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    आपका पत्र मिला 2015-09-30
    2015-10-09 10:28:45 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हम पढ़ते हैं ओड़िशा से हमारे मोनिटर सुरेश अग्रवाल का। उन्होंने लिखा है.....

    दिनांक 21 सितम्बर को वर्षाजल की चाहत में आकाश की ओर टकटकी लगाये चातक की तरह प्रतिदिन की भांति हमारा इन्तज़ार आज भी तब समाप्त हुआ, जब हम सभी मित्र-परिजनों ने शाम ठीक साढ़े छह बजे शॉर्टवेव 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण सुना। और अब मैं उस पर हम सभी की मिलीजुली प्रतिक्रिया लिये आपसे मुखातिब हूँ। उम्मीद है कि ज़ल्द ही हमारी बात आप तक पहुँच जायेगी। बहरहाल, देश-दुनिया के ताज़ा समाचारों के बाद पेश साप्ताहिक "चीन का भ्रमण" के तहत आज चीन की राजधानी पेइचिंग से महज़ सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांस्कृतिक शहर थ्येनचिंग की सैर और वहां के प्राचीन वास्तुशैली वाले भवनों में से एक संस्कृति मन्दिर पर दी गई जानकारी काफी महत्वपूर्ण लगी। यह जानकारी हमारे लिए सर्वथा नई थी कि प्राचीन समय में किसी भी सरकारी पद-प्राप्ति हेतु इन संस्कृति मन्दिर में प्रवेश लेना अनिवार्य होता था। अब भी इन संस्कृति मन्दिरों में कन्फ़यूशियस महान की पूजा की जाती है और उनकी स्मृति में समारोह आयोजन होता है। कार्यक्रम में यहाँ के ऐतिहासिक घण्टा भवन, जिसे कभी तोड़ा गया, तो कभी बनाया गया, पर भी महती जानकारी प्रदान की गई। शहर के क़्वानतुंग भवन और ओपेरा थिएटर सम्बन्धी जानकारी भी बरबस हमें वहां खींच कर ले जाती थी। वैसे मुझे वह चीनी कहावत बहुत अच्छी लगी कि -"सौ बार सुनने से बेहतर है एक बार नज़र डालना।" मैं उक्त कहावत पर अमल भी करना चाहता हूँ, पर नज़र डालना इतना सहज नहीं।

    कार्यक्रम में चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित छिंगहाई झील और उसके कोई 4300 वर्गकिलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैले पक्षी द्वीप पर्यटन स्थल पर दी गई जानकारी तो हमें प्रकृति के और करीब ले गई। मई-जून के महीने में बड़ी तादाद में विभिन्न किस्मों के पक्षी वहां पहुँचते हैं और विगत 2003 से वहां जाने वाले पर्यटकों की संख्या प्रतिवर्ष एक लाख को पार कर गई है। पक्षियों की सुरक्षा के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा पर्याप्त कदम उठाये गये हैं, वरना पहले लोग पक्षियों का शिकार करते थे। सही मायने में कहा जाये, तो पक्षीद्वीप पर्यटन स्थल, पक्षी,पारिस्थितिकी और मानव के बीच का एक अद्भुत संगम है। मौक़ा मिला, तो मैं अवश्य अवलोकन करना चाहूँगा।

    मीनू:आगे सुरेश जी लिखते हैं.... कार्यक्रम "मैत्री की आवाज़" के अन्तर्गत हिन्दी दिवस के अवसर पर गत 11 सितम्बर को पेइचिंग स्थित भारतीय दूतावास में आयोजित विशेष गतिविधि सम्बन्धी रिपोर्ट एवं पेइचिंग विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक से ली गई भाई अखिल पाराशर द्वारा भेंटवार्ता काफी महत्वपूर्ण लगी। इसके तुरन्त बाद विषय परिवर्तन करते हुए आपने दिल्ली स्थित संवाददाता देव द्वारा श्रोता योगेश्वर त्यागी से ली गई भेंटवार्ता सुनवाई। बातचीत अच्छी थी, परन्तु हिन्दी दिवस जैसे गहन विषय की चर्चा के बीच इसे समाहित किया जाना, थोड़ा असहज प्रतीत हुआ। आशा है कि इस ओर ध्यान देंगे।

