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    आपका पत्र मिला 2015-09-02
    2015-09-06 10:51:58 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। समय की कमी के चलते आज के कार्यक्रम में श्रोता के साथ हुई बातचीत नहीं सुनायी जाएगी।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। दोस्त, चीनी जन जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध और विश्व फ़ासिस्ट विरोधी युद्ध की 70वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सैन्य परेड कल यानी 3 सितंबर को चीन की राजधानी पेइचिंग में आयोजित होगी। हम यहां परेड के सफल आयोजन की शुभकामनाएं देते हैं। दोस्तो, हमारे मॉनिटर पश्चिम बंगाल से रविशंकर बसु ने इस इस मौके पर हमें एक बहुत लंबा पत्र भेजा है। आईए, सुनते हैं, उन्होंने क्या लिखा......

    इतिहास काल का दर्पण है जहां हम बीते हुए काल को याद करते हैं । इतिहास एक विषय नहीं अपितु अस्तित्व बोध है जहां अतीत वर्तमान में जीवित है और इतिहास का विषय मृत्यु नहीं जीवन है। चीनी जनता के जीवन में, सितंबर का महीना एक ऐसा महीना है जब चीनी लोग जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में विजय की खुशियां मनाते हैं और इस विभीषिका युद्ध में सभी शहीदों की याद करते है ।

    इस वर्ष विश्व फ़ासिस्ट विरोधी युद्ध की विजय और चीनी जनता के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में विजय की 70वीं वर्षगांठ है। इतिहास के अनुसार चीन विश्व फासीवाद -विरोधी युद्ध की मुख्य भूमि रहा है। 7 जुलाई 1937 को चीन में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध शुरू हुआ। चीन में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीनी जनता और सैनिकों ने हाथ मिलाकर जापानी शत्रुओं का सामना किया था और विश्व फासीवाद-विरोधी युद्ध विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 20वीं सदी के 20 या 30 के दशक में फ़ासिस्ट शक्ति इटली,जापान और जर्मनी में पैदा हुई। जापान ने पूर्वी एशिया पर अपना हुकूमत कायम करना चाहता था । विश्व फ़ासिस्ट विरोधी युद्ध में दुनिया भर के विभिन्न देशों ने एक दूसरे का समर्थन किया। सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने चीन की सहायता की,जबकि चीन ने विश्व की मदद की। एशिया क्षेत्रों में फासिस्ट विरोधी विश्व युद्ध के मैदान में चीन ने शक्तिशाली जापानी फ़ासिस्ट के विरुद्ध साहस दिखाया और विश्व में सबसे पहले फ़ासिस्ट विरोधी संघर्ष का झंडा फहराया। चीन के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष माओ त्जे-तुंग की अगुवाई में चीनी लाल-सेना व जनता ने जापानी आक्रमणकारियों को परास्त करने के लिए कठोर संघर्ष किया और जापानी सेना को चीन से भगा दिया।

    सच यह है कि इतिहास को कभी ढका नहीं जा सकता और इतिहास अपने गवाहों की गवाही में ज़िंदा रहता है। विश्व विजयी बनना हर ताकतवर देश के तानाशाह का सपना होता है। जर्मनी के चांसलर एडोल्फ़ हिटलर के अलावा जापान ने भी यही सपना देखा था। सुदूर पूर्व में जापान का राजवंश भी इसी सपने को पूरा करने की लालसा में 1937 से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहा था। जल्दी ही वह भी द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया। जापान ने 18 सितंबर 1931 में चीन के उत्तर-पूर्वी सेना के उत्तरी अड्डे पर गोलाबारी की और शन्यांग शहर पर हमला किया था। यह तारीख जापान के साम्राज्यवादी सशस्त्र शक्ति के चीन पर आक्रमण करने की शुरूआत थी। 7 जुलाई, 1937 को जापानी हमलावरों ने पेइचिंग के दक्षिण-पश्चिमी उपनगर के मार्को पोलो पुल के निकट वहां तैनात चीनी सेना पर हमला किया और इस से चीन में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध छेड़ा । वर्ष 1937 की 13 दिसम्बर को, लगभग दो लाख जापानी सैनिकों ने तत्कालीन चीन की राजधानी नान चिन पर आक्रमण किया और शहर में आम नागरिकों तथा चीनी सैनिकों का नरसंहार किया। केवल छह हफ्तों में तीन लाख बेगुनाह चीनी जापानी सेना द्वारा मारे गये, जिन में 90 हजार से ज्यादा युद्धबंदी भी शामिल थे। नान चिन नरसंहार जापानी सैनिकों द्वारा चीन में किया गया क्रूर अपराध है। आंकड़ों के अनुसार,इस युद्ध में लगभग 3.5 करोड़ चीनी सैनिकों और नागरिकों की मौत हुई थी और बड़ी तादाद में लोग घायल हुए थे।

