करते हैं!! इसके साथ ही विशेष तौर पर एक अभिनय टीम की स्थापना की गई है। रास्ते में पर्यटकों के लिए कार्यक्रम पेश करते हैं। इसके माध्यम से पर्यटकों को सफ़र के दौरान थकान महसूस नहीं होती। उन्हें बड़ा मज़ा आता है। मधुर गीत और हंसने की आवाज़ के बीच पर्यटक शिकाज़े तक कब पहुंच जाते हैं ,समय का पता नहीं चलता । सभी लोगों को यात्रा बहुत आनंदमय लगती है। मेरे विचार से हंसने -नाचने-गाने की ऐसी मनोरंजक व्यवस्था शायद ही विश्व की किसी अन्य ट्रेन में हो ? लेकिन पठार में इस रेल मार्ग का निर्माण आसान बात नहीं थी। ल्हासा - शिकाज़े रेलमार्ग समुद्र तल से 3600 से 4000 मीटर की ऊंचाई वाले पठार पर स्थित है। जहां ऑक्सीजन बहुत कम है और पारिस्थितिक स्थिति भी कमज़ोर। रेल मार्ग तीन बार यालुचांगबु नदी को पार करता है। रेलवे-पुल के निर्माण में कितनी कठिनाइयां मौजूद थीं?शायद हम इसकी कल्पना भी नहीं कर पाते। 253 किलोमीटर की दूरी वाली इस रेल लाइन पर पुल, सुरंग की लंबाई 115.7 किलोमीटर लंबी है।समुद्र तल से बड़ी ऊंचाई पर स्थित होने और भौगोलिक स्थिति जटिल होने की वजह से ल्हासा - शिकाज़े रेल मार्ग के निर्माण में प्रति मीटर की कीमत 50 हज़ार युआन लगी थी। यह वर्तमान चीन में पठारीय क्षेत्र में निर्मित सबसे महंगा रेलवे मार्ग है। इस रेल लाइन यातायात के शुरु होने से पता चलता है कि अति जटिल पठारीय भौगोलिक स्थिति में चीन ने रेलवे निर्माण की परिपक्व तकनीक हासिल की है।इस तरह के दुर्गम स्थानों में रेल लाइन बिछाने में चीन के अलावा विश्व का कोई भी अन्य देश सक्षम नहीं है l ल्हासा - शिकाज़े रेलवे का यातायात शुरु होने के बाद बेशुमार चीनी और विदेशी पर्यटक तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से शिकाज़े आ रहे हैं।शिकाज़े में तिब्बती बौद्ध धर्म के पंचेन लामा का निवास स्थान यानी जाशिलुन्बु मठ स्थित है। यहां चुमुलांगमा पर्वत, पठारीय पवित्र झील यांगचो योंगत्सो, तिब्बती बौद्ध धर्म के पाइच्यु मठ और सागा मठ बहुत मशहूर पर्यटन स्थल उपलब्ध हैं।

    निश्चित रूप से शिकाज़े में पर्यटन संसाधन प्रचुर है। ल्हासा से शिकाज़े तक का ल्हासा - शिकाज़े रेल-मार्ग का ,यातायात शुरु होने से शिकाज़े के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। प्रस्तुत आलेख में ल्हासा - शिकाज़े रेल मार्ग के प्रचालन और स्थिति के बारे में सार्थक,सजीव और अद्भुत जानकारी मिलीl ल्हासा- शिकाज़े रेल मार्ग का यात्रा विवरण पढ़ने के बाद , इस रेल में यात्रा करने के लिए मेरा मन भी मचल रहा हैl बहरहाल अच्छी जानकारी के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवादl

    मीनू:चुन्नीलाल कैवर्त जी, हमें बहुत खुशी है कि आपने हमारे कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया हम तक पहुंचायी है। हमें पत्र भेजने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, दोस्तो, अगला पत्र मेरे पास आया है झारखंड से एसबी शर्मा जी का। उन्होंने लिखा है.....