    श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" अब अन्तहीन प्रतीत होने लगी है और इसकी विषयवस्तु की प्रस्तुति भी आम-श्रोता से समझ से परे की बात है। विशेषकर, आज के अंक में स्वर्गराज़ा ली के महल में पहुँचने के बाद जब शुक्र नक्षत्र द्वारा उन्हें वानर द्वारा उन पर मुक़द्दमा दायर करने की बात कही तो - उसके बाद का वृत्तांत काफी पेचीदा बन पड़ा, जो कि आम-श्रोता के लिए समझना लगभग असम्भव है। आप चाहें, तो इस विषय पर अन्य श्रोता-मित्रों की राय भी आमंत्रित कर सकते हैं। धन्यवाद।

    अनिल:हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अगला पत्र हम पढ़ते हैं गुजरात से मकवाना विशाल कुमार जी का। वे लिखते हैं कि सीआरआई के पूरे स्टाफ को मेरा नमस्कार। आपक प्रोग्राम सुनकर बहुत खुशी होती है। क्योंकि इसके जरिए तमाम जानकारी हासिल होती है। आगे लिखते हैं कि 7 सितंबर के चीन का भ्रमण प्रोग्राम में ल्हासा शहर में तिब्बती शैली के होटल के बारे में पता चला। अच्छी प्रस्तुति के लिए शुक्रिया।

    वहीं 11 सितंबर को तिब्बत की 50 वीं वर्षगांठ पर विशेष रिपोर्ट पेश करने के लिए धन्यवाद। वहीं दक्षिण एशिया फोकस काफी रुचिकर लगा, धन्यवाद।

    जबकि 12 सितंबर को आपकी पसंद प्रोग्राम में गाने और जानकारी बहुत अच्छी लगी।

    मैं लगातार आपके प्रोग्राम सुनता हूं। आपकी पूरी टीम को एक बार फिर बधाई।

    मीनू:मकवाना विशाल कुमार जी, हमें पत्र भेजने और अपनी राय हमें बताने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है रवि श्रीवास्तव जी का। उन्होंने हमारी वेबसाइट पर लिखा है।

    शी चिनफिंग की अमेरिकी यात्रा बेहद महत्‍वपूर्ण है खासतौर से बदलते परिदृश्‍य में शायद चीन और अमेरिकी नजदीकियां अपने आप में एक दूसरे की जरूरत बन चूकी हैं। चीन द्वारा पिछले दिनों अपनी मुद्रा युआन का दो बार अवमूल्‍यन कर अर्थव्‍यवस्‍था के नए द्वार का सृजन किया है वहीं दूसरी ओर अपने सैन्‍य बल को घटाकर भी विश्‍व समुदाय के शांति का संदेश देने का प्रयास किया है। चीन के इन प्रयासों से अमेरिका को एक दोस्‍ताना संदेश गया है जो चीन के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। अभी तो इस यात्रा का आगाज हुआ है वाशिंगटन चीन के इन प्रयासों पर कितनी तवज्‍जो देता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

    अनिल:रवि श्रीवास्तव जी, हमें बहुत खुशी है कि आपने चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग की अमेरिका यात्रा पर ध्यान दिया और हमें मेसेज दिया। इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र हमें भेजा है पश्चिम बंगाल से देवशंकर चक्रवर्ती जी ने। उन्होंने लिखा है..... मैंने आपकी वेबसाइट पर "चीन का भ्रमण"प्रोग्राम में तिब्बती शैली वाले होटल के बारे में एक खास प्रोग्राम सुना।

    चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा शहर एक बहुत आकर्षक पठारीय शहर है। लम्बे समय के विकास के बाद यह शहर आज तक छिंगहाई-तिब्बत पठार में "मोती" के रूप में चमकदार रहा है। इस शहर का अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य ,स्वच्छ नीला आकाश, कलकल बहती ल्हासा नदी और लाल और सफेद रंगों वाले लामा मंदिर देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। ल्हासा के चुलाखांग मठ के पास पूर्वी पेइचिंग नामक सड़क बहुत प्रसिद्ध है। तिब्बती शैली वाला होटल इसी सड़क पर है। होटल के मुख्य गेट के ऊपर चीनी, तिब्बती और अंग्रेजी भाषा में होटल का नाम लिखा है। सुना है कि ल्हासा जाने वाले ज्यादातर पर्यटक तारांकित होटलों की तुलना में तिब्बती शैली वाले छोटे होटलों में ठहरना ज्यादा पसंद करते हैं। इन होटलों में घी वाली तिब्बती चाय के अलावा आयरलैंड की शुद्ध कॉफी भी मिलती है।