    मीनू:आगे बसु जी ने लिखा है.....द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हमलावर जापानी सैनिक महज मनोरंजन के लिए चीन के लोगों पर या चीन में रहने वाले अन्य देशों के लोगों पर जुल्म किया था। 1938 से 1945 के जापानी आधिपत्य के दौरान जापानी फौजों ने लगभग दो लाख महिलाओं को यौन गुलामी में धकेला था। उस दौरान इन महिलाओं को 'कंफर्ट विमेन' (Comfort Women ) कहा जाता था । चीनी नागरिकों के घरों को छीनकर इन्हें 'आराम केंद्र' (comfort station) बना दिया जाता था और इन घरों में चीनी महिलाओं का भयावह यौन शोषण किया जाता था। इनमें से आज मुट्ठीभर महिलाएं ही जीवित हैं, जिनमें से कुछ ही महिलाओं ने कंफर्ट विमेन होने की बात स्वीकारी है। लेकिन हजारों महिलाएं ऐसी थी,जिन्हें इस असहनीय दुख और पीड़ा के लिए जापान से कोई माफी और मुआवजा नहीं मिला और उनकी मौत के साथ ही यह राज दफन हो गया। ये इतिहास के सर्वाधिक दर्दनाक अध्यायों में से एक हैं। अफसोस यह है कि कुछ जापानी नेता अब इसे जायज ठहरा रहे हैं। 96 वर्षीय जापानी सैनिक कोबायाशी कान्चो जिनको चीनी सेना ने 19 जून 1941 को बंधक बना लिया था ,कहा कि "जापान द्वारा चीन के खिलाफ शुरू किया गया यह युद्ध प्रतिशोध का युद्ध था, जिससे चीनी लोगों को असहनीय दर्द से गुजरना पड़ा"।

    15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था । 2 सितंबर 1945 को, जापान सरकार ने एक आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर बिना किसी शर्त के आत्मसमर्मण स्वीकार किया । चीन सरकार के प्रतिनिधि ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किए। 3 सितंबर 1945 को चीन में तीन दिनों तक युद्ध की विजय मनाई गई।13 अगस्त 1951 को चीन सरकार ने 3 सितंबर को जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध का विजय दिवस की मान्यता दी।

    अनिल:बसु जी आगे लिखते हैं.....इतिहास हमेश कोई ना कोई सबक देता है । इतिहास से हमें चेतावनी भी मिलती है। सच्चाई यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लेकर अब तक पिछले 70 वर्षों में जर्मनी ने बड़ी ईमानदारी और प्रयास से अपनी गलतियों को प्रतिबिंबित करते हुए शांति कायम रखी और पुनः युद्ध होने से रोकने के लिए कानूनी तरीका अपनाया। इसलिए जर्मनी को फिर से सभी देशों का भरोसा और सम्मान मिला। एक अंग्रेजी रिपोर्ट में मैंने पढ़ा 7 दिसंबर 1970, वॉरसॉ (Warsaw) में एक ठंडा और गीला दिन में जर्मन चांसलर विली ब्रांट वारसॉ घेटो (ghetto) में नाज़ियों द्वारा कत्लेआम के शिकारों के स्मारक पर वे माल्यार्पण करके श्रद्धांजलि दी । वह स्मारक के सामने घुटनों के बल पर बैठ गए और इतिहास की सेल्फ क्रिटिसिज़म यानी आत्मालोचना की।