    यह जानकर हर्ष हुआ की चीन में भारत के राजदूत अशोक कंठ ने सी आर आई का दौरा किया और सीआरआई के डायरेक्टर वांग कंगन्येन से मुलाकात की और चीन-भारत संबंध को प्रगाढ़ करने तथा दोनों देशों के बीच मीडिया सहयोग को अधिक गहराने पर चर्चा की। वांग कंगन्येन ने राजदूत अशोक कंठ को बताया कि चीन और भारत का इतिहास बहुत पुराना है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान से दोनों देशों की जनता के बीच समझ व संपर्क गहरा हो सकता है। वर्तमान में सीआरआई चीनी फिल्में, टीवी धारावाहिक व अन्य कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का हिन्दी भाषा में अनुवाद व डबिंग कर रहा है, जिसे बाद में भारत में प्रसारित किया जाएगा। इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से भारत के लोग चीन को और नजदीक से समझ सकेंगे सी आर आई का यह प्रयास सराहनीय है भविष्य में हम सी आर आई से ऐसे क़दमों की अपेक्षा करते है और इसका धन्यवाद करते है

    अनिल:एसबी शर्मा जी, हमें पत्र भेजने और अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। चलिए, अंत में आप सुनेंगे पश्चिम बंगाल से हमारे मोनिटर रविशंकर बसु जी का पत्र। उन्होंने लिखा है....

    1 अक्टूबर ,2015 चीन हुआ 66 का। सबसे पहले चीन लोक गणराज्य की स्थापना की 66वीं वर्षगांठ के मौके पर मैं सीआरआई हिंदी विभाग के सभी कर्मचारियों को ढेर सारी वधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

    15 अगस्‍त 1947 को भारत आजाद हुआ। पहली अक्टूबर 1949 को नए चीन की स्थापना हुई और भारत ही पहला गैर कम्युनिस्ट देश था जिसने इसे मान्यता दी। सच यह है कि हमारे पड़ोसी देश चीन ने पिछले 35 साल में जो कामियाबी हासिल की है,मानव इतिहास में उस जैसी मिसाल और कहीं नहीं मिलती है। 1980 में भारत और चीन की स्थिति लगभग एक जैसी थी। लेकिन आज लगभग 35साल बाद चीन भारत से कितना आगे निकल गया है। पिछले 20 सालों से चीन में 10 फीसदी वार्षिक विकास दर दर्ज की गई। दुनिया के आर्थिक विकास में यह अविश्वसनीय घटना है। चीनी लोगों ने एक गरीब चीनी समाज को आर्थिक चमत्कार से बदल दिया है। हाल के समय में दुनिया में चीन सबसे तेजी से आर्थिक वृद्धि हासिल करने वाला देश रहा है।

    भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, आजाद प्रेस और न्यायपालिका है, लेकिन करोड़ों भूखे बच्चे हैं। चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, लेकिन वह दुनिया की दूसरी बड़ी आर्थिक सत्ता है। बिजली कनेक्शन और ऊर्जा की खपत में भारत चीन से काफी पीछे है। आजादी के 69 सालों के बाद भी 33 प्रतिशत भारतीयों को बिजली उपलब्ध नहीं है, जबकि चीन की आबादी के महज एक फीसदी लोगों तक ही बिजली की पहुंच नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 58 प्रतिशत लोगों को पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। एक आंकड़े के मुताबिक,भारत का सालाना खाद्यान उत्पादन 206 मिलियन टन है और चीन का 410 मिलियन टन, जबकि भारत के पास चीन से दुगना कृषियोग्य इलाका है। विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी महज 0.6 फीसदी है, जबकि चीन और हांगकांग मिलकर 6 फीसदी भागीदारी रखते हैं। विश्व स्वर्ण परिषद के मुताबिक,भारत के पास 557.7 टन सोना मौजूद है, जो देश के कुल विदेशी पूंजी भंडार का 7.1फीसदी है,जबकि चीन के पास 1,054.1 टन सोना मौजूद है। चीन की लगभग 40 प्रतिशत जनता इंटरनेट का इस्तेमाल करती है जबकि भारत की सिर्फ 15 फीसदी जनता इंटरनेट का उपयोग करती है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में भारत पूंजी निवेश यानी एफडीआई के मामले में पांचवे नंबर पर था। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में दुनिया का 0.25 जबकि चीन में 10.25 होता है। भारत की अर्थव्यवस्था पौने पांच लाख करोड़ डॉलर की है और चीन की 12 लाख 61 हजार करोड़ डालर है।