    जुलाई 2006 को विश्व में सबसे ऊंचे और सबसे लम्बे रेल मार्ग- छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू हुआ। छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग ने न सिर्फ़ तिब्बती लोगों के लिए विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आने-जाने का रास्ता सुगम बनाया है, बल्कि देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बर्फीले पठार पर आने का रास्ता भी समतल किया है। विश्व के सबसे ऊंचे स्थान पर निर्मित पोताला महल, सबसे लंबे रेल मार्ग छिंगहाई-तिब्बत रेलवे तथा इसके अलावा कई पहाड़, झील, मैदान और मठ भी हैं। वहां की प्राकृतिक सुंदरता, मानवीय सभ्यता लोगों का मन अपनी तरफ आकर्षित करती है।रूपा जी द्वारा पेश ल्हासा की मनमोहक रिपोर्ट सुनकर मुझे वहां जाने का दिल कर रहा है। क्या पता कब मेरा यह सपना सच होगा!

    मीनू:देवशंकर चक्रवर्ती जी, हमें पत्र भेजने और अपनी प्रतिक्रिया हम तक पहुंचाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अगला पत्र मेरे हाथ आया है बिहार से अतुल कुमार जी का। उन्होंने लिखा है.....

    17 सितंबर को सी आर आई हिंदी सर्विस का रात्रिकालीन प्रसारण 41 MB पर सुना जो बिल्कुल साफ़ एवं सुंदर सुनाई पड़ा। बीजिंग मे मनाये गये हिंदी दिवस पर प्रस्तुत विस्तृत रिपोर्ट बहुत ही सुंदर एवं ज्ञानवर्धक लगी।हमें यह जानकर काफी प्रसन्नता हुई कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का चीन मे काफी तेजी से प्रचार-प्रसार हो रहा है और चीनी जनता मे हिंदी भाषा,भारतीय सभ्यता व संस्कृति को नजदीक से जानने एवं समझने की प्रवृति तीव्रता से बढ़ रही है।यह दोनों देश के आंतरिक संबंधों को मजबूत बनाने मे एक मजबूत कड़ी का कार्य करेगी।बीजिंग विश्वविधालय की प्रो.स्मिता चतुर्वेदी से ली गयी भेंटवार्ता बहुत ही रोचक एवं सुंदर लगी।सुंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये सी आर आई हिंदी सर्विस के सभी मित्रों को धन्यवाद एवं आभार।

    अनिल:अतुल कुमार जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, दोस्तो पश्चिम बंगाल से हमारे मोनिटर रविशंकर बसु जी ने हमें पिछले 50 वर्षों में तिब्बत में दिन दोगुना रात चौगुना परिवर्तन हुआ है और विवादों में घिरा 10 वां विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन शीर्षक एक लेख भेजा है। आईए, सुनते हैं, उन्होंने क्या लिखा है.....

    18 सितंबर ,2015 शुक्रवार को रात साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक शार्ट वेव 7395 किलोहर्ट्ज (kHz) पर आपका रेडियो प्रोग्राम सुना।हर दिन की तरह 18 सितंबर ,2015 शुक्रवार को रात साढ़े नौ बजे मैंने आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। आज अखिल पराशर जी द्वारा पेश दुनिया भर के ताज़ा अंतर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद श्याओ थांग जी द्वारा पेश किये गए साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" प्रोग्राम बहुत ध्यान से सुना। यह मेरा पसंदीदा प्रोग्राम है।

    आज "चीन का तिब्बत" प्रोग्राम में हाल ही में चीनी तिब्बती सांस्कृतिक आदान प्रदान प्रतिनिधिमंडल की रूस यात्रा को लेकर एक खास रिपोर्ट सुनी जो अत्यन्त महत्वपूर्ण लगी। इसे सुनकर मुझे एक वास्तविक तिब्बत के बारे में जानकारी मिली। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बाद पिछले 50 वर्षों में तिब्बत की अर्थव्यवस्था, मकान, यातायात, परिस्थिति के पर्यावरण, पर्यटन आदि क्षेत्रों में बड़ा विकास हुआ है।रिपोर्ट से पता चला है कि लोकतांत्रिक सुधार से पहले तिब्बती लोगों का जीवन अत्यन्त कष्टदायक था । पुराने तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास व्यवस्था लागू थी , उस समय तिब्बती लोगों का जीवन मुसीबतों से भरा था । लेकिन चीन सरकार ने तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया, इस के बाद वहां भारी परिवर्तन आया है । 50 सालों के विकास से तिब्बत में जमीन आसमान का फर्क पैदा हुआ है । आज के तिब्बत में तिब्बती जनता सुखी जीवन बिता रही है। पिछले कई वर्षों से तिब्बत और सुन्दर हुआ है, इसका यातायात ज्यादा सुविधाजनक हुआ है, खाने-पीने की चीज़ें पर्याप्त हैं और तिब्बती लोगों का जीवन स्तर उन्नत हुआ है। मेरा विचार है कि तिब्बत के आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक विकास के लिए चीन सरकार भारी कोशिश कर रही है।