    लेकिन इतिहास के मामले में जापान से नहीं कोई उम्मीद! यह कटु सत्य है कि जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तथा उससे पहले चीन के क्षेत्र पर कब्जे के मामले में कोई पछतावा व्यक्त नहीं किया । जापान ग़लत ऐतिहासिक दृष्टिकोण नहीं छोड़ता है। अभी भी जापान दूसरे विश्व युद्ध के दौरान के कृत्यों को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 26 दिसंबर ,2013 को यासुकुनी मंदिर का दौरा किया था और अपने सैनिकों के प्रति आदर जताया। इस यासुकुनी मंदिर जापान का सैन्यवादी अतीत है। इस मंदिर में द्वितीय विश्व युद्ध के 14 युद्ध अपराधियों को दफनाया गया है,जिन्होंने चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में नृशंस युद्ध किया था और जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार जापान के कुछ राजनयिक एक तरफ़ लोकतंत्र, स्वतंत्र और शांति की बातें करते हैं, दूसरी तरफ़ सैन्यवाद की प्रशंसा करते हुए विदेशों के खिलाफ़ अपने आक्रमणकारी तथा औपनिवेशिक इतिहास की साज-सजावट करते हैं,जिस तरह से लोकतंत्र, स्वतंत्र और शांति के साथ बदसलूकी की जाती है।

    यहां पर मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि जापान ने त्याओयू द्वीप (Diaoyu Islands) को छीनने की जो कोशिश कर रहा है,वह पॉट्सडैम घोषणा की उल्लंघन है।

    मैं इतिहास के प्रति उदासीन नहीं हूं । द्वितीय विश्व युद्ध मानव जाति के इतिहास में सब से बड़े पैमाने वाला अभूतपूर्व भारी विध्वंसक युद्ध था। विभिन्न देशों के 6 करोड़ लोग युद्ध और यातना शिविरों में मारे गए। इसकी भरपाई संभव नहीं है। युद्ध के दौरान चीनी नागरिकों पर हमलावर जापान के सैनिकों ने जो दिल दहलाने वाली भयानक अत्याचार किया था ,इस के लिए इतिहास जापान को कभी माफ़ नहीं करेगा। जापान ने चीन पर जो आक्रमण किया, वह एक ऐतिहासिक तथ्य है। मेरा मानना है कि इतिहास से सबक लेकर उज्जवल भविष्य के लिए निरंतर प्रयास सही ऐतिहासिक विकल्प है। इसीलिए मैं चाहता हूं कि द्वितीय विश्व युद्ध से पैदा युद्ध के घाव का इलाज करने के लिए जापान सरकार को आक्रमण प्रभावित देशों से औपचारिक माफी मांगनी चाहिए। जापान सरकार द्वारा ईमानदारी से माफी मांगना अपने लोगों और अगली पीढ़ी के लिए सबसे जिम्मेदार व्याख्यान है। फासिस्ट विरोधी विश्व युद्ध के मैदान में चीनी जनता और सैनिकों ने कंधे से कंधा मिल कर फासिस्ट जापानी हमलावरों का अदम्य मुकाबला किया और अपने त्याग ,बलिदान ,वीरता और महानतम कुर्वाणियों से इस विभीषिका युद्ध में जापानी सैन्यवाद का खत्म किया था । चीन के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में विजय पाने से मानव जाति के शांतिपूर्ण विकास को वापस लौटाया।

    मीनू:अंत में बसु जी ने लिखा है......यह शांति का युग है।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अब तक 70 वर्षों में दुनिया बदल चुकी है। इस युग में, इस समय में विस्तारवाद को कोई स्थान नहीं है। आज दुनिया को विकासवाद चाहिए, विस्तारवाद नहीं।यह बड़ी ख़ुशी की बात है कि आगामी 3 सितंबर को चीन सरकार चीनी जनता के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध और विश्व फ़ासिस्ट विरोधी युद्ध की विजय की 70वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाएगी, जो किसी भी देश के विरुद्ध नहीं होगा।विश्व के फासिस्ट विरोधी युद्ध की विजय तथा चीनी जनता के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध की विजय की 70वीं वर्षगांठ को मनाने में सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि इतिहास को न भूलना है। चीनी जनता के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध के शिकारों और शहीदों को मेरा नमन और 31 दिसम्बर 1932 को महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "प्रश्न" नाम से एक कविता लिखी, इस लेख का अंत इसी पंक्ति से करने की इजाज़त चाहूंगा -

    भगवान तुमने युग-युग में बार-बार इस दयाहीन संसार में। अपने दूत भेजे हैं। वे कह गए हैं - क्षमा करो , कह गए हैं - प्रेम करो , अंतर से विद्वेष का विष नष्ट कर दो। वरणीय हैं वे , स्मरणीय हैं वे , तो भी आज दुर्दिन के समय उन्हें निरर्थक नमस्कार के साथ बाहर के द्वार से ही लौटा रहा हूं।

    अनिल:(बसु जी को धन्यवाद और उन के पत्र पर टिप्पणी), चलिए, अगला पत्र हम पढ़ते हैं पश्चिम बंगाल से विधान चंद्र सान्याल जी का। उन्होंने लिखा है.....