    मीनू:आगे बसु जी ने लिखा है......चीन के पास चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता है। 130 करोड़ की आबादी है,प्रतिभाशाली लोग हैं। आज चीन दुनिया में सबसे तेज विकास करने वाला देश है और हम अब भी विकासशील। चीनी लोगों ने बड़े सपने देखे हैं। आज हर चीनी एक मजबूत और संपन्न चीन चाहता है। समृद्ध देश चाहता है। विकसित और अग्रणी मुल्क चाहता है। चीनी जनता ने अपनी नयी नियति लिखने में अपनी ऊर्जा लगा ली है। पूरा मुल्क एक सपने से संचालित है। 1978 में हुए नीति परिवर्तन और खुलेपन के बाद चीन के विकास की कहानी की शुरूआत हुई। चीन के दिवंगत नेता तङ श्यो फिंग (Deng Xiaoping) का मानना था कि चीन को पूरी तरह सोशलिस्ट बनाने के लिए पहले उसकी अर्थव्यवस्था का मजबूत होना जरूरी है और इसकी शुरूआत तब भी हो सकती है जब चीन की बंद आर्थिक व्यवस्था के दरवाजे पूरी दुनिया के लिए खोल दिए जाएं। तङ श्यो फिंग का इसी सोच ने चीन को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बना दिया। चीन ने सारी दुनिया के सामने घोषणा कि समाजवादी चीन ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना कर आर्थिक सुधार का काम शुरू किया। 1978 के दिसंबर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 11वीं कंद्रीय कमेटी का तीसरा पूर्णाधिवेशन आयोजित हुआ, जिस ने चीन में सुधार व खुलेपन का युग आरंभ कर दिया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेता तङ श्यो फिंग ने पहली बार औपचारिक रूप से स्पेशल इकोनॉमिक जोन यानी विशेष आर्थिक जोन स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया, इस तरह सुधार और खुले द्वार की नीति लागू होने के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में और चीनी लोगों के प्रयास से पिछले 35 वर्षों में चीन में दिन दोगुना रात चौगुना परिवर्तन हुआ है ।

    अनिल:आगे बसु लिखते हैं.........वास्तविकता यह है कि आज चीन का स्वर्णिम युग है। चीन ने पिछले 30-35 साल में जिस गति से विकास किया है उसे देखकर पूरी दुनिया अचंभित है।चीन की तरक्की की विकास की कहानी की शुरूआत हुई 1978 में। चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेता स्वर्गीय तङ श्यो फिंग (Deng Xiaoping) ने अर्थव्यवस्था को कम्युनिस्ट नीतियों से अलग करने की शुरुआत की। उन्होंने चीन के सुधार,खुलेपन तथा आधुनिकीकरण की नीति के मुख्य परिकल्पक थे। वर्ष 1978 से सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद समाजवादी चीन एक गरीब, पिछड़े व बंद द्वार होने वाले देश से मुक्त होकर एक समृद्ध, सभ्य व खुले देश के रूप में बदल गया।यह एक ऐतिहासिक परिवर्तन है। जिस आबादी को विकास में बाधक माना जाता है उसे चीन ने अपनी ताकत बनाया। आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। एक आर्थिक महाशक्ति है। दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज पूरी दुनिया में "Made in China" का बोलबाला है। हमलोग देख रहे है कि आज चीन का बना सामान पूरी दुनिया के बाजारों में छाया हुआ है,सस्ते से लेकर महंगे तक,जिसका इस्तेमाल हम सब अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं।