    मीनू:आगे बसु जी ने लिखा है....जुलाई 2006 को विश्व में सबसे ऊंचे और सबसे लम्बे रेल मार्ग-छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ। इस रेल मार्ग की कुल लम्बाई 1956 किलोमीटर है। छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग ने न सिर्फ़ तिब्बती लोगों के लिए विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आने-जाने का रास्ता सुगम बनाया है, बल्कि देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बर्फीले पठार पर आने का रास्ता भी समतल किया है । आज तिब्बत में बड़ी संख्या में पर्यटक जाते हैं । इधर के सालों में चीन की केन्द्रीय सरकार के नीतिगत समर्थन और समूची चीनी जनता की सहायता से तिब्बती आबादी क्षेत्रों में किसानों और चरवाहों के जीवन में भारी बदलाव आया है। सभी युवाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। अर्थव्यवस्था, संस्कृति, सामाजिक जीवन और बुनियादी संस्थापन निर्माण आदि क्षेत्रों में भी व्यापक परिवर्तन हुआ है। मैं तिब्बती जनता के खुशहाल समाज का निर्माण के लिए चीन सरकार के प्रयास और आर्थिक सहायता की सराहना करता हूं।

    आज "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम में पंकज श्रीवास्तव जी ने वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी जी के साथ मध्‍य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित 10 वें विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन को लेकर जो खास चर्चा की,वह मुझे समसामयिक लगी। इस सम्‍मेलन में सरकार की ओर से कई लेखकों, साहित्‍यकारों को नहीं बुलाये जाने पर उन्होंने सरकार की कड़ी निंदा की जो मेरे विचार में सही है । इस सम्‍मेलन में कई पद्मश्री और कई साहित्‍य अकादमी प्राप्‍त लेखकों को न बुलाया जाना ठीक नहीं है। सुना है कि कई लेखकों और पत्रकारों ने विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन को "विश्‍व हिंदू सम्‍मेलन" की संज्ञा दी है।

    अनिल:अंत में बसु जी ने लिखा है.....इंटरव्यू में सुना है कि विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने साहित्यकारों को दारूबाज, झगड़ालू और खाने-पीने वाला बताया। मुझे लगता है कि वी.के. सिंह के इस मूर्खतापूर्ण बयान से उनकी पार्टी भाजपा का असली चेहरा सबके सामने आया है। शर्मसार करने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे सही करार दिया जैसा उन्होंने कहा, यह हिंदी भाषा का सम्मेलन है, हिंदी साहित्य का नहीं।अगर उनका बस चले तो वह एक दिन बांग्ला साहित्य से महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर और अंग्रेजी साहित्य से शेक्सपीयर को भी अलग कर देंगे । भाषा तो साहित्यकार ही गढ़ता है । विभिन्न भाषी साहित्यकार नये श्ब्द लाते हैं , मुहावरे और कहावतों से भाषा को समृद्ध करते हैं। साहित्यकार पैदा नहीं किये जाते।जंगल में पेड़ों की तरह पलते हुये एक दिन वृक्ष से खड़े होते हैं । शीर्षस्थ रचनाकार राजेश जोशी ने सही कहा- वे असली साहित्य और साहित्यकारों से डरते हैं। हमारी यह चुप्पी टूट रही है। तमाम लेखक संगठनों, प्रगतिशील-लोकतांत्रिक संगठनों को आगे आकर आवाज उठानी चाहिए।

    मीनू:अब सुनिए हमारे श्रोता अभय चन्द्र झा के साथ हुई बातचीत।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और मीनू को आज्ञा दीजिए, नमस्कार

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