    बहुत दुख की बात है कि 13 अगस्त की उत्तरी चीन के थ्येन चिन मेँ खतरनाक रासायनिक पदाथॉ के गोदाम मेँ हुए जबरदस्त धमाकॉ मेँ 150लोगों की मौत हो चुकी थी । साथ ही साथ 701 लोगों का अस्पतालॉ मेँ इलाज चल रहा है , जिनमें से 70 लोगॉ की स्थिति गंभीर बतायी गयी है। पीड़ित सभी लोगों के परिबार परिजनों के प्रति हम संवेदना प्रकट करते हैं। धमाकों के बाद स्थानीय सरकार और केंद्र सरकार ने सभी कदम उठाए। आशा करते हैं कि स्थिति जल्द ठीक हो जाएगी।

    सी आर आई हिन्दी सेवा के साथ ताल्येन शहर का दौरा करना अच्छा लगा। ताल्येन शहर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा चुने गये स से बढ़िया व सुन्दर शहरॉ मेँ से एक है। तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ नीला आसमान , स्वच्छ हरा समुद्र , सफेद रेत और काली चट्टान इस शहर के समुद्री दृश्य परिचायक है। इस शहर के समुद्र तट के आसपास प्राकृतिक दृश्य मन को एक काल्पनिक जगत पर ले जाते हैं । चौक संस्कृति ताल्येन शहर की एक अलग पहचान है । हरी घास, रंगीन फुल, सफेद कबुतर फव्वारे , मूर्तिया और जापानी व रूसी वास्तु शैली में बनी इमारतें पर्यटकों को मोह लेती हैं। यहां के शिंगहाईवान चौक का कुल क्षेत्रफल 17 लाख 60 हजार वर्ग मीटर है और वह चीन मेँ सबसे बड़ा चौक माना जाता है । ताल्येन शहर के बारे में जानकारी पसंद आई। आशा करता हूं कि मुझे भी वहां जाने का मौका मिलेगा।

    बहुत खुशी की बात है कि जापान बिरोधी युद्ध की विजय की 70वीँ वर्षगांठ की संगोष्ठी भारत मेँ आयोजित हुई । वास्तव में विश्व फासीवाद विरधोधी युद्ध की मुख्य भूमि मेँ से एक है चीन । और चीन मेँ फासीवाद विरोधी युद्ध का समय सबसे लंबा रहा । चीनी जनता ने मिलकर शत्रुओं का सामना किया और जीत हासिल की। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने हमेशा इस युद्ध में चीन का साथ दिया।

    मीनू:आगे विधान चंद्र सान्याल जी ने लिखा है......तिब्बत की 50 वीं बर्षगांठ पर सी आर आई वेबपेज पर जो विशेष पेज रखा गया है, इसके लिए सीआरआई को धन्यवाद। तिब्बत की 50वीं वर्षगांठ पर मुझे स्पष्ट रूप से नहीं पता। यहां तक लोकतांत्रिक सुधार का सवाल है , तिब्बत मेँ 1959 मेँ लोकतांत्रिक सुधार खसोंग गांव मेँ शुरू हुए। कृपया इस बारे में विस्तृत जानकारी दें। तिब्बत की 50वी बर्षगांठ पर " तिब्बत मेँ सबसे पहले लोकतांत्रिक सुधार शुरू करने वाला गांव - खसोंग गांव " शीर्षक लेख अच्छा लगा।

    तिब्बत की 501 वीं वर्षगांठ पर विशेष रिपोर्ट "तिब्बती चिकित्सालय मेँ रहस्यमय तिब्बती औषधि का महसुस करेँ " शीर्षक रिपोर्ट भी पढ़ी और इससे जानकारी हासिल हुई। तिब्बती चिकित्सा बिश्व की चार पारंपरिक चिकित्सा मेँ एक है। तिब्बत के ल्हासा शहर के पास याओबांग नामक एक पहाड़ है , जिस पर करीब 500 से ज्यादा किस्मों की जड़ी बूटियॉं मौजूद हैं। हर जड़ी बूटी का अलग अलग नाम है। इन जड़ी बूटियों को ढूंढने का काम बहुत जटिल है। लेकिन जब इन जड़ी बूटियों से रोगियॉं का इलाज किया जाता है और वे स्वस्थ होते हैं तो खुशी होती है। छिंगहाइ तिब्बत पठार मेँ अव 2000 से ज्यादा तरह की वनस्पति , 190 तरह जानवर और 80 प्रकार की खनिज औषधि इस्तेमाल मेँ लायी जा सकती है। विस्तृत जानकारी के लिए शुक्रिया।