    चीन में कुल 6 स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन है। यहां के विशेष आर्थिक क्षेत्र काफी बड़े होते हैं। अगर भारत से तुलना की जाए तो जहां भारत में सिर्फ 10 हेक्टेयर जमीन पर भी विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाया जाता है वहीं चीन का कोई भी स्पेशल इकॉनोमिक जोन 30 हजार हेक्टेयर से छोटा नहीं है। यहां पर बिजली सड़क पानी ये सब कोई समस्या नहीं हैं। स्पेशल इकोनॉमनिक जोन के बाद चीन ने अपने प्रांतों में स्पेशल डेवेलपमेंट जोन बनाये। एक डेवेलपमेंट जोन में एक तरह के उत्पाद बनाने वाली फैक्टरी होती है। इसलिये अगर चीन का एक प्रांत (राज्य) सिर्फ खिलौने बनाने के लिये मशहूर है तो दूसरा होजियरी(hosiery)। चीन के विकास के इस मॉडल में शेनचेन जैसे स्पेशल इकोनॉमनिक जोन की अहम भूमिका रही है।शेनचेन आज चीन की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा और सबसे मजबूत इंजन है। एक अनुमान के मुताबिक जल्द ही शेनचेन की अर्थव्यवस्था हांगकांग से भी बड़ी हो जाएगी। चीन में जो भी टेक्नॉलाजी का डेवलेपमेंट हुआ है वो शेनचेन से शुरू हुआ है। आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। इसी एक्सपोर्ट की वजह से वर्ष 2013 के अंत तक चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3,660 अरब डालर रहा जो विश्व में सबसे बड़ा है और यह विदेशी व्यापार से सबसे अधिक लाभ कमाने वाला देश है।

    मीनू:अंत में बसु जी ने लिखा है.....भारत में जमीन अधिग्रहण को एक कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। लोकतांत्रिक देश होने की वजह से जमीन अधिग्रहण और पुनर्वास भारत की सरकार के लिये बड़ा मुद्दा होता है। जबकि विकास के शुरुआती दौर में चीन की सरकार की नजर आर्थिक विकास पर रही। उसके सामने किसी भी तरह के विरोध को जगह नहीं दी गई। किसी भी विदेशी के लिए चीन में कंपनी बनाना और बिजनेस शुरू करना बेहद आसान होता है। चीन अगर आज दुनिया में एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर जाना जाता है तो उसकी वजह हैं कि विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल बनाना और स्किल्ड लेबर तैयार करना, ऐसी नीतियां बनाना जो कारोबार बढ़ाने में मददगार हों और इन सब की मदद से दुनिया की हर वो चीज बनाना जिसकी जरूरत लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में पड़ती है। यही वजह है कि दुनिया के बाजार Made in China प्रोडक्ट्स से भरे पड़े हैं।

    फिर भी मेरा भारत महान है और मुझे गर्व है कि मैं भारतीय हूं । हर वक्त मेरा दिल कहता है कि "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ..."। इस साल भारत और चीन - दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापना की 65वीं वर्षगांठ है। यह बात तो सही है कि आज चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक शक्ति बन चुका है और भारत के सबसे बड़े पड़ोसी देश भी है,जिसके साथ हमारे रिश्ते सदियों से पुराने हैं। चीन-भारत संबंध के सामने महत्वपूर्ण विकास के अवसर खड़े हैं। चीन-भारत संबंध का विकास करना और उसे मजबूत करना दोनों देशों की समान ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत और चीन के संबंध पहले के मुकाबले अधिक मधुर हुए हैं।विभिन्न क्षेत्रों में चीन और भारत के बीच सहयोग की भावना लगातार उन्नत हो रही है। पिछले वर्ष सितंबर में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने भारत की तीन दिवसीय राष्ट्रीय यात्रा की जो दोनों देशों के बीच व्यापक आवाजाही मजबूत करने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं पिछले 14 मई से 16 मई,2015 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मैत्रीपूर्ण चीन यात्रा से भारत-चीन संबंधों के विकास में विश्वास की डोर मज़बूत होने लगी है।

    हिंदी चीनी भाई भाई। भारत- चीन मैत्री जिंदाबाद।

    मीनू:अब सुनिए हमारे श्रोता राजेंद्र कुमार के साथ हुई बातचीत।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और मीनू को आज्ञा दीजिए, नमस्कार

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