    अनिल:विधान चंद्र सान्याल जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, आगे आप को सुनाया जा रहा है हमारे पुराने दोस्त छत्तीसगढ़ से चुन्नीलाल कैवर्त जी का पत्र। उन्होंने लिखा है.....चाइना रेडियो इंटरनेशल में सेवारत सभी भाई बहनों को मेरा प्यार भरा नमस्कारl आशा है,आप सब स्वस्थ एवं सुखमय होंगे l

    "सेतु संबंध" त्रैमासिक पत्रिका का अगस्त-अक्टूबर,2015 अंक प्राप्त हुआ l जिसके लिए पत्रिका के सम्पादक मंडल सहित सी.आर.आई. का हार्दिक धन्यवाद l पिछले अंकों की तरह यह ताज़ा अंक के कलेवर,मुद्रण एवं साज सज्जा आकर्षक और सुन्दर है l पहली ही नज़र में यह पत्रिका,पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है l रंगीन तस्वीरों सहित पत्रिका के सभी लेख दिलचस्प एवं सूचनाप्रद लगे l भारत और चीन के बीच सहयोग की अनंत संभावनाएं है lश्री प्रमोद जोशी द्वारा कवर स्टोरी के रूप में प्रस्तुत चीन -भारत संबंधों की जानकारी सटीक एवं शिक्षाप्रद लगी l जिसमें दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की परस्पर एक दूसरे के देशों की सफल यात्रा एवं ऐतहासिक समझौतों का सचित्र वर्णन है l भारतीय पर्यटक एवं कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नाथूला दर्रा खोले जाने से लेकर दोनों देशों के बीच आर्थिक विकास के नये-नये रास्तों की सारगर्भित जानकारी मिली l

    योग प्राचीन सभ्यता वाले चीन और भारत दो विशाल राष्ट्रों के बीच आदान प्रदान का महत्वपूर्ण तत्व है l योग से शरीर निरोग रहता है और मन भी शांत रहता है l इसी प्रकार चीनी थाई छी शरीर और मष्तिष्क दोनों के लिए लाभदायक है lचीन के थाई छी और भारत के योग के बीच बहुत-सी समानतायें हैं l प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपनी पेईचिंग यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री खछयांग जी के साथ स्वर्ग मंदिर में योग और थाई छी की संयुक्त प्रस्तुति के दर्शन किये l यह हमारे दोनों देशों के मजबूत होते सांस्कृतिक रिश्तों का ताज़ा परिचायक हैl अखिल पाराशर जी के लेख से चीन में बढ़ते योग के जूनून की रोचक जानकारी मिली l गोविन्द सिंह जी का लेख 'ड्रोन पत्रकारिता के युग में ' बहुत ही दिलचस्प और ज्ञानवर्धक लगा l ड्रोन न सिर्फ युद्ध एवं जासूसी ,बल्कि पत्रकारिता के लिए भी बेहद उपयोगी है l निःसंदेह आने वाले दिनों में खोजी पत्रकार जमकर इसका उपयोग करेंगे l चंद्रिमा जी द्वारा प्रस्तुत एक चीनी दंपति की कहानी ने दिल को छू लिया l ल्यू चिंग फिंग और उनकी पत्नी थोंग फंग लैन का प्रेम वाकई में सच्चा और अद्भुत है l ऐसा प्रेम दुनियां में बहुत कम देखने को मिलता है l उन दोनों के रहन-सहन-जीवन के बारे में रोचक जानकारी मिली lदक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में 12 से 16 जून तक तीसरा चीन-दक्षिण एशिया एक्सपो और 23 वां खुनमिंग आयात-निर्यात मेला आयोजित हुआ था l एक्सपो में भारतीय मंडप में प्रदर्शित भारतीय वस्तुओं की लोकप्रियता के सम्बन्ध में हैया जी की रिपोर्ट भी सार्थक और महत्वपूर्ण लगी l

    मीनू:अंत में चुन्नीलाल कैवर्त जी ने लिखा है.....मूंग दाल का चीला मैंने खुद बनाया और इसके स्वाद का मित्रों के साथ आनंद लिया l क्या यह चीनी व्यंजन है या भारतीय ? यह भारतीय डिश है चुन्नी लाल जी। आगे लिखते हैं कि इसका स्वाद मजेदार है l 'आओ चीनी भाषा सीखें' में चीनी वाक्य सिखाने का प्रयास उत्तम है lलेकिन इन वाक्यों को यदि व्याकरण के साथ समझाते चलें ,तो इस पेज की उपयोगिता और बढ़ जायेगी l चीनी भाषा सीखने वाले छात्रों को इससे लाभ मिलेगा । पत्रिका के आख़िरी पेज में पाठकों की प्रतिक्रिया,सुझावों एवं शिकायतों को स्थान देने पर पत्रिका में चार चांद लग जाएगा l अंत में पत्रिका के सफल प्रकाशन के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद एवं बधाई !

    अनिल:चुन्नीलाल कैवर्त जी, आपका पत्र मिलकर हमें बहुत खुशी है। हम यहां आपको भी स्वस्थ एवं सुखमय की शुभकामनाएं देते हैं। चलिए, अंत में पेश है ओड़िशा से सुरेश अग्रवाल जी का पत्र। उन्होंने लिखा है.....

    30 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों का ज़ायज़ा लेने के बाद साप्ताहिक "सण्डे की मस्ती" का ताज़ा अंक भी हमने पूरे मनोयोग से सुना। कार्यक्रम की शुरुआत "मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी" शीर्षक चीनी गाने के साथ किया जाना अच्छा लगा। अपने देश भारत में राजस्थान के उदयपुर में विशाल सौर दूरबीन लगने का समाचार सीआरआई से प्रसारित करने का शुक्रिया। वेनिस की तरह सन 1230 बने में नहरों के शहर पर दी गई जानकारी अच्छी थी, पर उच्चारण सम्बन्धी कठिनाई के चलते उसका नाम नोट नहीं किया जा सका। चीन में लियांग नामक युवक द्वारा पूरे बीस साल की कड़ी मेहनत के बाद जुटायी गई हीरे की अँगूठी अपनी प्रेमिका को भेंट कर उसका दिल जितना, वाकई एक बड़ी मिसाल है। एक चीनी लड़की के ऐसे रक्तसमूह की चर्चा, जो कि पूरे चीन में केवल नौ लोगों का है, आश्चर्यचकित करने वाला समाचार है। दक्षिण भारत के मल्लपुरम् का वह गाँव जहाँ सर्वाधिक जुड़वाँ जोड़े रहते हैं और दो की बजाय अब तीन जुड़वाँ बच्चे भी पैदा होने लगे हैं, सचमुच यह तो कुदरत का करिश्मा है। गत सप्ताह प्रस्तुत "कैसे बनें एक अच्छा वक्ता" की पहली कड़ी के बाद आज पेश दूसरी कड़ी की सात बातें सुन कर अब हम भी महान वक्ता बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, यदि सफलता मिली तो पूरा श्रेय आपको जायेगा ! अखिलजी की प्रेरक कहानी -"गन्दा तालाब" तो प्रेरक थी ही, धारावाहिक महाभारत की आज की किश्त में भगवान श्रीकृष्ण की "मनुष्य की अपेक्षाएं और संघर्ष" शीर्षक सीख भी शाश्वत थी। आज के जोक्स में सीएनजी बीड़ी, सास को अन्दर लो और बाहर करो के अलावा पेश ऑडियो जोक, सभी लाज़वाब लगे। धन्यवाद एक बेहतरीन मनोरंजक प्रस्तुति के लिये।

    मीनू:आगे सुरेश जी लिखते हैं.....श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" की कड़ी में आज राष्ट्रीय ज्येष्ठजन ने सभा में आकर पासा पूरी तरह पलट दिया। जहाँ राज़ा ने पहले सानचांग के सम्मान में शाकाहारी भोज आयोजित करवाया था, वहीं अब वह उसके प्राणों का प्यासा हो गया और थान भिक्षु का कलेजा निकलवाने पर आमादा हो गया। वैसे भव्य वानर यह भांप चुका है कि ज्येष्ठजन एक प्रेतात्मा है, इसलिये उम्मीद की जानी चाहिये कि वह अपने गुरु सान चांग को बचाने कोई युक्ति ढूढ़ने के साथ-साथ प्रेतात्मा को ठिकाने लगाने में भी सफल हो जायेगा। धन्यवाद।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और मीनू को आज्ञा दीजिए, नमस्कार

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